ऐतिहासिक वैभव से सम्पन्न काशी नगरी मां गंगा के तट पर विराजमान है। पवित्र, शीतल एवं धवल भागीरथी के जल में प्रतिबिम्बित होने का सौभाग्य इस नगरी को प्राप्त है। स्कन्द महापुराण के मुताबिक संसार के सर्वाधिक प्राचीन इस नगर के बारह नाम हैं- काशी, वाराणसी, अविमुक्त क्षेत्र, आनन्दकानन, महाश्मशान, रुद्रावास, काशिका, तप:स्थली, मुक्तिभूमि, शिवपुरी, त्रिपुरारिराज नगरी और विश्वनाथ नगरी। पौराणिक मान्यता है कि प्रलयकाल में भी काशी का लोप नहीं होता है क्योंकि यह नगर भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है। गंगातट से ही दृष्टिगोचर होने वाली अनुपम तथा भव्य अट्टालिकाएं, प्रत्येक मंदिर से उभरती हुई प्रचण्ड घंटा ध्वनि तथा इन सबसे भी अधिक सौन्दर्य की स्थली श्री काशी विश्वनाथ का पावन देवालय वाराणसी को अनुपम शोभा प्रदान करता है।
यदि हम काशी विश्वनाथ मंदिर की बात करें तो यह देवालय हिन्दुओं के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक और भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, गोस्वामी तुलसीदास, महर्षि दयानंद सरस्वती, गुरुनानक देव और कई अन्य आध्यात्मिक महान संतों ने समय-समय पर इस मंदिर के दर्शन किए हैं।
पौराणिक कथा के मुताबिक, माता पार्वती की इच्छानुसार भगवान भोलेनाथ उन्हें काशी लेकर आए थे और यहां विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया। ऐसे में यह माता पार्वती और भगवान शिव का आदि स्थान है। त्यागी तथा तपस्वी राजा हरिश्चन्द्र को काशी विश्वनाथ मंदिर का मूल निर्माणकर्ता कहा जाता है। इसके बाद सम्राट विक्रमादित्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। मध्यकाल में काशी विश्वनाथ मंदिर को कई बार विध्वंस का सामना करना पड़ा बावजूद इसके कई महान शख्सियतों के द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार करवाया गया। इस स्टोरी में हम इसी तथ्य पर रोशनी डालने का प्रयत्न करेंगे।
1- राजा टोडरमल
यदि हम काशी विश्वनाथ मंदिर के पुर्निर्माण से जुड़े ऐतिहासिक साक्ष्यों की बात करें तो साल 1585 ई. में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने इसका पुर्निर्माण करवाया था। डॉ. ए.एस. अल्टेकर की 1936 में प्रकाशित किताब ‘हिस्ट्री आफ बनारस’ में मुगल बादशाह अकबर के कार्यकाल में राजा टोडरमल और मान सिंह के द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया था। वहीं काशी विद्यापीठ में इतिहास विभाग में प्रोफ़ेसर रह चुके डॉक्टर राजीव द्विवेदी कहते हैं, "विश्वनाथ मंदिर का निर्माण राजा टोडरमल ने करवाया था और इसकी ज़िम्मेदारी पंडित नारायण भट्ट को सौंपी गई थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के अनुसार, मुंगेर (बिहार) की लड़ाई से दिल्ली लौटते वक्त राजा मानसिंह और राजा टोडरमल काशी पहुंचे जहां उन्होंने पं. नारायण भट्ट के निर्देशन में अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करवाया था। डॉ. तिवारी कहते हैं कि स्कंद पुराण के काशी खंड में वर्णित ‘ज्ञानवापी महात्म्य’ इन दोनों राजाओं को यहां खींच लाया था जिसमें भगवान शिव ने स्वयं कहा है कि जो भी इस ज्ञान क्षेत्र में अपने पितरों का श्राद्ध-तर्पण करवाएगा उसे गया (बिहार) के फल्गू तीर्थ में श्राद्ध तर्पण से करोड़ गुना अधिक फल प्राप्त होगा।
चूंकि उन दिनों देश में भीषण अकाल पड़ा था, ऐसे में राजा टोडरमल और मान सिंह ने पं. नारायण भट्ट से भगवान शिव से प्रार्थना कर वर्षा कराने का आग्रह किया। ऐसे में पं. नारायण भट्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की शर्त रखी साथ ही यह भरोसा दिलाया कि अकबर का फरमान जारी होने के 24 घंटे के भीतर बारिश होगी। अकबर ने फरमान जारी किया और फरमान मिलने के 24 घंटे के अंदर देश में बारिश हुई। इसके बाद अकबर के खजांची राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करवाई।
2- अहिल्याबाई होल्कर
मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में काशी विश्वनाथ मंदिर का विध्वंस हुआ था। इतिहासकार एल.पी. शर्मा की किताब ‘मध्यकालीन भारत’ के मुताबिक़, “1669 में सभी सूबेदारों और मुसाहिबों को हिंदू मंदिर और पाठशालाओं को तोड़ देने की आज्ञा दी गई। इसके लिए एक अलग विभाग भी खोला गया। ये तो संभव नहीं था कि हिंदुओं की सभी पाठशालाएं और मंदिर तोड़ दिए जाते, लेकिन बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवदेव मंदिर, पटना का सोमनाथ मंदिर और प्रायः सभी बड़े मंदिर, ख़ास तौर पर उत्तर भारत के मंदिर इसी समय तोड़े गए।”
