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Delhi's famous courtesan Lal Kunwar, in whose love the lustful king Jahandarshah got ruined

कौन थी वह दिल्ली की मशहूर तवायफ जिसके इश्क में बर्बाद हो गया जहांदरशाह?

यह सच है कि कोई भी मुगल बादशाह अपने जीवन में सुरा और सुन्दरी से कभी दूर नहीं रहा। कुल मिलाकर भोग-विलास उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका था। बतौर उदाहरण- मुगल बादशाह जहांगीर ने शाहजहां को अपने सामने अपने आदेश से शराब पिलवाई थी और आगे के लिए भी कहा था कि वह जश्न के मौके पर शराब पिया करे क्योंकि यह पादशाहत की निशानी है।​ ब्रिटिश यात्री विलियम हांकिन्स लिखता है कि ‘जहांगीर के हरम का दैनिक खर्च 30 हजार रुपए था।’ वहीं उसके पिता अकबर के हरम में भी पांच हजार महिलाएं थी। एक अन्य उदाहरण के रूप में अकबर के पांचहजारी मनसबदार जैनखां कोका ने सम्राट के दावत में अपने घर के तीन तालाबों को गुलाब, जाफरान और अरगजे से भरवाया और उसमें 1000 से ज्यादा वेश्वाएं उतार दीं। पानी के बजाय चौक में गुलाब जल छिड़का गया था। ऐसे में बादशाह अकबर की अय्याशी भी किसी से छुपी नहीं है।

एक अन्य उदाहरण के रूप में प्रख्यात इतिहासकार जदुनाथ सरकार लिखते हैं कि “मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय ने ब्रिटिश गर्वनर जनरल को एक पत्र लिखा था जिसमें यह विनती की गई थी कि उसके लिए 2 मन पटना की बढ़िया अफीम भेज दी जाए।” इसी क्रम में हम आपको दिल्ली की एक मशहूर तवायफ लाल कुंवर के बारे में बताने जा रहें जो न केवल मुगल बादशाह औरंगजेब बल्कि उसके पोते जहांदरशाह पर भी अपना पूरा प्रभाव रखती थी।

लाल कुंवर का दीवाना था औरंगजेब

औरंगजेब को सबसे ताकतवर मुगल शासकों में से एक माना जाता है। अपने 49 साल के शासनकाल में उसने तकरीबन पूरे उपमहाद्वीप पर कब्जा कर लिया था। इसीलिए वह आलमगीर के नाम से भी जाना जाता है। शायद आपको यह बात नहीं पता होगी कि संगीत और नृत्य पर पाबंदी लगाने वाला औरंगजेब भी अय्याशी में अपने पूर्वजों से तनिक भी कम नहीं था।

इतिहासकार कैथरीन ब्राउन की किताब 'डिड औरंगज़ेब बैन म्यूज़िक' से पता चलता है कि औरंगेजब को बुरहानपुर की एक गायिका और नर्तकी हीराबाई जैनाबादी से इस कदर इश्क हो गया था कि वह शराब न पीने की कसम तोड़ने को तैयार हो गया था। हांलाकि एक साल बाद ही हीराबाई की मौत के साथ इस प्रेम कहानी का अंत हो गया। दाराशिकोह की मौत के बाद उसकी उप पत्नियों राना-ए-दिल तथा उदयपुरी महल को औरंगजेब ने अपने हरम में शामिल होने का आमंत्रण दिया था। बता दें कि राना-ए-दिल बला की खूबसूरत थी और वह कभी शाहजहां के दरबार में नाचती थी। लेकिन विधवा होने के बाद उसने औरंगजेब का निवेदन ठुकरा दिया। हांलाकि अपने आखिरी दिनों में औरंगजेब उदयपुरी महल के साथ रहने लगा था।  

इसी क्रम में तानसेन के वंशज खसूरियत खान के घर जन्मी लाल कुंवर को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है। कई राजघरानों के दीवान रह चुके जरमानी दास लिखते हैं कि “बादशाह औरंगजेब मुजरा करने वाली एक तवायफ लाल कुंवर पर इस कदर फिदा हो गया था कि उसे शाही सदस्य जितना सम्मान मिलने लगा था। औरंगजेब के सबसे करीबी लोगों में शामिल लाल कुंवर जब कहीं बाहर निकलती तब नगाड़े बजाकर रास्ता खाली कराया जाता था और चंद सैनिकों की टुकड़ी उसके आगे-पीछे चलती थी। उसका दबदबा इतना बढ़ गया था कि वह बादशाह के काम-काज में मशविरा देने लगी थी और कभी-कभी शाही फरमान तक बदलवा देती थी 

लाल कुंवर के इश्क में पागल जहांदरशाह

समय बदला और औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल सत्ता की चमक खोने लगी। औरंगजेब का बेटा बहादुरशाह 63 साल की उम्र मुगल में गद्दी पर बैठा जो जनता के बीच ‘शाह- -बेखर’ के नाम से मशहूर था। इतिहासकार विलियम इरविन के अनुसार, “साल 1712  में बहादुरशाह में लाहौर था जहां स्वास्थ्य बिगड़ने से 27 फरवरी की रात उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद मुगल सत्ता की कमान उसके बेटे जहांदरशाह को मिली। परन्तु जहांदरशाह ने अय्याशी के मामले में अपने सभी पूर्वजों को मात दे दी। अपनी अजीबोगरीब हरकतों की वजह से वह ‘लम्पट मूर्ख’ बादशाह के नाम से जाना जाने लगा।

