आदि कवि महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित महाग्रन्थ रामायण को आधार मानकर अबतक विभिन्न भाषाओं में तकरीबन एक हजार रामायण ग्रन्थों की रचना की जा चुकी है। इतना ही नहीं, महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महान महाकाव्य महाभारत के वन पर्व में 'रामोपाख्यान' के रूप में रामकथा का वर्णन है, वहीं द्रोणपर्व तथा शांतिपर्व में भी रामकथा का संक्षिप्त उल्लेख मिलता है।
इसके अतिरिक्त बौद्ध तथा जैन साहित्य में भी रामकथा से जुड़े कई ग्रन्थ लिखे गए हैं। यदि हम हिन्दी भाषा की बात करें तो कम से कम 11 रामायण हैं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में लिखित रामचरितमानस को उत्तर भारत में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। वहीं बांग्ला भाषा में 25 रामायण, मराठी में 08, तमिल में 12, तेलगू में 12 तथा उड़िया में 06 और कन्नड़ भाषा में 20 से अधिक रामायण उपलब्ध हैं।
दुनिया के अन्य देशों को छोड़कर यदि केवल भारत की बात करें तो संस्कृत, अवधी, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, असमिया, उर्दू, अरबी के अतिरिक्त फारसी भाषा में भी रामकथा लिखी जा चुकी है। यदि हम फारसी भाषा की बात करें तो सर्वप्रथम मुगल बादशाह अकबर ने रामायण का फारसी अनुवाद करवाया था। यद्यपि मुगलकाल में रामायण का कई बार अनुवाद किया गया परन्तु इस स्टोरी में हम आपसे अकबर द्वारा फारसी भाषा में अनुवाद करवाए गए रामायण की चर्चा करेंगे।
रामायण का फारसी अनुवाद- ‘तर्जुमा-ए-रामायण’
आमेर की राजपूत राजकुमारी से विवाह तथा राजपूताना से घनिष्ठता का असर मुगल बादशाह अकबर पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। सबसे पहले उसने हिन्दूओं पर लगाए जाने वाले तीर्थयात्रा कर (जजिया) को समाप्त कर दिया। इतना ही नहीं उसने गौ−हत्या भी बन्द करवा दी। इसके बाद अकबर ने देवालयों के जीर्णोद्धार और नवनिर्माण के लिए कई अनुदान दिए। अकबर अपने इबादतखाने में सभी धर्मों के आचार्यों के साथ वाद-विवाद किया करता था। इसी क्रम में अकबर ने हिन्दू धर्म के सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रामायण का फारसी भाषा में अनुवाद भी करवाया।
इस कार्य के लिए उसने अपने दरबारी विद्वान अब्दुल कादिर बंदायूनी को चुना। अकबर अपने दरबारी अब्दुल कादिर के धार्मिक ज्ञान से इतना अधिक प्रभावित था कि उसने मदद-ए- माश के रूप में 1579 ई. में बदायूं में एक हजार बीघा भूमि प्रदान की इसीलिए बंदायू के नाम पर ही वह ‘बंदायूनी’ कहलाया।
बता दें कि मुगल बादशाह अकबर ने सन 1582-83 ई. में अब्दुल कादिर बंदायूनी को सम्पूर्ण रामायण का फारसी अनुवाद करने का कार्यभार सौंपा। इस प्रकार अब्दुल कादिर बंदायूनी ने अकबर के आदेश पर वाल्मीकि रामायण का फारसी में अनुवाद किया। इस दुष्कर काम में बदायूंनी ने एक ब्राह्मण देबी मिश्र को भी अपने सहयोगी के रूप में नियुक्त किया था। बदायूंनी द्वारा फारसी भाषा में अनुवादित ‘तुर्जमा-ए-रामायण’ 1591 ई. में पांडुलिपी के रूप में तैयार हुआ। इस प्रकार तुर्जमा-ए-रामायण को तैयार करने में तकरीबन 8 साल लग गए। फारसी में अनुवादित तुर्जमा-ए-रामायण की एक खास विशेषता यह है कि यह लघु चित्रों से सुसज्जित है।
फारसी में अनुवादित तुर्जमा-ए-रामायण में 25 हजार श्लोक हैं और प्रत्येक श्लोक 65 अक्षरों का है। अकबर रामायण के फारसी अनुवाद से इतना प्रसन्न था कि उसने अब्दुल कादिर बंदायूनी को ही इसकी प्रस्तावना लिखने का कार्यभार सौंपा परन्तु धार्मिक भावना के कारण बंदायूनी ने प्रस्तावना लिखने से मना कर दिया।
अकबर के सचित्र रामायण से जुड़ी खास बातें
अकबर के सचित्र रामायण की पांडुलिपि दौलताबादी कागज़ पर लिखि गई है। 365 पृष्ठों वाली यह रामायण वर्तमान में जयपुर स्थित महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय में मौजूद है। अकबर द्वारा फारसी में अनुवाद कराए गए इस रामायण के सम्बन्ध में जहांगीर लिखता है कि 1605 ई. में इस पुस्तक को मेरे किताबखाने में लाया गया। वह आगे लिखता है कि हिन्दू धर्म की इस महत्वपूर्ण पुस्तक का फारसी अनुवाद मेरे पिता ने करवाया था। इस पुस्तक में कई आश्चर्यजनक और अविश्वनीय विचित्र कथाएं मौजूद हैं, विशेषकर तीसरे और पांचवें अध्याय में। फारसी में अनुवादित रामायण की इस पांडुलिपि पर शाहजहां (1658 ई.) तथा औरंगजेब (1661 ई.) की भी मुहर लगी हुई है। अकबर के दरबारी चित्रकारों बसावन, केशव लाल और मिशकिन द्वारा चित्रित कुल 176 लघुचित्र इस रामायण में मौजूद हैं।
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