यह सच है कि ऑरविल राइट और विल्बर राइट नामक दो भाइयों ने हवाई जहाज का अविष्कार साल 1903 में किया था। परन्तु इससे पूर्व साल 1895 में ही एक भारतीय शिवकर बापूजी तलपड़े ने आधुनिक विमान बनाने का दावा किया था। तलपड़े ने अपने विमान ‘मरुत्सखा’ को बॉम्बे (अब मुम्बई) के चौपाटी बीच के ऊपर सफलतापूर्वक 1500 फुट की ऊँचाई तक उड़ाया था। चूंकि वह ब्रिटिश दौर था, इसलिए इस महान घटना को कपोलकल्पित बना दिया गया।
भारत के वैदिक ग्रन्थों से लेकर पौराणिक ग्रन्थों में विमानों का उल्लेख मिलता है। सबसे प्राचीन वैदिक ग्रन्थ ऋग्वेद में कई प्रकार के विमानों का उल्लेख है। कम से कम रामायणकालीन लंकापति रावण के पुष्पक विमान से तो हर भारतीय परिचित है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर वीआर रामचंद्रन अपनी किताब ‘वार इन द एन्शियेंट इण्डिया इन 1944’ में लिखते हैं कि, “आधुनिक वैमानिकी विज्ञान में भारतीय ग्रंथों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने बताया कि सैकड़ों गूढ़ चित्रों द्वारा प्राचीन भारतीय ऋषियों ने पौराणिक विमानों के बारे में लिखा हुआ है।”
रामायणकालीन महर्षि भारद्वाज की किताब ‘विमानशास्त्र’ में विमानों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है, हांलाकि विमानशास्त्र को भारत के ज्यादातर वैज्ञानिक एक कोरी कल्पना समझते हैं। ऐसे में महर्षि भारद्वाज कृत विमानशास्त्र से जुड़ी सच्चाई जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
महर्षि भारद्वाज का संक्षिप्त परिचय
भारतवर्ष के सप्तर्षियों में से एक महर्षि भारद्वाज का आश्रम प्रयागराज में था। महर्षि भरद्वाज को प्रयागराज का प्रथम वासी माना जाता है। महर्षि भारद्वाज प्रयागराज में हजारों वर्षों तक विद्यादान करते रहे। प्रयागराज में रहते हुए महर्षि भारद्वाज ने 50 से अधिक ग्रन्थों के अतिरिक्त वैदिक ऋचाओं की रचना की थी।
रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि वनवास जाते समय भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता तथा अनुज लक्ष्मण सहित प्रयागराज में महर्षि भारद्वाज से मिले थे। तत्पश्चात महर्षि भारद्वाज ने ही श्रीराम को चित्रकुट जाने का मार्ग बताया था। यहां तक कि महाभारत में कौरवों तथा पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य भी महर्षि भारद्वाज के अयोनिजा पुत्र (गर्भ से बाहर किसी विशेष परिस्थिति में हुआ जन्म) थे।
ऋग्वेद के छठे मंडल के द्रष्टाऋषि भारद्वाज ही हैं। अथर्ववेद में भी महर्षि भारद्वाज के 23 मंत्र समाहित हैं। महर्षि भारद्वाज के पिता वृहस्पति और माता ममता थीं। महर्षि भारद्वाज शस्त्र, शास्त्र, मंत्रद्रष्टा, आयुर्वेद, विधि, राजतंत्र तथा शिक्षा के अतिरिक्त अभियांत्रिकी विशेषज्ञ भी थे।
चरक संहिता के मुताबिक, महर्षि भारद्वाज ने आयुर्वेद एवं व्याकरण का ज्ञान इन्द्र से प्राप्त किया था। ऋक्तंत्र के अनुसार, ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद वे चौथे व्याकरण प्रवक्ता थे। जबकि धर्मशास्त्र की विद्या उन्हें महर्षि भृगु से प्राप्त हुई थी।
विमानशास्त्र का रोचक इतिहास
महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित ‘यन्त्र-सर्वस्व’ को चालीस उप-भागों में बाँटा गया है। महर्षि भारद्वाज का बृहद ग्रन्थ ‘यन्त्र-सर्वस्व’ का एक खण्ड वायुयानों के निर्माण और संचालन की जानकारी देता है जिसका नाम ‘विमानशास्त्र’ है। संस्कृत पद्य रचित ‘विमानशास्त्र’ में आठ अध्याय तथा पाँच सौ सूत्र वाक्य हैं।
हांलाकि महर्षि भारद्वाज रचित विमानशास्त्र की मूल प्रतियों का मिलना अब असम्भव है परन्तु इस रहस्मयी पुस्तक के अस्तितत्व की सर्वप्रथम घोषणा साल 1951 में ए.एम. जोसयर द्वारा की गई। साल 1952 में महर्षि दयानंद के शिष्य स्वामी ब्रह्ममुनी परिव्राजक ने मूल ग्रन्थ के तकरीबन 500 पृष्ठों को संकलित एवं अनुवादित करवाया। इसके बाद फरवरी 1959 ई. में ‘विमानशास्त्र’ गुरुकुल कांगड़ी से प्रकाशित हुआ। इस रहस्यमयी पुस्तक में विमानों से जुड़ी आश्चर्यचकित करने वाली जानकारियां हैं। विमानशास्त्र का अंग्रेजी अनुवाद 1973 में प्रकाशित हुआ।
