
शिर्डी वाले साईं बाबा से हिन्दुस्तान का हर शख्स परिचित है। साईं बाबा एक ऐसे संत-फकीर थे जिनके प्रति श्रद्धा और विश्वास रखने वाले तकरीबन हर जाति और धर्म के लोग हैं। साईं बाबा को समाधि लिए 100 वर्ष से ज्यादा बीत चुके हैं बावजूद इसके शिर्डी के मंदिर में साईं बाबा का दर्शन करने करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं। इतना ही नहीं, शिर्डी का साईं मंदिर भारत का तीसरा सबसे अमीर मंदिर है।
अब हम बात करते हैं भारतीय मुक्ति संग्राम के यशस्वी नेता बाल गंगाधर तिलक की जिन्हें लोग ‘लोकमान्य’ और भारत का ‘बेताज बादशाह’ कहते थे। बाल गंगाधर तिलक पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने कहा था कि “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा”।
ऐसा माना जाता है कि बाल गंगाधर तिलक सिर्फ साईं बाबा से मिलने के लिए शिर्डी आए थे। इन दो महान विभूतियों की मुलाकात का उल्लेख किसी तत्कालीन इतिहासकार ने नहीं किया है, ऐसे में यह तथ्य थोड़ा संदिग्ध हो जाता है परन्तु हम आपको कुछ ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिससे यह साबित होता है कि बाल गंगाधर तिलक सिर्फ साईं बाबा के दर्शन हेतु शिर्डी आए थे। ऐसे में लोकमान्य तिलक और शिर्डी वाले साईं बाबा की मुलाकात से जुड़ी रोचक जानकारी के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।
साईं बाबा से बाल गंगाधर तिलक की मुलाकात से जुड़े साक्ष्य
1- माननीय श्रीकृष्ण खापर्डे की डायरी
गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे अथवा दादा साहेब खापर्डे संस्कृत एवं मराठी भाषा में दक्ष होने के साथ-साथ फौजदारी मामलों के एडवोकेट थे। सबसे बड़ी बात यह कि श्रीकृष्ण खापर्डे भारतीय राजनीति के केन्द्र बिन्दु रहे बाल गंगाधर तिलक के सहायक भी थे। श्रीकृष्ण खापर्डे प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे।
इसी डायरी से यह पता चलता है कि खापर्डे दम्पत्ति शिर्डी वाले साईं बाबा के परम भक्त थे। हांलाकि वे कई बार शिर्डी गए थे, लेकिन उन्होंने अपनी डायरी में शिर्डी प्रवास के बारे में लिखा है कि वे अपनी पत्नी के साथ साल 1910 में 7 दिन और साल 1911-12 में 3 से 4 महीने रूके थे।
श्री खापर्डे के संस्मरण से ही यह जानकारी मिलती है कि एडवोकेट खापर्डे अपनी निजी कार से बाल गंगाधर तिलक को साईं बाबा का दर्शन करवाने के लिए शिर्डी ले गए थे।
2- गुजराती पुस्तक ‘साईं सरोवर’
जुलाई, 1987 में प्रकाशित पुस्तक ‘साईं सरोवर’ में शिर्डी वाले साईं बाबा की कई चमत्कारिक घटनाओं एवं कहानियों का उल्लेख किया गया है। साईं साहित्य रत्न से सम्मानित स्व. श्री मगनलाल तापीदास जरमनवाला द्वारा लिखित तकरीबन 1500 पृष्ठों वाली पुस्तक ‘साईं सरोवर’ में शिर्डी वाले साईं बाबा और बाल गंगाधर तिलक की मुलाकात का रोचक वर्णन मिलता है।
3- पॉपुलर टीवी सीरियल ‘मेरे साईं’
सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले टीवी सीरियल 'मेरे साईं' ने दर्शकों के बीच धूम मचा दी थी। आज भी यह सीरियल अन्य चैनलों पर देखने को मिलता है। इस धारावाहिक में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और साईं बाबा की मुलाकात को दिखाया गया है। इस सीरियल में यह दिखाया गया है कि साईं बाबा ने बाल गंगाधर तिलक को अंग्रेजी कैद से बचाने में महत्वपूर्ण निभाई थी, जिसके बाद साईं बाबा के प्रति बाल गंगाधर तिलक की आस्था और मजबूत हो गई।
