न्याय की देवी अहिल्याबाई होल्कर का विवाह इंदौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। महाराज मल्हारराव होल्कर अभी जीवित ही थे तभी 1754 ई. में कुम्भेर के युद्ध में उनके पुत्र खंडेराव का निधन हो गया। ऐसे में मल्हारराव होल्कर के निधन के बाद अहिल्याबाई होल्कर ने शासन-सत्ता सम्भाला।
अहिल्याबाई होल्कर का इकलौता पुत्र मालेराव का निधन भी 1766 ई. में हो गया। तुकोजी होल्कर को सेनापति नियुक्त कर अहिल्याबाई ने इंदौर के होल्कर राज्य को समृद्धि के शिखर तक पहुंचाया था। परम शिव भक्त अहिल्याबाई होल्कर के राजाज्ञाओं पर ‘श्री शंकर आज्ञा’ लिखा रहता था। अहिल्याबाई होल्कर का कहना था कि सत्ता मेरी नहीं, सम्पत्ति भी मेरी नहीं, जो कुछ है भगवान का है।
अहिल्याबाई होल्कर के धर्मार्थ कार्यों के लिए उन्हें पूरे भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। भारत के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक मन्दिरों, घाटों, धर्मशालाओं, कुओं, बावड़ियों तथा सड़कों का निर्माण करवाने वाली अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाए गए भारत पांच विख्यात शिव मंदिर आज भी उनकी गौरव गाथा के प्रतीक है। उन पांच विख्यात शिव मंदिरों के बारे में जानने के लिए यह स्टोरी पढ़ें।
1-काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान भोलेनाथ के द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग को श्री विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में गंगा स्नान करके काशी विश्वनाथ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शनार्थ आदि शंकराचार्य से लेकर सन्त एकनाथ, गोस्वामी तुलसीदास जैसी महान हस्तियों का आगमन हो चुका है।
यद्यपि अतिप्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर को कई बार विध्वंस का सामना करना पड़ा। इसी क्रम में औरंगजेब से जुड़ी किताब ‘मासिर-ए-आलमगिरी’ के अनुसार, मुगल बादशाह औरंगजेब ने 8 अप्रैल 1669 ई. को काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ने का आदेश दिया। तकरीबन 5 महीने बाद यानि 2 सितम्बर 1669 के बीच मंदिर पर कई बार हमले कर इसे ध्वस्त कर दिया गया।
तत्पश्चात इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 ई. में काशी विश्वनाथ मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माण करवाया था। रानी अहिल्याबाई ने वैदिक रीति-रिवाज से 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। अहिल्याबाई होल्कर के इस धर्मार्थ कार्य में तत्कालीन काशी नरेश महाराजा चेत सिंह ने भी सहयोग प्रदान किया था।
महाराजा चेत सिंह ने मंदिर निर्माण के दौरान मराठा कारीगरों और मजदूरों की सुरक्षा के अतिरिक्त आर्थिक मदद भी की थी। काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के अलावा रानी अहिल्याबाई ने यहां कई घाट बनवाए जैसे अहिल्याबाई घाट और मणिकर्णिका घाट आदि।
2- सोमनाथ मंदिर, सौराष्ट्र
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह स्थित सोमनाथ मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। भारत वर्ष के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम शिवलिंग के रूप में पूजित सोमनाथ मंदिर हिन्दुओं के चुनिन्दा मंदिरों में से एक है।
विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा सोमनाथ मंदिर को भी कई बार विध्वंस का सामना करना पड़ा। परन्तु उतनी ही बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण भी करवाया जा चुका है। भारत की जिन महान हस्तियों ने सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया उनमें से एक नाम शिव भक्त महारानी अहिल्याबाई होल्कर का भी है।
1783 ई. में जब अहिल्याबाई होल्कर ने सोमनाथ मंदिर के निर्माण का आदेश दिया तब यह मंदिर बेहद जर्जर अवस्था में था। कहा जाता है कि अहिल्याबाई होल्कर सोमनाथ मंदिर की हालत देखकर इस कदर पेरशान हुईं थी कि उन्होंने बिखरे पड़े मंदिर के समीप ही एक अलग मंदिर और शिवलिंग की स्थापना की थी।
जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में अहिल्याबाई मंदिर को अब पुराना सोमनाथ कहा जाता है, जो मुख्य सोमनाथ मंदिर से 200 मीटर दूर स्थित है। बता दें कि 1950 ई. में सरदार वल्लभभाई पटेल और मुंशी की देखरेख में बने भव्य सोमनाथ मंदिर के आगे अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया मंदिर छोटा पड़ गया।
3- नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, पेटलावद
पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तब सबसे पहले हलाहल विष निकला। उस विष की ज्वाला से देवता और असुर जलने लगे। अत: इन सभी ने मिलकर भगवान शिव की आराधना की। महादेव ने उस विष को हथेली पर रखकर पी लिया परन्तु अपने कण्ठ से नीचे नहीं जाने दिया। विष के प्रभाव शिव का गला नीला पड़ गया तब से महादेव का एक नाम नीलकंठ पड़ गया।
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पेटलावद नगर में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। पेटलावद का यह नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर होल्कर स्टेट के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण परम शिवभक्त महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1717 ई. में करवाया था। नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी यह मान्यता है कि मंदिर का शिवलिंग भगवान शिव के सातवें डमरू पर विराजमान है, जबकि छह डमरू धरती के नीचे स्थित हैं। झाबुआ जिले का यह एक मात्र ऐसा शिवमंदिर है जिसका शिवलिंग सबसे बड़ा है।
4- वैजनाथ ज्योतिर्लिंग, परली
महाराष्ट्र के बीड जिले में स्थित परली वैजनाथ मंदिर देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। अतिप्राचीन परली वैजनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार पुण्यश्लोक महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1706 ई. में करवाया था। परली बैजनाथ मंदिर का भव्य प्रवेश द्वार और लम्बी सीढ़ियां आगन्तुकों का ध्यान आकर्षित करती हैं। महाशिवरात्रि के दिन वैजनाथ जयंती मनाई जाती है। परली वैजनाथ मंदिर क्षेत्र में तीन बड़े तालाब हैं। परली वैजनाथ मंदिर से तकरीबन 3 किमी. की दूरी पर स्थित ब्राह्मणदी के तट पर सोमेश्वर मंदिर है।
वैजनाथ ज्योतिर्लिंग को स्वयंभू माना जाता है, इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथा का बहुत रोचक वर्णन शिव पुराण में मिलता है। कथा के अनुसार भगवान शिव के परमभक्त राक्षसराज रावण ने महादेव की घोर तपस्या की और वरदान में उन्हें अपने साथ लंका चलने को कहा और वहीं स्थापित होने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने रावण की प्रार्थना स्वीकार कर और शिवलिंग का स्वरूप धारण कर लिया। परन्तु इससे पूर्व भगवान शिव ने यह शर्त रखी कि लंका जाते रास्ते में इस शिवलिंग को भूमि पर नहीं रखना है अन्यथा वह उसके साथ लंका तक नहीं जा पाएंगे। रावण उस शिवलिंग को लेकर लंका जाने लगा तभी रास्ते में उसे लघुशंका लगी।
इस दौरान रावण की मुलाकात कुक्कुट्य नामक एक ब्राह्मण से हुई, उसने उस शिवलिंग को कुक्कुट्य को पकड़ा दिया परन्तु साथ में यह भी चेतावनी दी कि किसी भी परिस्थिति में शिवलिंग को जमीन पर नहीं रखे। कुक्कुट्य ज़्यादा देर तक शिवलिंग का भार सहन नहीं कर सका और उसने उसे ज़मीन पर रख दिया। लघुशंका के बाद जब रावण वापस लौटा, वह शिवलिंग जमीन में धंस चुका था। लंकापति रावण ने उस शिवलिंग को निकालने की भरपूर कोशिश की लेकिन वह स्वयंभू शिवलिंग अपनी जगह से हिला तक नहीं।
5- काशी विश्वनाथ मंदिर, महेश्वर
नर्मदा नदी के तट पर स्थित महेश्वर में प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण पुण्यश्लोक महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1786 ई. में करवाया था। महेश्वर स्थित सभी शिव मंदिरों की तुलना में सबसे विशाल शिवलिंग इसी मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है।
महेश्वर के इस मंदिर का नाम काशी विश्वनाथ मंदिर रखे जाने पीछे रोचक कहानी यह है कि मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग काशी के मंदिर में स्थापित होने वाला था, परन्तु संयोगवश यह शिवलिंग महेश्वर पहुंच गया। इसके बाद इस शिवलिंग को देवी अहिल्याबाई होल्कर ने महेश्वर में ही स्थापित करवा दिया।
अहिल्याबाई होल्कर पालकी में बैठकर प्रत्येक सोमवार को काले पत्थरों से निर्मित इस मंदिर में पूजा-अर्चना व अभिषेक करने के लिए आती थीं। महारानी अहिल्याबाई के समय इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव को सुबह-शाम चावल और दाल का भोग लगाया जाता था, जो आज तक जारी है। इस मंदिर में पत्थर से बने 18 खंभों का एक सभा मंडप है। इस सभा मंडप में विराजित नंदी बाबा की विशाल मूर्ति देखते ही बनती है।
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