महर्षि भारद्वाज लिखते हैं कि ‘वेग-संयत् विमानो अण्डजानाम्’ अर्थात पक्षियों के समान वेग होने के कारण इसे 'विमान' कहते हैं। विमानशास्त्र में महर्षि भारद्वाज ने 500 प्रकार के विमानों का उल्लेख किया है, जो 32 तरीके से बनाए जा सकते थे। ये विमान सीधे, ऊंची उड़ान भरने, उतरने, आगे पीछे तिरछा चलने में सक्षम थे।
विमानशास्त्र में उन 16 विविध धातुओं के बारे में बताया गया है, जिन्हें विमान निर्माण के लिए उपयुक्त माना गया है। ये धातुएं भार में हल्की होने के साथ-साथ ताप सहन करने में भी समर्थ हैं। विमानशास्त्र में यात्रियों के लिए अभ्रकयुक्त (माएका) कपड़ों के बारे में भी बताया गया है।
विमानशास्त्र में उल्लेखित प्रमुख विमान
विमानशास्त्र में वायु से चलने वाले विमान को मरुत्सखा, सूर्य की किरणों से चलने वाले विमान को अंश वाह, गैस से चलने वाले विमान को धुमयान, बिजली से चलने वाले विमान को शक्त्युद्गम, अग्नि-जल और वायु से चलने वाले विमान को भूत वाह, तेल या पारे से चलने वाले विमान को शीकोद्गम, चुंबक से चलने वाले विमान को तारामुख तथा चंद्र एवं सूर्य की मनियों से चलने वाले विमान को मणिवाह कहा गया है।
इसके अतिरिक्त स्वर्ण रंग के नुकीले आकार वाले रूकमा विमान, रॉकेट के आकार वाले सुन्दर विमान, तीन मंजिले त्रिपुर विमान तथा पक्षी के आकार वाले शकुन विमानों का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है। यह सौ फीसदी सच है कि महर्षि भारद्वाज आधुनिक काल के वैमानिक लेखक थे नहीं बावजूद इसके उनकी विमान परिकल्पना वर्तमान बुद्धिजीवियों के लिए आश्चर्य का विषय है।
विमानों के बारे में क्या लिखते हैं भारतीय धर्मग्रन्थ?
भारत के सबसे प्राचीन वैदिक ग्रन्थ ऋग्वेद में तकरीबन 200 बार विमानों का उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद में अश्विन देवताओं के विमान संबंधी विवरण 1028 श्लोकों में समाहित है। अश्विन जिस विमान से विचरण करते थे वे विमान तीन मंजिला, त्रिकोणीय एवं तीन पहियों वाला था जो तीन यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम था।
ऋग्वेद में अग्निहोत्र विमान तथा हस्ति विमान का उल्लेख है जिनमें क्रमश: दो ईंजन तथा दो से अधिक ईंजन होते थे। ऋग्वेद में जिन विमानों का उल्लेख मिलता है, उसकी जानकारी निम्नलिखित है-
- वायु रथ— रथ के आकार का यह विमान वायु की शक्ति से चलता था।
- त्रिचक्र रथ— आकाश में उड़ने वाले इस विमान में तीन पहिए लगे होते थे।
- विद्युत रथ- यह विमान विद्युत की शक्ति से चलता था।
- त्रिताला विमान- यह विमान तिमंजिले आकार का था।
- कारा व जलयान- ये दोनों विमान केवल वायु ही नहीं अपितु जल पर भी चलने में समर्थ थे।
यजुर्वेद में भी एक विमान का उल्लेख किया गया है जिसका निर्माण अश्विन कुमारों ने किया था। इस विमान के जरिए उन्होंने राजा भुज्यु का युद्धपोत नष्ट होने पर उसे समुद्र में डूबने से बचाया था। यजुर्वेद के अतिरिक्त भागवत पुराण में भी विमान शब्द का कई बार उल्लेख हुआ है।
वाल्मीकि रामायण में लंकापति रावण के पुष्पक विमान का उल्लेख किया गया है, जिसे उसने कुबेर से छीना था। लंका के राजा रावण का पुष्पक विमान बेहद तीव्र गति से चलता था तथा इस विमान में असंख्य लोग बैठकर यात्रा कर सकते थे। इसके साथ ही कौशितिकी एवं शतपथ ब्रह्मण नामक ग्रन्थ में अंतरिक्ष से धरती पर देवताओं के उतरने का उल्लेख किया गया है। वहीं अमरांगण-सूत्रधार ग्रन्थ के मुताबिक ब्रह्मा, विष्णु, यम, कुबेर एवं इंद्र के पास अलग-अलग पाँच विमान थे।
विमानशास्त्र के बारे में वैज्ञानिकों की सोच
चर्चित किताब ‘विमानशास्त्र’ के बारे में ज्यादातर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है। साल 1974 में 'साइंटिफिक ऑपिनियन' नाम के जर्नल में प्रकाशित 'क्रिटिकल स्टडी ऑफ द वर्क वैमानिक शास्त्रा' के एक लेख के मुताबिक, विमानशास्त्र को महर्षि भारद्वाज ने नहीं बल्कि 1900 से 1922 ई. के बीच पंडित सुब्बाराय शास्त्री ने लिखा था। जबकि इस किताब को उनके एक सहयोगी ने तैयार किया था।
साल 1951 में यह किताब मैसूर में इंटरनेशनल अकादमी फॉर संस्कृत रिसर्च की स्थापना करने वाले ए.एम. जॉयसर को मिली जिसे उन्होंने प्रकाशित किया। आखिरकार एक यक्ष सवाल यह है कि क्या ऋग्वेद, यजुर्वेद, रामायण, महाभारत, भागवत पुराण, कौशितिकी एवं शतपथ ब्रह्मण नामक ग्रन्थों में उल्लेखित विमान भी महज एक कल्पना हैं?
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