इस टीवी सीरियल में लोकमान्य तिलक का किरदार हिंदी और मराठी सिनेमा के बेहतरीन एक्टर अनंत महादेवन ने निभाया है। जानकारी के लिए बता दें कि टीवी. सीरियल ‘मेरे साईं’ सोनी चैनल के अतिरिक्त सन टीवी, सन लाइफ, पॉलिमर टीवी, शेमारू चैनल के साथ-साथ तेलुगु में जेमिनी टीवी व ईटीवी पर भी प्रसारित किया गया। इसके अतिरिक्त मराठी तथा कन्नड़ चैनलों पर भी यह धारावाहिक खूब चला।
साईं बाबा और बाल गंगाधर तिलक की रोचक मुलाकात
महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आन्दोलन की शुरूआत लोकमान्य तिलक ने की थी, जैसा कि उनके दो समाचार पत्र मराठा (अंग्रेजी) और केसरी (मराठी) से स्पष्ट होता है। महाराष्ट्र की जनता में राष्ट्रभावना जगाने के लिए बाल गंगाधर तिलक ने गणपति उत्सव (1893 ई.) एवं शिवाजी महोत्सव (1895 ई.) प्रारम्भ किया।
लोकमान्य तिलक ऐसे पहले नेता थे जो देश के लिए कई बार जेल गए। साल 1882 में लोकमान्य तिलक को अंग्रेजी सरकार ने 4 मास का कारावास दिया था, क्योंकि अंग्रेजों ने कोल्हापुर महाराजा के प्रति धृष्टता की थी जिसकी उन्होंने कड़े शब्दों में निन्दा की। इसके बाद 1897 ई. में चापेकर बन्धुओं द्वारा प्लेग कमिश्नर आमर्स्ट एवं रैण्ड की गोली मारकर हत्या की गई थी, इस मामले में तिलक को विद्रोह भड़काने के आरोप में 18 माह की सजा हुई।
लोकमान्य तिलक ऐसे पहले नेता थे जिन्होंने सबसे पहले स्वराज्य की मांग की। उन्होंने कहा कि “स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूंगा”। बाल गंगाधर तिलक के उग्रवादी विचारों के कारण ही साल 1907 में कांग्रेस का विभाजन हो गया और उन्हें इस विभाजन का मुख्य दोषी माना गया। बाल गंगाधर तिलक की उग्रवादी विचारधारा के कारण अंग्रेज उन्हें ‘भारतीय अशांति का जनक ’ कहते थे।
यह घटना है साल 1907 की जब अखिल भारतीय महासभा महासमिति की एक मीटिंग में बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आग उगल रहे थे। एडवोकेट गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे भी वहां मौजूद थे। गजानन महाराज भी एक कोने में बैठकर बाल गंगाधर तिलक के उग्र विचारों को सुन रहे थे। इसके बाद गजानन महाराज उठे और बोले कि यह शख्स जिस कदर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आग उगल रहा है, निश्चिततौर पर इसे काला पानी की सजा हो सकती है। इसके बाद मीटिंग को रोकते हुए उठकर चले गए।
दादा साहेब खापर्डे भी एक तेज तर्रार वकील थे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे परन्तु वह साईं बाबा के परम भक्त भी थे। ऐसे में बाल गंगाधर तिलक के साथ उनके अच्छे सम्बन्ध थे। इसलिए दादा साहेब खापर्डे और बाल गंगाधर तिलक अमरावती से संगमनेर पवित्र स्नान करने पहुंचे। रास्ते में उन्होंने सोचा कि शिर्डी यहां से बहुत दूर तो है नहीं, अत: शिर्डी जाकर साईं बाबा का दर्शन करना चाहिए।
बाल गंगाधर तिलक ने सोचा कि मैंने देश के लिए इतना संघर्ष किया, कई किताबें लिखी, अखबारों का प्रकाशन किया लेकिन भगवान के रहस्य को नहीं समझ पाया। यदि शिर्डी की धरती पर भगवान दत्तात्रेय (हिंदू भक्त साईं बाबा को भगवान दत्तात्रेय का अवतार मानते हैं) आए हैं तो इतना भाग्यशाली अवसर कैसे छोड़ा जा सकता है।
