भारतीय इतिहास में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों के बारे में कुछ ज्यादा ही चर्चाएं होती हैं। परन्तु क्या आप इस तथ्य को जानते हैं कि बादशाह अकबर से पूर्व भी ऐसे शक्तिशाली राजा थे जिनके दरबार में नवरत्न रखने की परम्परा थी। इस स्टोरी में हम उन पांच शक्तिशाली राजाओं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे जिनके दरबार में ‘नवरत्न’ नियुक्त थे।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
प्राचीन भारतीय इतिहास में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शासक बनने के बाद अनेक उपाधियां धारण की, जैसे- विक्रमांक, विक्रमादित्य, नरेशचन्द्र, श्रीविक्रम सिंह, अजित विक्रम और परमभागवत। शकों पर विजय प्राप्त करने के कारण चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को ‘शकारि’ भी कहा गया है। गुप्त शासकों में सर्वप्रथम चांदी के सिक्के चलाने का श्रेय चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ को है। उज्जैन उसके साम्राज्य की दूसरी राजधानी थी। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य एक महान विजेता, कुशल शासक, कूटनीतिज्ञ, विद्वान एवं विद्या का उदार संरक्षक था। उसकी प्रतिभा बहुमुखी थी तथा उसके शासनकाल में गुप्त साम्राज्य की चहुमुखी प्रगति हुई।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय पाटलिपुत्र एवं उज्जियनी विद्या के प्रमुख केन्द्र थे। अनुश्रुति के अनुसार, उसके दरबार में नौ विद्वानों की एक मण्डली निवास करती थी जिसे ‘नवरत्न’ कहा गया है। महाकवि कालीदास सम्भवत: इनमें अग्रगण्य थे। बतौर उदाहरण- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने कालीदास को अपना दूत बनाकर कुंतल नरेश के दरबार में भेजा था। कालीदास के अतिरिक्त चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में धनवन्तरि, क्षपणक, अमर सिंह, शंकु, खटकरपारा, वेताल भट्ट, वररुचि और वाराहमिहिर जैसे विद्वान शामिल थे। इनमें से अधिकांश को गुप्तकालीन ही माना जाता है।
1- धनवन्तरि
धनवन्तरि एक चिकित्सक थे, जिन्हें हर प्रकार की औषधियों का ज्ञान था। धनवन्तरि महाराजा विक्रमादित्य के राजवैद्य थे। प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में शल्य तंत्र (सर्जरी) के प्रर्वतक को धनवन्तरि कहा जाता था। ऐसे में शल्य चिकित्सा में निष्णात चिकित्सक ‘धनवन्तरि’ की उपाधि धारण करते थे। अत: यह भी सम्भव है कि धनवन्तरि चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की सेना के प्रमुख चिकित्सक रहे होंगे। धनवन्तरि द्वारा लिखित पुस्तकों के नाम कुछ इस प्रकार हैं- वैद्य चिन्तामणि, रोग निदान, वैद्यक भास्करोदय, चिकित्सा सार संग्रह व धनवन्तरि निघण्टु।
2- क्षपणक
क्षपणक एक जैन संन्यासी थे जो राजा विक्रमादित्य को प्रत्येक जरूरी परामर्श देते थे। हिन्दू लोग जैन साधुओं के लिए ‘क्षपणक’ नाम का प्रयोग करते थे। दिगम्बर जैन साधु ‘क्षपणक’ कहे जाते थे।
3- शंकु
शंकु नीतिशास्त्र के मर्मज्ञ व एक श्रेष्ठ कवि थे। शंकु को लेकर कुछ विद्वानों में मतभेद है, जैसे- कुछ इन्हें रसाचार्य तो कुछ विद्वान शंकु को मंत्रवादिन मानते हैं। जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि शंकु ज्योतिषी थे।
