
लेफ्टिनेन्ट मूर लिखता है कि “जब कोई शख्स किसी अनजान देश से गुजरते यह देखे कि वहां फसलें उत्तम हैं, देश में उद्योगों की भरमार है, नए-नए नगर बस रहे हैं, वाणिज्य विकसित हो रहा है, तो प्राकृतिक रूप से वह यही कहेगा कि जनता एक कुशल प्रशासक के अधीन है। कुछ ऐसा है टीपू के प्रदेश का चित्र।”
वहीं, ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल सर जान शोर के अनुसार, “टीपू के किसान सुरक्षित हैं और उन्हें श्रम के लिए प्रोत्साहन तथा उसका फल भी मिलता है। टीपू को अपने सैनिकों की राजभक्ति एवं विश्वास प्राप्त है।”
जी हां, दोस्तों मैं मैसूर के शासक हैदर अली के इकलौते पुत्र टीपू सुल्तान की बात कर रहा हूं, जिसका मूल नाम फतेह अली था। कुछ साम्राज्यवादी लेखकों ने टीपू सुल्तान को भारतीय इतिहास में ‘धर्मान्ध शासक’ तथा ‘सीधा-साधा दैत्य’ साबित करने की कोशिश की है, जो सर्वथा असत्य है।
इस स्टोरी में हम आपको दक्कन के उन छह विख्यात मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें 42 ग्राम शुद्ध सोने की ‘रामनामी’ अंगूठी पहनने वाले टीपू सुल्तान ने भर-भरकर दान दिया था।
1. श्रृंगेरी मंदिर
प्रख्यात इतिहासकार इरफ़ान हबीब लिखते हैं कि “सन 1784 में टीपू ने वेंकटचला शास्त्री और ब्राह्मणों के एक समूह को ज़मीन दान कर उनसे अनुरोध किया कि वो उनके लंबे जीवन और संपन्नता के लिए प्रार्थना करें।” साल 1791 में मराठा आक्रमणों से पूरा दक्कन भयाक्रान्त हो चुका था।
श्रृंगेरी पत्रों से पता चलता है कि मराठा आक्रमणों के चलते श्रृंगेरी मंदिर का कुछ हिस्सा ध्वस्त हो चुका था। इतिहासकार ए.के. शास्त्री के मुताबिक, “मराठा सेना में शामिल पिंडारी लुटेरों ने न केवल ब्राह्मण पुजारियों का नरसंहार किया अपितु तकरीबन 60 लाख रुपए के पवित्र अवशेष भी लूट ले गए।”
हांलाकि उस समय के मराठा पेशवा ने सेनापति परशुराम भाऊ से श्रृंगेरी मंदिर की क्षतिपूर्ति करने तथा लूटी गई वस्तुएं श्रृंगेरी मठ को वापस करने को कहा, जिस पर बाद में सहमति बनी। इस सम्बन्ध में साल 1946 में बम्बई से प्रकाशित किताब ‘मराठाओं का नया इतिहास’ में प्रख्यात इतिहासकार सखाराम सरदेसाई लिखते हैं कि “श्रृंगेरी की लूट जानबूझकर नहीं की गई थी, बल्कि यह मराठा सेना में शामिल पिंडारियों की शिकारी आदतों का परिणाम थी।”
श्रृंगेरी पत्रों से जानकारी मिलती है कि, उपरोक्त घटना के बाद 6 जुलाई 1791 ई. को टीपू सुल्तान ने श्रृंगेरी शारदा पीठ के जगदगुरू श्री सच्चिदानन्द भारती को एक पत्र लिखकर मराठा आक्रमण की निन्दा की, क्योंकि यह पवित्र पीठ मैसूर के अधिकार क्षेत्र में था। इतिहासकार बी.एल. ग्रोवर एवं यशपाल के अनुसार, “श्रृंगेरी के मुख्य पुरोहित के अनुरोध पर टीपू सुल्तान ने मंदिर के मरम्मत तथा विद्या की देवी मां शारदा की मूर्ति स्थापना के लिए पर्याप्त धन प्रदान किया।”
हैरानी की बात यह है कि टीपू सुल्तान ने श्रृंगेरी मठ को तकरीबन 30 पत्र लिखे थे, जो उसके धर्मपरायण होने के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। एक पत्र में टीपू सुल्तान श्रृंगेरी मठ के प्रमुख से यह निवेदन करता है कि हैदराबाद के निजाम, अंग्रेज तथा मराठों के विरूद्ध मैसूर राज्य की विजय के लिए सहस्त्र चंडी यज्ञ करें।
शती चंडी और सहस्त्र चंडी यज्ञ के लिए सम्पूर्ण सामग्री की व्यवस्था मैसूर राज्य की तरफ से की गई थी। इतना ही नहीं, इस व्यापक धार्मिक अनुष्ठान के दौरान, उपहार के साथ-साथ तकरीबन एक हजार से अधिक ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन करवाया जाता था।