चूंकि दादा साहेब खापर्डे के पास निजी कार थी, ऐसे में वे दोनों सुबह साढ़े आठ बजे संगमनेर से निकल गए और 10 बजे तक शिर्डी पहुंच गए। दोनों ने दीक्षितवाडा में रहने का निर्णय लिया जो अभी दो वर्ष पहले ही बना था। दीक्षितवाडा में बापू साहेब बूटी ने दादा साहेब खापर्डे और बाल गंगाधर तिलक का स्वागत किया।
दादा साहेब खापर्डे और बाल गंगाधर तिलक दोपहर के वक्त साईं बाबा के दरबार में पहुंच गए। साईं बाबा जानते थे कि बाल गंगाधर तिलक बहुत ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहने वाले हैं, इसलिए उन्होंने मधुर शब्दों में कहा कि तुमने देश के लिए बहुत काम किया है अब स्वयं के लिए जीयो। लोग बहुत बुरे हैं, इसलिए मौन रहो।
यह शब्द सुनते ही बाल गंगाधर तिलक ने साईं बाबा के पैर छुए। आरती के बाद बाल गंगाधर तिलक ने प्रसादी में उदी और फल प्राप्त किए और साईं बाबा से जाने की अनुमति मांगी। तब साईं बाबा ने कहा कि इस भरी दोपहरी में तुम कहां जाना चाहते हो? माधवराव देशपांडे जिन्हें साईं बाबा प्यार से ‘शामा’ कहते थे, बाबा के सबसे अंतरंग भक्तों में से एक थे। साईं बाबा ने शामा यानि माधवराव देशपांडे से कहा कि तुम बाल गंगाधर तिलक को दोपहर का भोजन कराओ। दोपहर का भोजन करने के पश्चात लोकमान्य तिलक शिर्डी वाले साईं बाबा से अनुमति लेकर सतारा के लिए निकल गए।
कहते हैं, बाल गंगाधर तिलक के शिर्डी से जाते ही अहमदनगर के तत्कालीन जिला कलेक्टर ने साईं बाबा की गतिविधियों पर नज़र रखने तथा एक गोपनीय रिपोर्ट भेजने के लिए एक सीआईडी अधिकारी को शिरडी भेजा था। बाल गंगाधर तिलक ने क्रांतिकारियों खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद चाकी के पक्ष में अपने अखबार 'केसरी' में एक लेख लिखा था। इस लेख ने अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी। ऐसे में 3 जुलाई 1908 को बाल गंगाधर तिलक को राजद्रोह के आरोप में कैद कर छह साल की सजा सुनाई। इसके बाद तिलक को बर्मा के मांडले जेल भेज दिया गया, जहां कैद में रहते हुए उन्होंने 400 पृष्ठों की चर्चित किताब 'गीता रहस्य' लिखी। दुर्भाग्यवश कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पहले ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया।
बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु
साल 1914 में मांडले जेल से निकलने के बाद बाल गंगाधर तिलक भारत की आजादी के लिए संघर्षरत रहे। बाल गंगाधर तिलक ने अप्रैल 1916 में एनी बेसेंट की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की। होमरूल आन्दोलन के दौरान ही उन्हें ‘लोकमान्य’ की उपाधि मिली थी।
मांडले जेल से निकलने के बाद बाल गंगाधर तिलक इतने नरम हो चुके थे कि उन्होंने साल 1919 में आयोजित कांग्रेस की अमृतसर बैठक में मॉन्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के द्वारा स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल के चुनाव बहिष्कार की गांधीजी की नीति का विरोध नहीं किया। इसके बाद 1 अगस्त, 1920 को गांधीजी ने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया, दुर्भाग्यवश इसी दिन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की बम्बई में मृत्यु हो गई। महात्मा गांधी ने लोकमान्य तिलक को ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ कहा और जवाहरलाल नेहरू ने ‘भारतीय क्रान्ति का जनक’ बताया।
इसे भी पढ़ें : चुनार का किला जिसने शेरशाह सूरी को बनाया हिन्दुस्तान का बादशाह
इसे भी पढ़ें: 1857 की महाक्रांति के प्रतीक थे बने थे लाल कमल और रोटी