भारत में यदि हिन्दू धर्म की बात की जाए तो इसके अनुयायियों की संख्या के आधार पर यह विश्च का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। हिन्दू धर्म को विश्व का सबसे प्राचीनत धर्म माना जाता है। हिन्दू धर्म केवल एक सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की पद्धति है। हिन्दू धर्म अपने अन्दर कई तरह के सम्प्रदाय, दर्शन और उपासना पद्धितयों को समेटे हुए है। भारत के अतिरिक्त हिन्दू धर्म के अनुयायी वर्तमान में नेपाल, मॉरिशस, सूरीनाम और फिजी में बहुसंख्यक रूप में मौजूद हैं। इस स्टोरी में हम आपको दुनिया के उन राज्यों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कभी हिन्दू धर्म का बोलबाला था।
कम्बुज (कम्बोडिया)
चीनी साहित्य में हिन्द-चीन के सर्वप्राचीन राज्य कम्बुज को फूनान कहा गया है। इस अतिप्राचीन राज्य की स्थापना प्रथम शताब्दी में कौण्डिन्य नामक ब्राह्मण ने की थी। कौण्डिन्य के आगमन से पूर्व फूनान के निवासी जंगली और असभ्य थे। कौण्डिन्य ने ही यहां के निवासियों को वस्त्र पहनना सिखाया। कौडिन्य के वंशजों ने 100 वर्षों तक शासन किया इसके पश्चात फूनान के हिन्दू राजाओं ने कम्बोडिया, कोचीन-चीन, स्याम तथा मलय प्रायद्वीप के कुछ भागों को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
सातवीं शताब्दी में कम्बुज स्वतंत्र हिन्दू राज्य बन गया। यहां के प्रारम्भिक शासकों में श्रुतवर्मन और उसके पुत्र श्रेष्ठवर्मन का नाम प्रसिद्ध है। यहां भववर्मन ने एक दूसरे राजवंश की स्थापना की। महेन्द्रवर्मन और ईशानवर्मन इस वशं के शक्तिशाला राजा हुए। इसके बाद कम्बुज पर शैलेन्द्र राजाओं का आधिपत्य हो गया। कम्बुज को शैलेन्द्र राजाओं के आधिपत्य से मुक्त कराने का श्रेय जयवर्मन नामक शक्तिशाली राजा को दिया जाता है।
जयवर्मन ने कम्बुज पर 802 से 850 ईस्वी तक शासन किया। 877 ईस्वी में कम्बुज में इन्द्रवर्मन ने एक अन्य राजवंश की स्थापना की। इस वंश का सबसे शक्तिशाली और विजेता राजा यशोवर्मन (889 से 900 ईस्वी) था। इन्द्रवर्मन द्वारा स्थापित वंश ने कम्बुज पर 1001 ईस्वी तक शासन किया। इस वंश के शासनकाल में कम्बुज का स्याम और लाओस पर भी अधिकार स्थापित हो चुका था।
11वीं शताब्दी में सूर्यवर्मन ने कम्बुज में एक दूसरे राजवंश की स्थापना की। इसके बाद शक्तिशाली राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने कम्बुज पर 1113 से 1145 ईस्वी तक शासन किया। कम्बोडिया स्थित अंकोरवाट का प्रख्यात विष्णु मंदिर उसकी कीर्ति का स्मारक है। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मन्दिर आज भी संसार का सबसे बड़ा मन्दिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। इस मंदिर को टाइम मैगज़ीन ने दुनिया के पांच आश्चर्यजनक चीज़ों में शुमार किया था। कम्बुज के अन्तिम और सबसे यशस्वी शासक जयवर्मन सप्तम के बाद इस राज्य का इतिहास अन्धकारपूर्ण हो जाता है।
चम्पा (वियतनाम)
हिन्दू राज्य चम्पा की स्थापना ईसा की दूसरी अथवा तीसरी शती में मानी जाती है। इस राज्य के प्रारम्भिक शासकों में भद्रवर्मन प्रमुख है। उसने अपने राज्य का विभाजन तीन प्रान्तों में किया था- अमरावती (उत्तरी प्रान्त), विजय (मध्य प्रान्त) और पाण्डुरंग (दक्षिणी प्रान्त)। चीनीयों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात विद्वान राजा भद्रवर्मन ने माईसोन में भगवान शिव के मंदिर का निर्माण करवाया। भद्रवर्मन के उत्तराधिकारी गंगाराज अपना सिंहासन त्यागकर भारत चला आया और गंगा नदी के तट पर तपस्या करने लगा। अतः चम्पा को अव्यवस्था और गृहयुद्ध का शिकार होना पड़ा। कालान्तर में चम्पा के विभिन्न राजाओं में शम्भुवर्मन, इन्द्रवर्मन, हरिवर्मन और सिंहवर्मन का नाम आता है। तेरहवीं शती में चम्पा को मंगोल आक्रमण का शिकार होना पड़ा।
