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What happened to Bajirao-Mastani's son Shamsher Bahadur after her death

बाजीराव - मस्तानी की मौत के बाद उनके 6 वर्षीय बेटे शमशेर बहादुर का क्या हुआ?

छत्रपति शाहू जी महाराज ने 1720 ई. में बालाजी विश्वनाथ के 20 वर्षीय पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा नियुक्त कर दिया। अपने पिता से कूटनीति तथा प्रशासन में प्रशिक्षण प्राप्त बाजीराव एक साहसी योद्धा, कुशल सेनानायक तथा अद्भुत सूझबूझ वाला व्यक्ति था।

बाजीराव अपने 20 वर्ष के कार्यकाल (1720-1740 ई.) में लगातार 42 युद्धों में अपराजेय रहे। इसी कारण आज भी लोग बाजीराव को लड़ाकू पेशवा के रूप में याद करते हैं। बाजीराव शत्रु की रसद तथा सम्भरण को काटकर उसे अपने आगे झुकाने में बेहद माहिर थे। बाजीराव की मराठा सेना गतिशीलता तथा तीव्रगति (Mobility and Speed) के लिए विख्यात थी।

सिन्धिया, होल्कर, पंवार, रेत्रेकर तथा फड़के जैसे नेता बाजीराव की ही देन थे। बाजीराव जिसका एक बार चयन कर लेते उस पर पूर्ण विश्वास रखते थे। उन्होंने जाट, राजपूत, बुन्देलों तथा हिन्दू तत्वों की मुगल विरोधी भावनाओं से प्रत्यक्ष लाभ उठाया। सवाई जयसिंह और छत्रसाल की मित्रता से उन्हें बहुत लाभ हुआ। यही वजह था कि बाजीराव के काल में भारतीय मानचित्र पर मराठा ही शक्ति के केन्द्र थे। भारतीय शक्ति का केन्द्र बिन्दु अब दिल्ली नहीं पूना  बन चुका था।

बाजीराव और मस्तानी का मिलन

 बुन्देले राजपूत मालवा के पूर्व में यमुना तथा नर्मदा के बीच पहाड़ी प्रदेश में राज्य करते थे। बुन्देलों ने मुगलों का डटकर विरोध किया था। बुन्देलखंड इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयाग) की सूबेदारी थी। साल 1727 में मुहम्मद खान बंगश इलाहाबाद का सूबेदार नियुक्त हुआ तो उसने बुन्देलों को समाप्त करने की ठानी। उसे कुछ सफलता मिली और जैतपुर जीत लिया। इसके बाद बुन्देलखंड के राजा छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव से सहायता मांगी। साल 1728 में बाजीराव ने सभी विजित प्रदेश मुगलों से वापस छीन लिए। ऐसे में राजा छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव की शान में एक दरबार का आयोजन किया तथा काल्पी, सागर, झांसी तथा ह्दयनगर पेशवा को निजी जागीर के रूप में भेंट किया।

इतना ही नहीं, बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल ने कृतज्ञता प्रकट करने के लिए अपनी मुस्लिम रखैल रूहानी बाई की पुत्री मस्तानी का विवाह पेशवा बाजीराव से कर दिया। बेहद खूबसूरत मस्तानी नृत्य और गायन के साथ ही कुशल अश्वारोही तथा शस्त्र विद्या में भी निपुण थी। वह सैन्य अभियानों में बाजीराव के साथ ही चलती थी। पेशवा बाजीराव उससे अत्यंत प्रेम करते थे। बाजीराव की धर्मपरायण पत्नी काशीबाई भी बाजीराव के मस्तानी के प्रति अत्यंत आकर्षण से दुखी रहा करती थीं। आपको बता दें कि काशीबाई ​गठिया रोग से पीड़ित थीं अत: बाजीराव का बेहद खूबसूरत मस्तानी के प्रति आकर्षित होना एक स्वाभाविक कारण माना जा सकता है। बाजीराव ने साल 1730 में पूणे में शनिवार वाड़ा का निर्माण करवाया था। इसी भवन में बाजीराव ने मस्तानी के रहने का प्रबन्ध किया, जो मस्तानी महल और मस्तानी दरवाजा के नाम से ​मशहूर है। बाजीराव का मस्तानी के प्रति सम्मोहन देखकर उनकी मां राधाबाई ने इस बात की शिकायत छत्रपति शाहू से की तो उसने स्पष्ट जवाब दिया कि यह बाजीराव का निजी मामला है और जब तक इसकी वजह से मराठा साम्राज्य या मराठा हितों को नुक़सान नहीं पहुंचता, तब तक वे हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

