श्रीराम का नाम सनातनी बड़ी श्रद्धा के साथ लेते हैं। सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान विष्णु के अवतार हैं श्रीराम। वेदों और पुराणों में श्रीराम का व्यापक उद्धरण मिलता है। सनातन धर्म में यदि कोई श्रीराम का नाम लेता है तो सम्भवतया अवध के चक्रवर्ती राजा दशरथ पुत्र के रूप में ही लेता है। यदि हम राम नाम की बात करें तो महान संत-कवि और समाजसुधारक कबीर दास भी राम नाम का बार-बार स्मरण करते हैं परन्तु वह अपनी पंक्तियों में एक नहीं बल्कि चार राम की बात करतें हैं। ऐसे में इस स्टोरी में हम आपको यही बताने का प्रयास करेंगे कि आखिर में कबीर के राम कौन हैं?
कबीर दास का संक्षिप्त जीवन-परिचय
महान सन्त कबीर दास का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। कबीर दास के जन्म और मृत्यु की तारीख सुनिश्चित नहीं है। हांलाकि कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर दास का जन्म 1398 ई.में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा के दिन हुआ था। भारतीय इतिहास के अनुसार कबीर दास को सिकन्दर लोदी और गुरु नानक के समकालीन माना जाता है।
कबीर दास एक महान कवि और समाजसुधारक भी थे। भक्ति परम्परा के मुताबिक, कबीर दास का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था, उसने लोक लाज के भय से अपने नवजात को वाराणसी के लहरतारा तालाब में फेंक दिया था। तत्पश्चात नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पति ने कबीर दास का पालन-पोषण किया।
कुछ विद्वान कबीर दास को अविवाहित मानते हैं परन्तु कबीर दास गृहस्थ थे। उनकी पत्नी का नाम लोई था। उनके पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था। काशी के वैष्णव संत स्वामी रामानन्द से कबीर दास ने राम नाम की दीक्षा ली थी। गुरु रामानंद की मृत्यु के समय कबीर दास की उम्र महज 13 साल थी।
यदि हम कबीर दास की जाति की बात करें तो उन्होंने कई बार खुद को जुलाहा ही बताया है- ‘जाति जुलाहा मति का धीर। सहज सहज गुण रमैं कबीर।’ अर्थात- जाति का जुलाहा कबीर सहज भाव से राम के गुण में रमता है।
सनातन धर्म में अनन्तकाल से यह धारणा प्रचलित है कि काशी में मरने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसे में इस धारणा को खंडित करने के लिए अपने जीवन के अंतिम दिनों में कबीर दास मगहर चले गए। कबीर दास की मृत्यु के बाद शव संस्कार को लेकर उनके हिन्दू-मुसलमान अनुयायी आपस में झगड़ने लगे।
दरअसल हिन्दू अनुयायी कबीरदास का दाह संस्कार करना चाहते थे और मुस्लिम अनुयायी कबीर दास के शव को दफनाना चाहते थे। कहते हैं, जब कबीरदास के शव से चादर हटाया गया तो वहां केवल फूल पड़े थे। इसीलिए मगहर में कबीर दास की मजार और समाधि दोनों हैं जो महज सौ फिट की दूरी पर स्थित हैं।
कौन हैं कबीर दास के राम
महान संत-कवि कबीर दास ने अपनी पंक्तियों में राम नाम का बार-बार उल्लेख किया है और राम नाम की महिमा अलग-अलग तरीके से समझाने की कोशिश की है, जो निम्नलिखित हैं-
मेरे संगी दोइ जना, एक वैष्णो एक राम।
वो है दाता मुकति का, वो सुमिरावै नाम।।
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि मेरे दो ही साथी हैं, एक वैष्णव और एक राम, वही मेरी मुक्ति का दाता है और मैं उसी का सुमिरण करता हूं।
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में बैठा।
एक राम का सकल पसारा, एक राम त्रिभुवन से न्यारा।।
तीन राम को सब कोई ध्यावे, चौथे राम को मरम न पावे।
चौथा छाड़ि जो पंचम ध्यावै, कहे कबीर सो हम को पावे।।
अर्थ- कबीर दास की उपरोक्त पंक्तियों के मुताबिक, एक राम तो अयोध्या के चक्रवर्ती राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम हैं। वहीं एक प्रकृति में व्याप्त राम जो कण-कण में विराजमान हैं। कबीर ने आत्मा को भी राम कहा है जो सबके हृदय में विद्यमान हैं। कबीर ने आत्माओं के पिता परमात्मा को भी राम कहा है।
कबीरा बन-बन में फिरा, कारन अपने राम।
राम सरीखे जन मिले, तिन सारे सबरे काम।।
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि राम को ढूंढने के लिए मैं वन-वन घूमा जहां मुझे राम की तरह ही भक्त मिल गए और मेरे सभी काम सफल हो गए।
कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढ़ूंढ़े वन माहि।
ऐसे घट-घट राम हैं दुनिया खोजत नाहिं।।
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि हिरण की नाभि में ही कस्तूरी होती हैं परन्तु वह उसके सुगन्ध से आकर्षित होकर वन-वन भटकता है। ठीक उसी प्रकार इस संसार के कण-कण में राम व्याप्त हैं और हम राम को ढूंढते फिरते हैं।