4- वेताल भट्ट
वेताल भट्ट तंत्र शास्त्र के ज्ञाता थे। ‘विक्रम वेताल’ नामक कहानियों के रचयिता वेताल भट्ट को ही माना जाता है। वेताल भट्ट से तात्पर्य है- ‘प्रेत-पिशाच साधना में प्रवीण व्यक्ति’। सम्भव है कि वेताल भट्ट भूत-प्रेत व पिशाच साधना में निष्णात रहे होंगे। वेताल भट्ट उज्जियनी के श्मशान घाट तथा विक्रमादित्य के साहसिक कृत्यों से परिचित रहे होंगे इसीलिए उन्होंने ‘वेताल पंचविशतिका’ नामक कथा ग्रन्थ की रचना की होगी।
5- घटखर्पर
घटखर्पर एक ऐसे कवि थे जिनका कहना था कि जो भी उन्हें ‘यमक’ रचना में पराजित कर देगा। वे उसके घर घड़े के टुकड़े से पानी भरेंगे। इसीलिए उनका नाम घटखर्पर पड़ा था। घटखर्पर द्वारा रचित केवल लघु काव्य ही उपलब्ध हैं। पहला घटखर्पर काव्य श्रृंगार रस से ओतप्रोत 22 पद्यों की एक सुन्दर रचना है। यह एक दूत काव्य है जिसमें मेघ द्वारा संदेश भेजा गया है। घटखर्पर का दूसरा काव्य नीतिसार माना गया है। इसमें 21 श्लोकों के जरिए नीति का बहुत सुन्दर विवेचन किया गया है। घटखर्पर के पहले काव्य पर कमलाकर, शंकर गोवर्धन, वैद्यनाथ, भरतमल्लिका तथा अभिनव गुप्त जैसे प्रसिद्ध विद्वानों ने टीका ग्रन्थ लिखे हैं।
6- वररुचि
प्रबन्ध चिन्तामणि के अनुसार, राजा विक्रमादित्य की पुत्री के गुरु वररुचि को व्याकरण का ज्ञाता माना गया है। कौशाम्बी के ब्राह्मण कुल में जन्मे वररूचि जब पांच वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहान्त हो गया था। ‘पत्रकौमुद’ नामक काव्य की रचना वररुचि ने ही की थी। ‘कथासरित्सागर’ में तीक्ष्ण बुद्धि वाले वररुचि का दूसरा नाम कात्यायन बताया गया है।
7- अमर सिंह
अमर सिंह को शब्दकोश का जनक माना जाता है। ‘अमरकोश’ पर वर्तमान में 50 टीकाएं उपलब्ध हैं जो उनकी महत्ता का प्रमाण है। गणक कालीदास ने महाराजा विक्रमादित्य की सभा में नियुक्त नवरत्नों में अमर सिंह का नामोल्लेख किया है। गया (बिहार) के बुद्ध अभिलेख में यह लिखा गया है कि “विक्रमादित्य संसार के प्रसिद्ध राजा हैं। उनकी सभा में नियुक्त नौ विद्वान ‘नवरत्न’ के नाम से जाने जाते हैं। उनमें राजा का सचिव अमर सिंह है जो बड़ा विद्वान और राजा का प्रिय पात्र है।”
8- वाराहमिहिर
ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान वाराहमिहिर ने ज्योतिषशास्त्र के कई बड़े ग्रन्थ लिखे हैं जिनके आधार पर ज्योतिषीय गणनाएं की जाती हैं। वारामीहिर द्वारा लिखित ज्योतिष विषयक ग्रन्थ इस प्रकार हैं- विवाह पटल, योगयात्रा, वृहत्संहिता, समास संहिता, लघुजातक, वृहत्यात्रा, लघुयात्रा, पंचसिद्धान्तिका। वारामीहिर ने अपने ग्रन्थ में 36 बार ग्रीक शब्द का प्रयोग किया है। वारामीहिर ने यवन ज्योतिषियों का भी उल्लेख किया है। इसका सीधा अर्थ है कि चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के साम्राज्य से ग्रीक से व्यापारिक सम्बन्ध होने के कारण साहित्यक आदान-प्रदान हुआ है।
9- महाकवि कालीदास
