आज की तारीख में भारत की नौसेना दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली नौ सेनाओं में से एक मानी जाती है। परन्तु यह बात जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि जब यूरोपीय शक्तियों का उदय भी नहीं हुआ था तब चोल राजवंश के पास दुनिया की सबसे शक्तिशाली चोल नौसेना थी। विशेषकर राजराज प्रथम तथा राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में चोल नौसेना अपने शक्तिशाली युद्धपोतों के जरिए सम्पूर्ण हिन्द महासागर पर राज करती थी। चोल नौसेना के बेड़े में शामिल युद्धपोत किस तरह की उन्नत तकनीक से लैस थे तथा चोल नौसेना ने किन-किन बाहरी देशों पर विजय प्राप्त की थी, यह जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
चोल नौसेना का विजय अभियान (Victories of Chola Navy)
चोल साम्राज्य का उदय 9वीं शताब्दी में हुआ। इस साम्राज्य की स्थापना विजयालय (850-887 ई.) ने की। चोल राजवंश ने 9वीं से 13वीं शताब्दी तक शासन किया, इस दौरान चोल शासकों ने अपनी शक्तिशाली नौसेना के जरिए हिन्द महासागर पर राज किया। चोल नौसेना ने अपनी उन्नत जहाज निर्माण तकनीक तथा समुद्री युद्ध कौशल के जरिए दक्षिण पूर्व एशिया में भी एक रणनीतिक उपस्थिति दर्ज की थी।
चालुक्य, मदुरा, दक्षिण मैसूर के गंग राजाओं, केरल (चेर) तथा पाण्डय राज्य पर अधिकार करने के बाद चोल शासक राजराज प्रथम (985-1014 ई.) ने विदेशी राज्यों की तरफ अपना ध्यान दिया। चोल राजा राजराज का पहला लक्ष्य श्रीलंका था, उसने अपनी शक्तिशाली नौसेना के जरिए श्रीलंका के शासक महिन्द पंचम को युद्ध में पराजित किया तथा श्रीलंका द्वीप पर अधिकार करके अनुराधापुरा जैसे ठिकानों का निर्माण किया। राजराज ने श्रीलंका के उत्तरी भाग को चोल साम्राज्य का नया प्रान्त बनाया और इसे ‘मुम्डि चोल मण्डलम’ नाम दिया।
श्रीलंका विजय के पश्चात राजराज चोल ने अपना ध्यान दक्षिण पूर्व एशिया की तरफ लगाया। तत्पश्चात उसने अपने सैन्य अभियानों के जरिए म्यामार और इंडोनेशिया जैसे क्षेत्रों में व्यापार चौकियों की स्थापना की। चोल अभिलेखों से ज्ञात होता है कि राजराज ने कलिंग सहित 12000 पुराने द्वीपों वाले सामुद्रिक प्रदेशों जिसकी पहचान लक्षद्वीप एवं मालदीव के साथ की गई है, को विजित किया।
उपरोक्त सभी द्वीप समूह बाद में चोल साम्राज्य के अपतटीय अड्डे बन गए। चोल शासकों ने समुद्री वर्चस्व के रणनीतिक महत्व को पहचाना और विभिन्न बन्दरगाहों का निर्माण करके नौसेना के बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया। इसके बाद दक्षिण भारतीय तटरेखा के पास प्रमुख बंदरगाह शहरों नागापट्टिनम, ममल्लापुरम और कावेरीपट्टनम को अधीन कर हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में अपना साम्राज्य स्थापित किया।
राजराज प्रथम के बाद उसका योग्यतम पुत्र राजेन्द्र प्रथम (1012-1044) सम्राट बना। उसने सम्पूर्ण श्रीलंका को विजित किया और वहां के शासक महिन्द पंचम को बन्दी बनाकर चोल राज्य भेज दिया जहां 12 वर्षों बाद उसकी मृत्यु हो गई। भारतीय इतिहास में श्रीलंका विजय दक्षिण एशिया से शुरू किए गए बड़े पैमाने पर लंबी दूरी का एकमात्र नौसैनिक हमला है। यद्यपि मालदीव द्वीप समूह की विजय राजराज प्रथम के नौसेना की अद्भुत उपलब्धि थी।
श्रीलंका के बाद राजेन्द्र चोल ने अपने साहसिक अभियानों के जरिए मलेशिया, थाइलैण्ड, सुमात्रा और जावा पर अधिकार कर वहां के शासकों की शक्तियों को नष्ट किया। उसने समुद्र तटीय इलाकों पेगु (म्यांमार), इलामुरीदेसम, कडारम, पेकम, पनाई (इंडोनेशिया) पर भी अपना एकछत्र अधिकार स्थापित किया। राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में शक्तिशाली चोल नौसेना ने पूरे बंगाल की खाड़ी को अपने कब्जे में ले रखा था। यूं कहिए, चोल नौसेना ने बंगाल की खाड़ी को 'चोल झील' बना डाला था।
