
भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फूले ने दलित महिलाओं की शिक्षा, दलितों में छूआछूत की भावना खत्म करने, बाल विवाह निषेध तथा विधवा पुनर्विवाह के लिए अपना जीवन होम कर दिया। सावित्रीबाई फूले कविताएं भी लिखती थीं। सावित्रीबाई फूले के पति महात्मा ज्योतिराव फूले ही इनके संरक्षक, गुरु और समर्थक थे।
परन्तु आपको यह बात जानकर हैरान होगी कि सावित्रीबाई फूले और ज्योतिराव फूले की कोई जैविक सन्तान नहीं थी। घरवालों और सुसरालवालों के दबाव के बावजूद भी ज्योतिराव फूले ने दूसरी शादी नहीं की। बाद में सावित्रीबाई फूले ने एक पुत्र गोद ले लिया जिसका नाम यशवन्तराव रखा। हैरानी की बात है कि कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी यशवन्तराव से करने को तैयार नहीं था। ऐसा क्यों हुआ, यह जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को पढ़ें।
सावित्रीबाई फूले का जीवन-परिचय
सावित्रीबाई फूले की जन्मतिथि 3 जनवरी, 1831 है। दलित परिवार (माली समुदाय) में पैदा हुई सावित्रीबाई के पिता का नाम खन्दोजी नेवासे तथा माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्री बाई अपने भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। सावित्रीबाई फूले की जन्मस्थली नायगांव है जो महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित है। पूना से नायगांव की दूरी तकरीबन 50 किलोमीटर है।
साल 1841 ई. में सावित्रीबाई फूले तकरीबन 9 वर्ष की थीं तभी उनका विवाह 13वर्षीय ज्योतिराव फूले से हुआ। विवाह के पश्चात सावित्रीबाई फूले अपने पति ज्योतिराव फूले के साथ पूणे में रहने लगी। शादी के समय सावित्रीबाई अनपढ़ ही थीं, परन्तु एक ईसाई धर्मप्रचारक द्वारा दी गई किताब के प्रति जिज्ञासा को देखकर ज्योतिराव फूले ने सावित्रीबाई फूले को शिक्षित करने का निर्णय़ लिया। जबकि उन दिनों दलितों और महिलाओं को पढ़ने का अधिकार ही नहीं था।
सावित्रीबाई फूले के प्राथमिक शिक्षक स्वयं उनके पति ज्योतिराव फूले थे। इसके बाद सावित्रीबाई फूले को माध्यमिक शिक्षा ज्योतिराव फूले के मित्र सखाराम यशवंत परांजपे और केशव शिवराम भावलकर ने प्रदान की। इतना ही नहीं, सावित्रीबाई फूले ने अहमदनगर तथा पूणे से शिक्षक बनने का प्रशिक्षण भी लिया।
तत्पश्चात समाजसुधारक महात्मा ज्योतिराव फूले की मदद से सावित्रीबाई फूले ने महिलाओं की शिक्षा के लिए 5 सितंबर 1848 ई. को एक स्कूल खोला और भारत की पहली महिला शिक्षक होने का गौरव प्राप्त किया।
उस जमाने में एक दलित महिला का शिक्षक होना इतना आसान नहीं था। अत: सावित्रीबाई फूले जब भी स्कूल में पढ़ाने के लिए जाती थीं, तो संकीर्ण मानसिकता के लोग उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां देते थे तथा उन पर गोबर, कीचड़ अथवा गन्दगी फेंक देते थे। ऐसे में वह अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी लेकर जाती थीं जिसे पहनकर वह अपने संकल्प को आगे बढ़ाती थीं।
सावित्रीबाई फूले ने साल 1848 से 1852 ई. के बीच लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले। सावित्रीबाई फूले ने महिलाओं को उनके अधिकारों से रूबरू कराने के लिए 1852 ई. में ‘महिला सेवा मंडल’ की शुरूआत की। इसके अतिरिक्त सावित्रीबाई फूले ने एक महिला सभा के माध्यम से सभी जाति के सदस्यों को आमंत्रित किया तथा सभी से एक साथ मंच पर बैठने की अपेक्षा की। इतना ही नहीं, उन्होंने 28 जनवरी 1853 को गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए ‘बाल हत्या प्रतिबंधक गृह’ की भी स्थापना की।
सावित्रीबाई फूले : एक समाजसुधारक और कवयित्री
जिस समय देश में दलितों की शिक्षा व्यवस्था नगण्य थी, उस समय दलित महिलाओं के शिक्षा की व्यवस्था करना स्वयं में गौरव का विषय है। उस दौर में सावित्रीबाई फूले ने केवल स्वयं को ही शिक्षित नहीं किया बल्कि दलित महिलाओं के लिए भी स्कूल खोला और समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरूद्ध अपनी आवाज बुलन्द की।
