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Warrior Queen Nayika Devi of Gujarat defeated to Muhammad Ghori

कौन थी वह योद्धा रानी जिसके आगे धूल चाटने पर मजबूर हो गया था मुहम्मद गोरी?

अफ़ग़ान आक्रमणकारी मुइज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम को मध्यकालीन इतिहास में मुहम्मद ग़ोरी के नाम से जाना जाता है। साल 1175 में मुहम्मद गोरी ने गोमल के दर्रे से होकर डेरा इस्माइल खां होते हुए मुल्तान पर पहला आक्रमण किया। उसने मुल्तान को बड़ी सरलता से जीत लिया। तत्पश्चात गोरी ने उच्छ और निचले सिन्ध को भी जीत लिया। इसके बाद उसने 1178 ई. में गुजरात पर आक्रमण किया लेकिन अल्पवयस्क शासक मूलराज द्वितीय ने अपनी योग्य और साहसी मां नायिका देवी के नेतृत्व में आबू पहाड़ के निकट गोरी को करारी शिकस्त दी। भारत में मुहम्मद गोरी की यह पहली पराजय थी। हांलाकि मुहम्मद गोरी ने अपना मार्ग बदलकर भारत पर कई आक्रमण किए। उसने पंजाब, पेशावर, सियालकोट और तराइन का युद्ध फतेह कर तकरीबन समस्त उत्तरी भारत को अपने अधीन कर लिया। 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में एक नए राजवंश की स्थापना की। चूंकि नायिका देवी के नेतृत्व में चालुक्य सेना द्वारा मुहम्मद गोरी को मिली पहली शिकस्त के बारे में मध्यकालीन इतिहासकारों ने बहुत कम लिखा है। ऐसे में इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे कि अजयपाल की विधवा पत्नी नायिका देवी (मूलराज द्वितीय की मां) ने अपनी शानदार रणनीति की बदौलत किस प्रकार से मुहम्मद गोरी को करारी शिकस्त दी थी।

चालुक्य वंश और मूलराज द्वितीय

चालुक्य वंश के संस्थापक मूलराज प्रथम (942-995 ई.) ने गुजरात के बड़े भाग को जीतकर अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया। उसने सौराष्ट्र तथा कच्छ को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया। राष्ट्रकूट नरेश धवल के बीजापुर लेख से यह पता चलता है कि मूलराज प्रथम ने परमार शासक धरणिवाराह को पराजित कर आबू पर्वत क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। यद्यपि उसे परमारवंशी मुज्ज तथा चौहान शासक विग्रहराज द्वितीय के हाथों पराजय झेलनी पड़ी थी। बावजूद इसके मूलराज प्रथम का राज्य उत्तर में सांचोर (जोधपुर) तथा पूर्व व दक्षिण की ओर साबरमती नदी तक विस्तृत था। वृद्धावस्था में उसने अपने पुत्र चामुण्डराज को शासक बनाकर अपने सिंहासन का परित्याग कर दिया।

चामुंडराज ने अपने पुत्र वल्लभराज को शासक बनाया। इसके बाद दुलर्भराज शासक हुआ। दुर्लभराज ने अपने भतीजे भीम प्रथम को गद्दी सौंप दी। भीम प्रथम को चालुक्य वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक माना जाता है। इसके समय में ही महमूद गजनवी ने 1025 ई. सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था। भीम प्रथम के बाद उसके पुत्र कर्ण ने गद्दी सम्भाली किन्तु जल्दी ही राज्य-शासन छोड़ दिया।

इसके बाद कर्ण के पुत्र जयसिंह सिद्धराज ने गद्दी सम्भाली जो इस वंश का प्रतापी शासक था। जयसिंह सिद्धराज के दरबार में जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी थे जिन्होंने ‘द्वयाश्रय महाकाव्य’ नामक ग्रन्थ लिखा। जयसिंह सिद्धराज ने कई शासकों को पराजित कर अपनी राज्य सीमा दक्षिण में बलि क्षेत्र (जोधपुर) तथा सांभर (जयपुर), पूर्व में भिलसा (मध्यप्रदेश) तथा पश्चिम में काठियावाड़ तक विस्तृत कर ली। चूंकि उसकी कोई संतान नहीं थी ऐसे में उसने अपने मंत्री के बेटे उदयन के पुत्र बाहड़ को उत्तराधिकारी बनाया लेकिन जयसिंह सिद्धराज की मृत्यु के बाद कुमारपाल ने उससे सत्ता छीन ली। कुमारपाल (1153-1171 ई.) ने अर्णोराज चौहान, विक्रमसिंह परमार तथा मालवा के शासक बल्लार को पराजित कर अपनी योग्यता प्रमाणित कर दी। कुमारपाल की मृत्यु के पश्चात उसके बहन के लड़के प्रतापमल्ल तथा उसके भाई महिपाल के पुत्र अजयपाल में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष हुआ जिसमें अजयपाल विजयी हुआ। परन्तु वचजल देव प्रतिहारों के हाथों उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद अजयपाल का अल्पवयस्क पुत्र मूलराज द्वितीय अन्हिलवाड़ की गद्दी पर बैठा।