राम नाम सुमिरन करै, सदगुरु पद निज ध्यान।
आतम पूजा जीव दया लहै सो मुक्ति अमान।।
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि जो भी राम का नाम सुमिरन करता है और अपने सद्गुरू के चरणों का ध्यान करता है तथा आत्मा से ईश्वर की पूजा करता है उसकी मुक्ति निश्चित है।
राम रहीमा एक है, नाम धराया दोई।
कहे कबीर दो नाम सूनि, भरम परो मत कोई।।
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि राम और रहीम एक ही ईश्वर के दो नाम हैं। वह आगे कहते हैं राम ओर रहीम दो नाम सुनकर भ्रम में रहने की जरूरत नहीं हैं। अर्थात् कबीर कहते हैं कि ईश्वर एक हैं और उसके नाम अनेक।
सगुण राम और निर्गुण रामा, इनके पार सोई मम नामा।
सोई नाम सुख जीवन दाता, मै सबसों कहता यह बाता॥
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि एक देहधारी राम हैं और निराकार राम है। इन सबसे उपर मेरे राम हैं। यही राम जीवन को सुख प्रदान करने वाले हैं और यही बात मैं सबसे कहता हूं।
घाट-घाट राम बसत हैं भाई, बिना ज्ञान नहीं देत दिखाई।
आतम ज्ञान जाहि घट होई, आतम राम को चीन्है सोई।।
अर्थ- इस संसार के कण-कण में राम व्याप्त हैं और बिना गुरू ज्ञान के राम को पाना असम्भव है। जो आत्मज्ञानी होगा वही राम को पहचान पाएगा।
कबीर माया पापणीं, हरि सूं करे हराम।
मुखि कड़ियाली कुमति की, कहण न देई राम।।
अर्थ- कबीर दास ने इस संसार रूपी माया को पापिन कहा है। यही माया इंसान को भगवान से विमुख करती है और उसे कुमति की तरफ ले जाती है तथा राम नाम से दूर करती है।
चार राम हैं जगत में, तीन राम व्यवहार।
चौथ राम सो सार है, ताका करो विचार॥
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में चार राम हैं, इनमें तीन राम को तो सब जानते हैं- दशरथ पुत्र राम, आत्मा और परत्मा रूपी राम। जबकि चौथे ही असली राम हैं जिन पर गूढ़ विचार करने की जरूरत है।
एक राम दसरथ घर डोलै, एक राम घट-घट में बोलै।
एक राम का सकल पसारा, एक राम हैं सबसे न्यारा॥
अर्थ- इन पंक्तियों में कबीर दास एक बार फिर कहते हैं कि एक दशरथ पुत्र राम, एक राम हर जीवात्मा में व्याप्त हैं। एक राम परमात्मा हैं और एक राम इन सबसे से परे हैं।
सहकामी सुमिरन करै पावै उत्तम धाम।
निहकामी सुमिरन करै पाबै अबिचल राम।
अर्थ- इन पंक्तियों में कबीर दास सकाम और निष्काम कर्म की बात करते हैं। वह कहते हैं कि जो भी व्यक्ति फल की इच्छा करते हुए भगवान का स्मरण करता है उसे उत्तम फल की प्राप्ति होती है। वहीं जो व्यक्ति फल की इच्छा किए बिना राम नाम का स्मरण करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जीव-शीव सब प्रगटे, वै ठाकुर सब दास।
कबीर और जाने नहीं, एक राम नाम की आस॥
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि इस संसार में जिसने भी जन्म लिया है, वे सभी ईश्वर के दास हैं। एक राम नाम के अलावा कबीर और कुछ भी नहीं जानता है।
ताहि नाम को चिनहूं भाई, जासो आवा गमन मिटाई।
पिंड ब्रह्माण्ड में आतम राम, तासु परें परमातम नाम॥
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि मेरे भाई! उस राम नाम को पहचानों जिसका स्मरण करने से इस मृत्युलोक से मुक्ति मिलती है। एक राम जीव में व्याप्त है और उससे भी परे परमात्मा राम है।
जानि बूझि सांचहि तजै, करैं झूठ सूं नेहु।
ताकी संगति रामजी, सुपिनें ही जिनि देहु।।
अर्थ- कबीर दास कहते हैं जो भी व्यक्ति जानबूझकर सत्य से नाता तोड़कर झूठ से नाता जोड़ लेता है। हे राम! उस व्यक्ति का साथ मुझे सपने में भी मत देना।
आगि कह्यां दाझै नहीं, जे नहीं चंपै पाइ।
जब लग भेद न जाँणिये, राम कह्या तौ काइ।।
अर्थ- कबीर दास कहते हैं कि आग को दही कह देने से कुछ नहीं होने वाला है। अग्नि पर पांव रखने से अग्नि उसे जलाएगी जरूर। ठीक वैसे ही जब राम नाम का भेद न मालूम हो तब तक केवल राम-राम कहने से राम नहीं मिलने वाले हैं।
निष्कर्ष- उपरोक्त पंक्तियों से यही निष्कर्ष निकलता है कि कबीर के राम साकार नहीं हैं अर्थात वह दशरथ पुत्र राम नहीं हैं। हां, कबीर के राम निराकार अवश्य हैं जो इस लोक-परलोक में समाए हुए हैं। कबीर के राम साकार, आत्मा और परमात्मा से भी परे हैं जिन्हें जानने के बाद इंसान को इस संसार के आवागमन से मुक्ति मिल जाती है। यदि कबीर के राम साकार रूप में भी होते तो वह लोकनायक तो कत्तई नहीं होते बल्कि एक साधारण आत्मज्ञानी मनुष्य होते।
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