1-भगत सिंह को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन संभावित जनाक्रोश के डर से 11 घंटा पहले ही शाम को 7 बजकर 33 मिनट पर उन्हें फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया।
2- भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाने वाले न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था। भगत सिंह से जुड़ी कोर्ट की सारी कार्यवाही 1659 पन्नों पर दर्ज है।
3- लाहौर उच्च न्यायालय के जस्टिस आगा हैदर ने लाहौर षड्यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को मौत की सजा देने से इनकार करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था ।
3- 23 मार्च 1931 के दिन लाहौर सेन्ट्रल जेल में 23 वर्षीय भगत सिंह को फांसी देने वाले जल्लाद का नाम काला मसीह था।
4- लाहौर सेन्ट्रल जेल के चीफ़ सुपरिंटेंडेंट मेजर पीडी चोपड़ा जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को लेकर फांसी के तख्ते की तरफ बढ़ रहे थे तब डिप्टी जेल सुपरिंटेंडेंट मोहम्मद अकबर ख़ान की आंखें आंसूओं से भर गईं थीं।
5- लेनिन की जीवनी पढ़ रहे भगत सिंह जेल कोठरी से बाहर निकलने के बाद अपने क्रांतिकारी साथियों से गले मिले और ‘इंकलाब जिंदाबाद’, ‘साम्राज्यवाद मुदार्बाद’ का नारा लगाते हुए फांसी के फन्दे की तरफ आगे बढ़े।
6- फांसी के तख्ते की तरफ जाते हुए भगत सिंह एक गीत गा रहे थे, 'दिल से न निकलेगी मरकर भी वतन की उल्फ़त, मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वतन आएगी।'
7- भगत सिंह ने फांसी से दो घंटा पहले अपने वकील प्राणनाथ मेहता से किताब ‘रिवर्सनरी’ की डिमांड की थी। भगत सिंह के वकील प्राणनाथ मेहता अपने संस्मरणों में लिखते हैं कि भगत सिंह ने फांसी लगने से कुछ घंटे पहले यानि दोपहर के वक्त रसगुल्ले की फरमाइश की थी। इसके बाद उन्हें रसगुल्ले दिए गए, यही उनका अंतिम भोजन था।
8- पाकिस्तान पुलिस ने यह दावा किया है कि ब्रिटिश पुलिस अफसर जॉन सांडर्स की हत्या की एफआईआर में शहीद भगत सिंह का नाम दर्ज नहीं था जिसके लिए उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने 17 दिसंबर 1928 को शाम 4:30 बजे अनारकली थाने में दो अज्ञात बन्दूकधारियों के खिलाफ एफआईआर लिखवाई थी।
9- भगत सिंह को फांसी देते वक्त मौजूद लाहौर सेन्ट्रल जेल के टीम मेम्बर्स : डिप्टी कमिश्नर- ए.ए. लियन रॉबर्ट्स, 1909 बैच आईसीएस, जेल सुपरिंटेंडेंट- मेजर पीडी चोपड़ा, एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट-शेख अब्दुल हमीद, सिटी मजिस्ट्रेट- नाथू राम, डीएसपी-सुदर्शन सिंह, डीएसपी-जे. आर. मौरिस व सैकड़ों पुलिस जवान।
10- भगत सिंह की मृत्यु की तस्दीक करने वाले ब्रिटिश अधिकारी: एडवर्ड मेडिकल कॉलेज के प्रिसिंपल- लेफ्टिनेंट कर्नल हार्पर नेल्सन, सिविल सर्जन- कर्नल एन.एस. सोढी, दो पुलिस अधिकारी- सुदर्शन सिंह, अमर सिंह।
11- भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव के मामले में कुल 457 गवाहियां हुई थीं। भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्तियाज राशिद कुरैशी के मुताबिक भगत सिंह के मामले में विशेष जजों ने 450 गवाहों को सुने बिना ही मौत की सजा सुना दी।
12- भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव के चार साथी ही सरकारी गवाह बने थे- हंसराज वोहरा, जयगोपाल, फणीन्द्रनाथ घोष, मनमोहन बनर्जी। इन सभी को पुरस्कार दिया गया था, किसी को जमीन तो किसी को सरकारी नौकरी।
13 - फांसी के दिन भगत सिंह ने अपने चार लेख (हस्तलिखित) वकील प्राणनाथ मेहता को सौंपे थे। मेहता ने ये चारो लेख भगत सिंह के साथी विजय कुमार सिन्हा को दे दिए थे जिन्हें सिन्हा ने जालन्धर में रहने वाले एक दोस्त के घर छुपा दिए थे। मगर उस दोस्त ने पुलिस के डर से उन लेखों को चूल्हे में जला दिए। इस तरह भगत सिंह के अंतिम महत्वपूर्ण दस्तावेज नष्ट हो गए।
14- भगत सिंह की फांसी के बाद लाहौर सेन्ट्रल जेल के बाहर पूरा हुजूम इकट्ठा हो गया था जिससे प्रशासन घबरा गया था। अंग्रेजों ने शवों के टुकड़े किए तथा ट्रक में भरकर जेल के पिछले दरवाज़े से फिरोज़पुर की तरफ लेकर चले गए।
15- अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव की लाशों को हुसैनीवाला के पास सतलज नदी के किनारे मिट्टी का तेल छिड़कर जल्दबाज़ी में जला दिया और अधजले शव फेंककर भाग गए थे।
16 - 24 मार्च की सुबह भगत सिंह की छोटी बहन अमर कौर और लाला लाजपत राय की बेटी पार्वती बाई सहित तकरीबन 200 से 300 लोग हुसैनीवाला पहुंचे जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की अधजली हड्डियाँ मिलीं।।
17- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की अर्थियां तैयार की गईं और इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार एक बार फिर से रावी नदी के तट पर किया गया।
18- ट्रिब्यून अखबार, 26 मार्च 1931 के मुताबिक, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का का अंतिम संस्कार उसी जगह किया गया जहां लाला लाजपत राय का अंतिम संस्कार किया गया था।
19- भगत सिंह चाहते थे कि फांसी पर लटकाने के बजाय उन्हें गोली मार दी जाए लेकिन ब्रिटिश सरकार को यह मंजूर नहीं था।
20- लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह ने 404 पेज की एक डायरी लिखी थी। इसके हर पन्ने पर भगत सिंह की वतनपरस्ती झलकती है। भगत सिंह ने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’?
21- जब भगत सिंह को फाँसी दी गई तब वॉर्डेन चरत सिंह धीमे क़दमों से अपने कमरे की तरफ़ बढ़े और फूट-फूट कर रोने लगे।
22- जीवन के आखिरी दिनों में भगत सिंह 1 साल और 350 दिन जेल में सजा काटी थी, इस बीच उन्होंने कैदियों के अधिकार के लिए 116 दिन का भूख हड़ताल भी किया था।
23- पाकिस्तान सरकार ने वर्ष 1961 में लाहौर सेन्ट्रल जेल की जगह एक कॉलोनी बनवा दी तथा जिस जगह पर भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दी गई थी वहां शादमान चौक (वर्तमान में भगत सिंह चौराहा) बना दिया गया।
24- भगत सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल की कोठरी नंबर 14 में रखा गया था जिसका फर्श भी पक्का नहीं था।
25- भगत सिंह ने अपनी फांसी से पहले बैरक की सफाई करने वाले कर्मचारी जिसे वे प्यार से ‘बेबे’ कहते थे, उनके लिए घर से खाना लाने के लिए कहा था लेकिन 11 घंटे पहले ही उन्हें फांसी दे दी गई।
इसे भी पढ़ें : धार का भोजशाला ही सरस्वती मंदिर है, जानिए क्या हैं इसके पुख्ता सबूत?
इसे भी पढ़ें: कस्तूरी खरबूजे को देखकर रो पड़ा था मुगल बादशाह बाबर, जानिए क्यों?