मूलराज द्वितीय की संरक्षिका नायिका देवी

मेरुतुंगाचार्य द्वारा लिखित जैन साहित्य प्रबन्ध चिन्तामणि के मुताबिक राजा परमर्दीदेव चंदेल की पुत्री नायिका देवी का विवाह अन्हिलवाड़ के शासक अजयपाल से हुआ था। साल 1176 में वचजल देव प्रतिहार के हाथों अजयपाल की मृत्यु के बाद उसका अल्पवयस्क पुत्र मूलराज द्वितीय गद्दी पर बैठा परन्तु एक संरक्षिका के रूप में शासन की समस्त बागडोर नायिका देवी के ही हाथों में था।

अस्त्र-शस्त्र, घुड़सवारी, तीरंदाजी तथा रणकौशल में माहिर नायिका देवी ने उस समय भी अपनी वीरता का परिचय दिया था जब पृथ्वीराज चौहान की सेना ने चंदेलों पर आक्रमण कर दिया। तब नायिका देवी के नेतृत्व में चालुक्य सेना ने पृथ्वीराज चौहान की दक्षिणी सीमा पर हमला कर दिया था ऐसे में पृथ्वीराज को अपनी सेना महोबा से वापस बुलानी पड़ी थी। अब हम बात करते हैं मुहम्मद गोरी की जिसने अल्पवयस्क मूलराज द्वितीय को बालक तथा उसकी मां नायिका देवी को अबला समझकर 1178 में गुजरात पर आक्रमण करने की भूल कर दी। इसके बाद आबू के युद्ध में वीरांगना नायिका देवी ने अफगान आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी को भारत में पहली पराजय का स्वाद चखाकर अपना नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करवा लिया।

आबू के युद्ध में मुहम्मद गोरी को मिली करारी शिकस्त

मुल्तान और सिन्ध पर कब्जा करने के बाद मुहम्मद गोरी को जैसे ही पता चला कि गुजरात की गद्दी पर एक अल्पवयस्क बालक शासन कर रहा है जिसकी संरक्षिका उसकी विधवा मां है, उसने बिना देरी किए अपनी तीवग्रामी घुड़सवार सेना के साथ कूच कर दिया। परन्तु मुहम्मद गोरी ने सैन्य रणनीति और कूटनीति में माहिर नायिका देवी को कमजोर समझने की भारी भूल कर दी। ऐसा कहा जाता है कि आबु युद्ध से पहले मुहम्मद गोरी ने यह ​संदेश भिजवाया था कि यदि रानी आत्मसमर्पण कर दे तो वह गुजरात पर सैन्य आक्रमण नहीं करेगा।

ऐसे में मुहम्मद गोरी की सेना में मौजूद बख्तरबंद घुड़वार योद्धाओं को माकूल जवाब देने के लिए नायिका देवी ने चालुक्य सामंतों की मदद से अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए एक शानदार रणनीति तैयार की। नायिका देवी ने मुहम्मद गोरी की सेना से टक्कर लेने के लिए आबू पर्वत की तलहटी में स्थित गदरघाट की संकरी पहाड़ी दर्रे (वर्तमान में सिरोही जिले में स्थित कसाहरदा गांव के पास ) को चुना जिससे गोरी के सैनिक बिल्कुल अपरिचित थे।

रेगिस्तानी इलाके में युद्ध करने की अभ्यस्त गोरी की सेना जैसे ही उबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाके में पहुंची तो वहां पहले से ही राजपूत सै​निक अपनी विशालकाय हाथियों के साथ पंक्तिबद्ध खड़े होकर जवाबी हमले के इंतजार में थे। एक विशाल गजराज पर सवार होकर नायिका देवी अपने पुत्र मूलराज द्वितीय के साथ युद्ध क्षेत्र में उतर पड़ी। अपनी योद्धा रानी के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने भयंकर युद्ध किया। नायिका देवी की कम संख्या वाली राजपूत सेना में मौजूद बख्तरबंद हाथियों ने युद्ध क्षेत्र में गदर मचा दिया। इसके अतिरिक्त बेमौसम बारिश ने भी मुहम्मद गोरी का खेल बिगाड़ दिया और उसकी सेना को पराजय का मुंह देखना पड़ा। स्थिति यह हो गई कि मुहम्मद गोरी अपने कुछ अंगरक्षकों के साथ युद्ध स्थल से भाग खड़ा हुआ। इस प्रकार भारत में मुहम्मद गोरी की यह पहली शिकस्त थी, इतना ही नहीं, उसने फिर कभी गुजरात पर आक्रमण नहीं किया।

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