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What do you know about Amir Khusro's masterpiece nuh sipihr ?

अमीर खुसरो की उत्कृष्ट कृति ‘नूह सिपेहर’ के बारे में क्या जानते हैं आप?

अबुल हसन यामिनउद्दीन खुसरो जिसे साधारणतया अमीर खुसरो के नाम से जाना जाता है। अमीर खुसरो के पिता अमीर सैफुद्दीन महमूद मध्य एशिया के एक नगर कुश ‘शहर-ए-सब्ज’ से भारत आए थे। यह शहर ताजिक तथा उज्बेक गणतंत्र की सीमा पर स्थित था। मध्य एशिया पर चंगेज खां के आक्रमण के कारण अमीर सैफुद्दीन महमूद अपने लचिन तुर्की कबीले के साथ भारत में शरणार्थी बनकर रहने आया था। अमीर खुसरो की मां आरिज-ए-ममालिक (युद्ध मंत्री) इमादउलमुल्क की पुत्री थी। यह तथ्य इस बात का प्रमाण है कि अमीर खुसरो के पिता को उच्च पद और सम्मानजनक स्थिति प्राप्त थी। जियाउद्दीन बरनी के मुताबिक, अमीर सैफुद्दीन महमूद का वार्षिक वेतन 12 हजार टंक था।

साल 1253 में उत्तर प्रदेश के ए​टा जिले में पटियाली नामक स्थान पर जन्मे अमीर खुसरो जब चार वर्ष के हुए तब उनके पिता उन्हें पटियाली से दिल्ली ले गए और उनकी शिक्षा एवं नै​तिक प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था की। अमीर खुसरो के दो भाई और थे जिनका नाम इजउद्दीन अली तथा हिसामउद्दीन था। अमीर खुसरो जब सात वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। ऐसे में खुसरो का लालन-पालन उनके नाना इमादउलमुल्क ने किया। इमादउलमुल्क के संरक्षण में अमीर खुसरो साहित्य के साथ-साथ गणित, व्याकरण, दर्शन, तर्कशास्त्र, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, रहस्यवाद, इतिहास आदि विषयों में पारंगत हो गए। संगीत भी उनकी शिक्षा का एक प्रमुख अंग था। अमीर खुसरो को ​हिन्दी से बहुत अधिक प्रेम था। अमीर खुसरो ऐसे पहले मुसलमान हैं जिन्होंने भारतीय होने का दावा किया था। वह स्वयं कहते हैं- “मैं तुर्की भारतीय, हिन्दवी बोलता हूं, उसके ​जैसी मिठास चीनी के खाण्ड में नहीं है और न वैसा भाव अरबी में है।”

अमीर खुसरो स्वयं को ‘तूती-ए-हिन्द’ कहते थे। उनका कहना था- ‘ना लफ्जे हिन्दी अस्त अज फारसी कम’ अर्थात हिन्दी का शब्द फारसी से कम नहीं है। अमीर खुसरो अपनी मसनवी ‘नूह सिपेहर’ में लिखते हैं कि संभव है, “कोई मुझसे पूछे कि भारत के प्रति मैं इतनी श्रद्धा क्यों रखता हूं। मेरा उत्तर यह है, केवल इसलिए कि भारत मेरी जन्म भूमि है, भारत मेरा अपना देश है। खुद नबी ने कहा है कि अपने देश का प्रेम आदमी के धर्म-प्रेम में सम्मिलित होता है।”

आठ वर्ष की उम्र से ही अमीर खुसरो कविताएं लिखने लगे थे। हजरत निजामुद्दीन औलिया का शिष्य बनने के बाद उनकी ​कविता में अधिक गम्भीरता तथा परिपक्वता आ गई। निजामुद्दीन औलिया के सम्पर्क ने अमीर खुसरो में आत्मिक ज्ञान उत्पन्न कर दिया। यदि हम अमीर खुसरो की रचनाओं की बात करें तो जियाउद्दीन बरनी एक जगह लिखता है कि अमीर खुसरो ने ग्रन्थों का पुस्तकालय लिखा था। मिर्जा वाहिद की किताब ‘द लाइफ एंड वर्क्स आफ अमीर खुसरो’ के मुताबिक, जामी ने उसके ग्रन्थों की संख्या 99 बताई है। वहीं अमीन राजी ने खुसरो की कुल कृतियों की संख्या 190 बताई है। इसके अतिरिक्त ‘सियारूल औलिया’ के लेखक अमीर खुर्द का कथन है कि अमीर खुसरो ने तकरीबन 99 पुस्तकें लिखी हैं। फरिश्ता के अनुसार, खुसरो की रचनाओं की संख्या 92 है। बावजूद इसके वर्तमान में अमीर खुसरो द्वारा लिखित एक दर्जन से अधिक ग्रन्थ मौजूद नहीं हैं। इस स्टोरी में हम आपको अमीर खुसरो की सर्वाधिक प्रख्यात और चौथी मसनवीं ‘नूह सिपेहर’ के बारे में बताने जा रहे हैं।

