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These six famous women were romantically involved with Pt Jawaharlal Nehru

पं जवाहर लाल नेहरू के साथ रोमांस में थीं ये छह चर्चित महिलाएं

पं. जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद के एक चर्चित वकील थे। मोतीलाल नेहरू अपने भारतीय तथा अंग्रेज मित्रों में एक मेधावी व्यक्ति, बढ़िया भोजन, बढ़िया शराब, बातचीत के शौकीन तथा अतिथि सत्कार के अतिरिक्त स्पष्टवादी विपक्षी के रूप में प्रसिद्ध थे। मोतीलाल नेहरू को वह सब कुछ प्राप्त था जिसकी कोई भी मनुष्य कामना कर सकता है, जैसे- अपार धन, सम्मान तथा सुन्दर पत्नी। इसीलिए अपने निवास स्थान का नाम आनन्द भवन रखा जो सभी प्रकार से सार्थक था।

मोतीलाल नेहरू ने अपने इकलौते बेटे पं. जवाहरलाल नेहरू को इंडियन सिविल सर्विस में जाने की तैयारी करने के लिए हैरो तथा कैम्ब्रिज भेजा था। परन्तु यदि वह जिलाधिकारी बन जाते तो देश में उनकी कहीं भी नियुक्ति हो सकती थी ऐसे में मोतीलाल नेहरू जीवन के शेष दिनों में अपने बेटे से अलग नहीं रहना चाहते थे।

अत: पं. जवाहरलाल नेहरू कैम्ब्रिज से स्नातक करके लन्दन में इनर टैम्पल से बैरिस्टरी पास कर 1912 ई.में भारत लौटे। पं. नेहरू चाहते तो अपने व्यक्तिगत आकर्षण, लगन और परिश्रम करने की क्षमता के कारण बैरिस्टर बनकर एक शान्त जीवन व्यतीत कर सकते थे लेकिन देश प्रेम से अभिभूत होकर वे राजनीति की ओर आकृष्ट हुए।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को होम करने वाले पं. जवाहरलाल नेहरू आजादी के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने। भारत तथा भारतीयों की उन्नति के लिए समर्पित पं. नेहरू को आधुनिक भारत का जनक भी कहा जाता है।

परन्तु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि साल 1936 में पं. कमला नेहरू की मृत्यु के बाद आकर्षक व्यक्तित्व वाले पं. नेहरू का जीवन कुछ महिलाओं संग दोस्ती के कारण सर्वाधिक चर्चा में रहा। स्वयं पं. नेहरू के द्वारा लिखे गए टेलीग्राम व पत्रों के अतिरिक्त उनके सचिव एमओ मथाई, मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह, जेनेट मॉर्गन, लैरी कोलिंस और डोमीनिक लापेयर द्वारा लिखित किताबों तथा समाचार पत्रों में प्रकाशित साक्षात्कारों आदि से जानकारी मिलती है कि कुछ चर्चित व खूबसूरत महिलाओं के साथ पं. जवाहरलाल नेहरू का रोमांस था। इस स्टोरी में हम आपको उन्हीं महिलाओं के बारे में जानकारी देने का प्रयत्न करेंगे।

1— लेडी यूगिनी वॉवेल

लॉर्ड वेवेल ने सन 1944 से 47 तक भारत के पहले वायसराय के रूप में काम किया। भारतीयों की आजादी के प्रति सहानुभूति रखने वाले लॉर्ड वेवेल ने ब्रिटिश भारत में एक भावी सरकार बनाने के लिए माहौल तैयार करने हेतु शिमला सम्मेलन और वेवेल योजना आयोजित की लेकिन दोनों में असफल रहे। ऐसे में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली को लगा कि लॉर्ड वेवेल भारतीयों की स्वतंत्रता के पक्ष में समाधान प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं अत: एटली ने 1947 में लॉर्ड वेवेल की जगह लॉर्ड माउंटबेटन को नियुक्त कर दिया।

