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This Rangeela Badshah used to wear girls' clothes, used to get nude photos made

लड़कियों के कपड़े पहनता था यह रंगीला बादशाह , बनवाता था न्यूड तस्वीरें

शक्तिशाली मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात शक्तिहीन उत्तराधिकारियों का तांता लग गया। इन कमजोर मुगल बादशाहों के नैतिक पतन और सनकों के कारण मुगल व्यवस्था संभलने के स्थान पर और भी बिगड़ती चली गई। औरगंजेब के बाद बहादुरशाह (1707-12) 63 वर्ष की आयु में सिंहासन पर बैठा परन्तु वह साम्राज्य की प्रतिष्ठा बनाए रखने में असमर्थ था। वह सभी दलों को प्रसन्न रखने के लिए सरदारों को बड़ी-बड़ी उपाधियां बांटता रहा। लोग उसे ‘शाहे बेखबर’ के नाम से जानते थे। जबकि बादशाह जहांदरशाह (1712-13) एक लम्पट मूर्ख था। वहीं फर्रूखसीयर (1713-19) एक घृणित कायर था। इसके बाद 27 सितंबर 1719 को मुहम्मदशाह रंगीला (1719-48) महज 17 वर्ष की उम्र में ‘अबु अल फ़तह नसीरूद्दीन रोशन अख़्तर मोहम्मद शाह’ के नाम से मुगल गद्दी पर बैठा। प्रशासन के प्रति उदासीन मुहम्मद शाह अपना ज्यादातर समय पशु- युद्धों को देखने में व्यतीत करता था। शराब और सुन्दरी के प्रति अत्यधिक रूचि के चलते लोग उसे ‘रंगीला’ कहा करते थे। हांलाकि मुहम्मदशाह रंगीला ने अपने शासनकाल में फारसी की जगह उर्दू को प्राथमिकता दी। उसने उर्दू को अदालती भाषा बनाया। रंगीला के शासनकाल में पहली बार कुरान का उर्दू में अनुवाद किया गया था। इस स्टोरी में हम आपको मुहम्मद शाह ‘रंगीला’ की अजीबोगरीब हरकतों से रूबरू कराएंगे।

पशु युद्धों का शौकीन था ‘रंगीला’

मुहम्मदशाह रंगीला ने तकरीबन 30 वर्षों तक शासन किया लेकिन इस दौरान उसने स्वयं एक भी युद्ध नहीं लड़ा। सुबह झरोखा दर्शन के वक्त मुर्गों, बटेरों  या फिर हाथियों की लड़ाई देखकर अपना मन बहलाता था। मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम ने जब दिल्ली पर आक्रमण कर किया तब वह अपने महल में मुर्गों की लड़ाई देखकर खुश हो रहा था। मुहम्मदशाह कभी-कभी घुड़दौड़ देखकर भी अपना मनोरंजन करता था। दोपहर के समय नटों, नकालों, बाजीगरों तथा भांटों की कला का आनन्द उठाता था।

मुहम्मदशाह ‘रंगीला’ ने बनवाई थी न्यूड तस्वीर

मुहम्मदशाह रंगीला को लड़कियों के रेशमी वस्त्र पहनना काफी पसन्द था। मुहम्मदशाह रंगीला अक्सर अंगरखा (जनाना लिबास) तथा मोती जड़े हुए जूते पहनकर दरबार में आता था। इसी के चलते दिल्ली में यह अफवाह फैलनी लगी थी कि मुहम्मदशाह नामर्द है। ऐसे में मुहम्मदशाह ने अपनी मर्दानगी का सबूत देने के लिए एक चित्र तैयार करवाया जिसमें उसे एक कनीज के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हुए दिखाया गया है। मुहम्मदशाह रंगीला खुद भी एक अच्छा चित्रकार था। नादिरशाह के साथ आए ईरानी इतिहासकारों का दावा है कि वह अपने दरबार में हरम की खूबसूरत महिलाओं को बुलाकर उनकी न्यूड पेंटिंग बनाता था। मुहम्मदशाह रंगीला के दरबारी चित्रकार चित्रमन और निधा मल थे। ये दोनों चित्रकार राजस्थान से थे।

नृत्य-संगीत का दीवाना था रंगीला

मुगल बादशाह औरंगजेब के समय नृत्य-संगीत पर पाबंदी के चलते गवैयों और संगीतकारों की रोज़ी-रोटी बंद हो चुकी थी। लेकिन मुहम्मदशाह रंगीला ने संगीत और कला को इतना बढ़ावा दिया कि पूरी दिल्ली झूम उठी। ‘मरकए-दिल्ली’ नामक किताब में दरगाह कुली खान लिखता है कि ‘मुहम्मद शाह रंगीला को शेरों-शायरी और संगीत से बहुत लगाव था।’ नृत्य के प्रति उसका इश्क इतना ज्यादा था कि कभी-कभी वह खुद भी जनाना कपड़े पहनकर नर्तकियों के साथ नाचने लगता था।

