दोस्तों, आप भी काला पानी का नाम अबतक कई बार सुन चुके होंगे। हांलाकि इस बात को हर भारतवासी अच्छी तरह से जानता है कि अंग्रेजों द्वारा आजादी के दीवानों पर किए गए अत्याचार की सबसे भयावह जगह का नाम था काला पानी। जी हां, आज हम इस स्टोरी में आपको यह बताने जा रहे हैं कि आखिर में काला पानी किस जगह का नाम है और इसे काला पानी क्यों कहा जाता है? इसके अतिरिक्त काला पानी की सजा काट रहे कैदियों को कौन-कौन सी कठोर सजा दी जाती थी जिसे सुनकर ही आम आदमी की रूह कांप जाती है।
क्या है काला पानी
‘काला पानी’ शब्द से तात्पर्य एक ऐसे स्थान से है जहां से कोई सजायाफ्ता कैदी वापस नहीं लौट सकता। हिन्द महासागर में स्थित तकरीबन 572 छोटे-बड़े द्वीपों से मिलकर बने अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में स्थित सेल्युलर जेल को ही सभी लोग ब्रितानी राज में काला पानी कहते थे।
दरसअल काला पानी यानि सेल्युलर जेल उफान मारते समुद्र के बीच में स्थित था। ऐसे में इस जेल के कैदियों के लिए यहां से फरार होना साक्षात मौत को बुलावा देना था। जेल की चहारदीवारी के बाहर घने जंगल, पथरीले रास्ते, जहरीली हवाएं, खतरनाक सांप, बिच्छू, जोंक, मच्छर और अथाह-असीमित समुद्र के अतिरिक्त कैदियों के हिस्से में कुछ भी मिलने वाला नहीं था।
दरअसल 1857 की महाक्रांति के बाद खौफ खाए अंग्रेजों ने तमाम बागियों को या तो फांसी पर लटका दिया या फिर उन्हें तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया। हांलाकि असंख्य विद्रोहियों को कैदी बना लिया गया। तत्पश्चात अंग्रेजों ने इन बागियों को उम्रभर के लिए काला पानी की सजा देकर सेल्युलर जेल में कैद कर दिया ताकि फिर कभी कोई शख्स ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विरोध की आवाज बुलन्द करने की कोशिश भी न कर सके।
काला पानी का मतलब सेल्युलर जेल
ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से तकरीबन 780 मील दक्षिण में स्थित अण्डमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में मौजूद सेल्युलर जेल अंग्रेजी हुकूमत द्वारा किए गए अमानवीय अत्याचारों का गवाह है। काला पानी यानि कि सेल्युलर जेल का नक्शा तैयार करने वाले जेरेमी बेंथम 19वीं सदी में ब्रिटेन के बड़े दार्शनिकों में से एक थे। जेरेमी बेंथम का मानना था कि यदि एक आदमी के मरने से पांच लोगों की जान बचती है तो फिर एक को मरने में कोई हर्ज नहीं है।
जेरेमी बेंथम ने सेल्युलर जेल का नक्शा कुछ इस तरह से तैयार किया था कि एक ही सुरक्षाकर्मी पूरे जेल पर अपनी नजर रख सके। इसीलिए जेल के बीचोबीच एक टावर तैयार किया गया जिसके ऊपर गार्ड की तैनाती होती थी और कुछ भी गड़बड़ होने पर वह गार्ड टावर पर लगे घंटे को बजा देता था ताकि अन्य सभी सुरक्षाकर्मी सचेत हो जाएं। इस टावर से जुड़ी तीन मंजिला सात इमारते थीं। प्रत्येक इमारत को विंग कहा जाता था। इमारत में प्रत्येक कैदी के लिए एक कमरा बना था जिसे सेल कहा जाता था, इसी वजह से इस जेल को सेल्युलर जेल कहा जाता है। प्रत्येक सेल इस डिजाइन से तैयार किया गया था कि कोई भी कैदी किसी दूसरे कैदी से सम्पर्क नहीं कर सके।
सेल्युलर जेल में तकरीबन 698 सेल थे और प्रत्येक सेल 15×8 फीट की थी। प्रत्येक सेल में तीन मीटर (लगभग 9 फ़ीट) की ऊंचाई पर रोशनदान बने हुए थे ताकि चाहकर भी कैदी एक दूसरे से बात नहीं कर सकें। सेल्युलर जेल को तैयार करते समय उन्ही कैदियों से मजदूरी कराया गया जिन्हें आगे चलकर इसी जेल में कैद रहना था। सेल्यूलर जेल में वर्मा से मंगाई गई लाल ईटों का इस्तेमाल किया गया था। सेल्युलर जेल में एक फांसी घर भी बना था ताकि जरूरत पड़ने पर कैदियों को फांसी दी जा सके। कैदियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के लिए जेलर कभी-कभी सेल के अन्दर चाबी भी फेंक देते थे क्योंकि ताले इस तरह से बनाए गए थे कि कैदियों का हाथ चाहकर भी ताले तक नहीं पहुंच सकता था।
मौत से भी बदतर थी काला पानी की सजा