साल 1793 में टीपू सुल्तान द्वारा श्रृंगेरी मठाधीश को लिखे गए एक पत्र के अनुसार, “आप विश्वगुरु हैं, आपने विश्व के सुख एवं भलाई के लिए अनेक कष्ट उठाएं हैं। कृपया ईश्वर से हमारी समृद्धि की कामना करें। जिस किसी भी देश में आप जैसी पवित्र आत्माएं निवास करेंगी वहां अच्छी बारिश होगी और फसल से देश की समृद्धि होगी।”
2. मेलकोट का चेलुवनारायण मंदिर
कर्नाटक के मांड्या जिले में स्थित मेलकोट मंदिर भगवान तिरुनारायण (भगवान विष्णु) और उनकी पत्नी रंगनायकी (लक्ष्मी) को समर्पित है, यह मंदिर दक्कन में ‘चेलुवनारायण स्वामी मंदिर’ के नाम से विख्यात है।
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार, मेलकोटे मंदिर को टीपू सुल्तान की तरफ से सुरक्षा के साथ-साथ जेवरात प्रदान किए गए थे। इतना ही नहीं, टीपू सुल्तान ने इस मंदिर को 12 हाथी एवं ‘नागरी’ भी दान दिए थे।
3. मेलकोट का नरसिम्हा मंदिर
मैसूर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित भगवान नरसिंह को समर्पित ‘नरसिम्हा मंदिर’ का निर्माण होयसल काल के दौरान हुआ था। इस मंदिर को भगवान नरसिंह की पूजा स्थली के सबसे पवित्र सात केन्द्रों में से एक माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि योग मुद्रा में बैठी भगवान नरसिंह की इस मूर्ति को स्वयं प्रह्लाद जी ने स्थापित किया था। इस मंदिर का एक विशाल ड्रम भक्तों के बीच आकर्षण का केन्द्र है, जानकारी के लिए बता दें कि इस अत्यंत विशाल ड्रम को टीपू सुल्तान ने दान दिया था।
4. श्रीरंगपट्टनम का रंगनाथ मंदिर
श्रीरंगपट्टनम के रंगनाथ मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में गंग राजवंश के शासनकाल में हुआ था। कावेरी और कालीदाम नदी के बीच टापू पर स्थित रंगनाथ स्वामी मंदिर दुनिया के पूजनीय मंदिरों में से एक है।
इस मंदिर में भगवान विष्णु के शयन मुद्रा वाली मूर्ति स्थापित है। कृष्ण जन्माष्टमी के दौरान यहां एक विशाल उत्सव मनाया जाता है। रंगनाथ मंदिर को टीपू सुल्तान ने चांदी के सात कप और चांदी का एक कपूर जलाने वाला बर्तन दान किया था।
5. कलाले का लक्ष्मीकांत मंदिर
मैसूर जिले के कलाले गांव में स्थित लक्ष्मीकांत मंदिर विशिष्ट द्रविड़ शैली में निर्मित है। भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। मैसूर साम्राज्य के कुछ राजाओं के द्वारा संरक्षित लक्ष्मीकांत मंदिर को साल 1791 में टीपू सुल्तान ने चांदी के कई उपहार दिए, जिसमें चार कप, एक प्लेट और एक पडिगा शामिल था। मंदिर के शिलालेख स्वयं इस बात का प्रमाण देते हैं कि ये सभी उपहार टीपू सुल्तान के द्वारा प्रदान किए गए थे।
6. नंजनगुड का श्रीकंतेश्वारा मंदिर
कर्नाटक में कपिला नदी के तट पर स्थित भगवान शिव को समर्पित नंजनगुड का ‘श्रीकंतेश्वारा मंदिर’ 108 शिवलिंगों की उपस्थिति के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में भगवान शिव, माता पार्वती और गणेशजी के अलग-अलग गर्भ-गृह हैं। दक्कन के श्रद्धालु इस मंदिर को ‘दक्षिण का काशी’ कहते हैं। द्रविड़ शैली में निर्मित यह शिव मंदिर तकरीबन पचास हजार वर्ग फीट में फैला है। मंदिर का मुख्य द्वार सात मंजिला है, जिस पर सोने की परत वाले सात कलश मौजूद हैं।
इतिहासकारों के अनुसार, नंजनगुड के श्रीकंतेश्वारा मंदिर पर मैसूर के शासक हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान का अटूट विश्वास था। ऐसा कहते हैं, कि एक बार श्रीकंतेश्वारा मंदिर में कई प्रार्थनाओं के बाद टीपू सुल्तान का बीमार हाथी ठीक हो गया था। टीपू सुल्तान ने नंजुंडेश्वर मंदिर को एक रत्नजड़ित कप (प्याला) और रत्नजड़ित एक हरा शिवलिंग दान किया था। टीपू द्वारा भेंट किया गया वह कप (प्याला) मंदिर में आज भी मौजूद है।
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