सावित्रीबाई फूले ने बाल विवाह, छूआछूत, सती प्रथा तथा विधवा विवाह निषेध जैसी कुप्रथाओं का आजीवन विरोध किया। यहां तक कि 1890 ई. में महात्मा ज्योतिराव फूले के निधन के पश्चात ‘सत्यशोधक समाज’ का भी नेतृत्व किया।
सावित्रीबाई फूले एक बेहतरीन कवयित्री भी थीं। सावित्रीबाई फूले को मराठी भाषा का आदि कवियत्री भी कहा जाता है। साल 1854 में ‘काव्या फुले’ और वर्ष 1892 में ‘बावन काशी सुबोध रत्नाकर’ का प्रकाशन कर सावित्रीबाई ने अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया। सावित्रीबाई ने अपनी कविता ‘गो, गेट एजुकेशन’ के माध्यम से दलित-पीड़ित समुदाय को शिक्षा प्राप्त कर शोषण के जंजीरों से मुक्त होने का संदेश दिया।
दुर्भाग्यवश साल 1897 में पूणे शहर में प्लेग की महामारी फैली। हजारों लोग डर के मारे आसपास के गांवों में पलायन कर गए। उन दिनों महार बस्ती के एक एक प्लेग पीड़ित बच्चे को अपने बाहों में उठाकर अस्पताल ले जाते समय सावित्रीबाई फूले भी इस बीमारी की शिकार बन गईं। 10 मार्च 1897 को रात्रि 9 बजे सावित्रीबाई फूले का देहावसान हो गया।
सावित्रीबाई फूले का दत्तक पुत्र
महात्मा ज्योतिराव फूले नि:सन्तान थे, इसलिए उनके पिता और ससुरालवालों ने उन पर दूसरी शादी करने का दबाव डाला। परन्तु ज्योतिबा फूले ने कहा कि सन्तान नहीं होने का सारा दोष स्त्री पर नहीं डाला जा सकता है। यह भी सम्भव है कि पुरुष में खराबी हो, इस स्थिति में कोई स्त्री यदि दूसरी शादी कर ले तो पति की मानसिक हालत कैसी होगी। अत: फूले दम्पत्ति ने दूसरी शादी करने से इनकार कर दिया।
1864 ई. में सावित्रीबाई फूले और ज्योतिराव फूले ने बेसहारा स्त्रियों, बालिका वधुओं तथा असहाय विधवाओं को सम्मानजनक स्थान देने के लिए एक अनाथालय की स्थापना की थी, जहां हिन्दू विधवा महिलाएं अपना प्रसव करा सकती थीं। इसी अनाथालय में 1873 ई. में काशाबाई नामक एक ब्राह्मण विधवा ने जन्म दिया था, हांलाकि इस बात का प्रमाणिक साक्ष्य मौजूद नहीं है। परन्तु इतना अवश्य है कि यशवन्त का जन्म एक विधवा से हुआ था। महात्मा ज्योतिराव फूले और सावित्री बाई फूले ने उस नवजात का नामकरण संस्कार किया और उसका नाम यशवन्त रखा। सावित्रीबाई फूले और ज्योतिराव फूले ने यशवन्त का पालन-पोषण पुत्रवत किया और फिर बाद में यशवन्त को गोद ले लिया और उसे पढ़ा-लिखा कर एक डॉक्टर बनाया।
सावित्रीबाई फूले के पुत्र यशवंतराव का सत्यशोधक विवाह
सावित्रीबाई फूले के समक्ष एक बड़ी समस्या तब उठ खड़ी हुई जब उनके दत्तक पुत्र यशवन्त की शादी की बारी आई। दरअसल कोई भी पिता अपनी बेटी की शादी यशवन्त से करने को तैयार नहीं था। यह बात फरवरी 1889 ई. की है।
इसलिए सावित्रीबाई फूले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की रीति-रिवाज के मुताबिक जातिपाति, वैवाहिक कर्मकाण्ड का विरोध करते हुए बेटे डॉ. यशवन्त की शादी अपने ही समूह की एक मित्र बाजूबाई ज्ञानोबा निंबंकर और कार्यकर्ता सीतराम जाबाजी आल्हाट की बेटी राधा ससाने (डायनाबा सासाने) से करवाया।
इस प्रकार सावित्रीबाई फूले के बेटे यशवन्त और राधा का विवाह दलित समाज का पहला 'सत्यशोधक' विवाह था। ऐसे में बिना दहेज, बिना जातिपांति और बिना ब्राह्मणवादी रीति-रिवाज के किए जाने वाले सत्यशोधक विवाह की शुरूआत भी सावित्रीबाई फूले ने अपने बेटे यशवन्त से ही शुरू की। सावित्रीबाई का कहना था कि स्त्री-पुरुष के अधिकार एवं कर्तव्य एक हैं, स्त्री न ही दोयम और न ही किसी पुरुष के अधीन है।
तथाकथित उच्च वर्गीय समाज ने इस विवाह को अवैध करार दिया तथा यह भी कहा कि वैवाहिक दम्पत्ति श्राप के भागी होंगे। परन्तु यह विवाह सफल रहा। यह एक संयोग था कि 1897 ई. में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई फूले के दत्तक पुत्र यशवन्त राव का भी निधन हो गया।