“सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा..., यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाक़ी नाम–ओ निशां हमारा। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा।” इन मशहूर पंक्तियों को देशभक्त भारतीयों के मुंह से गुनगुनाते हुए अक्सर सुना जा सकता है।
जी हां, उपरोक्त पंक्तियों को लिखने वाला शख्स पाकिस्तान का पहला ‘राष्ट्र कवि’ और पाकिस्तान का ‘आध्यात्मिक पिता’ है, जिसे हम सभी मुहम्मद इकबाल के नाम से जानते हैं। अब आप का सोचना लाजिमी है कि, हिन्दुस्तानी एकता की बात करने वाला यह शख्स आखिर कैसे पाकिस्तान के संस्थापकों में से एक बन गया?
इस रोचक स्टोरी में हम आपको मुहम्मद इकबाल के उन विचारों से रूबरू कराएंगे जिसके जरिए उन्होंने मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान बनाने की बात कही थी।
मुहम्मद इक़बाल का जीवन-परिचय
मुहम्मद इकबाल (पूरा नाम मोहम्मद इकबाल मसऊदी) का जन्म साल 1877 में 9 नवम्बर को ब्रिटिश भारत के सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। इकबाल के पिता का नाम शेख़ नूर मोहम्मद तथा मां का नाम इमाम बीबी था।
मुहम्मद इकबाल के वंशज कश्मीरी ब्राह्मण थे जिन्होंने 17वीं शताब्दी में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। मुहम्मद इकबाल के पिता अशिक्षित किन्तु पेशे से एक दर्जी थे। वहीं उनकी मां इमाम बीबी एक विनम्र स्वभाव की महिला थीं। हांलाकि इकबाल के माता-पिता दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे।
मुहम्मद इकबाल ने तीन शादियां की, उनकी पत्नियों के नाम क्रमश: करीम बीबी, सरदार बेगम, मुख़्तार बेगम था। इकबाल की सन्तानों में उनकी पहली पत्नी करीम बीबी से पुत्री मिराज बेगम और पुत्र आफ़ताब इक़बाल का जन्म हुआ जबकि दूसरी पत्नी सरदार बेगम से इन्हें पुत्र जाविद इक़बाल की प्राप्ति हुई।
मुहम्मद इकबाल की शिक्षा-दीक्षा
मुहम्मद इकबाल ने 1899 ई. में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और वहीं नौकरी भी करने लगे। उच्च शिक्षा के लिए इकबाल ने साल 1905 में कैंब्रिज विश्विद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिला लिया।
कैम्ब्रिज विश्विद्यालय में अध्ययन करने के पश्चात उन्होंने साल 1908 में जर्मनी के म्यूनिख विश्वविद्यालय से ‘फारस में तत्वमीमांसा के विकास’ विषय पर दर्शनशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। ब्रिटेन और जर्मनी में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मुहम्मद इकबाल 1908 में हिन्दुस्तान (लाहौर) लौट आए और वकालत की प्रैक्टिस शुरू की।

कवि-दार्शनिक एवं राजनीतिज्ञ थे मुहम्मद इकबाल
मुहम्मद इकबाल एक बेहतरीन कवि, दार्शनिक तथा राजनीतिज्ञ थे। इकबाल ने अपनी कविताओं और दर्शन से मुसलमान तथा हिन्दू युवा पीढ़ी के धार्मिक दृष्टिकोण को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित किया। मुहम्मद इकबाल ने साल 1904 में भारतीय मुक्ति संग्राम के दौरान राष्ट्रवाद और ब्रिटिश राज के विरोध में एक उर्दू गजल लिखा था — “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...।” इकबाल की यह गजल 16 अगस्त 1904 को साप्ताहिक पत्रिका इत्तेहाद में प्रकाशित हुई।
इसके अतिरिक्त इकबाल जब साल 1905 में लाहौर के गवर्नमेन्ट कॉलेज में प्रोफेसर थे, तब उनके द्वारा यह गजल लाहौर गवर्नमेन्ट कॉलेज में सार्वजनिक रूप से पढ़ी गई थी। ब्रिटिश राज के विरोध की प्रतीक बनी यह गजल हिन्दुस्तान में आज भी कितनी लोकप्रिय है, इसे बताने की जरूरत नहीं है। इसी गजल की ये पंक्तियां तो देश के प्रत्येक युवा को जुबांनी याद है— “यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहां से। अब तक मगर है बाक़ी नाम–ओ निशां हमारा। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा।।”
