मुगल इतिहास की एक ऐसी महिला जिसे हरखा बाई, जोधाबाई, हीर कंवर, शाही बेगम, मरियम-उज़-ज़मानी और मलिका-ए-हिन्दुस्तान आदि कई नामों से जाना जाता है। आमेर (जयपुर) की राजपूत राजकुमारी हरखा बाई मुगल बादशाह अकबर की चौथी पत्नी थीं। बाबर, हुमायूं और अकबर की सोच से आगे जाकर हरखा बाई ने समुद्री ताकत बढ़ाने की तरफ ध्यान दिया और अपने व्यापार को आगे बढ़ाया।
पावरफुल बिजनेस वुमेन हरखा बाई ने निजी सलाहकार और ब्रोकर्स नियुक्त कर रखे थे, हांलाकि अंतिम निर्णय वह स्वयं लेती थीं। इतना ही नहीं, मुगल बादशाह अकबर की मौत के बाद भी हरखा बाई ने बिजनेस करना जारी रखा। जहांगीर के शासनकाल में हरखा बाई ने अपने व्यापारिक ताकत के दम पर न केवल पुर्तगाली तथा अंग्रेज व्यापारियों को जबरदस्त टक्कर दी बल्कि कुछ समय लिए उनका व्यापार भी बन्द करवा दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि हरखा बाई किन-किन चीजों का बिजनेस करती थीं, उनका बिजनेस एम्पायर कहां तक फैला हुआ था? इन सभी रोचक तथ्यों की जानकारी के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।
मुगलिया हुकूमत में हरखा बाई का रसूख
आमेर के राजा भारमल की पुत्री हरखा बाई का विवाह मुगल बादशाह अकबर के साथ 1 अक्टूबर 1542 को आमेर में हुआ था। हरखा बाई के बचपन का नाम हीर कंवर था, शादी के बाद अकबर की सबसे खूबसूरत और प्रिय रानी हीर कंवर को मुगल इतिहास में हरखा बाई, जोधा बाई, मरियम-उज़-ज़मानी, शाही बेगम तथा मलिका-ए-हिन्दुस्तान आदि नामों से जाना गया।
सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से हरखा बाई को जो बेटा पैदा हुआ उसका नाम सलीम रखा गया, जिसे हम सभी मुगल बादशाह जहांगीर के नाम से जानते हैं। मुगल हरम से लेकर मुगल दरबार तक हरखा बाई की तूती बोलती थी। मुगल बादशाह अकबर हरखा बाई से इस कदर प्रभावित था कि उसने इस राजपूत राजकुमारी को अपने सभी रीति-रिवाज और धार्मिक विश्वास कायम रखने की इजाजत दे दी।
बादशाह अकबर ने अपनी प्रिय रानी हरखा बाई के लिए साल 1569 में फतेहपुर सीकरी में एक विशाल महल का निर्माण करवाया जो जोधाबाई महल के नाम से विख्यात है। लाल बलुए पत्थर से बना जोधाबाई महल हिन्दू और फ़ारसी वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।
इतना ही नहीं, यह हरखा बाई का ही प्रभाव थी कि अकबर ने गोमांस, लहसुन और प्याज़ खाना छोड़ दिया और दरबारियों के भी गोमांस खाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। कुल मिलाकर अकबर ने हर उस चीज से परहेज किया जो हरखा बाई को स्वाभाविक रूप से पसन्द नहीं था। यहां तक कि अकबर ने कभी दाढ़ी नहीं रखी। इस बारे में इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूंनी लिखता है कि ‘अकबर दाढ़ी रखने वालों को बहुत ज्यादा पसन्द नहीं करते थे’।
