
ब्रिटिश इतिहासकार विसेन्ट आर्थर स्मिथ उत्तर प्रदेश में कमिश्नर रह चुका था। आर्थर स्मिथ ने साल 1900 में आई.सी.एस से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात इतिहास लेखन में अपना समय व्यतीत किया। स्मिथ की चर्चित किताब ‘अकबर दी ग्रेट मुगल’ अकबर पर प्रवर्तक ग्रन्थ है। इतिहासकार स्मिथ अकबर को जन्मजात शासक मानता है, जिसका दावा इतिहास में कोई नकार नहीं सकता है। उसने अपने ग्रन्थ में अकबर की प्रशंसा की है किन्तु आलोचना भी की है।
बादशाह अकबर के मुद्रा सुधार व्यवस्था की आलोचना करते हुए वह इस क्षेत्र में शेरशाह सूरी को अग्रणी बताता है। वह लिखता है- “शेरशाह को ही इस बात का श्रेय है कि उसने परिष्कृत मुद्रा प्रणाली स्थापित की जो सम्पूर्ण मुगलकाल में चलती रही, जिसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1835 तक कायम रखा और जो वर्तमान ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली का आधार है।”
स्मिथ के मुताबिक, अकबर का समस्त शासन विजय को अर्पित था। उसके आक्रमणों में नैतिकता की किंचित मात्र भी भावना नहीं होती थी। उसने विजित राज्यों की सुख-सुविधा के लिए कुछ नहीं किया। अकबर से आक्रामक शासक दूसरा सम्भवतया हुआ ही नहीं।
गोंडवाना की रानी दुर्गावती जैसी आदर्श चरित्र पर अकबर का अनुचित अभियान उसकी विस्तारवादी नीति का प्रतीक मात्र था। इस सम्बन्ध में स्मिथ का कथन है- “अकबर का इतने श्रेष्ठ चरित्र वाली रानी पर चढ़ाई करना एक कोरा आक्रमण था, क्योंकि रानी की ओर से ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया था जिससे उसे उचित ठहराया जा सकता, केवल लूट और विजय की अभिलाषा ही उसका मुख्य कारण थी।”
अकबर की नजरों में राणा की देशभक्ति ही राणा का अपराध था। राणा प्रताप को समाप्त कर अकबर उसके प्रदेश को अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था। दूसरी तरफ राणा प्रताप आवश्यकता पड़ने पर अपने जीवन का बलिदान करने के लिए पूर्ण रूप से तत्पर था। इस सम्बन्ध में स्मिथ का कहना है- “सितम्बर 1560 ई. में अकबर ने चित्तौड़ विजय का संकल्प किया जो उसके सैनिक कार्यों में सबसे अधिक प्रसिद्ध, दुखद तथा रोचक था।”
असीरगढ़ पर आक्रमण बादशाह अकबर का अंतिम सैन्य अभियान था। इस विषय में स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने असीरगढ़ दुर्ग पर विजय अनुचित साधनों के द्वारा प्राप्त किया था। जब अकबर को लगा कि दुर्ग का मोचा भंग करना अम्भव है तो उसने षड्यन्त्र द्वारा दुर्ग जीतने का निश्चय किया। जिसमें अकबर स्वभाव से ही पारगंत था। असीरगढ़ विजय के सम्बन्ध में अकबर द्वारा अपनाई गई रणनीति, स्मिथ के मतानुसार अकबर के चरित्र पर बहुत बड़ा कलंक है।
बैरम खां ने आजीवन मुगल साम्राज्य की सेवा की थी। नाबालिग अकबर के संरक्षक के रूप में उसने असंख्य युद्धों में विजय प्राप्त की थी तथा अकबर को सम्राट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बैरम के आखिरी दिनों में अकबर ने उसे हज पर जाने का आदेश दिया और 1561 ई. में बीच रास्ते में ही उसकी हत्या कर दी गई। इस प्रकार बैरम खां के पतन के सम्बन्ध में स्मिथ लिखता है कि “उन सब कार्यवाहियों की कहानी जिसके कारण बैरम खां का पतन तथा मृत्यु हुई, पढ़कर ग्लानि होती है। हुमायूं तथा अकबर दोनों को ही बैरम खां के कारण सिंहासन पुन: प्राप्त हुआ था।”
अपनी किताब ‘अकबर दी ग्रेट मुगल’ में स्मिथ ने जहां अकबर की संगठन प्रतिभा और मौलिकता की प्रशंसा की है वहीं उसकी धार्मिक नीति दीन-ए-इलाही को ‘मूर्खता का स्मारक’ कहा है। अकबर द्वारा 1579 में अजमेर यात्रा उसका पांखडीपन तथा नमाज का पढ़ना प्रदर्शन मात्र था। बंगाल, बिहार और काबुल में मिर्जा मुहम्मद हकीम के विद्रोह को आधार बनाकर स्मिथ लिखता है कि “अकबर का धार्मिक उच्छृंखलता और स्पष्ट रूप से इस्लाम से विमुख होना था।”
स्मिथ के अनुसार अकबर द्वारा संचालित ‘दीन-ए-इलाही’ एक ऐसा धर्म था जिसका वह स्वयं पोप था। ‘दीन-ए-इलाही’ अकबर की मूर्खता का स्मारक था, न कि उसकी बुद्धिमता का। यह सम्पूर्ण योजना उपहासास्पद अहंकार का परिणाम और अनियंत्रित स्वेच्छाचारिता की राक्षसी उत्पत्ति थी।
वह आगे लिखता है कि अकबर ने अपने धार्मिक संवेग की अभिव्यक्ति के लिए फतेहपुर सीकरी के महल में ‘अनूपतलाव’ नामक जलाशय को सिक्कों की विशाल राशि से भरवा दिया, जिसका मूल्य एक करोड़ रुपया बताया जाता है, बाद में उसने इस राशि को बंटवा दिया।
स्मिथ ने अकबर की कृषि व्यवस्था, भूमि व्यवस्था तथा करारोपण सिद्धान्त की भी आलोचना की है। स्मिथ को इस बात पर सन्देह था कि उस समय के किसानों का जीवन उसके वर्तमान काल के किसानों के जीवन से अच्छा था। स्मिथ के मतानुसार, अकबर के शासनकाल में नगरों में निवास करने वाली जनसंख्या सम्पन्न अवश्य थी लेकिन यह कहना कठिन है कि वह बीसवीं शताब्दी के नगर निवासियों की तुलना में श्रेष्ठ थी। अकबर कालीन कर निर्धारण व्यवस्था कठोर थी और भूमि कर की मांग भी बहुत अधिक थी।
‘अकबर दी ग्रेट मुगल’ में स्मिथ ने यथाशक्ति निष्पक्ष रहने की चेष्टा की है। यदि उसने अकबर की प्रशंसा की है तो शेरशाह सूरी को भी अच्छा शासक कहा है। यद्यपि एल्फिन्स्टन अकबर को भारतीय शासक मानता है लेकिन स्मिथ के लिए अकबर भारत में विदेशी था। स्मिथ के लिए भारत मौलिक रूप से हिन्दुओं का था और विभिन्नता में एकता हिन्दुओं ने प्रदान की। मुसलमान भारतीय समाज के एक अंग मात्र थे।
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