हिन्दी, अंग्रेज़ी, फ़ारसी के ज्ञाता मुहम्मद इकबाल का योगदान उर्दू साहित्य के विकास में भी बेहद उल्लेखनीय माना जाता है। ‘शिकवा’ (1909 में) तथा ‘सिक्स लेक्चर्स ऑन दि रिकन्सट्रक्शन ऑफ़ रिलीजस थॉट’ मुहम्मद इकबाल की मुख्य रचनाएं हैं। इसके अतिरिक्त ‘असरार-ए-खुदी’, ‘रुमुज़-ए-बेखुदी’ ‘बंग-ए-दारा’ जैसी काव्य रचनाओं के लिए इकबाल को विशेष प्रसिद्धि मिली। मुहम्मद इक़बाल की काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने इन्हें 'सर' की उपाधि प्रदान की थी।
किन्तु यह बात जानकर हैरानी होगी कि बतौर भारतीय अपनी कविताओं में देशभक्ति का जोश भरने वाले मुहम्मद इकबाल अपने यूरोपीय प्रवास (1905 -1908 ई.) के दौरान ही भारतीय राष्ट्रीयता से विमुख होकर ‘पान-इस्लामिज्म’ की तरफ आकृष्ट होने लगे। कालान्तर में इस्लाम की तरफ उनका आकर्षण बढ़ता गया और फिर बाद में उन्होंने मुस्लिम पृथकता को बढ़ावा दिया।
पाकिस्तान के संस्थापक बने मुहम्मद इकबाल
पाकिस्तान के संस्थापकों में से एक मुहम्मद इकबाल को पाकिस्तान में ‘राष्ट्रकवि’, पाकिस्तान का ‘आध्यात्मिक पिता’ ‘अल्लामा इक़बाल’ (विद्वान इक़बाल), ‘मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान’ (पाकिस्तान का विचारक), ‘शायर-ए-मशरीक’ (पूरब का शायर) और ‘हकीम-उल-उम्मत’ (उम्मा का विद्वान) आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है।
दरअसल पाकिस्तान के स्थापना का विचार भी हिन्दुस्तान में सर्वप्रथम मुहम्मद इकबाल ने ही सबके समक्ष रखा था। बतौर मुस्लिम लीग अध्यक्ष मुहम्मद इकबाल ने इलाहाबाद में आयोजित सभा में 29 दिसंबर, 1930 को अपने अध्यक्षीय भाषण में पंजाब, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर एक नया देश (पाकिस्तान) बनाने की बात कही थी।
यही वजह है कि आधुनिक भारत के इतिहास में मुहम्मद इकबाल को पाकिस्तान के विचार का जनक माना जाता है। मुस्लिम लीग के लक्ष्यों को हासिल करने तथा अपने विचारों के प्रसार के लिए मुहम्मद इकबाल ने पत्रिका ‘तुलू-ए-इस्लाम’ की स्थापना की, जिसने पाकिस्तान आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हांलाकि ‘पाकिस्तान’ शब्द और पाकिस्तान का नक्शा गढ़ने का श्रेय साल 1933 में कैम्ब्रिज विश्विद्यालय के छात्र नेता चौधरी रहमत अली के नाम दर्ज है। ऐसा कहते हैं कि मुहम्मद अली जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित करने वाले मुहम्मद इकबाल ही थे।

इकबाल से प्रभावित थे जिन्ना
दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चान्सलर योगेश सिंह के मुताबिक, “पाकिस्तान के प्रस्तावक मुहम्मद इकबाल ने मुस्लिम लीग और पाकिस्तान आंदोलन का समर्थन करने वाले गीत लिखे।” इकबाल ने ही मुहम्मद अली जिन्ना को लंदन में अपने आत्म निर्वासन को समाप्त करने और भारतीय राजनीति में पुन: प्रवेश के लिए प्रेरित किया था।
इतिहासकार अकबर एस अहमद लिखते हैं कि “मुहम्मद इकबाल अपने जीवन के अंतिम वर्षों में जिन्ना को अपने विचारों के अनुसार परिवर्तित करने में सफल रहे। यही वजह है कि मुहम्मद इकबाल को जिन्ना ने अपने मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार कर लिया।”
यह सच है कि धर्म के आधार पाकिस्तान बनाने की सोच रखने वाले मुहम्मद इकबाल की मृत्यु आजादी से नौ साल पहले 21 अप्रैल 1938 को लाहौर में हो गई। मुहम्मद इकबाल को लाहौर की महान बादशाही मस्जिद के सामने दफनाया गया। इकबाल के निधन के ठीक दो साल बाद मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए मतदान किया और आखिरकार 1947 ई. में मुस्लिम देश पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान में 9 नवम्बर को मुहम्मद इकबाल की जयंती (यौम-ए-वेलादत-ए-मुहम्मद इक़बाल) के दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है।
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