अबुल फजल अपनी कृति ‘अकबरनामा’ में लिखता है कि “अकबर केवल गंगाजल ही पीता था, जिसे विशेषरूप से कासगंज के पास सोरों से मंगवाया जाता था । इतना ही नहीं, अकबर उपवास भी रखने लगा था।” यहां तक कि मुगल दरबार में हरखा बाई के भाई भगवंत दास और भतीजे मान सिंह को उच्च मनसब प्रदान किए गए। मान सिंह तो बंगाल, बिहार, उड़ीसा के सूबेदार रहने के साथ-साथ सबसे ताकतवर मुगल सेनापति भी थे।
मुगल बादशाह जहांगीर की मां हरखा बाई का रसूख अकबर की मौत के बाद भी कम नहीं हुआ। जहांगीर ने हरखा बाई का शाही अनुदान दोगुना कर दिया तथा 12 हजार पुरुष घुड़सवार सेना की कमान सौंपी। जहांगीर के शासनकाल में मुगल दरबार के चार वरिष्ठ सदस्यों में से एक थीं हरखा बाई।
पावरफुल बिजनेस वुमेन के रूप में हरखा बाई
हरखा बाई की सोच मुगल हरम की अन्य बेगमों से बिल्कुल इतर थी। हरखा बाई ने अपनी सूझबूझ से समुद्री ताकत बढ़ाई और व्यापार को दुनिया के कई देशों तक पहुंचाया। व्यापार करने के लिए हरखा बाई ने सलाहकार और बिचौलिए नियुक्त कर रखे थे। ये अधिकारी हरखा बाई के व्यापार से जुड़े सभी काम देखते थे, हांलाकि अंतिम निर्णय लेने का काम हरखा बाई स्वयं ही करती थीं। अकबर की मौत के बाद भी हरखा बाई ने व्यापार करना जारी रखा जो इस बात का सबूत है कि वह एक सशक्त बिजनेस वुमेन थीं।
हरखा बाई के व्यापारिक जहाज
मुगल बादशाहों से इतर हरखा बाई ने समुद्री ताकत बढ़ाने की शुरूआत की ताकि जलमार्ग के जरिए सशक्त व्यापार को अंजाम दिया जा सके। इसके लिए हरखा बाई ने ‘रहीमी’ और ‘गंज-ए-सवाई’ नामक दो बड़े जहाजों का निर्माण करवाया। रहीमी नामक जहाज को उस दौर का सबसे बड़ा जलयान माना जाता है। गंज-ए-सवाई नामक जहाज को 62 तोपों और 400 से ज़्यादा बंदूकधारियों से लैश किया गया था ताकि समुद्री डकैतों से इसकी रक्षा की जा सके। इन दोनों शक्तिशाली और विशाल जलयानों की मालकिन और संरक्षक हरखा बाई ने दुनिया के अन्य देशों से व्यापार करना शुरू किया।
हरखा बाई अपने इन जहाजों के जहाजों के जरिए नील, गरम मसाले तथा दूसरी अन्य जरूरी वस्तुओं का व्यापार करती थीं। हांलाकि हरखा बाई का ज्यादातर व्यापार सऊदी अरब और ओमान की सीमाओं से सटे हुए देश यमन तथा सउदी अरब के शहरों मक्का-मदीना से था जहां से उन्हें सोने-चांदी की भरपूर आवक प्राप्त होती थी। यही नहीं, हिन्दुस्तान के हज यात्रियों के लिए हरखा बाई का जहाज ‘रहीमी’ सबसे मुख्य साधन था।
हरखा बाई से मात खा गए अंग्रेज व्यापारी
साल 1610 के आखिर में अथवा 1611 के आरम्भ में मरियम-उज़-ज़मानी का जहाज रहीमी दक्षिण-पश्चिम यमन के शहर मोचा के लिए माल लाद रहा था। मरियम-उज़-ज़मानी ने अपना एक एजेंट बयाना (आगरा से 50 मील दक्षिण-पश्चिम में नील उत्पादन का एक महत्वपूर्ण केंद्र) नील खरीदने के लिए भेजा ताकि मोचा शहर में बिक्री के लिए नील की बड़ी खेप जहाज पर रखी जा सके। परन्तु वहां पहले से मौजूद अंग्रेज व्यापारी विलियम फिंच ने बड़ी बोली लगाकर नील खरीद लिया। ऐसा करके विलियम फिन्च ने बड़ी गलती कर दी, शायद उसे चतुर बिजनेस वुमेन हरखा बाई की ताकत का अन्दाजा नहीं था।