यह सच है कि काला पानी यानि सेल्युलर जेल की चहारदीवारी बिल्कुल छोटी थी जिसे कोई भी कैदी आसानी से फांद सकता था। लेकिन अंग्रेज सुरक्षाकर्मी इस बात को भलीभांति जानते थे कि मीलों दूर तक सिर्फ पानी ही पानी नजर आने वाले समुद्र से घिरे इस जेल से भागना अपनी मौत को दावत देना है। इसीलिए भागने की कोशिश करने वाले कैदी समुद्र में ही डूबकर मर जाते थे। बतौर उदाहरण- सेल्युलर जेल में सजा काट चुके वीर सावरकर अपनी किताब ‘द स्टोरी ऑफ माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ’ में लिखते हैं कि, “जब मैं पहली बार सेल्युलर जेल पहुंचा तो मुझे जेलर डेविड बैरी के मुंह से ये शब्द सुनाई दिए। बैरी कहता है, ये दीवार देख रहे हो, ये इतनी नीची क्यों है? क्योंकि इसके पार सिर्फ समंदर है, इसलिए यहां से भागना असम्भव है।” काला पानी का जेलर डेविड बैरी ख़ुद को 'पोर्ट ब्लेयर का भगवान’ कहता था। यह बात सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि काला पानी जेल के कैदियों को ऐसी सजा दी जाती थी जो मौत से भी ज्यादा दर्दनाक थी। आइए जानते हैं, आखिर काला पानी के कैदियों को कितनी भवायह सजा मिलती थी जिससे तड़प-तड़पकर उनकी मौत हो जाती थी।
सबसे पहले तो सेल्युलर जेल का प्रत्येक कैदी गले से लेकर पैर तक जंजीरों में जकड़ा होता। बावजूद इसके उन्हें हर रोज बैल की तरह काम करना पड़ता था। सूर्योदय से पूर्व ही कैदियों को जागना पड़ता था अन्यथा कोड़ों की सजा मिलती थी। सेल में कैद तकरीबन 700 कैदियों को नहाने तथा शौच कर्म करने के लिए सिर्फ एक घंटे का समय मिलता था। हांलाकि नहाना तो दूर पीने का पानी ही ऐसा था जिससे आदमी मुंह भी धोने की हिम्मत नहीं कर सकता। खाने के लिए वही कीड़े मकोड़े वाली दाल, ऐसा खाना यदि भरपेट खा लिया तो दस्त लग जाए।
इसके बाद कैदियों को साफ-सफाई, मजदूरी, पेड़ काटने आदि के काम पर लगा दिया जाता था। राजनीतिक कैदियों को कोल्हू में बैल की जगह काम पर लगाया जाता था। वीर सारवकर अपनी किताब में लिखते हैं कि कोल्हू से शाम होने तक 10 या फिर 20 लीटर तेल निकालना होता था। यदि यह काम पूरा नहीं हुआ तो हथकड़ियों से बांधकर लटका दिया जाता था। पहली बार तीन दिन के लिए, फिर दस दिन के लिए। सावरकर आगे लिखते हैं कि कोल्हू ऐसा होता था कि 20 चक्कर में एक हष्टपुष्ट आदमी गश्त खाकर गिर जाता था। कोल्हू से तेल निकालने का काम इतना दर्दनाक था कि सामान्यतया सांस लेने में भी परेशानी होती थी, जुबान सूख जाती थी, दिमाग सुन्न हो जाता था तथा हाथों में छाले पड़ना तो आम बात थी। इस काम में सजायाफ्ता को सिर्फ खाने के लिए समय मिलता था, बाकी शौच के लिए भी समय नहीं दिया जाता। कोल्हू पेरने के बाद नारियल के खोल को हथौड़े से कूचकर भूसी निकालना पड़ता था। इसके बाद पुरानी रस्सियों को घीसकर उसके धागे अलग करने पड़ते थे। इन सब कामों में हाथ से खून टपकने लगता था।
बरीन घोष की किताब ‘द टेल आफ माई एक्साइल’ के अनुसार, “बकुल्ला नाम के एक कैदी को एक दिन शौच से लौटने में देर हो गई। इसके बाद अंग्रेज सिपाहियों ने उसे इतना मारा कि उसके कूल्हे की खाल उधड़कर लटकने लगी।” जब कैदी आपस में बात करने की कोशिश अथवा इशारा भी करते थे तो सुरक्षाकर्मी उन्हें जूतों से मारते थे।
सेल्युलर जेल के काम पूरा करने के बाद कैदी जब रात को अपने सेल में पहुंचते थे तो वहां दो बर्तन रखे होते थे। एक बर्तन पानी के लिए दूसरा बर्तन इसलिए था कि यदि रात में शौच जाना पड़े तो कैदी इसी में कर ले। बर्तन भी इतना छोटा होता था कि कैदी कभी-कभी फर्श पर ही टॉयलेट कर देते थे। घोर गर्मी हो या फिर कड़ाके की ठंड, कैदियों को नंगे फर्श पर ही सोना पड़ता था। हांलाकि दिनभर के काम से थके मांदे कैदी सेल में जाते ही सो जाते थे। इसके बाद सुबह होते ही वहीं रोज का काम करना पड़ता था। इतना ही नहीं, जंजीरों से जकड़े कैदियों को कभी-कभी एक-एक हफ़्ते तक अकेले खड़े रहने तथा चार-चार दिन तक भूखे रहने की भी सजा दी जाती थी। काला पानी की सजा से पीड़ित कुछ कैदी तो पागल हो जाते थे और कुछ आत्महत्या कर लेते थे। हैरानी की बात यह है कि जब किसी कैदी की मौत हो जाती थी तब दूसरा कैदी उसकी टांग पकड़कर ले जाता था और उसके कपड़े उतारकर रेत के ढेर में दबा देता था।
गौरतलब है कि जहां काला पानी की सजा काट रहे कैदी मौत से भी भयावह जिन्दगी जीने को मजबूर थे। वहीं अंग्रेज अफसर 200 एकड़ में फैले रॉस द्वीप पर विलासितापूर्ण जिन्दगी जीते थे। इनके लिए टेनिस कोर्ट, स्वीमिंग पूल तथा क्लब हाउस बना था। सुबह के समय रॉस द्वीप पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है।
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