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Shah Jahan fainted after seeing Aurangzeb's gift

औरंगजेब का तोहफा देखकर बेहाश हो गया था कैदी शाहजहां

एक मुगलिया राजकुमार जिसने अपने भाईयों (दाराशिकोह, शाहशुजा और मुराद बख्श) की निर्मम हत्या करवाई और अपने पिता को मृत्युर्पयन्त कैद में रखा तथा हिन्दुस्तान पर आधी सदी तक राज किया। इतना ही नहीं, उसका एक पुत्र विदेश भागने को मजबूर हुआ, एक पुत्र और पुत्री की मृत्यु भी कैद में ही हुई तथा एक अन्य पुत्र को आठ साल कैद में रहना पड़ा।

जी हां, मैं मुगल बादशाह औरंगजेब की बात कर रहा हूं, जिसका पूरा नाम थाअब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब आलमगीर पादशाह गाजी।उत्तराधिकार के संघर्ष में सामूगढ़ की जंग जीतने के पश्चात औरंगजेब सबसे पहले आगरा पहुंचा जहां उसने अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में कैद कर लिया।

आगरा किले के शाहबुर्ज महल में आठ वर्षों के कैदी जीवन के दौरान ही शाहजहां की मौत हुई थी। आज हम आपको उस घटना से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसमें औरगंजेब ने अपने कैदी पिता शाहजहां को अलंकृत बक्शे में एक तोहफा भिजवाया था, जिसे देखते ही वह बेहाश हो गया था।

अब आपका सोचना लाजिमी है कि आखिर में उस अलंकृत बक्शे में ऐसा क्या था, जिसे देखते ही कैदी शाहजहां बेसुध होकर गिर पड़ा? यह संवेदनशील तथ्य जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

दाराशिकोह से नफरत करता था औरंगजेब

मुगल बादशाह शाहजहां के चार बेटे थे - दाराशिकोह, औरंगजेब, शाहशुजा और मुराद बख्श। मुगल बाशाह शाहजहां ने अपने शासनकाल में ही दाराशिकोह को मुगल साम्राज्य का भावी शासक स्वीकार कर लिया था। शाहजहां ने दाराशिकोह को सर्वदा मुगल दरबार में बनाए रखा, वहीं औरंगजेब, शाहशुजा तथा मुराद बख्श को अन्य प्रान्तों नियुक्त किया गया था। 

एक अन्य तथ्य यह है कि शाहजहां ने अपने ताजपोशी के दिन दाराशिकोह को 60000 जात तथा 40000 सवार का मनसब प्रदान किया था। इतना ही नहीं, बतौर शहजादा दाराशिकोह को मुगल राजकोष से दो लाख रुपए एक मुश्त दिए गए। इसके अतिरिक्त दारा शिकोह को प्रतिदिन एक हज़ार रुपए का दैनिक भत्ता मिलता था।

वहीं दूसरी तरफ औरंगजेब और शाहशुजा को 20000 जात 15000 सवार का मनसबदार बनाया गया, जबकि मुराद बख्श को केवल 15000 जात तथा 12000 सवार की मनसबदारी दी गई थी। इस प्रकार अन्य मुगलिया शहजादों के मुकाबले दाराशिकोह को सर्वाधिक मनसब मिलने से औरंगजेब अपने बड़े भाई औरंगजेब से नफरत करने लगा था।

उपरोक्त तथ्यों से इतर जो सर्वाधिक ध्यान देने वाली बात है, वो यह है कि मुगल राजकुमार दाराशिकोह कुरान और सूफी रहस्यवाद में गहरी रूचि रखने के साथ-साथ हिन्दू धर्मग्रन्थों के प्रति ज्यादा प्रभावित था। दाराशिकोह ने शीर्र--अकबर नाम से 52 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करवाया। दाराशिकोह के काव्य संग्रह अक्सीर--आजम से उसकी सर्वेश्वरवादी प्रवृत्ति का बोध होता है।

