
दोस्तों, मोहम्मद अली जिन्ना और पं. जवाहरलाल नेहरू दो ऐसे बड़े नाम हैं, जो भारतीय मुक्ति संग्राम तथा भारत विभाजन के दौरान सर्वाधिक चर्चा में रहे। आजादी के बाद इन दोनों शख्सियतों ने देश के शीर्ष पद को सुशोभित किया। एक तरफ पं. जवाहरलाल नेहरू ने भारत पहले प्रधानमंत्री होने का गौरव प्राप्त किया, वहीं मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल बने।
जहां पं. जवाहरलाल नेहरू नेहरू के जन्म दिवस पर भारत में सार्वजनिक अवकाश रहता है, वहीं मोहम्मद अली जिन्ना के जन्म दिवस पर भी पाकिस्तान में सार्वजनिक छुट्टी रहती है। आज इस स्टोरी में हम आपको मोहम्मद अली जिन्ना और पं. जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व से जुड़ी कुछ ऐसी समानताएं बताने जा रहें हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
1. अमीर बाप के बेटे
पं. जवाहर लाल नेहरू के पिता पं. मोती लाल नेहरू इलाहाबाद के सबसे ख्यातिलब्ध वकील थे। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सामने मौजूद ‘आनन्द भवन’ यह साबित करने के लिए काफी है कि किसी जमाने मोतीलाल नेहरू अपने शहर के सबसे धनाढ्य लोगों में से एक थे।
मोतीलाल नेहरू के पास वह सबकुछ था जिसकी कोई भी मनुष्य कामना कर सकता है, जैसे-अपार धन, सम्मान तथा सुन्दर पत्नी। ऐसे में एक धनी, कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्में जवाहर लाल नेहरू की शिक्षा-दीक्षा इंग्लैण्ड के हैरो स्कूल, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और लंदन के इनर टेम्पल में सम्पन्न हुई।
पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना के पिता जेनाभाई ठक्कर गुजरात के एक सम्पन्न व्यापारी थे। बिजनेस के सिलसिले में वह कराची जाकर बस गए। कराची में ही जेनाभाई ठक्कर की पत्नी मीठी बाई ने एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया मोहम्मद अली जेनाभाई। धनी परिवार से ताल्लुकात रखने वाले मोहम्मद अली जिन्ना साल 1892 में कारोबार सीखने के लिए लंदन गए, यहीं उन्होंने अपने नाम का टाइटल जेनाभाई से हटाकर जिन्ना कर लिया।
2. लन्दन से बैरिस्टर की डिग्री
पं. जवाहरलाल नेहरू तथा कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना, इन दोनों नेताओं ने लंन्दन से बैरिस्टर की ट्रेनिंग ली थी। पं. नेहरू तथा जिन्ना अपनी मातृभाषा के मुक़ाबले ब्रिटिश लहजे में अंग्रेज़ी बोलने में ज़्यादा सहज महसूस करते थे। यूं कहिए, ये दोनों ही अंग्रेजीदा शख्सियत थे।
यदि हम पं. नेहरू की बात करें तो 15 साल की उम्र में उनका दाखिला हैरो स्कूल में कराया गया। हैरो में दो साल तक पढ़ने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से नेचुरल साइंस में आनर्स की डिग्री हासिल की। इसके बाद लंदन के इनर टैम्पल से उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की।
जहां तक मोहम्मद अली जिन्ना का सवाल है, कराची के ‘सिन्ध मदरसा उल इस्लाम’ में प्रारम्भिक शिक्षा हासिल करने के अलावा उन्होंने कुछ समय के लिए बम्बई के ‘गोकुलदास तेज प्राथमिक विद्यालय’ में भी पढ़ाई की। इसके बाद कराची के ‘क्रिश्चयन मिशनरी स्कूल’ में दाखिला ले लिया। जिन्ना की उच्च शिक्षा बम्बई विश्वविद्यालय से हुई किन्तु आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन चले गए। मोहम्मद अली जिन्ना ने लंदन से बैरिस्टर बनने की पढ़ाई पूरी की और महज 19 साल की उम्र में ही वकील बन गए।
3. धूम्रपान के शौकीन
पं. जवाहरलाल नेहरू सिगरेट पीने के बेहद शौकीन थे। नेहरू जी के सबसे फेवरेट सिगरेट ब्रांड का नाम था- स्टेट एक्सप्रेस- 555। पं. नेहरू दिनभर में 20 से 25 सिगरेट पी जाते थे। मध्य प्रदेश राजभवन की वेबसाइट पर दर्ज जानकारी के मुताबिक, पं. नेहरू एक बार भोपाल दौरे पर गए, इस दौरान जब गवर्नर यह पता चला कि राजभवन में उनकी फेवरिट सिगरेट नहीं है तब आनन-फानन में एक विमान को सिगरेट लाने के लिए भोपाल से इंदौर भेजा गया।