काशीबाई से विरक्त होकर एक मुस्लिम महिला मस्तानी से विवाह और अत्यंत प्रेम करने के कारण ब्राह्मण समाज बाजीराव को पतित मानने लगा था। बतौर उदाहरण- रघुनाथराव के यज्ञोपवीत तथा सदाशिवराव के विवाह के समय ब्राह्मण पुरोहितों ने बाजीराव की उपस्थिति में इन संस्कारों को सम्पन्न करने से इन्कार कर दिया था। महाराष्ट्र के विशिष्ट ब्राह्मण परिवार में इस तरह का आकस्मिक परिवर्तन स्वाभाविक ही था।

बाजीराव पेशवा और मस्तानी की मृत्यु

1734 ई० में बाजीराव और मस्तानी से एक पुत्र भी पैदा हुआ जिसका नाम कृष्णाराव था परन्तु मराठा ब्राह्मणों के जातिगत व्यवहार से खिन्न होकर बाजीराव ने कृष्णराव का नया नाम शमशेर बहादुर रखा। पारिवारिक विरोध को देखते हुए बाजीराव ने अपने जीवनकाल में शमशेर बहादुर को काल्पी और बाँदा की सूबेदारी देने की घोषणा कर दी थी। कहते हैं लगातार 42 युद्धों में विजयी रहने वाला यह महान योद्धा अपने ही परिवार में खुद को असहाय महसूस करने लगा था। अपने जीवन के आखिरी दिनों में पेशवा बाजीराव जब निजाम के बेटे नासिरजंग को गोदावरी नदी के तट पर हुए युद्ध में परास्त कर रहे थे तभी मौका पाकर नाना साहेब ने मस्तानी को पूना के पार्वती बाग़ में कैद कर लिया। जब मस्तानी को कैद किए जाने की सूचना बाजीराव को मिली तो वह दुखी हुए।

यह कोई नहीं जानता था कि बाजीराव की मृत्यु निकट है। बाजीराव बल्लाल की बिगड़ती ​तबियत को देखकर उनके छोटे भाई चिमनाजी अप्पा ने 7 मार्च 1740 को नाना साहेब को एक प​त्र लिखा जिसके मुताबिक, उन्होंने मस्तानी को कैद से मुक्त कर शीघ्र अतिशीघ्र बाजीराव के पास भेजने की बात कही थी ताकि पेशवा के विक्षिप्त मन को शांत किया जा सके।

बीमार पेशवा बाजीराव महाराष्ट्र के खरगोन जि़ले में सनावद के पास नर्मदा नदी के तट पर रावेरखेड़ी के शिविर में 5 अप्रैल से ही थे। मस्तानी को कैद से मुक्त कराने की अपनी अक्षमता तथा मानसिक क्लेश से विक्षिप्त बाजीराव पेशवा की तबीयत 28 अप्रैल को बहुत ज्यादा बिगड़ गई और उसी दिन ह्दय गति रूकने से उनकी मृत्यु हो गई। पेशवा बाजीराव बल्लाल की मृत्यु के समय उनके पास काशीबाई भी मौजूद थीं। खरगौन से तकरीबन 35 किमी दूर नर्मदा नदी के किनारे रावेरखेड़ी में पेशवा बाजीराव 'बाजीराव बल्लाल'  की समाधि है।