महाकवि कालीदास ने कई महाकाव्यों जैसे अभिज्ञानशाकुंतलम, मेघदूत, कुमारसंभव, रघुवंश, औऱ ऋतुसंहार आदि की रचना की है। कालिदास ने द्वितीय शुंग शासक अग्निमित्र को नायक बनाकर ‘मालविकाग्निमित्रम्’ नाटक लिखा। अभिज्ञान शाकुन्तलम महाकवि कालिदास का विश्वविख्यात नाटक है जिसका अनुवाद प्रायः सभी विदेशी भाषाओं में हो चुका है। ‘मेघदूतम्’ में उज्जैन के प्रति उनकी विशेष प्रेम को देखते हुए कुछ लोग उन्हें उज्जैन का निवासी मानते हैं।
सम्राट अशोक
सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार, अशोक ने अपने 99 भाईयों की हत्या कर सिंहासन प्राप्त किया था। महाबोधि वंश एवं तारानाथ के मुताबिक, सत्ता प्राप्ति हेतु अशोक ने गृहयुद्ध मे अपने भाईयों की हत्या कर दी। वहीं जैन अनुश्रुतियों के अनुसार, अशोक ने अपने पिता बिन्दुसार की इच्छा के विरूद्ध मगध के शासन पर अधिकार कर लिया। अभिलेखों में सम्राट अशोक को ‘देवानामप्रिय’ तथा ‘देवानाम प्रियदर्शी’ नामक उपाधियों से विभूषित किया गया है।
बौद्ध ग्रन्थों में अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी मिलता है। सम्राट अशोक की पत्नियों के नाम- महादेवी, कारुवाकी, असंधिमित्रा, पद्यावती और तिष्यरक्षित। अशोक के पुत्र-महेन्द्र, तीवर, कुणाल। पुत्रियों के नाम- संघमित्रा और चारुमती। कल्हण की राजतंरगिणी के मुताबिक, अशोक शिव का उपासक था परन्तु शासन के चौथे वर्ष निग्रोध नामक भिक्षु ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया, इसके बाद मोग्गालिपुत्ततिस्स के प्रभाव से वह पूर्णरूपेण बौद्ध हो गया। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक से ही प्रेरित होकर मुगल बादशाह अकबर ने अपने दरबार में नवरत्नों की नियुक्ति की थी। मान्यता है कि अशोक के साथ ऐसे 9 रहस्यमयी लोग थे जिनसे परामर्श लेकर ही वह कोई निर्णय लेता था। वे 9 लोग कौन थे, इसका रहस्य आज तक बरकरार है।
कलिंग युद्ध (273 ईसा पूर्व) में हुए बृहद नरसंहार (तकरीबन एक लाख लोग) के बाद सम्राट अशोक ने संन्यास ले लिया था। मान्यता है कि कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक ने नौ अज्ञात लोगों की एक सोसायटी बनाई ताकि उसके संन्यास के बाद भी उसका राजकाज आगे भी चलता रहे। वहीं कुछ विद्वानों का मानना है कि सम्राट अशोक ने नौ विद्वानों वाली एक सीक्रेट सोसायटी की स्थापना की थी ताकि यदि किसी एक विद्वान की मौत हो जाए तो उसकी जगह किसी दूसरे विद्वान की नियुक्ति की जा सके। सम्राट अशोक इन 9 विद्वानों को दुनिया से छुपाकर रखा था। सम्राट अशोक के इन 9 रहस्यमयी विद्वानों को प्रोपेगेंडा, फिजियोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, अल्केमी, कम्युनिकेशन, ग्रेविटी, कॉस्मोगॉनी, लाइट और सोशियोलॉजी में महारथ हासिल थी। इन तथ्यों से प्रभावित होकर साल 1923 में अंग्रेज लेखक टैलबोट मुंडी ने ‘द नाइन अननोन मेन’ नामक एक किताब लिखी और प्रकाशित भी करवाई।
माना जाता है कि इन्ही नौ लोगों के द्वारा बड़े-बड़े स्तूपों का निर्माण करवाया गया था। सम्राट अशोक के नवरत्नों में विचारक और वैज्ञानिक भी शामिल थे। नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के मुताबिक, “सम्राट अशोक के शासनकाल में भारत एक वैश्विक महाशक्ति था। अशोक के समय दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी 35 फीसदी थी।”
