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The unique love story of beautiful dancer Moran and Maharaja Ranjit Singh

खूबसूरत नर्तकी मोरन और महाराजा रणजीत सिंह की अनूठी प्रेम कहानी

महाराजा रणजीत सिंह को आधुनिक भारत के इतिहास में शेर-ए-पंजाब के नाम से जाना जाता है। चेचक से ग्रसित होने कारण रणजीत सिंह अपनी बाईं आंख की रोशनी बचपन में ही खो बैठे थे। छोटे कद के रणजीत सिंह के चेहरे पर कई दाग भी थे। बलिष्ठ और तीव्रगामी घोड़ों के शौकीन रणजीत सिंह शराब पीना भी खूब पसन्द करते थे।

शुकरचकिया मिसल के मुखिया महासिंह की इकलौती संतान रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर 1780 ई. को हुआ था। आपने महज 10 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ मिलकर पहला युद्ध लड़ा था। रणजीत सिंह अभी 12 वर्ष के ही थे कि उनके पिता का देहान्त हो गया। साल 1797 में जब रणजीत सिंह ने कार्यभार संभाला तो उस समय उनका प्रभुत्व रावी और झेलम नदियों के बीच कुछ जिलों तक ही सीमित था।

अहमदशाह अब्दाली का पोता जमानशाह स्वयं को पंजाब का स्वामी मानता था और उसने पंजाब पर अपना प्रभुत्व दिखलाने के लिए इस पर कई आक्रमण किए। 18वीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में सिक्ख मिसलें (शुकरचकिया, भंगी, कन्हैया, आहलूवालिया, फुलकियां) विघटित अवस्था में थीं। अफगानिस्तान में गृहयुद्ध का लाभ उठाकर रणजीत सिंह ने अपने तलवार की शक्ति से मध्य पंजाब में एक राज्य स्थापित कर लिया।

1798 ई. में अफगान आक्रमणकारी जमानशाह ने पंजाब पर आक्रमण किया। वापस लौटते समय उसकी कुछ तोपें चिनाब में गिर गईं। रणजीत सिंह ने उन्हें निकलवाकर वापस भिजवा दिया। इस सेवा के बदले जमानशाह ने रणजीत सिंह को लाहौर पर अधिकार करने की अनुमति दे दी। परिणामस्वरूप 1799 ई. में रणजीत सिंह के लाहौर पर अधिकार करते ही उनकी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई।

1805 ई. में भंगी मिसल से रणजीत सिंह ने अमृतसर भी छीन लिया। अब पंजाब की राजनीतिक राजधानी लाहौर और धार्मिक राजधानी अमृतसर दोनों ही उनके अधीन आ गई थीं। इस प्रकार अब वह सिक्खों के सबसे महत्वपूर्ण सरदार बन गए और शीघ्र ही उन्होंने झेलम से सतलुज नदी तक का प्रदेश अपने अधीन कर लिया और महाराजा रणजीत सिंह कहे जाने लगे।

कहते हैं महाराजा रणजीत सिंह की 20 पत्नियां थीं जिनमें रानी महताब कौर, रानी राज कौर, रतन कौर, रानी दया कौर और महारानी जिंद कौर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। परन्तु इनसे इतर महाराणा रणजीत सिंह की एक मुस्लिम पत्नी मोरन सरकार भी थी जो कभी उनके दरबार में नृत्य करके उनका मनोरंजन किया करती थी। महाराजा रणजीत सिंह उस खूबसूरत मुस्लिम नर्तकी से बेइंतहा प्यार करते थे, जो मोरन, मोरन सरकार व मोरन माई आदि कई नामों से भारतीय इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। हांलाकि मोरन सरकार के बारे में बहुत कम पढ़ा-लिखा गया है। एक मुस्लिम नर्तकी मोरन आखिर कैसे मोरन सरकार कहलाई, यह जानने के लिए पूरी स्टोरी पढ़ें।

आखिर कौन थी मोरन सरकार

अमृतसर स्थित माखन विन्डी के एक मुस्लिम परिवार में जन्मी मोरन बेहद ही खूबसूरत थी और वह महाराणा रणजीत सिंह की बारादरी में नृत्य किया करती थी। एक किंवदन्ती यह भी है कि कश्मीर की मूल निवासी मोरन एक नाच लड़की यानि नर्तकी थी जो अमृतसर और लाहौर के बीच एक छोटे से गांव माखनपुर में रहती थी। लाहौर और अमृतसर पर कब्जा करने के बाद महाराणा रणजीत सिंह ने बाघा बॉर्डर के करीब धनोआं कला में एक बारादरी (विश्राम गृह) का निर्माण करवाया था। अमृतसर और लाहौर के बीच यात्रा के दौरान महाराणा रणजीत सिंह अक्सर इसी बारादरी में विश्राम किया करते थे, ऐसे में एक दिन उनके मनोरंजन के लिए एक खूबसूरत मस्लिम नर्तकी को बुलाया गया।