वैसे तो वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी लेडी एडविना और पं. नेहरू के बीच प्रेम सम्बन्धों की चर्चा सर्वविदित रही है परन्तु इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि वायसराय लॉर्ड वेवेल की पत्नी लेडी यूगिनी वॉवेल भी पं. जवाहरलाल नेहरू के प्रति बेहद आकर्षित थीं। कहा जाता है कि लेडी यूगिनी पं. नेहरू को बड़ी शिद्दत से चाहती थीं। चूंकि वे उम्र में बड़ी थीं और शारीरिक रूप से भी कुछ ज्यादा आकर्षक नहीं थीं अत: उनके बारे में ज्यादा अफवाहें नहीं फैलीं। बता दें कि लॉर्ड वेवेल के कार्यकाल में भी पं. नेहरू गर्वनमेंट हाउस के स्वीमिंग पूल में तैरने के लिए जाते थे। हांलाकि उसी स्वीमिंग पूल में पं. नेहरू को लेडी एडविना के साथ तैरते हुए देखा गया था। चर्चित किताब 'फ़्रीडम एट मिडनाइट' के लेखक लैरी कोलिंस और डोमीनिक लापेयर और लॉर्ड माउंटबेटन की जीवनी लिखने वाले फ़िलिप ज़ीगलर ने इस बारे में विस्तार से लिखा है।

2 — लेडी एडविना माउंटबेटन

जवाहरलाल नेहरू की जीवनी द मेकिंग ऑफ इंडिया के ले​खक एमजे अकबर लिखते हैं कि “1949 से 1952 के दौरान उत्तर प्रदेश के राज्यपाल सर होमी मोदी और पं. नेहरू नैनीताल में ठहरे हुए थे। एक रात आठ बजे सर होमी मोदी ने अपने बेटे रूसी मोदी को पं. नेहरू के शयनकक्ष में सिर्फ यह बताने के लिए भेजा कि मेज पर खाना लग चुका है और सब लोग इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में रूसी मोदी ने जब पं. नेरूह के बेडरूम का दरवाजा खोला तो उन्होंने देखा कि पं. नेहरू ने लेडी एडविना को अपनी बाहों में जकड़ रखा था। ऐसा देखते ही रूसी मोदी ने झट से दरवाजा बंद कर दिया। कुछ देर बाद पं. नेहरू डायनिंग टेबल पर पहुंचे और उनके पीछे-पीछे लेडी एडविना भी वहां पहुंची। दरअसल यह विशेष जानकारी टाटा स्टील के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रहे रूसी मोदी ने एम. जे. अकबर को दी थी।

पं. नेहरू की जीवनी लिखने वाले एक अन्य लेखक स्टैनली वॉलपर्ट के मुताबिक, लेडी एडविना को छूने, उनका हाथ पकड़ने और उनके कानों में धीरे से कुछ कहने में पं. नेहरू तनिक भी संकोच नहीं करते थे। लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी पत्नी लेडी एडविना को लिखे नेहरू के पत्र को लव लेटर का नाम दिया है। वहीं ओपी रल्हन अपनी किताब 'जवाहरलाल नेहरू एबरोड -अ क्रोनोलॉजिकल स्टडी' में लिखते हैं कि साल 1949 में पं. नेहरू जब राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए थे तब चार्च पंचम और प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली से मुलाकात के बाद पं. नेहरू ​को लेडी एडविना अपनी कार में बैठाकर अपने घर 'ब्रॉडलैंड्स' ले गईं जहां उन्होंने तकरीबन सात ​दिन बिताए थे। नेहरू के सचिव मथाई ने भी गलती से लेडी एडविना का एक पत्र पढ़ लिया था जिसमें उन्होंने पं. नेहरू के लिए 'डार्लिंग जवाहा' लिखा था।

यहां तक कि लेडी एडविना की बेटी पामेला अपनी अपनी किताब 'डॉटर ऑफ एम्पायर' में लिखती हैं कि नेहरू ने एडविना को इतने लेटर भेजा कि पूरा सूटकेस भर गया था। उनकी मां पं. नेहरू के प्यार में पागल थीं। हांलाकि उन्होंने यह भी लिखा है कि उनकी मां एडविना और नेहरू जी के बीच स्प्रिचुअल रिलेशन थे। एडविना माउंटबेटन की जीवनी लिखने वाली जेनेट मॉर्गन लिखती हैं कि लेडी एडविना का जब बोर्नियों में निधन हुआ था, तब गहरी निद्रा में सोने से पहले वह पं. नेहरू के पत्रों को ही दोबारा पढ़ रही थीं, जो उनके हाथ से छिटक कर जमीन पर गिरे पाए गए थे।