राजा भोज
सिन्धुराज के पश्चात उसका पुत्र भोज परमार वंश का शासक हुआ। वह इस वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था जिसके समय में राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से परमार राज्य की अभूतपूर्व उन्नति हुई। राजा भोज ने अपनी राजधानी धारा नगर में स्थापित किया तथा उसे विविध प्रकार से अलंकृत करवाया। यहां उसने अनेक महल एवं मंदिर बनवाए। जिनमें विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर, उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर तथा धार की भोजशाला स्थित एक बेहतरीन सरस्वती मंदिर भी था। भोजशाला में माता सरस्वती की एक मूर्ति भी थी जो वर्तमान में लंदन स्थित संग्रहालय में संरक्षित है।
राजा भोज की राज्यसभा अनेक पंडितों तथा विद्वानों से अलंकृत थी। उसने ज्योतिष, काव्य शास्त्र, वास्तु आदि विषयों पर महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की। भोज की रचनाओं में श्रृंगार प्रकाश, प्राकृत व्याकरण, कूर्मशतक, श्रृंगारमंजरी, भोज चम्पू, कृत्यकल्पतरू, तत्वप्रकाश, शब्दानुसान, राजमृगांक आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
अबुल फजल की प्रसिद्ध रचना ‘आईन-ए-अकबरी’ के अनुसार, राजा भोज की राज्यसभा में तकरीबन 500 विद्वान थे। इन विद्वानों में नवरत्नों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। राजा भोज के दरबारी कवियों में भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र, धनपाल आदि प्रमुख थे। वह अपने दरबार में विद्वानों को पुरस्कृत करता था। उसके बारे में एक अनुश्रुति थी कि “वह प्रत्येक कवि को हर श्लोक पर एक लाख मुद्राएं प्रदान करता था।” महाराजा भोज ने अपने ग्रन्थों में विमान बनाने की विधि के साथ ही नाव और जहाजों को बनाने की विधि का भी सविस्तार वर्णन किया है।
मुगल बादशाह अकबर
तकरीबन सभी आधुनिक इतिहासकारों ने अकबर की प्रशंसा की है। नि:सन्देह बादशाह अकबर मुगल शासकों में सर्वश्रेष्ठ तथा सम्मानित पद का अधिकारी है। इतिहासकार लेनपूल ने अकबर के युग को ‘मुगल काल का स्वर्ण युग’ कहा है। वहीं इतिहासकार स्मिथ लिखता है कि “अकबर मनुष्यों का जन्मजात बादशाह था।” प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी अकबर शिक्षित नहीं था परन्तु उसने विद्वानों को सम्मान तथा पर्याप्त आश्रय दिया। अकबर ने एक पुस्तकालय बनवाया था जिसमें 24000 ग्रन्थ थे जिनकी कीमत तकरीबन 65 लाख रुपए थी। धार्मिक दृष्टि से वह अपने युग का प्रवर्तक था। अकबर ने विभिन्न विद्वानों के सम्पर्क में आकर दर्शन, साहित्य, इतिहास आदि का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
यदि भारतीय इतिहास में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों का उल्लेख नहीं किया जाए तो अकबर की सम्पूर्ण कहानी अधूरी ही रहेगी। अकबर के दरबार में नियुक्त नवरत्नों के नाम कुछ इस प्रकार थे- राजा बीरबल, मियां तानसेन, अबुल फजल, फैजी, राजा मान सिंह, राजा टोडरमल, मुल्ला दो पियाजा, फकीर अजियाउद्दीन (हकीम हुकाम) और अब्दुल रहीम खान-ए-खाना।
1- बीरबल