दाराशिकोह द्वारा लिखित एक चर्चित पुस्तक मज्म-उल-बहरैन’ (हिन्दी अर्थदो समुद्रों का संगम) में सूफीवाद और वेदान्त के शास्त्रीय शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। प्रतिभाशाली लेखक तथा दार्शनिक दाराशिकोह ने सूफी संतों के जीवन चरित्र पर आधारित दो पुस्तकें लिखी थीं – ‘सकीनात अल औलिया और सफीनात अल औलिया। वहीं दाराशिकोह ने तारीकात--हकीकत तथा रिसाला--हकनुमा नामक पुस्तकों में सूफीवाद का दार्शनिक विवेचन भी किया था। कुछ कट्टर आलोचकों ने लिखा है कि दाराशिकोह को कई बार रामनामी ओढ़कर सार्वजनिक स्थलों पर भी देखा गया था।

ऐसे में हिन्दुस्तान को दार-उल-इस्लाम’ (इस्लाम का देश) में परिवर्तित करने की चाह रखने वाला कटटर सुन्नी मुसलमान  औरंगजेब अपने बड़े भाई दाराशिकोह की हिन्दू धर्म के प्रति उदार मनोवृत्ति के चलते उसे काफिर तथा इस्लाम का अपराधी मानने लगा था।

औरंगजेब का उत्तराधिकार युद्ध

साल 1657 में बादशाह शाहजहां जैसे ही बीमार पड़ा, मुगलिया साम्राज्य पर कब्जे के लिए उसके सभी बेटों विशेषकर औरंगजेब और दाराशिकोह में जंग शुरू हो गई। उत्तराधिकार युद्ध के दौरान औरंगजेब के मुकाबले में शाहशुजा और मुराद बख्श के पास बड़ी सेना थी किन्तु औरंगजेब ने इस्लाम के नाम शाहशुजा और मुराद बख्श को अपनी तरफ मिला लिया।

आखिरकार औरंगजेब और दाराशिकोह के मध्य 29 मई 1658 ई. को आगरा से तकरीबन 16 किलोमीटर दूर सामूगढ़ में निर्णायक जंग हुई। सामूगढ़ की जंग के दौरान दोनों पक्षों की तरफ से 50 हजार से 60 हजार सैनिक मौजूद थे। इटालियन इतिहासकार निकोलाओ मनूची लिखता है कि दारा शिकोह की सेना में पेशेवर सैनिक नहीं थे। उनमें से बहुत से सैनिक या तो नाई थे, या फिर क़साई या साधारण मज़दूर। इसमें कोई दो राय नहीं है, कि दाराशिकोह के मुकाबले औरंगजेब एक कुशल सेनापति था।

दाराशिकोह के पास शक्तिशाली मुगल तोपें तथा पर्याप्त मात्रा में सैनिक मौजूद थे किन्तु मई की भीषण गर्मी में दाराशिकोह अपनी हाथी से उतरकर घोड़े पर सवार हो गया। जिससे मुगल सेना में यह अफवाह फैल गई कि दाराशिकोह मारा गया। ऐसे में दाराशिकोह की सेना में भगदड़ मच गई और औरंगजेब बड़ी आसानी से सामूगढ़ की जंग जीत गया। वहीं दाराशिकोह अपनी जान बचाकर वहां से भाग निकला।

औरंगजेब ने शाहजहां को बनाया कैदी

सामूगढ़ की जंग जीतने के पश्चात औरंगजेब सीधे आगरा पहुंचा, किन्तु शाहजहां ने आगरा किले का मुख्य द्वार बंद करवा दिया। फिर क्या था, औरंगजेब ने यमुना से आगरा किले में जाने वाले पानी को रूकवा दिया। आखिरकार बाध्य होकर शाहजहां को आगरा किले का मुख्य द्वार खोलना पड़ा। आगरा किले में पहुंचते ही औरंगजेब ने सबसे पहले शाहजहां को कैद कर लिया।

औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को आगरा किले की जिस इमारत में कैद करके रखा था, उसे शाह बुर्ज अथवा मुसम्मन बुर्ज कहा जाता है। इसी छह मंजिला भवन से शाहजहां कभी आदेश जारी किया करता था। शाही महिलाएं शाह बुर्ज से ​​हाथियों का युद्ध देखा करती थीं।

शाहजहां के जीवन के अंतिम आठ वर्ष (जुलाई 1658 से जनवरी 1666 ई.) मुसम्मन बुर्ज में ही बीते। जहां उसकी बड़ी बेटी जहांआरा बेगम ने अपनी स्वेच्छा से शाहजहां के साथ आठ साल तक कारावास में हिस्सा लिया और अपने पिता की सेवा-सुश्रुषा की। मुसम्मन बुर्ज से ताजमहल निहारते हुए जनवरी 1666 ई. में शाहजहां की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात शाहजहां को ताजमहल में उसकी प्रिय बेगम मुमताजमहल के बगल में दफनाया गया।

तोहफा देखकर बेहोश हो गया था शाहजहां

सामूगढ़ की निर्णायक जंग हारने के बाद दाराशिकोह मुल्तान, थट्टा, अजमेर आदि स्थानों पर भटकता रहा। अंत में औरंगजेब के सैनिकों ने उसे कैद कर लिया और दिल्ली ले आए। सबसे पहले कैदी दाराशिकोह को अपमानित किया गया तत्पश्चात दाराशिकोह को भिखमंगों की तरह गन्दे कपड़े पहनाकर हथिनी पर बैठाकर घुमाया गया। दारा शिकोह के पीछे एक दूसरे हाथी पर उसका 14 वर्ष का बेटा सिफ़िर शिकोह सवार था।

इसके बाद औरंगजेब के आदेश पर दाराशिकोह और उसके बेटे सिफ़िर शिकोह को जेल में डाल दिया गया। एक रात औरंगजेब और उसका बेटा जेल में खाना पका रहे थे, तभी एक जल्लाद ने दाराशिकोह का सिर काट डाला। इतिहासकार अवीक चन्दा अपनी किताब दारा शिकोह : द मैन हू वुड बी किंग में लिखते हैं कि औरंगजेब ने दारा शिकोह के कटे सिर को शाहजहां के पास तोहफे में भिजवा दिया जबकि बाकी हिस्से को दिल्ली में ही हुमायूं के मकबरे में दफन करवा दिया।” 

वहीं इतालवी यात्री निकोलाओ मनूची अपनी किताब स्टोरिया दो मोगोरमें लिखता है कि जेल में दाराशिकोह अपने बेटे के साथ खाना बना रहा था, तभी सैनिकों ने दाराशिकोह का सिर उसके बेटे के सामने ही काट डाला। तत्पश्चात औरंगजेब ने दारा​ शिकोह का कटा हुआ ​सिर एक अलंकृत बॉक्स में रखकर यह कहलवाकर भिजवाया कि— ‘तोहफ़ा क़बूल करें। आपका बेटा आपको भूला नहीं है।

शाहजहां उस तोहफे को देखकर बेहद खुश हुआ और कहा— “ख़ुदा का शुक्र है, औरंगज़ेब को अभी भी अपने पिता की याद है।किन्तु शाहजहां ने बॉक्स को जैसा ही खोला, उसमें दाराशिकोह का कटा हुआ सिर देखकर बेहाश हो गया। मनूची आगे लिखता है कि शाहजहां के होश आने पर वह अपनी दाढ़ी तब तक नोचता रहा, जब तक उसके चेहरे से खून नहीं निकलने लगा।

दारा शिकोह की सेना का प्रधान तोपची और इतालवी यात्री मनूची अपनी किताब स्टोरिया दो मोगोरमें यह भी लिखता है कि औरंगजेब के आदेश पर दाराशिकोह का सिर ताजमहल के प्रांगण में गाड़ दिया गया ताकि शाहजहां जब भी ताजमहल को देखे, तब उसे बार-बार इस बात का अहसास हो कि उसके प्रिय बेटे का सिर वहां सड़ रहा है।

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