3— पद्मजा नायडू

भारत की पहली महिला राज्यपाल और महान स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू को 1942 में अगस्त क्रांति के दौरान सक्रिय भागीदारी के कारण जेल जाना पड़ा था। पद्मजा नायडू साल 1950 में संसद सदस्य के रूप में चुनी गईं तत्पश्चात 1956 ई. में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में भी कार्यरत रहीं।

पं. नेहरू द्वारा पद्मजा नायडू को लिखे पत्रों तथा टेलीग्राम से उन दोनों के बीच करीबी रिश्तों का पता चलता है। पद्मजा को भेजे एक टेलीग्राम के उत्तर में पं. नेहरू लिखते हैं कि तुम्हारा टेलीग्राम मिला। कितना बेवकूफ़ी भरा और बिल्कुल औरतों जैसा! शायद ये सुभाष के साथ प्यार करने का प्रायश्चित है। इस बारे में मशहूर पत्रकार एमजे अकबर नेहरू की जीवनी में लिखते हैं कि भारतीय आज़ादी के दो प्रौढ़ हीरो राजनीति के अलावा दूसरी चीज़ों में भी प्रतिद्वंदिता कर रहे थे। इससे स्पष्ट है कि पं. नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस दोनों के ही पद्मजा नायडू से करीबी रिश्ते थे।

इतना ही नहीं पं. नेहरू द्वारा 18 नवंबर, 1937 को लिखे एक अन्य पत्र में उन्होंने पद्मजा नायडू से मजाकिया लहजे में पूछा था कि 'तुम्हारी उम्र क्या है? बीस?। जबकि उन दिनों पद्मजा नायडू 37 वर्ष की थीं।

एक अन्य पत्र में पं. नेहरू ने पद्मजा नायडू को यह सलाह दी थी कि वे उन्हें लिखे गए लिफाफे पर गोपनीय लिखा करें ताकि उनके सचिव उन पत्रों को न खोलें। नेहरू के सचिव एमओ मथाई अपनी किताब 'रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ द नेहरू एज़' में लिखते हैं कि हमेशा लो कट ब्लाउज़ पहनने वाली पद्मजा ने जब एक बार पं. नेहरू के बेडरूम में लेडी माउंटबेटन की दो तस्वीरें देखीं तो वो उसे बर्दाश्त नहीं कर पाईं और उस जगह अपनी पेंटिंग लगवा दी जहां हर समय लेटे हुए नेहरू की नज़र उस पर पड़ती रहे। परन्तु पद्मजा के वहां से जाते ही नेहरू ने वो पेंटिंग उतरवा कर स्टोर में रखवा दी।

मथाई अपनी इस किताब में यह भी लिखते हैं कि एडविना और नेहरू के सम्बन्धों से पद्मजा को इतनी जलन थी कि उन्होंने एक बार खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और एडविना से मिलने से साफ़ इनकार कर दिया। पं. नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने इंदिरा गांधी की करीबी दोस्त पुपुल जयकर से इस बात का खुलासा किया था कि यदि इंदिरा बीच में नहीं होतीं तो पं.नेहरू पद्मजा से शादी कर सकते थे।

4— मृदुला साराभाई

भारत के प्रख्या​त अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की बहन मृदुला साराभाई और पं. नेहरू के करीबी रिश्तों के बारे में भी बहुत कुछ लिखा-पढ़ा गया है। बता दें कि कांग्रेस की समर्पित कार्यकर्ता मृदुला साराभाई को साल 1946 में पं. नेहरू ने कांग्रेस का महासचिव बनाया था। मृदुला साराभाई अपनी आत्मकथा 'द वॉएस ऑफ़ द हार्ट' में लिखती है कि पं. नेहरू से उनकी पहली मुलाक़ात चेन्नई में हुई थी जब वह उनके घर खाना खाने आए थे।