खूबसूरत युवती की नृत्यकला से प्रभावित महाराजा रणजीत सिंह को पहली नजर में ही उससे प्यार हो गया। उन्होंने उस नर्तकी का उपनाम मोरन दिया। पंजाबी में मोरन का अर्थ होता है- ‘मोर पक्षी। यह शुरू होती है महाराजा रणजीत सिंह और मोरन की अनूठी प्रेम कहानी।

मोरन से प्यार की सजा

खूबसूरत नर्तकी मोरन और महाराजा रणजीत सिंह का प्यार इस कदर परवान चढ़ा कि उन्होंने मोरन से विवाह करने का निर्णय ले लिया। लेकिन मोरन के पिता ने एक शर्त रख दी कि यदि रणजीत सिंह अपने ससुराल में चूल्हा जलाएंगे तभी उनका विवाह मोरन से हो सकता है। मोरन को पाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने यह शर्त स्वीकार कर ली। तत्पश्चात मोरन और महाराजा रणजीत सिंह का विवाह बड़ी धूमधाम के साथ सम्पन्न हुआ।

शादी के बाद मोरन महाराजा रणजीत सिंह के साथ लाहौर चली गई। लाहौर स्थित शाह आलमी गेट के अन्दर मोरन की हवेली थी। हांलाकि इस घटना से सिक्ख समाज में आक्रोश व्याप्त हो गया। लिहाजा अकाली तख्त के जत्थेदार अकाली फूला सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ मोरन के सम्बन्धों को लेकर दोषी करार दिया और कोड़े मारने की सजा सुनाई।

महाराजा रणजीत सिंह ने अकाल तख्त के समक्ष सिर झुकाकर बड़ी विनम्रता से अपनी सजा स्वीकार की। महाराजा रणजीत सिंह चाहते तो यह सजा अस्वीकार कर सकते थे लेकिन मोरन के प्यार के लिए उन्होंने ऐसा नहीं किया। कहते हैं मोरन को 1811 ई. में पठानकोट जिले में रहने के लिए भेज दिया गया था।

मोरन सरकार अथवा मोरन माई

महाराजा रणजीत सिंह से विवाह के ​बाद मोरन ने अपनी प्रशासनिक क्षमता भी साबित की। कला और साहित्य की जानकार मोरन ने महाराजा रणजीत सिंह को कई समस्याओं से रूबरू करवाया था। इतना ही नहीं, मोरन ने अपनी हवेली में दरबार स्थापित किया और वह आम लोगों के शिकायतों का निवारण भी करती थी। ऐसे में वह जल्द ही लोगों के बीच मोरन सरकार अथवा मोरन माई के नाम से विख्यात हो गई।

महाराजा रणजीत ने खुद के नाम पर कभी सिक्के नहीं चलवाए लेकिन साल 1802 और 1827 के बीच उन्होंने मोरन शाही सिक्के चलवाए, इन सिक्कों पर मोर पंख अंकित था। ऐसे में आप अन्दाजा लगा सकते हैं कि महाराणा रणजीत सिंह पर मोरन सरकार का प्रभाव कितना अधिक था। इस प्रकार कंजरी और तवायफ आदि कई नामों से पुकारी जाने वाली मोरन को लोग अब एक दयालु रानी अथवा मोरन सरकार व मोरन माई के रूप में देखने लगे।

रणजीत सिंह और मोरन की अनूठी प्रेम निशानियां

पुल मोरन -  कहते हैं एक दिन मोरन जब महाराजा रणजीत सिंह की बारादरी (बारह दरवाजों वालों विश्राम गृह) में नृत्य करने के लिए जा रही थी तभी रावी नदी से जुड़ी एक छोटी सी नहर पार करते समय उसकी एक चप्पल पानी में गिर गई। दरअसल चांदी की वह चप्पल महाराजा रणजीत सिंह से उसे उपहार में मिली थी, ऐसे में मोरन इतना दुखी हुई कि उसने शाम को नाचने से मना कर दिया।

जब महाराणा रणजीत सिंह को इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने उस नहर पर तुरन्त पुल बनवाने का आदेश दिया। परिणामस्वरूप पुल मोरन का निर्माण कार्य पूरा किया गया। प्रारम्भ में यह पुल लोगों के बीच पुल कंजरी के नाम से विख्यात था, लेकिन बाद में इसका नाम पुल मोरन कर दिया गया। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह और मोरन की प्रेम कहानी की अनूठी निशानी है पुल मोरन।

मोरन मस्जिद - मोरन सरकार के निवेदन पर महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर में एक मस्जिद का निर्माण करवाया जो आज भी मौजूद है, जिसे लोग माई मोरन मस्जिद के नाम से जानते हैं। इसके अतिरिक्त महाराजा रणजीत सिंह ने 1823 ई. में एक मदरसा और लाहौर किले में एक शिव मंदिर का भी निर्माण करवाया था।

गौरतलब है कि भारत-पाक सीमा पर स्थित जीर्णशीर्ण अवस्था में पहुंच चुकी बारादरी, पुल मोरन और लाहौर स्थित माई मोरन मस्जिद महाराजा रणजीत सिंह और मोरन सरकार के प्रेम कहानियों की जीती जागती गवाह हैं।

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