इस्लाम धर्म में मनाही के बावजूद मोहम्मद अली जिन्ना को रात में एक या दो ड्रिन्क्स लेने से कोई परहेज नहीं था। हांलाकि जिन्ना भी पं. नेहरू की तरह सिगरेट पीने के बेहद शौकीन थे। मशहूर पत्रकार निसीद हजारी की किताब 'मिडनाइट्स फ़्यूरीज़, द डेडली लेगेसी ऑफ़ इंडियाज़ पार्टिशन' के अनुसार, मोहम्मद अली जिन्ना ताउम्र रोज तकरीबन दो पैकेट सिगरेट पीते रहे। जिन्ना के पसंदीदा सिगरेट का नाम था- क्रैवन ए.। यही नहीं, जिन्ना का कमरा बेहतरीन किस्म के क्यूबन सिगार के सुगन्ध से हमेशा महकता रहता था।
4. एकाकी जीवन
मोहम्मद अली जिन्ना और पं. नेहरू दोनों ही जिद के पक्के, अभिमानी तथा बहुत जल्द बुरा मान जाने वाले नेता थे। हांलाकि इन दोनों को ही अपने प्रशंसकों से घिरा रहना अच्छा लगता था। मोहम्मद अली जिन्ना अपनी पहली पत्नी के निधन के पश्चात खुद से 24 साल छोटी एक पारसी लड़की रति के प्यार में पड़ गए।
रति के पिता दिनशा पेटिट मुम्बई के अमीर पारसी कारोबारी थे। उस दौर में रति का नाम मुम्बई की सबसे खूबसूरत लड़कियों में हुआ करता था। हांलाकि विवाह के पश्चात 29 साल की उम्र में रति का भी निधन हो गया। तत्पश्चात जिन्ना को एकाकी जीवन बिताना पड़ा।
वहीं दूसरी तरफ, पं. जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू जब 36-37 साल की थीं तभी टीबी से उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद पं. नेहरू को एकाकी जीवन जीना पड़ा, यह अलग बात है कि पं. नेहरू का नाम कुछ चर्चित महिलाओं संग दोस्ती के कारण सर्वाधिक चर्चा में रहा। उन महिलाओं के नाम हैं- लेडी यूगिनी वॉवेल, लेडी एडविना माउंटबेटन, पद्यमजा नायडू, मृदुला साराभाई, दिनेश नंदिनी, श्रद्धा माता आदि।
5. धर्म से कुछ भी वास्ता नहीं
मोहम्मद अली जिन्ना ने धर्म के नाम पाकिस्तान जरूर बना लिया परन्तु जिन्ना का धर्म से कोई लेना-देना नहीं था। मोहम्मद अली जिन्ना शराब और सिगरेट पीते थे, अंतरजातीय विवाह किया, सूअर का मांस खाते थे। बता दें कि ये सभी चीजें इस्लाम में हराम हैं। यहां तक कि नमाज कैसे पढ़ी जाती है, इसका भी ज्ञान जिन्ना को नहीं था।
मशहूर इतिहासकार हरबंश मुखिया के अनुसार, “जिन्ना ने कभी कुरान नहीं पढ़ी थी। निजी जीवन में उनके लिए धर्म का कोई विशेष महत्व नहीं था।” बतौर उदाहरण- 14 अगस्त, 1947 ई. को जब पाकिस्तान बना तब रमजान का महीन चल रहा था। उस दिन जिन्ना ने कहा-ग्रैंड लंच होना चाहिए। इसके बाद लोगों ने कहा कि रमजान का महीना है, कैसे लंच आयोजन करेंगे? अब आप समझ गए होंगे कि जिन्ना कितने धार्मिक इन्सान थे।
वहीं दूसरी तरफ, पं. जवाहरलाल नेहरू को भी हिन्दू धर्म से कुछ खास लेना-देना नहीं था। साल 1933 में महात्मा गांधी को एक पत्र में नेहरू लिखते हैं कि, "जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ती गई है धर्म के प्रति मेरी नज़दीकी कम होती गई है। साल 1936 में नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा, "संगठित धर्म के प्रति हमेशा मैंने दहशत ही महसूस की है। मेरे लिए हमेशा इसका मतलब अंधविश्वास, पुरातनपंथ, रूढ़िवादिता और शोषण से रहा है जहाँ तर्क और औचित्य के लिए कोई जगह नहीं है।”
हांलाकि पं. जवाहरलाल नेहरू की शादी पूरे हिन्दू रीति-रिवाज से हुई थी बावजूद इसके उन्होंने अपने अंतिम वसीयतनामा में लिखा कि “मैं पूरी गंभीरता से यह घोषणा करना चाहता हूं कि मैं नहीं चाहता कि मेरी मृत्यु के बाद मेरे लिए कोई धार्मिक समारोह आयोजित किया जाए।
मैं ऐसे समारोहों में विश्वास नहीं करता हूं, अगर ऐसा हुआ तो ये औपचारिक रूप से उनके प्रति ठीक नहीं होगा। खुद को और दूसरों को धोखा देने का प्रयास होगा।” जाहिर सी बात है कि पं. नेहरू चाहते थे कि उनकी मौत के बाद उनका दाह-संस्कार तथा त्रयोदश संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज से सम्पन्न नहीं किया जाए। इस तथ्य को आप कुछ यूं समझिए, शशि थरूर अपनी किताब 'Nehru : The Invention of India' में लिखते हैं कि 1950 में हिंदू महासभा के एन. बी. खरे ने नेहरू के लिए कहा था कि “वे शिक्षा से अंग्रेज, संस्कृति से मुस्लिम और दुर्भाग्य से हिंदू हैं।”
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