वर्मा तथा स्याम (थाईलैंड)
वर्मा तथा स्याम में हिन्दू संस्कृति का प्रवेश अतिप्राचीन काल से ही हो चुका था। सातवीं शती में वर्मा के प्रमुख हिन्दू राज्य का नाम द्वारावती था। यहीं से स्याम और लाओस में हिन्दू संस्कृति का प्रचार-प्रसार हुआ। वर्मा के सबसे प्रसिद्ध राजा अनिरूद्ध ने 1044 से 1077 ईस्वी तक शासन किया।
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उसने एक भारतीय राजकुमारी से विवाह किया था। अनिरूद्ध ने पेगन (अरिमर्दनपुर) में अपनी राजधानी बनाई। बौद्ध मतानुयायी होने के कारण उसने अनेक पगोडा और मठों का निर्माण करवाया। उसके उत्तराधिकारियों में क्यानजित्थ का नाम प्रसिद्ध है जिसने अरिमर्दनपुर में प्रसिद्ध आनन्द मंदिर का निर्माण करवाया था। 1105 ईस्वी में बना यह बौद्ध मंदिर वर्तमान में म्यांमार के बगान में स्थित है।
मलय प्रायद्वीप (दक्षिणी थाईलैंड, म्यांमार और मलेशिया)
मलय प्रायद्वीप एशियाई महाद्वीप का सबसे दक्षिणी बिंदु है। वर्तमान में दक्षिणी थाईलैंड, म्यांमार और मलेशिया इसमें शामिल हैं। सिंगापुर का भी इस क्षेत्र के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध है। ईसा की प्रथम पांच शताब्दियों में भारतीयों ने मलय प्रायद्वीप में कई राज्यों की स्थापना कर ली थी। तक्कोल यहां का प्रमुख व्यापारिक स्थल था, जहां से भारतीय व्यापारी सूदूरपूर्व के देशों में जाते थे। आज भी मलाया यानि मलेशिया के विभिन्न भागों से मंदिर और मूर्तियों के खण्डहर प्राप्त होते हैं।
सुमात्रा, जावा, बोर्नियों तथा बाली के हिन्दू राज्य
पूर्वी द्वीपों के हिन्दू राज्यों में सुमात्रा, जावा, बोर्नियों तथा बाली का नाम शामिल है। सुमात्रा के सबसे प्राचीन हिन्दू राज्य का नाम ‘श्रीविजय’ था। सातवीं शती में जयनाग नामक बौद्ध शासक ने यहां राज किया। चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार, श्रीविजय बौद्ध अनुशीलन का सबसे प्रसिद्ध केन्द्र था।
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प्राचीन भारतीय साहित्य में जावा को यवद्वीप कहा गया है। जावा में कई हिन्दू राज्य थे। जावा से प्राप्त संस्कृत लेखों में पूर्णवर्मन नामक राजा का उल्लेख मिलता है जिसने छठी शताब्दी में यहां शासन किया। चीनी ग्रन्थों से जावा तथा कलिंग के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध का पता चलता है। आठवी शताब्दी में जावा, सुमात्रा तथा मलाया (मलेशिया) के भूभागों पर ‘शैलेन्द्र’ नामक एक नए राजवंश का उदय हुआ। इस वंश के शासक ‘महाराज’ की उपाधि धारण करते थे। शैलेन्द्र राजवंश के शक्तिशाली शासकों ने पूर्वी द्वीपों पर एकछत्र राज किया। जावा का बोरोबुदूर बौद्ध स्तूप शैलेन्द्र वंशी राजाओं की कीर्ति का स्मारक है। दक्षिण के चोलों के आक्रमण के कारण शैलेन्द्र वंश का पतन हो गया।
सुमात्रा तथा जावा के अतिरिक्त बोर्नियो तथा बाली भी हिन्दू संस्कृति के प्रमुख केन्द्र थे। बोर्नियों के संस्कृत लेख से मूलवर्मा नामक हिन्दू शासक का उल्लेख मिलता है। बोर्नियों के अभिलेखों से पता चलता है कि यहां के अधिकांश निवासी ब्राह्मण थे तथा यहां भारतीय संस्कृति का बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार था।
छठी शताब्दी के पूर्व ही बाली में हिन्दू उपनिवेश स्थापित हो चुका था। चीनी साहित्य के अनुसार, बाली का राजपरिवार कौडिन्यकुल से सम्बन्धित था। चीनी यात्री इत्सिंग के विवरणों से जानकारी मिलती है कि बाली बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध केन्द्र था।
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