बीरबल का असली नाम महेशदास था। संस्कृत, फारसी और हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान बीरबल को अकबर ने ‘राजा’ की उपाधि दी थी। बीरबल ने अकबर द्वारा स्थापित धर्म ‘दीन-ए-इलाही’ को अपनाया। बीरबल ने अपनी बुद्धिमता के अलावा मुगल दरबार को सैन्य और प्रशासनिक सेवाएं भी दीं।
अपनी बुद्धि और चतुराईपूर्ण हाजिर जवाबी के लिए मशहूर बीरबल को अकबर बहुत पसंद करते थे। अकबर और बीरबल की कहानियाँ भारत में बुद्धि और नैतिक मूल्यों की कहानियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। बीरबल की मृत्यु 1586 में एक विद्रोही जनजाति द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में हुई थी।
2- तानसेन
मुगल बादशाह अकबर के दरबार में नियुक्त महान संगीतकार तानसेन का असली नाम रामतनु पाण्डेय था। तानसेन ने स्वामी हरिदास से संगीत की शिक्षा ली थी। संगीत सम्राट तानसेन को मुगल बादशाह अकबर ने रीवां के राजा रामचन्द्र से प्राप्त किया था। अकबर ने तानसेन को ‘कण्ठाभरणवाणी विलास’ की उपाधि प्रदान की थी।
तानसेन के बारे में अबुल फजल लिखता है कि “तानसेन के समान गायक पिछले हजार वर्षों में भारत में नहीं हुआ।” ध्रुपद गायन के मर्मज्ञ तानसेन ने अनेक रागों की रचना की थी। तानसेन की दो क्लासिक रचनाओं के नाम ‘श्री गणेश स्तोत्र’ और ‘संगीता सारा’ है। उन्हें "संगीत सम्राट" भी कहा जाता है। तानसेन 60 वर्ष की आयु में अकबर के दरबार में शामिल शामिल हुए थे।
3-अबुल फजल
मध्यकालीन इतिहास की प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृतियों अकबरनामा, आईन-ए-अकबरी और मकतूबात-ए-अल्लामी के लेखक अबुल फजल का असली नाम शेख अबुल फजल अल्लामी था। उन्होंने बाइबिल का फ़ारसी में अनुवाद भी किया। वह एक ऐसे विद्वान थे जो फ़ारसी, अरबी, सूफ़ीवाद और यूनानी दर्शन में पारंगत थे। 1602 ई. में शहजादे सलीम के संकेत पर वीर सिंह बुन्देला ने अबुल फजल की हत्या कर दी। अबुल फजल की मृत्यु पर बादशाह अकबर बहुत रोया था तथा दो दिन तक उसने भोजन भी नहीं किया।
4- फैजी
अबुल फ़ज़ल के बड़े भाई फैजी का असली नाम शेख अबू अल-फ़ैज़ इब्न मुबारक था। अकबर के नवरत्नों में से एक फैजी को बादशाह अकबर ने मलिक-उश-शुअरा (दरबारी कवि) का दर्जा दिया था। फैजी ने लीलावती (भास्कराचार्य द्वारा गणित में संस्कृत कार्य) का फारसी में अनुवाद किया था। फैजी को बादशाह ने अपने बेटों के शिक्षक के रूप में नियुक्त किया था। फैजी अकबर के विश्वासपात्रों और पसंदीदा लोगों में से एक थे और कभी-कभी अकबर के साथ साथ उनके सैन्य अभियानों में शामिल होते थे।
5- राजा मान सिंह
अकबर के प्रख्यात नवरत्नों में शामिल मान सिंह आमेर का राजा था। मुगल सेनापति मानसिंह अत्यन्त चतुर और साहसी योद्धा भी था। उसने हल्दीघाटी समेत कई ऐतिहासिक युद्धों का नेतृत्व किया था। मान सिंह बंगाल, बिहार और उड़ीसा का सूबेदार भी रहा। मानसिंह को वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर तथा पुरी में जगन्नाथ मंदिर की पुनर्स्थापना के लिए भी याद किया जाता है।
6- राजा टोडरमल
अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल मुगल साम्राज्य के वित्त मंत्री थे। राजा टोडरमल द्वारा जारी की गई बंदोबस्त प्रणाली, भूमि सर्वेक्षण, मानक बाट और माप भारतीय उपमहाद्वीप में आज उपयोग की जाती है जिसे ब्रिटिश और भारत सरकार द्वारा सुधार किया गया था। उत्तर प्रदेश के एक हिंदू परिवार में जन्मे टोडलमल ने पहले शेरशाह सूरी और फिर मुगल बादशाह अकबर के लिए काम किया।
7- मुल्ला दो पियाजा (अब्दुल हसन)
शाही बावर्चीखाने के प्रमुख अब्दुल हसन ने अपनी देखरेख में बादशाह अकबर के समक्ष ‘मुर्ग दो प्याजा’ नामक व्यंजन पेश किया। लजीज व्यंजन ‘मुर्ग दो प्याजा’ अकबर को इतना पसन्द आया कि उसने अब्दुल हसन को 'दो प्याजा' की उपाधि से नवाजा। मस्जिद में इमाम रह चुके अब्दुल को मुल्ला भी कहा जाता था। यहीं से इनका नाम मुल्ला-दो-प्याजा पड़ा। अकबर दरबार में नियुक्त मुल्ला दो पियाजा एक सलाहकार होने के साथ- साथ अमात्य भी थे। लोक कथाओं में मुल्ला-दो-प्याजा को अक्सर बीरबल के प्रतिद्वंद्वी के रूप में चित्रित किया जाता है।
8-फकीर अजियाउद्दीन (हकीम हुकाम)
फकीर अजियाउद्दीन यानि हकीम हुकाम मुगल बादशाह अकबर के निजी चिकित्सक (हकीम) थे। फकीर अजियाउद्दीन अकबर के दरबार में धार्मिक मंत्री थे। वह धर्म से जुड़े विविध विषयों पर बादशाह को सलाह देते थे। कुल मिलाकर अकबर के नवरत्नों में से एक हकीम हुकाम एक सूफी फकीर, सलाहकार और अकबर के विश्वासपात्र मित्र थे।
9- अब्दुल रहीम खान-ए-खाना
मुगल बादशाह अकबर के संरक्षक बैरम खान के पुत्र अब्दुल रहीम खान-ए-खाना एक मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे। रहीम ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों में ही कविताएं लिखि हैं। रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। उन्होंने ‘बाबरनामा’ का चगताई भाषा से फारसी भाषा में अनुवाद किया था।
राजा कृष्णचन्द्र राय
बंगाल स्थित नदिया के राजा कृष्णचन्द्र ने सन 1727 से 1772 तक शासन किया। 18वीं सदी में राजा कृष्णचंद्र राय को बंगाल के एक महान नायक और रूढ़िवादी हिंदू समाज के प्रवक्ता के रूप में याद किया जाता है। बौद्धिक समुदाय ने उन्हें 'समाजपति' की उपाधि दी। कृष्णचन्द्र राय संस्कृत शिक्षा के महान संरक्षक थे और उनके शासनकाल में इसका महान पुनरुत्थान हुआ। राजा कृष्णचन्द्र राय संस्कृत और फ़ारसी भाषा के जानकार होने के साथ-साथ एक संगीतकार भी थे। बंगाल में जगद्धात्री की पूजा और नवद्वीप में शाक्तों की शुरूआत राजा कृष्णचन्द्र राय के द्वारा की गई।
बता दें कि नादिया के राजा कृष्णचंद्र राय ने भी अपने शाही दरबार को नौ रत्नों (नवरत्नों) से सुसज्जित किया और बंगाल में ज्ञान का गौरव बढ़ाया। कृष्णचन्द्र के दरबार में नियुक्त नवरत्नों के नाम कुछ इस प्रकार हैं- गोपाल भर, भरतचंद्र रायगुणकोर, रामप्रसाद सेन, बनेश्वर विद्यालंकार, कृष्णधन रॉय, राममोहन गोस्वामी, मधुसूदन न्यायलंकार, जगन्नाथ तर्कपंचानन और हरिराम तर्कसिद्धांत। बंगाली समाज, संस्कृति और साहित्य में राजा कृष्णचन्द्र राय के योगदान की विभिन्न तरीकों से व्याख्या की गई है, लेकिन कुछ पहलुओं में उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया है।
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