राजेन्द्र चोल ने अरब सागर स्थित ‘सदिमन्तीय’ नामक द्वीप पर भी अपना अधिकार स्थापित किया। किसी चोल शासक के द्वारा यह पश्चिम का सर्वप्रथम नौसैनिक अभियान था। चोल नौसेना ने दक्षिण-पूर्व एशिया के अतिरिक्त अरब प्रायद्वीप तथा चीन के साथ भी समुद्री सम्बन्ध स्थापित किए। चोल नौसेना ने अपने बन्दरगाहों के जरिए रणनीतिक लाभ उठाकर राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किए और समुद्र में अपने प्रभाव का विस्तार किया।
चोल नौसेना के युद्धपोत और समुद्री रणनीति (Chola Navy's Warships and Maritime Strategy)
चोल नौसेना के पास प्रभावशाली युद्धपोतों की एक पूरी श्रृंखला थी, इन युद्धपोतों को तमिल भाषा में ‘कप्पल’ कहा जाता था। उन्नत तरीके से डिजाइन किए गए ये युद्धपोत लम्बी दूरी की यात्रा करने तथा नौसैनिक युद्ध की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम थे। चोल नौसेना में शामिल कप्पल नामक युद्धपोत उन्नत नेविगेशन सिस्टम, हथियार और रक्षात्मक तंत्र से लैस थे।
चोल नौसेना में अनुभवी कुशल नाविकों को भर्ती किया जाता था जो अपने युद्धपोतों को समुद्री तूफान में भी सुगमतापूर्वक चला सकें। इन्ही अनुभवी नाविकों को नौसैनिक युद्धों में शामिल होने की अनुमति दी जाती थी। शक्तिशाली चोल शासक राजेन्द्र प्रथम ने अपनी नौसैनिक बेड़े को अलग-अलग स्क्वाड्रन में संगठित किया था। इनमें प्रत्येक स्क्वाड्रन का अपना अलग काम था। चोल नौसैना के युद्धपोतों से दुश्मन जहाजों पर मिसाइल और तीर से हमला किया जाता था।
चोल नौसेना की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने जासूसों का विशाल नेटवर्क स्थापित किया था, जो व्यापारिक मार्गों के साथ ही दुश्मन राज्य व दुश्मनों की सटीक जानकारी प्रदान करते थे। इस गतिविधि के जरिए चोल नौसैनिकों को अपने युद्ध अभियानों की योजना सटीकता से बनाने तथा दुश्मन सेना के कमजोर क्षेत्रों को निशाना बनाने में सहायता मिलती थी।
चोल नौसेना के पास थी जहाज निर्माण की उन्नत तकनीक (advanced shipbuilding technology of Chola Navy)
दुनिया की प्रत्येक ताकतवर नौसेना के पास विमानवाहक युद्धपोत होते हैं जिनके डेक पर लड़ाकू फाइटर जेट और मारक क्षमता वाले हेलीकॉप्टर मौजूद रहते हैं। ये विमानवाहक युद्धपोत एक प्रकार से तैरते हुए एयरबेस का काम करते हैं। ठीक इसी तरह से चोल नौसेना में शामिल युद्धपोतों के डेक पर विमानों की जगह सैनिक मौजूद रहते थे। चोल नौसेना के उन्नत किस्म के इन युद्धपोतों का निर्माण दक्षिण भारत के कुशल कारीगरों द्वारा किया जाता था।
चोल नौसेना में शामिल जहाजों के निर्माण के लिए कारीगर सागौन और कटहल की लकड़ी का इस्तेमाल करते थे। दरअसल ये खास लकड़ियां अपनी मजबूती, स्थायित्व और पानी के प्रतिरोध के साथ ही समुद्र की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होती हैं।
चोल कारीगर विशाल युद्धपोतों को बनाते समय मोर्टिस और टेनन तकनीक का इस्तेमाल करते थे। इस तकनीक के तहत एक लकड़ी के टुकड़े में मोर्टिस नामक स्लॉट बनाना और उन्हें दूसरे टुकड़े पर उभरे हुए हिस्सों (टेनन) के साथ फिट करना शामिल था। इस तकनीक के जरिए एक सुरक्षित और मजबूत जोड़ बनता था। चोल जहाजों की एक विशेषता यह भी थी कि इनमें हल्का सा मोड़ होता था, जिससे ये जहाज समुद्री तूफानों के दौरान पानी की विशाल लहरों पर बड़ी आसानी से चलते थे।
चोल नौसेना के जहाजों को लचीला बनाने के लिए लकड़ी के तख्तों के बीच की जगह को नारियल के रेशे और टार जैसी सामग्री से भर दिया जाता था, जिससे इन जहाजों के अन्दर बूंदभर भी पानी नहीं जा पाता था। इतना ही नहीं, इन जहाजों पर लगे मस्तूल और पाल उन्नत रिगिंग सिस्टम से लैस थे। कपास और रेशम से बने पाल पवन ऊर्जा का दोहन कर विशाल जहाजों को तेजी से आगे बढ़ने में मदद करते थे। चोल युद्धपोतों के नीचले भाग में ऐसे कक्ष भी बने होते थे जिनमें बड़ी संख्या में सैनिकों तथा हथियारों के अतिरिक्त रसद तथा माल आदि रखे जाते थे।
गौतलब है कि राजराज प्रथम और उसके पुत्र राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में शक्तिशाली चोल नौसेना के विदेशी सैन्य अभियानों से वाणिज्यिक मिशनों में भी अभूतपूर्व सफलता मिली जिससे चोल राजवंश एक बड़ी समृद्धि की तरफ अग्रसर हुआ।
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