दरग़ाह क़ुली ख़ान अपनी किताब ‘मरकए-दिल्ली’ में नूर बाई और अद बेग़म का जिक्र करना नहीं भूलता जिनके कोठों के आगे अमीरों तथा प्रभावशाली लोगों की भीड़ लगी रहती थी। वह लिखता है कि ना जाने कितने लोगों ने इनकी खातिर अपनी सारी दौलत लुटा दी। तवायफ अद बेग़म के बारे में वह लिखता है कि “दिल्ली की यह मशहूर बैग़म पायजामा नहीं पहनती, वह अपने बदन के निचले हिस्से पर पायजामों की तरह फूल-पत्तियां बना लेती थी। अद बेग़म ऐसी फूल-पत्तियां बनाती हैं जो बुने हुए रोमन थान में देखने को मिलती हैं।”

गवैयों से भरा था मुहम्मदशाह का दरबार

दरगाह कुली खां ने मुहम्मदशाह के शाही दरबार से वास्ता रखने वाले दर्जनों ढोलक नवाज़ों, पिखलोजियों, नक़ालों, कव्वालों, सबूचा नवाज़ों, धमधी नवाज़ों तथा भाटों का ज़िक्र किया है। रंगीला के दरबार में सदारंग तथा अदा रंग नाम के ऐसे दो गायक थे जिन्होंने खयाल गायकी की शुरूआत की। इससे पूर्व दिल्ली अथवा शाही दरबार में ध्रुपद गाया जाता था। ध्यान देने वाली बात यह है कि दरगाह कुली खान ने मुहम्मदशाह से जुड़े 48 संगीतकारों तथा गायकों में से केवल तीन ध्रुपद गायकों का उल्लेख किया है। उस दौर की एक बंदिश आज भी मशहूर है- 'मोहम्मद शाह रंगीले सजना तुम बिन कारी बदरया, तन ना सुहाए’ अर्थात् 'मोहम्मद शाह रंगीले सजना, तुम्हारे बिना काले बादल दिल को नहीं भाते।

तवायफ नूर बाई के चलते ‘रंगीला’ से छिन गया कोहिनूर

दिनरात शराब और शबाब में डूबा रहने वाला मुहम्मदशाह रंगीला दिल्ली की बेहद खूबसूरत तवायफ नूर बाई पर फिदा था। नूर बाई के कद्रदानों का आलम यह था कि उसकी कोठी के आगे ​मुगल अमीरों तथा प्रभावशाली लोगों के हाथियों का ऐसा हुजूम लगा रहता था कि ट्रैफ़िक जाम हो जाता। दरगाह कुली खान ने अपनी किताब मरक़ए दिल्ली में लिखा है कि नूरबाई के चलते अनगिनत लोगों ने अपनी सारी दौलत लुटा दी और कितनों का तो घर बर्बाद हो गया।

जाहिर सी बात है नूर बाई ने नादिरशाह से भी सम्बन्ध बना लिए थे तभी उसने कोहिनूर का राज नादिरशाह को बता दिया। नूर बाई ने नादिरशाह से कहा कि अभी सबकुछ जो तुमने हासिल किया है, वो उस चीज के आगे कुछ भी नहीं है जिसे मुहम्मदशाह ने अपनी पगड़ी में छुपा रखा है। दरअसल मुहम्मदशाह रंगीला की पगड़ी में अनमोल ‘कोहिनूर’ हीरा था।

आक्रमणकारी नादिरशाह भी कम होशियार नहीं था। उसने मुहम्मदशाह से कहा कि ईरान में खुशी के मौके पर भाई अपनी पगड़िया बदल देते हैं। चूंकि अब हम भाई बन गए हैं इसलिए यह रस्म अदायगी आपको करनी ही होगी। इसके बाद बेबस मुहम्मदशाह ने अपनी पगड़ी उतारकर नादिरशाह के सिर पर रख दी। इस प्रकार दुनिया का सबसे नायाब और अनमोल ‘कोहिनूर’ हीरा नादिरशाह के पास पहुंच गया।

मुहम्मदशाह रंगीला की मौत

अत्यधिक मदिरापान और अफीम की लत ने मु​हम्मदशाह रंगीला को अंदर से कमजोर कर दिया था। गुस्से का दौरा पड़ने के बाद मुहम्मदशाह को हकीमों-वैद्यों ने हतात बख्श बाग भेज दिया। लेकिन वहां भी रंगीला पूरी रात बेहोश पड़ा रहा और अगली सुबह उसका इंतकाल हो गया।  साल 1748 में 15 अप्रैल को 46 साल के मुहम्मदशाह को निज़ामुद्दीन औलिया की मज़ार में अमीर ख़ुसरो के बगल में दफनाया गया।

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