प्लासी युद्ध के पश्चात लार्ड क्लाइव अपनी अस्वस्थ्यता के कारण इंग्लैण्ड वापस लौट गया था। हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में बक्सर युद्ध जीतकर अंग्रेजों ने बंगाल में सत्ता प्राप्त कर ली थी। बंगाल की सुरक्षा, वित्त, सेना एवं बाह्य सम्बन्धों पर अंग्रेजों का प्रभुत्व कायम हो चुका था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारी मनमानी करने लगे थे। चारों तरफ अराजकता की स्थिति बन चुकी थी। कहने का तात्पर्य यह है कि बंगाल में लूट का खेल जारी था और प्रशासनिक व्यवस्था बिल्कुल ढीली पड़ चुकी थी।
ऐसे में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के संचालकों का यह मत था कि जिस व्यक्ति ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव रखी है उसे ही उस साम्राज्य को सुदृढ़ करने के लिए भेजा जाए। अत: उपरोक्त समस्याओं को दूर करने के लिए लार्ड क्लाइव को भारत में अंग्रेजी प्रदेशों का मुख्य सेनापति तथा गवर्नर बनाकर भेजा गया।
लार्ड क्लाइव को कलकत्ता (अब कोलकाता) के सिलेक्ट कमिटी का प्रेसीडेन्ट भी बनाया गया। इस कमिटी के चार सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं - मि. साइक्स, मि. सुमनेर, मि.वेरेलेस्ट तथा जनरल करनक। इस नई व्यवस्था के तहत लार्ड क्लाइव ने मई 1765 में कलकत्ता पहुंचकर अपना पदभार ग्रहण किया।
गवर्नर बनने के बाद लार्ड क्लाइव ने देखा कि बंगाल प्रेसिडेन्सी के खजाने में पैसा नहीं है, कर्मचारी वर्ग में अधीनता, अनुशासन तथा कामचोरी की भावना घर कर चुकी है। लाभकारी उद्योग-धन्धों तथा सार्वजनिक व्यापार की जगह अंग्रेज अफसर व्यक्तिगत धन एकत्र कर रहे थे। कम्पनी का व्यापार ठप्प हो चुका था तथा जनता पर अत्याचार हो रहा था। ऐसे में लार्ड क्लाइव ने अनेक प्रशासनिक कदम उठाए जिसके तहत उसने अंग्रेज अफसरों पर शिकंजा कसने के लिए सैनिक सुधार भी किए जिससे कुपित होकर अंग्रेज अफसरों ने बड़ी संख्या में बगावत कर दी। आधुनिक भारत के इतिहास में यह अंग्रेज अफसरों की यह बगावत ‘श्वेत विद्रोह’ के नाम से विख्यात है। इस स्टोरी में हम आपको श्वेत विद्रोह के बारे में विस्तार से बताएंगे।
अंग्रेजी सेना में बढ़ोतरी
बंगाल में राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के पश्चात कम्पनी के सैनिक कार्य बहुत अधिक बढ़ चुके थे। इसलिए लार्ड क्लाइव ने कंपनी की सेना में बढ़ोतरी करने का निर्णय लिया। इस निर्णय के अनुसार, नवाब की सेना में कटौती की गई तथा कम्पनी की सेना में वृद्धि की गई। इस कदम से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की सैनिक शक्ति और ज्यादा बढ़ गई। इस सेना को क्रमश: मुंगेर, पटना और इलाहाबाद में तैनात किया गया।
दोहरे भत्ते को बंद करना
लार्ड क्लाइव का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह था कि उसने अंग्रेज अफसरों तथा सैनिकों को मिलने वाले दोहरे भत्ते को बंद कर दिया। जानकारी के लिए बता दें कि पहले अंग्रेज अफसरों तथा सैनिकों को युद्ध काल के दौरान दोहरा भत्ता दिया जाता था। परन्तु बाद में मीरजाफर के समय से शांतिकाल में भी उन्हें दोहरा भत्ता मिलने लगा। यहां तक कि अब यह सैनिकों के वेतन का भाग बन चुका था। ऐसे में बंगाल के सैनिकों को मद्रास के सैनिकों से ज्यादा वेतन मिलने लगा था।
अत: कम्पनी संचालकों के आदेश पर बंगाल तथा बिहार की सीमा से बाहर काम करने वाले सैनिकों को छोड़कर अन्य सभी के दोहरे भत्ते जनवरी 1766 से बंद कर दिए गए। लार्ड क्लाइव के इस आदेश का मुंगेर तथा इलाहाबाद के अंग्रेज अफसरों तथा सैनिकों ने तीव्र विरोध किया। यहां तक अंग्रेज अफसरों ने बगावत कर दी, अनेक अफसरों ने त्याग पत्र दे दिए। उन्हें आशा थी कि मराठों के सम्भावित आक्रमण के कारण क्लाइव डर जाएगा। एक अफसर ने तो क्लाइव की हत्या की योजना भी बनाई। अंग्रेज अफसरों तथा सैनिकों की यह बगावत ‘श्वेत विद्रोह’ के नाम से विख्यात है।
क्लाइव ने इन परिस्थितियों का डटकर मुकाबला किया, उसने अनेक अफसरों का त्यागपत्र स्वीकार कर लिया। इस विद्रोह का नेतृत्व करने वाले अंग्रेज अफसरों को कैद करने तथा मुकदमें चलाने की आज्ञा दे दी गई। छोटे अंग्रेज अफसरों को जिन्हें कमीशन नहीं मिले हुए थे, उन्हें कमीशन दे दिए गए। मद्रास से भी कुछ अंग्रेज अफसर बुला लिए गए। कुछ अफसरों को स्वदेश वापस भेज दिया। बहुतों ने क्षमायाचना भी कर ली। इस प्रकार यह ‘श्वेत विद्रोह’ दबा दिया गया।
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