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Who was the Lady with whom Bhagat Singh fell in love?

कौन थी वह महिला जिससे प्यार करने लगे थे भगत सिंह?

साल 1929 में ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली के सेन्ट्रल असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्पयूट्स बिल पास करने का निर्णय लिया। अत: इस बिल का विरोध करने के लिए क्रांतिकारियों ने सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंकने का निर्णय लिया। परन्तु सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंकने वाले कार्यकर्ताओं में भगत सिंह का नाम शामिल नहीं किया गया था। इस बात को लेकर सुखदेव और भगत सिंह के बीच तीखी बहस हुई और सुखेदव ने तथाकथित यह आरोप लगाए कि भगत सिंह एक महिला के प्रेम में आसक्त हो चुके हैं, इसलिए अब वह मरने से डरते हैं। सुखेदव के इस आरोप से भगत सिंह काफी नाराज हो गए थे और उन्होंने सुखदेव के नाम एक पत्र लिखकर अपने दिल की बात जाहिर की थी। अब सवाल यह उठता है कि वह महिला कौन थी, जिसके बारे में सुखदेव ने भगत सिंह को ताना मारा था। यह जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने फेंका था सेंट्रल असेंबली में बम

यह स्टोरी है, साल 1929 की, जब महान क्रान्तिकारी भगत सिंह और उनके क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल को 'पब्लिक सेफ्टी बिल' और ट्रेड डिस्पयूट्स बिल के खिलाफ ब्रिटिश सरकार को चेताने के लिए दिल्ली की सेंट्रल असेंबली के सभागार में बम और पर्चे फेंके। 

इन दोनों क्रांन्तिकारियों ने बम भी ऐसी जगह देखकर फेंका था, जहां कोई नहीं था। बम के धमाके से सेन्ट्रल असेंबली धुएं से भर चुकी थी। ​यदि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त चाहते तो बड़ी आसानी से वहां से भाग सकते थे। परन्तु इंकलाब-जिन्दाबाद और साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद का नारा लगाते हुए कुछ पर्चे हवा में उछाले और खुद की गिरफ्तारी दी।

इस मामले में ब्रिटिश अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के तहत अपराधी साबित करके 7 अक्तूबर, 1930 को 68 पृष्ठों का निर्णय सुनाया जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई। इसके बाद 23 मार्च 1931 की शाम तकरीबन 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। जानकारी के लिए बता दें कि फांसी की तारीख 24 मार्च तय की गई थी परन्तु सम्भावित जनाक्रोश के डर से 11 घंटे पहले ही इन्हें फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया।

भगत सिंह को नहीं फेंकना था सेन्ट्रल एसेम्बली में बम

लेखक और वरिष्ठ पत्रकार राजशेखर व्यास अपनी किताब 'मैं भगत सिंह बोल रहा हूँ' में लिखते हैं कि जब सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंकने की योजना बनाने तथा कार्यकर्ताओं के चयन को लेकर बैठक चल रही थी तब क्रान्तिकारियों की जरूरतों का हवाला देकर इस बड़ी जिम्मेदारी से भगत सिंह को अलग रख गया।

इस बारे में भगत सिंह की भतीजी वीरेन्द्र सिन्धु लिखती हैं कि संसद पर बम फेंकने जा क्रान्तिकारियों के दल में भगत सिंह का नाम नहीं होने पर सुखदेव और भगत सिंह के बीच झगड़ा हुआ था और सुखदेव ने उन्हें कायर कहा था। हांलाकि वीरेन्द्र सिन्धु ने इस बात का जिक्र नहीं किया है कि सुखेदव ने भगत सिंह पर यह आरोप लगाया था कि वह मरने से डरते हैं क्योंकि वह एक महिला से प्यार करते हैं। 

जबकि प्रख्यात लेखक कुलदीप नैयर अपनी किताब 'सरफरोशी की तमन्ना : भगत सिंह का जीवन और मुक़दमा' में लिखते हैं कि  “सुखदेव ने भगत सिंह से कहा कि अब तुम क्रांति के लायक नहीं रह गए हो क्योंकि तुम एक औरत की जुल्फों में कैद हो चुके हो। सुखदेव की इस बात से भगत सिंह के दिल पर गहरी चोट लगी थी।

वहीं भगत सिंह पर शोध करने वालों के अनुसार, सुखदेव ने भगत सिंह पर जिस तरह के आरोप लगाए थे, उससे भगत सिंह गुस्से में थे और नाराज भी हो गए थे। उन्होंने सुखेदव से कई दिनों तक बात नहीं की थी।

सुखदेव के नाम भगत सिंह का पत्र

सुखदेव के आरोपों से भगत सिंह के दिल को गहरी ठेस पहुंची और उन्होंने क्रान्तिकारियों की दोबारा बैठक बुलाई और सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंकने की जिम्मेदारी स्वयं ली। इसके बाद भगत सिंह ने दिल्ली के सीताराम बाज़ार स्थित एक घर से 5 अप्रैल 1929 ई. को सुखदेव के नाम एक पत्र लिखा।

इस पत्र को भगत सिंह के क्रान्तिकारी साथी शिव वर्मा ने सुखदेव तक पहुंचाया था। हांलाकि भगत सिंह द्वारा लिखे गए पत्र का खुलासा तब हुआ था जब सुखेदव की गिरफ्तारी हो चुकी थी और लाहौर षड्यंत्र केस में इस पत्र को बतौर सबूत अदालत में पेश किया गया था।