मृदुला साराभाई और पं. नेहरू के करीबी रिश्तों के बारे में पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल और महात्मा गांधी के पौत्र गोपाल कृष्ण गांधी ने 8 मार्च 2014 को हिन्दुस्तान टाइम्सके एक लेख में लिखा था किमृदुला साराभाई की मर्दाना पोशाक, लड़कों जैसे कटे बाल उन्हें एक अलग तरह का आकर्षण देते थे। इसमें कोई संदेह नहीं पं. नेहरू और शेख अब्दुल्ला राजनीति के अलावा अन्य प्रवृत्तियों से उनकी तरफ आकर्षित हुए थे। पं.नेहरू और मृदुला के सम्बन्धों में कोमलता थी, बतौर उदाहरण- पं. नेहरू के आवास तीन मूर्ति भवन से हर सुबह मृदुला के घर एक गुलाब भेजा जाता था।

नेहरू के सचिव एमओ मथाई की किताब 'रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ द नेहरू एज़' के मुताबिक, मृदुला साराभाई का फ़िक्सेशन' कुछ इस हद तक था कि पं. नेहरू जब भी राज्यों के दौरों पर जाते थे, वो मुख्यमंत्रियों और मुख्य सचिवों को पत्र लिख कर उनके सुरक्षा, भोजन, आवास आदि इंतज़ामों के बारे में निर्देश दिया करती थीं।

5— दिनेश नंदिनी

जानकारी के लिए बता दें कि ब्रिटिश भारत से लेकर 1980 के दशक तक रामकृष्ण डालमिया का नाम देश के शीर्ष उद्योगपतियों में शामिल था। डालमिया समूह के अन्तर्गत समाचारपत्र, बैंक, बीमा कम्पनियां, विमान सेवाएं, सीमेंट, वस्त्र उद्योग, खाद्य पदार्थ आदि सैकड़ों उद्योग शामिल थे। दरअसल रामकृष्ण डालमिया गौ हत्या एवं हिंदू विवाह अधिनियम के मुद्दे पर जवाहरलाल नेहरू से कड़ी टक्कर लेने के लिए जाने जाते हैं।

लेकिन यह बात जानकर आप हैरान हो जाएंगे रामकृष्ण डालमिया की पत्नी दिनेश नंदिनी डालमिया अपनी शादी से पूर्व पं. जवाहरलाल नेहरू के प्यार में पागल थीं। इस बात का खुलासा करते हुए रामकृष्ण डालमिया की बेटी नीलिमा डालमिया लिखती हैं कि उन दिनों मेरी मां नंदिनी डालमिया राजस्थान की उभरती हुई कवियित्री थीं, अभी उनकी शादी रामकृष्ण डालमिया से नहीं हुई थी। परन्तु वह पं. नेहरू के प्यार में इस कदर पागल थीं कि वह उनसे मिलने अकेले ही नागपुर से वर्धा आश्रम चली गईं और वहां पहुंचकर साफ शब्दों में पं. नेहरू से अपने प्यार का इजहार कर डाला। यहां तक कि वह पं. नेहरू के लिए अपना घर-परिवार तक छोड़ने को तैयार थीं। परन्तु इस बात के लिए पं. नेहरू तैयार नहीं हुए हांलाकि दिनेश नंदिनी का प्यार एकतरफा था। अब समझ सकते हैं कि शिक्षित तथा अभिजात्य वर्ग की महिलाओं में पं. नेहरू के प्रति कितना आकर्षण था।

6— श्रद्धा माता

पं. नेहरू के सचिव एमओ मथाई ने अपनी किताब 'रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ द नेहरू एज़' में वाराणसी की एक सुन्दर संन्यासी महिला श्रद्धा माता का भी जिक्र किया है। मथाई का आरोप है कि पं. नेहरू साल 1948 में श्रद्धा माता की तरफ आकर्षित हुए थे। मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह ने न्यू डेल्ही पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में इस बात को स्वीकार किया है कि पं. नेहरू और श्रद्धा माता की मुलाकातें होती रही थीं और श्रद्धा माता से पहली मुलाकात में पं. नेहरू उनकी तरफ आकर्षित हो गए थे। परन्तु खुशवंत सिंह ने पं. नेहरू और श्रद्धा माता के यौन सम्बन्धों को एक सिरे से खारिज कर दिया। सन 1948 में पं. नेहरू ने श्रद्धा माता से चर्चा के लिए 15 मिनट का समय मांगा था, इसके बाद मुलाकातों का यह सिलसिला आगे बढ़ा।

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