इसके बाद 1735 में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का निर्माण कराया। मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव होल्कर 1754 के कुम्भेर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। खंडेराव की मृत्यु के 12 साल बाद मल्हारराव होल्कर का भी निधन हो गया। इसके ठीक एक साल बाद खंडेराव की विधवा पत्नी अहिल्याबाई होल्कर को मालवा साम्राज्य के राजसिंहासन पर बैठाया गया।
अहिल्याबाई के इकलौते पुत्र मालेराव का भी 21 वर्ष की उम्र में निधन हो गया बावजूद इसके अहिल्याबाई होल्कर ने अपनी तीक्ष्ण सोच से अपने साम्राज्य को समृद्ध बनाया। अहिल्याबाई ने मालवा में कई किले, सड़कें तथा मंदिर बनवाए। इसके अतिरिक्त अपने राज्य की सीमाओं से बाहर भी प्रसिद्ध तीर्थस्थानों में मंदिर, पनघट, कुएं, बावड़ियां तथा मार्ग बनवाए इसलिए उनके जीवनकाल में ही जनता उन्हें ‘देवी’ कहने लगी थी।
होल्कर राजघराने की बहू अहिल्याबाई होल्कर ने साल 1777 ई. में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमार्ण शुरू करवाया और ठीक तीन साल बाद यानि 1780 में मंदिर बनकर तैयार हो गया। अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह का निर्माण करवाया तथा शास्त्र सम्मत तरीके से 11 शास्त्रीय आर्चायों के द्वारा शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा भी करवाई। महारानी अहिल्याबाई होल्कर के संकल्पानुसार शिवरात्रि के दिन ही मंदिर के कपाट खोले गए। रानी अहिल्याबाई के योगदान का शिलापट और उनकी एक मूर्ति भी काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में स्थापित की गई है।
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3- महाराजा रणजीत सिंह
शेर-ए-पंजाब के नाम मशहूर महाराजा रणजीत सिंह ही एकमात्र ऐसे शासक थे जिनका साम्राज्य अंग्रेजों के अधीन नहीं था। ब्रिटिश इतिहासकार व्हीलर लिखता है कि “यदि वह एक पीढ़ी पुराने होते तो पूरे हिन्दुस्तान को फतह कर लेते।” महाराणा रणजीत सिंह पढ़े-लिखे नहीं थे बावजूद इसके उन्होंने अपने राज्य में कला और शिक्षा को भरपूर बढ़ावा दिया। उनका सूबा धर्मनिरपेक्ष था, उनका राज्य हिन्दुओं तथा सिखों से वूसले जाने वाले जजिया कर से मुक्त था। महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर के गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा।
काशी विश्वनाथ मंदिर शिखर को स्वर्णमंडित कराने तथा कलश स्थापित कराने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने साल 1853 ई. में 22 मन सोना दान दिया था। काशी विश्वनाथ मंदिर का स्वर्णमंडित शिखर आज भी महाराजा रणजीत सिंह की काशी यात्रा तथा उनकी दानशीलता का परिचायक है। जानकारी के लिए बता दें कि ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने इस मंदिर का मंडप बनवाया था।
4- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
तकरीबन 352 साल बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तार तथा जीर्णोद्धार के लिए 8 मार्च 2019 को शिलान्यास किया था। इसके ठीक दो साल बाद यानि 13 दिसम्बर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया था। 900 करोड़ रुपए की लागत से तैयार काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को पूरा करने के लिए 2600 मजदूरों तथा 300 इंजीनियर लगे हुए थे, सभी ने 2 साल तक लगातार तीन-तीन शिफ्ट में काम किया।
काशी विश्वनाथ मंदिर यानि कॉरिडोर तकरीबन 5.25 लाख वर्ग फीट में बना है जिसमें तकरीबन 23 इमारतें तथा 27 मंदिर मौजूद हैं। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित पूरा कॉरिडोर लगभग 50 हजार वर्ग मीटर के व्यापक परिसर में फैला है जिसमें 4 मुख्य द्वार तथा काशी की गौरवगाथा से जुड़े 22 शिलालेख लगे हैं जिसमें भगवान शिव की स्तुतियां उत्कीर्ण हैं।
महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा स्वर्ण शिखर बनवाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह को 120 किलो सोने से स्वर्णमंडित किया गया है। कॉरिडोर के 24 भवनों में मुख्य मंदिर परिसर, मंदिर चौक, मुमुक्षु भवन, सिटी गैलरी, जलपान केंद्र, मल्टीपरपज हॉल, यात्री सुविधा केंद्र, इत्यादि शामिल हैं। कॉरिडोर का मुख्य द्वार गंगा तट स्थित ललिता घाट की तरफ जाता है।
बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 400 मकानों का अधिग्रहण किया गया था। इस प्रकिया में 1400 लोगों को पुनर्वासित करना पड़ा। प्रशासन के मुताबिक कॉरिडोर निर्माण के वक्त काशी खण्डोक्त 27 मंदिरों के अतिरिक्त 127 अन्य प्रसिद्ध मंदिर भी मिले।
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