‘नूह सिपेहर’

खुसरो ने अपनी इस अमूल्य कृति को 1318 ई. में पूरा किया था। उसकी यह कृति नौ आकाशीय समूह के समान है इसलिए उसने इसे ‘नूह सिपेहर’ की संज्ञा दी है। इस ग्रन्थ के प्रत्येक सिपेहर को एक अध्याय समझना चाहिए। अमीर खुसरो ने 67 साल की उम्र में नूह सिपेहर की रचना की थी जिसमें छन्दों की संख्या 4509 है। नूह सिपेहर की शुरूआत अमीर खुसरो ने पैगम्बर मुहम्मद साहब की स्तुतिगान के पश्चात हजरत निजामुद्दीन औलिया की प्रशंसा से की है।

पहला सिपेहर- इसमें सुल्तान मुबारकशाह के राज्याभिषेक तथा देवगिरी पर किए गए आक्रमण का विस्तृत वर्णन है।

दूसरा सिपेहर- दूसरे सिपेहर में अमीर खुसरो ने मुबारक शाह द्वारा बनवाई गई इमारतों का वर्णन किया है। इसके साथ ही उसने तेलंगाना और वारंगल अभियानों का सविस्तार वर्णन किया है। इसके बाद वह दिल्ली की प्रशंसा भी करता है।

तीसरा सिपेहर- अमीर खुसरो ने तीसरे सिपेहर में भारत की जिस प्रकार से प्रशंसा की है, वह अतुलनीय है। उसने भारत की जलवायु, पशु-पक्षी, पेड़, पौधों, धर्म, भाषा, आदि के विषय में दुर्लभ जानकारी दी है। वह लिखता है- “हिन्दुस्तान की जलवायु खुरासान से कहीं अच्छी है, यहां के अंगूर तथा अमरूद की उपमा नहीं दी जा सकती है। यहां के पान विश्व में दुर्लभ हैं। आम, केला, इलायची, कपूर, लौंग यहां अधिकता से पाए जाते हैं।”

खुसरो ने भारत की विधाओं, ज्ञान तथा दर्शन की भी प्रशंसा की है। वह भारत की विभिन्न भाषाओं का भी उल्लेख करता है- जैसे सिन्धी, लाहौरी, कश्मीरी, तेलिंगी, गूजरी, माबारी, बंगाली त​था अवधी आदि। खुसरो संस्कृत भाषा की भी प्रशंसा करने से नहीं चूकता है, वह इस भाषा की अत्यधिक प्रशंसा करता है। अपने तीसरे सिपेहर में खुसरो ने जादू-टोने का भी उल्लेख किया है। वह भारत को अंक तथा शतरंज के आविष्कार का जन्मदाता बताता है। यहां तक कि उसने सती प्रथा की भी प्रशंसा की है। तत्पश्चात इस सिपेहर के आखिर में वह सुल्तान मुबारक शाह की सेना द्वारा वारंगल के राजा हरपालदेव की पराजय और विजयी सेना की वापसी का विवरण देता है। 

चौथा सिपेहर- चौथे सिपेहर में अमीर खुसरो ने बादशाह, मलिकों तथा सैनिकों के विमर्श की बात की है।

पांचवा सिपेहर- पांचवे सिपेहर में सुल्तान मुबारक शाह के शिकार के शौक ​का वर्णन है। जिसमें उसने धनुष-बाण के बीच एक कलात्मक वार्तालाप का वर्णन किया है।

छठवां सिपेहर- छठवें सिपेहर में मुबारक शाह के पुत्र मुहम्मद के जन्म की जानकारी दी गई है। इस दौरान सुल्तान के द्वारा अमीरों को सोना-चांदी, रत्न आदि वितरित करने की बात लिखी गई है।

सातवां सिपेहर- सातवें सिपेहर में अमीर खुसरो ने नौरोज तथा वसन्त ऋतु का वर्णन किया है। इसमें सुल्तान के दरबार का भी जिक्र किया गया है।

आठवां सिपेहर- आठवें सिपेहर में खुसरो ने सुल्तान के चौगान के खेल का वर्णन किया है।

नवां सिपेहर- नवें सिपेहर मे अमीर खुसरो ने अपनी कविताओं के बारे में लिखा है।

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