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Do you know the Mystery of Roopkund lake which has 800 human skeletons?

800 नर कंकालों वाली रूपकुंड झील का रहस्य जानते हैं आप?

भारत के हिमालयी क्षेत्र में स्थित रूपकुंड झील में अब तक 600 से 800 की संख्या में पुरुषों व महिलाओं के कंकाल मिल चुके हैं। बर्फीले पहाड़ों के मध्य स्थित इस झील में इतने लोगों की सामूहिक मौत का रहस्य आज तक बरकरार है। इसके साथ ही रूपकुंड झील अपनी अजीबोगरीब घटनाओं के लिए भी विख्यात है, इसीलिए उत्तराखंड सरकार ने इस झील में प्रवेश करने पर सख्त प्रतिबंध लगा रखा है। इस स्टोरी में आज हम आपसे यह चर्चा करेंगे कि आखिर रूपकुंड झील में बिखरे पड़े नरकंकालों तथा हड्डियों के पीछे का रहस्य क्या है।

आखिर कहां स्थित है रूपकुंड झील?

रहस्यमयी रूपकुंड झील हिमालय की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में से एक ​त्रिशूल की तलहटी में स्थित है। भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में मौजूद रूपकुंड झील साल के ज्यादातर महीनों में बर्फ से ढकी ही रहती है। समुद्रतल से क़रीब 16,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड झील सदियों से तकरीबन 600 से 800 नरकंकालों से अटीपड़ी है। बर्फीले हिमालयी क्षेत्र के निर्जन स्थान पर स्थित रूपकुंड झील में इतनी बड़ी संख्या में सामूहिक मौतों का रहस्य आज तक कोई भी नहीं ढूंढ़ पाया है।

9वीं से 12वीं शताब्दी के हैं मानव कंकाल

रूपकुंड नामक इस सुंदर झील में अब तक 600 से 800 मानव कंकाल मिल चुके हैं जिसमें आभूषण, खोपड़ी, हड्डियां और शरीर के संरक्षित ऊतक भी शामिल हैं। बता दें कि सन 1942 ई. में एक अंग्रेज फॉरेस्ट गार्ड के अतिरिक्त नंदा देवी शिकार आरक्षण रेंजर एच. के. माधवल ने इस सुन्दर झील में सैकड़ों की संख्या में मानव कंकाल तथा हड्डियों को देखा था। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, रेडियोकार्बन प्रवर्धक यूनिट द्वारा की गई इन हड्डियों की रेडियोकार्बन डेटिंग के अनुसार इनकी अवधि 850 ई. है जबकि 1960 के दशक में एकत्र किए नमूनों के आधार ये मानव कंकाल 12वीं से 15वीं सदी के मध्य के हैं।

साल 2004 में भारतीय तथा यूरोपीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने भी रूपकुंड झील जाकर विशेष जानकारी एकत्रित की जिसके मुताबिक, 600 से अधिक मानव कंकालों की भौगोलिक स्थिति तथा शारीरिक बनावट अलग-अलग ​थी। मृतकों के इन समूहों में कुछ लम्बे कद के तो कुछ छोटे कद के भी लोग शामिल थे। अध्ययनों के मुताबिक, मरने वाले लोगों की उम्र 35 से 40 साल के बीच रही होगी। इनमें कई उम्रदराज़ महिलाओं के भी कंकाल मिले हैं परन्तु इसमें बच्चों का एक भी कंकाल नहीं है। सबसे बड़ी बात कि ये सभी स्वस्थ रहे होंगे।

साल के ज्यादातर महीनों में कंकालों वाली रूपकुंड झील बर्फ से ढकी ही रहती है, मौसम के अनुसार जब झील पर जमी बर्फ़ पिघल जाती है तब ये मानव कंकाल दिखाई देने लगते हैं। मौसम के अनुरूप इस झील का आकार घटता-बढ़ता रहता है। रहस्यमयी रूपकुंड झील का दीदार करने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते ही रहते हैं। बता दें कि इतनी बड़ी संख्या में हुई सामूहिक मौतों का पता लगाने के लिए मानव विज्ञानियों का अध्ययन आजतक जारी है।

मानव कंकालों से जुड़े रहस्य की थ्योरी

रूपकुंड झील में मिले 600 से 800 मानव कंकालों के रहस्य को लेकर कई तरह की थ्योरी सामने आती हैं जो निम्न हैं-

भारतीय  सैनिकों के नरकंकाल रहस्यमयी रूपकुंड झील में मानव कंकालों से जुड़ी पहली थ्योरी यह है कि साल 1841 में भारतीय सैनिक तिब्बत पर कब्जा करने के लिए गए थे, परन्तु भारतीय सैनिकों को शिकस्त खाकर वापस लौटना पड़ा था। तकरीबन सैकड़ों की संख्या में भारतीय सैनिकों ने वापस लौटने के लिए हिमालय की पहाड़ियों का रास्ता चुना परन्तु मार्ग में ही उनकी मौत हो गई अत: रूपकंकाल में मिले मानव कंकाल भारतीय सैनिकों के हैं। परन्तु जांच में पता चला यह थ्योरी गलत है क्योंकि इन मौतों के बीच हजार साल का अंतर है।