'प्रेम हमें ऊंचा उठाता है' शीर्षक के नाम से विख्यात इस पत्र में सुखदेव को जवाब देते हुए भगत सिंह लिखते हैं कि- “मेरे खुले व्यवहार को वाक्पटुता समझ लिया गया। मेरी आत्म-स्वीकृति को कमज़ोरी के रूप में लिया गया। वह आगे लिखते हैं कि किसी के चरित्र पर आरोप लगाने से पूर्व यह विचार करना चाहिए कि क्या प्यार ने किसी इंसान की मदद की है? तो मेरा उत्तर हां है। इसके लिए मैजिनी को आपने पढ़ा होगा। पहले विद्रोह की विफलता के बाद मैजिनी या तो पागल हो गए होते या फिर आत्महत्या कर ली होती। लेकिन उसकी प्रेमिका के एक पत्र ने उसे और भी मजबूत बना दिया। 

मैंने एक इंसान के प्यार को अस्वीकार कर दिया। वह एक आदर्शवादी उम्र भी थी। लेकिन प्रेम की भावना प्रबल होनी चाहिए, जो एक इंसान से ऊपर उठकर पूरी दुनिया को उसे बाँट सके। मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरा हूँ। मैं जीवन के आनंदमय रंगों से अभिभूत हूँ लेकिन ज़रूरत पड़ने पर मैं यह सब छोड़ने को तैयार हूँ। यह वास्तव में बलिदान है। प्रेम मनुष्य के चरित्र को ऊँचा उठाता है। सच्चा प्रेम कभी नहीं असफल होता।

कौन थी वह महिला जिससे प्रेम करते थे भगत सिंह

यह सच है कि दिल्ली की सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंकने कौन जाएगा, इस बात को लेकर सुखदेव और भगत सिंह के बीच तीखी बहस हुई थी। परन्तु इस बात को लेकर इतिहासकारों तथा लेखकों में अभी भी मतभेद है कि सुखदेव ने भगत सिंह पर यह आरोप लगाया था कि वह एक महिला के प्रेम में आसक्त हो जाने के कारण अपने रास्ते से भटक चुके हैं।

यदि इस तथ्य का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो प्रथमतया यह स्पष्ट है कि भगत सिंह ने अपने पत्र में प्रेम की उच्चस्तरीय व्याख्या की है, परन्तु उन्होंने इस बात का कहीं जिक्र नहीं किया है कि वह किस महिला से प्रेम करते हैं अथवा उस महिला का नाम क्या है।

केवल एक लेखक कुलदीप नैयर ने अपनी किताब 'सरफरोशी की तमन्ना : भगत सिंह का जीवन और मुक़दमा' में इस बात का उल्लेख किया है कि सुखेदव का इशारा भगवतीचरण वोहरा की पत्नी दुर्गादेवी की तरफ था जिन्होंने पु​लिस अफसर सॉन्डर्स की हत्या के बाद भगत सिंह को अंग्रेजों की कैद से बचाने के लिए लाहौर से कलकत्ता तक ट्रेन यात्रा की थी।

इस बारे में भगत सिंह पर किताब लिखने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर चमन लाल कहते हैं, “इस प्रेम-प्रसंग का कोई सबूत नहीं है और कोई आधिकारिक जानकारी भी नहीं है। जो लोग जीवित थे वे इस मामले पर प्रकाश डाल सकते थे। ऐसे में भगत सिंह का दुर्गादेवी के साथ प्रेम संबंध निकालना कत्तई उचित नहीं है।

भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारियों साथियों में बटुकेश्वर दत्त और जयदेव कपूर की बहनों के साथ भी पत्रव्यवहार किया था, इसका मतलब यह नहीं है कि उनके साथ कोई प्रेम सम्बन्ध था। यहां तक कि भगत सिंह की भतीजी वीरेन्द्र सिन्धु ने भी अपनी किताब भगतसिंह और उनके मृत्युंजय पुरखे में इस तथ्य पर कोई प्रकाश नहीं डाला है।

इतना ही नहीं, भगत सिंह के क्रांतिकारी साथी शिव वर्मा ने अपनी किताब 'संस्मृतियां' में इस बात का उल्लेख किया है कि भगत सिंह और सुखदेव के बीच झगड़ा हुआ था लेकिन इसमें कहीं भी किसी महिला का ज़िक्र नहीं है।

वहीं सुखदेव के छोटे भाई मथुरादास थापर भी अपनी किताब 'मेरे भाई शहीद सुखदेव' में य​ह लिखते हैं कि, ''सुखदेव ने अपना तर्क पेश करते हुए कहा कि भगत सिंह के अलावा कोई भी क्रांतिकारी उनके उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता था। अत: मथुरादास ने भी इस मुद्दे पर किसी महिला का जिक्र नहीं किया है।

ऐसे में यह स्पष्ट है कि कुछ लेखकों ने लोकप्रियता हासिल करने के लिए भगत सिंह और दुर्गा भाभी के रिश्तों को लेकर केवल झूठा प्रचार किया है। भगत सिंह ने अपने पत्र में प्रेम की बारीकियों का जिक्र जरूर किया है, परन्तु यह अभी भी अज्ञात है कि वह किस महिला से प्रेम करते थे।

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