मिर्जा गियास बेग उर्फ एतमातुद्दौला
पादशाह बेगम नूरजहां के बचपन का नाम मेहरून्निसा था। उसका पिता मिर्जा गियास बेग पर्शिया का रहने वाला था। पिता ख्वाजा मुहम्मद शरीफ की मृत्यु के पश्चात मिर्जा गियास बेग को अपना भाग्य पर्शिया में अच्छा दिखाई न दिया इसलिए वह अपने दो पुत्रों तथा एक पुत्री को लेकर भारत की ओर चल दिया। मार्ग में गियास बेग को अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा किन्तु काफिले के मालिक मलिक मसूद ने उसकी काफी मदद की। भारत आने के बाद गियास बेग को मुगल बादशाह अकबर की सेवा में स्थान मिल गया और वह अपनी योग्यता की बदौलत प्रगति करता गया। उसे काबुल का दीवान नियुक्त किया गया परन्तु बाद में अकबर के व्यक्तिगत कारखाने की सेवा में ले लिया गया। जहांगीर ने अपने शासन के प्रारम्भिक काल में ही उसे ‘एतमातुद्दौला’ की उपाधि प्रदान की।
सन 1611 ई. में मिर्जा गियास बेग ने अपनी बेटी मेहरून्निसा उर्फ नूरजहां की शादी जहांगीर से कर दी। इसके बाद जहांगीर ने मिर्जा गियास बेग को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया। जहांगीर से विवाह के समय ही नूरजहां का प्रभाव बढ़ने लगा था लिहाजा कुछ वर्षों में ही शासन सत्ता पादशाह बेगम नूरजहां के हाथों में चली गई। यह नूरजहां का ही प्रभाव था कि एतमातुद्दौला ने 1619 ई. तक 7000 जात और 7000 सवार का मनसब प्राप्त कर लिया था। वहीं एतमातुद्दौला के पुत्र आसफ खां ने 1622 ई. तक 6000 सवार और 6000 जात का पद प्राप्त कर लिया। दुभार्ग्यवश 1622 ई. में ही एतमातुद्दौला की मृत्यु कांगड़ा में हो गई जहां से उसके शव को आगरा लाकर दफनाया गया। अपने पिता मिर्जा गियास बेग की मृत्यु के तकरीबन सात साल बाद नूरजहां ने 1627-28 में आगरा में यमुना नदी के पश्चिमी तट पर एक शानदार मकबरे का निर्माण करवाया जो मध्यकालीन इतिहास में एतमातुद्दौला का मकबरा अथवा बेबी ताजमहल के नाम से विख्यात है। इस स्टोरी में हम आपको एतमातुद्दौला के मकबरे से जुड़ी रोचक जानकारी प्रदान करेंगे।
एतमातुद्दौला का मकबरा अथवा बेबी ताजमहल
बाला दुबे की किताब ‘आगरा के गली-मुहल्ले’ के मुताबिक पादशाह बेगम नूरजहां ने प्रारम्भ में अपने पिता एतमातुद्दौला का मकबरा चांदी से बनवाने की इच्छा जाहिर की परन्तु बाद में उसने अपना विचार बदल दिया। दरअसल नूरजहां की सखी सित्ती उन्निसा ने उसे यह सलाह दी कि समय परिवर्तनशील है, यदि वह चांदी का मकबरा बनवाएगी तो कालान्तर में उसके लूट की वजह से मकबरे के नष्ट होने की सम्भावना ज्यादा रहेगी। अत: पादशाह बेगम नूरजहां ने अपने पिता का मकबरा सफेद संगमरमर से बनवाया।
आगरा में यमुना नदी के पश्चिमी तट पर स्थित एतमातुद्दौला का मकबरा मुगल वास्तुकला की ऐसी पहली इमारत है जो पूर्णरूप से सफेद संगमरमर से निर्मित है। इसके साथ ही यह पहली इमारत है जिसमें पिट्राडूयरा का जड़ाऊ काम किया गया है। इस मकबरे के अन्दर सोने तथा अन्य क़ीमती रत्नों से जड़ावट का कार्य किया गया है। एतमातुद्दौल का मकबरा बेबी ताज अथवा बेबी ताजमहल के नाम से इसलिए मशहूर है क्योंकि ताजमहल बनाते समय इस मकबरे से कई चीजों की नकल की गई है। वास्तु विशेषज्ञों का मानना है कि एतमातुद्दौला के मकबरे की नक्काशी ताजमहल से बेहद खूबसूरत लगती है। इतना ही नहीं, विशेषज्ञों ने ताजमहल के अतिरिक्त इस इमारत को अन्य मुग़लकालीन इमारतों में श्रेष्ठ बताया है। बेबी ताज कहे जाने वाले इस मकबरे में मिर्जा गियास बेग तथा उसकी पत्नी अस्मत बेग की कब्रें पीले रंग की कीमती पत्थरों से निर्मित हैं।
एतमादुद्दौला के मक़बरे की वास्तुकला
एतमातुद्दौला का मकबरा चारबाग शैली में निर्मित एक बाग के मध्य निर्मित है जिसके चारों ओर ऊँची दीवारे हैं। इस बगीचे में पैदल रास्ते तथा पानी के चैनल शामिल हैं। बगीच में फव्वारे के साथ चार आयताकार पूल भी हैं। लाल बलुआ पत्थर के चबूतरे पर खड़ा यह मकबरा पूर्णरूप से सफेद संगमरमर से निर्मित है। इस मकबरे में एक समांतर चतुभुर्जीय केन्द्रीय कक्ष है जिसमें गियास बेग और उसकी पत्नी अस्मत बेगम की कब्र है। केन्द्रीय कक्ष के चारों तरफ छोटे-छोटे प्रकोष्ठ हैं जिसमें नूरजहाँ तथा उसके पहले पति शेर अफगन से जन्मी पुत्री लाडली बेगम व परिवार के अन्य सदस्यों की कब्रें हैं। इस भवन के ऊपरी चारों कोनों पर लगभग 40 फीट ऊँची चार गोल मीनारें हैं। मकबरे का आयताकार गुम्बद फारसी वास्तुकला शैली में बनाया गया है। एतमातुद्दौला के मकबरे में चार अलंकृत प्रवेश द्वार हैं। पूर्वी गेट मुख्य प्रवेश द्वार है। उत्तरी और दक्षिणी द्वार एक जैसे हैं जबकि पश्चिमी द्वार एक वाटरफ्रंट मंडप है।
एतमातुद्दौला के मकबरे की सजावट
आगरा किले से 4 किलोमीटर तथा रामबाग से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एतमातुद्दौला के मकबरे की सजावट देखते ही बनती है। यह मकबरा अपनी बहुरंगी अलंकरण एवं नक्काशी के लिए विख्यात है। इस इमारत की सजावट में गुलाब जल के कलश, शराब की प्याली- बोतलों, गुलदस्ता, अंगूर आदि का विशेष रूप से प्रयोग किया गया है।
गुलदस्तों में पुष्प सम्बन्धी चित्रकारी का विशेष ध्यान रखा गया है। इसके अतिरिक्त इस मकबरे में कई जगहों पर पशु, पक्षियों तथा मानवाकृतियां भी बनायी गई हैं। मुगलकालीन अन्य मकबरों की तुलना में यह थोड़ा छोटा और बेहद खूबसूरत है, इसलिए एतमातुद्दौला के मकबरे को कुछ लोग ‘श्रृंगारदान’ भी कहते हैं।
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