ईस्ट इंडिया कम्पनी के राजदूत विलियम हाकिन्स के एजेन्ट विलियम फिन्च की इस कार्रवाई से हरखा बाई क्रोधित हो उठीं और उन्होंने अपने बेटे जहांगीर से इसकी शिकायत की। इसके बाद 1612 ई. में मुगल दरबार ने यह निर्णय सुनाया कि हरखा बाई के व्यापारी रहीमी पर अपना माल तभी लादेंगे जब तक अंग्रेज इस देश से चले नहीं जाते। इस प्रकार विलियम फिंच के जल्दबाजी भरे फैसले के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी को काफी नुकसान उठाना पड़ा और अंग्रेजों को कुछ समय के लिए भारत छोड़ना पड़ा।
पुर्तगाली व्यापारियों का बोरिया-बिस्तरा गोल
सितंबर 1613 में एक बड़ी घटना घटी, पुर्तगाली लुटेरों ने हरखा बाई के जहाज रहीमी को न केवल लूटा बल्कि उसे जला दिया। 700 यात्रियों वाले जहाज रहीमी पर लदे सभी माल की कीमत तकरीबन 100,000 पाउंड (आज की तारीख में 1,06,73,070 रुपए) थी।
हरखा बाई के जहाज के साथ पुर्तगालियों की गुस्ताखी महंगी पड़ी। इस घटना से नाराज बादशाह जहांगीर ने सूरत के गवर्नर मुकर्रब खान को पुर्तगालियों को सबक सिखाने के लिए भेजा। मुकर्रब खान ने पुर्तगाली शहर दमन की घेराबन्दी कर उन्हें काफी नुकसान पहुंचाया। सूरत बन्दरगाह से पुर्तगालियों का व्यापार बंद कर दिया गया। भारत में पुर्तगाली पादरियों को मिलने वाले सभी भत्ते रोक दिए गए। यहां तक कि आगरा में बने जेसुइट चर्च में तालाबन्दी कर दी गई।
हरखा बाई ने व्यापार जारी रखा
तीर्थयात्री जहाज रहीमी के नष्ट हो जाने के बाद हरखा बाई ने एक नए जहाज का निर्माण करवाया जिसका नाम 'गंज-ए-सवाई' रखा गया। सुरक्षा के लिहाज से व्यापारिक जहाज 'गंज-ए-सवाई' को 62 तोपों तथा 400 सैनिकों से लैश किया गया। यह व्यापारिक जहाज एक प्रकार से मुगल युद्धपोत था जिसका प्रमुख लक्ष्य हिन्दुस्तानी तीर्थयात्रियों को मक्का ले जाना और वापस लाना था। इसके साथ ही भारत से निर्यात किए माल के बदले सोने-चांदी प्राप्त करना था।
हरखा बाई का निधन
मुगलकाल की पावरफुल बिजनेस वुमेन हरखा बाई यानि मरियम-उज़-ज़मानी का 19 मई 1623 ई. को इंतकाल हो गया। हांलाकि हरखा बाई की मृत्यु का सटीक कारण नहीं मिलता है परन्तु कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उनकी मौत पेचिश के कारण हुई थी।
अकबर की सभी पत्नियों में से केवल हरखा बाई को ही उसके करीब दफनाया गया। हरखा बाई की स्मृति में उसके बेटे जहांगीर ने 1623-1627 के बीच आगरा के सिकन्दरा में एक शानदार मकबरे का निर्माण करवाया जो अकबर के मकबरे के बगल में स्थित है।
इसके अतिरिक्त बादशाह जहांगीर के शासनकाल में 1611 से 1614 ई. के बीच लाहौर में मरियम-उज़-ज़मानी के नाम से एक मस्जिद का निर्माण करवाया गया जिसे ‘बेगम शाही मस्जिद’ अथवा ‘मरियम ज़मानी बेगम की मस्जिद’ कहा जाता है।
इसे भी पढ़ें : अकबर के मुख्य सेनापति मानसिंह ने बनवाए थे पांच मंदिर, माने जाते हैं चमत्कारिक
इसे भी पढ़ें : दुनिया की 'सबसे अमीर' शहज़ादी जहांआरा के पास थी अकूत संपत्ति, जानकर दंग रह जाएंगे आप