दिनरात शराब और शबाब के नशे में डूबे रहने वाला जहांदरशाह भला लाल कुंवर से कैसे दूर रह सकता था। कहते हैं कि रसिक मिजाज जहांदरशाह ने लाल कुंवर को पहली बार गाते हुए सुना तो उसे अपनी गोंद में उठा लिया था और एक कमरे में ले जाकर बार-बार गाने की फरमाइश की। दरअसल अय्याश जहांदरशाह पर लाल कुंवर का जादू चल गया था। इश्क का यह जादू इस कदर परवान चढ़ा कि जहांदरशाह ने खुद से दोगुनी उम्र की लाल कुंवर से निकाह कर लिया और उसे ‘इम्तियाज महल’ नाम से उपपत्नी का दर्जा दिया। इम्तियाज महल बनने के बाद लाल कुंवर ने अपनी रसूख का भरपूर फायदा उठाया।

मदिरा पीने के शौकीन थे जहांदरशाह और लाल कुंवर

मदिरा पीने का शौकीन जहांदरशाह अपनी रखैलों तथा कनीजों के साथ बैलगाड़ी में बैठकर शराब के अड्डों पर जाया करता था ताकि उसे कोई पहचान नहीं पाए। इसी तरह एक रात वह लाल कुंवर के साथ मधुशाला पहुंचा और इतनी मदिरा पी ली कि उसे सुध नहीं रही। लाल कुंवर तो अपने महल पहुंच गई लेकिन जहांदरशाह पूरी रात बैलगाड़ी में ही पड़ा रहा। सुबह जब जहांदरशाह महल में नहीं मिला तो चारों तरफ चीख पुकार मच गई। इसके बाद लाल कुंवर को याद आया और जहांदरशाह को बैलगाड़ी से महल लाया गया।

लाल कुंवर का राजनीतिक रसूख

राजगोपाल सिंह वर्मा की किताब ‘किंगमेकर’ के अनुसार, लाल कुंवर को खुश करने के लिए जहांदरशाह उसके भाईयों, करीबियों तथा दूर के रिश्तेदारों तक को सौगातें बांटने लगा। उसने हाथी-घोड़े, हीरे-जवाहररात तथा जागीरें देने में भी कोताही नहीं की। लाल कुंवर के कहने पर उसके भाई को मुल्तान की जागीर देने में पलभर की भी देर नहीं की। इसके साथ ही लाल कुंवर के इशारे पर दरबार से सुयोग्य अधिकारियों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

जहांदरशाह अपनी माशूका लाल कुंवर को 2 करोड़ रुपए गुजारा भत्ता देता था। लाल कुंवर अपनी बग्गी पर बैठकर जब कहीं बाहर निकलती तो बादशाह की तरह सैनिक उसके पीछे-पीछे नगाड़े बजाते हुए चलते और तकरीबन 500 लोगों का काफिला उसके साथ चलता था।

लाल कुंवर ने जहांदरशाह के बेटों की आंखे फोड़वा दी

बादशाह जहांदरशाह के बेटों से लाल कुंवर इस कदर नफरत करती थी कि उसने इन्हें अपने रास्ते से हटाने का निर्णय कर लिया। एक दिन लाल कुंवर ने जहांदरशाह से कहा कि वह अपने बेटों को पहले कैद करे और फिर उनकी आंखे फोड़ दे। जहांदरशाह ने ठीक वैसा ही किया।

लाल कुंवर ने खुली आंखों से देखा था मौत का तमाशा

राजगोपाल सिंह वर्मा ने अपनी किताब ‘किंगमेकर’ में इस घटना का भी उल्लेख किया है कि लाल कुंवर के कहने पर जहांदरशाह ने यमुना नदी में मुसाफिरों की एक नाव डूबवा दी थी जिसमें 25 लोगों की मौत हुई थी। इसके पीछे कहानी यह है कि एक बार लाल कुंवर ने जहांदरशाह से कहा कि उसने कभी नदी में लोगों से भरी नाव डूबते हुए नहीं देखी है। फिर क्या था लाल कुंवर की फरमाइश पूरी करने के लिए जहांदरशाह के आदेश पर यमुना में मु​साफिरों से भरी हुए एक नाव रोकी गई और चीख-पुकार के बावजूद सैनिकों ने वह नाव डूबो दी। जैसे-जैसे मुसाफिर यमुना में डूबते जा रहे थे किले पर बैठी लाल कुंवर हंसते हुए तालिया बजा रही थी।

लाल बंगला में हैं लाल कुंवर की कब्र

जहांदरशाह ने मार्च 1712 से फरवरी 1713 तक ही शासन किया, इसी बीच उसे अजीम-उस-शान के पुत्र फर्रूखसीयर ने सैयद बन्धुओं की सहायता से चुनौती दी और 11 फरवरी 1713 को उसे हरा कर मार डाला। इस प्रकार सालभर के भीतर ही जहांदरशाह के शासनकाल का अंत हो गया। जहांदरशाह के मरते ही लाल कुंवर को काल कोठरी में डाल दिया। 

दिल्ली के गोल्फ क्लब मैदान में स्थित लाल बंगले में उसकी कब्र है। आज की तारीख में इस परिसर में आम लोग नहीं जा सकते। लाल कुंवर का मकबरा लाल बलुआ पत्थर के मंच पर खड़ा है जिसके कोनों पर कमरे हैं। मकबरे का गुंबद उत्तर मुगल शैली में बना है जिसके शीर्ष पर एक शिखर है। इस मकबरे में लाल और पीले बलुआ पत्थर से बनी दो कब्रें हैं, जिनमें से एक लाल कुँवर (इम्तियाज़ महल) और दूसरी उसकी बेटी बेगम जान की है।

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