जापानी सैनिकों के नरकंकाल  रूपकुंड के मानव कंकालों की दूसरी थ्योरी यह है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सैनिकों ने भारतीय उपनिवेश की ब्रिटिश सेना पर आक्रमण करने के लिए हिमालय के रास्ते भारत में घुसने की कोशिश की होगी। ऐसे में जापानी आक्रमण के डर से ब्रिटिश सरकार ने इन मानव कंकालों की जांच के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम बुलवाई परन्तु जांच में पता चला कि यह मानव कंकाल जापानी सैनिकों के नहीं थे, रूपकुंड में मिले ये मानव कंकाल बहुत पुराने हैं। अत: जापानी सैनिकों से जुड़ी दूसरी थ्योरी भी गलत निकली।

भयंकर ओलावृष्टि- रूप कुंड झील से जुड़ी सर्वप्रसिद्ध और तीसरी थ्योरी यह है कि इस हिमालयी क्षेत्र में हुई अचानक ओला-वृष्टि के कारण इतने सारे लोगों की जान गई होगी। साल 2004 में भारत तथा इंग्लैंड के वै​ज्ञानिकों ने मानव कंकालों की खोपड़ियों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि हिमालय क्षेत्र में छोटी गेंद के आकार की बर्फबारी हुई होगी अत: कोई भी आश्रय नहीं मिलने के कारण इतनी ज्यादा मौतें हुईं होंगी। कम घनत्व वाली हवा और बर्फीले वातावरण के कारण कई लाशें भलीभाँति संरक्षित थी। इस क्षेत्र में भूस्खलन के साथ ही कुछ लाशें बहकर झील में चली गईं। परन्तु इतने सारे लोग कहां जा रहे थे, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है।

महामारी के शिकार लोगों की कब्र- रूप कुंड झील के इन मानव कंकालों की चौथी थ्योरी यह निकलकर सामने आती है कि पूर्व में यह जगह एक कब्रगाह हो सकती है, जहां महामारी के दिनों में मृत लोगों को यहां दफनाया जाता रहा होगा। परन्तु स्थानीय गांवों में प्रचलित एक लोकगीत के मुताबिक, यहां की पूज्य नंदा देवी ने अपनी दैवीय शक्ति से एक भवायह तूफान खड़ा किया जिससे इस झील को पार कर रहे लोगों की मौत हो गई। हांलाकि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार ने रूपकुंड झील में प्रवेश करने पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। बता दें कि हिमालय क्षेत्र में मौजूद भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी का नाम नंदा देवी शिखर है। परन्तु इस थ्योरी का भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

तीर्थयात्रा के दौरान हुई थी मौत- रूपकुंड में मिले मानव कंकालों की आखिरी और पांचवीं थ्योरी यह है कि ये सभी कंकाल तीर्थयात्रियों के हैं। स्थानीय मंदिरों में मिले 8वीं और 10वीं सदी के शिलालेखों से संकेत मिलता है कि झील के मार्ग में पड़ने वाले एक तीर्थस्थल की यात्रा के लिए लोग यहां आया करते थे। हांलाकि इस इलाके में तीर्थयात्रा के कोई पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं हैं। परन्तु कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि रूपकुंड झील में मिले कंकालों में से कुछ कंकाल ऐसे भी हो सकते हैं जिनकी मौत तीर्थयात्रा के दौरान हुई हो।

ईडेओइन हार्ने का सटीक विश्लेषण- अमेरिका, जर्मनी सहित भारत के 16 संस्थानों के 28 लोगों की एक टीम ने तकरीबन पांच वर्षों के अपने अध्ययन में पाया कि रूपकुंड झील में हुई मौतों के बीच हजार साल का अंतर है तथा सभी मानव कंकाल जेनेटिक रूप से अलग-अलग हैं। इसी  टीम का हिस्सा रही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी की छात्र ईडेओइन हार्ने का कहना है कि यह अभी स्पष्ट नहीं हो सका है कि रूपकुंड झील में आखिर क्या हुआ था? हांलाकि यह स्पष्ट है कि सभी मौतें एक घटना में नहीं हुई हैं और सभी मृतक अलग-अलग मूल के हैं।

हार्न आगे लिखती हैं कि जेनेटिक सर्च के आधार यह बात सामने आई है कि कुछ मानव कंकाल इस उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से के लोगों से मिलते-जुलते हैं जबकि अन्य कंकाल दक्षिण हिस्से में निवास करने वाले लोगों से मिलते-जुलते हैं। ऐसे में यह कहना भी नामुमकिन है कि यूरोप लोग इतनी लम्बी दूरी की यात्रा करके हिन्दू धर्म की किसी तीर्थ यात्रा में शामिल होने के लिए रूपकुंड पहुंचे होगें। निष्कर्षतया यह टीम उपरोक्त सभी थ्योरियों को खारिज कर चुकी है। गौरतलब है कि भारत के हिमालय क्षेत्र में स्थित रूपकुंड झील के मानव कंकालों की कहानी आज भी एक रहस्य है।

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