बाजीराव की मृत्यु का समाचार मिलते ही मस्तानी ने भी अपने प्राण त्याग दिए। हांलाकि इस बात के सटीक प्रमाण नहीं मिलते हैं कि मस्तानी ने बाजीराव के विरह में अपने प्राण त्याग दिए अथवा आत्महत्या कर ली। यूरोपीय इतिहासकार किनकेड तथा पार्सिनीज के अनुसार, “मस्तानी अपने प्रेमी बाजीराव के साथ सती हो गयी। पूना से तकरीबन 20 मील दूर पाबल एक गांव है जहां मस्तानी की एक छोटी सी कब्र है जो उसकी प्रेम कहानी के दुखद अंत को याद दिलाती है। बता दें कि छोटे से गांव पाबल को बाजीराव ने मस्तानी को कभी इनाम में दिया था।

बाजीराव और मस्तानी का पुत्र शमशेर बहादुर

बाजीराव पेशवा की मृत्यु का समाचार सुनकर मस्तानी ने भी अपने प्राण त्याग दिए। उस समय बाजीराव और मस्तानी का पुत्र कृष्णा राव उर्फ शमशेर बहादुर महज 6 साल का ही था। ऐसे में शमशेर बहादुर का पालन-पोषण बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई ने ही किया। काशीबाई ने अपने पुत्रों के साथ ही शमशेर बहादुर को भी शिक्षा-दीक्षा तथा हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिलवाया तथा वयस्क होने पर बंदा और काल्पी की जागीर सौंप दी। बता दें कि मराठा साम्राज्य की ओर से शमशेर बहादुर को जब काल्पी और बांदा का नवाब घोषित किया गया तब इस जागीर से प्रतिवर्ष 40 लाख रुपए की आय प्राप्त होती थी।

14 जनवरी 1761 ई. को अफगान आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली और मराठों के बीच पानीपत का निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठा सेना का सेनापति चिमनाजी अप्पा (बाजीराव का छोटा भाई) का पुत्र सदाशिवराव भाऊ था। पानीपत के युद्ध में मराठे बुरी तरह पराजित हुए। विश्वासराव, सदाशिवराव भाऊ, जसवन्तराव पवार, तुकोजी होल्कर, जनकोजी सिन्धिया सहित करीब 28000  मराठे मारे गए। 

पानीपत के युद्ध में कृष्णराव उर्फ शमशेर बहादुर भी अपने 5000 घुड़वारों के साथ मराठा सेना के दाहिने भाग में तैनात थे। विश्वास राव की जब गोली लगने से मौत हो गई तब शमशेर बहादुर मराठा सेना के केन्द्र में पहुंच गए और सदाशिवराव भाऊ का साथ देने लगे। हांलाकि सदाशिवराव भाऊ की हत्या के बाद मराठा सेना में भगदड़ मच गई। शमशेर बहादुर भी इस युद्ध में लड़ते हुए बुरी तरह घायल हुए।  जानकारी के मुताबिक, युद्ध के अगले दिन शमशेर बहादुर घायल अवस्था में डीग जिले के कुम्हेर पहुंचे जहां जाट राजा सूरजमल ने उनका स्वागत किया और इलाज भी करवाया परन्तु अत्यधिक घावों के चलते शमशेर बहादुर की मृत्यु हो गई। इसके बाद भरतपुर के राजा सूरजमल ने शमशेर बहादुर की कब्र पर एक मकबरे का निर्माण करवाया। कहते हैं कि जब शमशेर बहादुर अपनी अंतिम सांस ले रहे थे, तब रो रहे थे और कह रहे थे कि अब मैं कहां जाऊंगा, अब मैं किसे अपना मुंह दिखाऊंगा... भाऊ! भाऊ!।

गौरतलब है कि बाजीराव के पुत्र कृष्णराव उर्फ शमशेर बहादुर ने मराठा साम्राज्य के हितों के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। शमशेर बहादुर की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अली बहादुर बांदा के नवाब बने।

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