मध्यकालीन इतिहास में मुगल बादशाह बाबर की बेटी गुलबदन बेगम अपनी सुन्दरता तथा साहित्यिक कौशल के लिए विख्यात रही। फारसी और तुर्की भाषा की जानकार गुलबदन बेगम को कविताएं लिखने तथा किताबें पढ़ने का शौक था। बाबर की तीसरी पत्नी दिलदार बेगम की बेटी गुलबदन बेगम का जन्म 1523 ई. में काबुल में हुआ था। गुलबदन बेगम का पालन-पोषण उनकी सौतेली मां माहम बेगम के हाथों हुआ। गुलबदन बेगम जब आठ साल की थी, तभी उनके पिता का देहान्त हो गया ऐसे में गुलबदन बेगम का बचपन उनके सौतेले भाई हुमायूं के साथ ही गुजरा।
17 वर्ष की उम्र में गुलबदन बेगम की शादी चगताई राजकुमार ख्वाजा खान से हुआ जोकि बाबर के चचेरे भाई ऐमन ख्वाजा सुल्तान का पुत्र था। ऐसे में गुलबदन बेगम का अधिकांश जीवन काबुल में ही बीता परन्तु साल 1557 ई. में गुलबदन बेगम के भतीजे मुगल बादशाह अकबर ने उन्हें शाही घराने में शामिल होने के लिए आगरा बुलवाया। गुलबदन बेगम जब काबुल से आगरा आईं तो अकबर उनकी अगुवानी करने के लिए स्वयं आया था और गुलबदन बेगम के महल तक पैदल चलकर गया था। गुलबदन बेगम मुगलिया राजघराने की एक सम्मानित महिला थीं। स्वयं अकबर और उसकी मां हमीदा बानो बेगम दोनों ही गुलबदन बेगम को बहुत प्यार करते थे।
गुलबदन बेगम कृत ‘हुमायूंनामा’
इतिहासकारों के मुताबिक, मुगल बादशाह अकबर के कहने पर ही गुलबदन बेगम ने हुमायूं की जीवनी ‘हुमायूंनामा’ की रचना की। गुलबदन बेगम कृत ‘हुमायूंनामा’ से बादशाह हुमायूं के शासनकाल की प्रमुख घटनाओं की रोचक और विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। ‘हुमायूंनामा’ मुगल इतिहास का एकमात्र ऐतिहासिक ग्रन्थ है जो शाही परिवार की किसी महिला के द्वारा लिखा गया है।
गुलबदन बेगम ने अपनी कृति हुमायूंनामा में बादशाह हुमायूं के जीवन के प्रत्येक पहलूओं को बड़े ही सरल शब्दों में लिखा है। गुलबदन बेगम ने अपनी कृति में 22 वर्षीय हुमायूं के बीमार होने के दौरान बाबर के परेशान होने तथा उसके स्वस्थ्य होते ही बाबर की मृत्यु का रोचक वर्णन किया है। गुलबदन बेगम ने अपने सगे भाई हिंदाल का भी उल्लेख किया है, जिससे वह बहुत प्रेम करती थी, हिन्दाल की मौत से गुलबदन बेगम बहुत व्यथित हुई थीं। इसके साथ ही गुलबदन बेगम ने हुमायूं और कामरान मिर्जा के बीच हुए संघर्ष, हामिदा तथा हुमायूं की प्रेम कहानी तथा मुगल हरम से जुड़ी कई रोचक बातों का खुलासा किया है।
हूमायूंनामा में गुलबदन बेगम ने तैमूरी परिवार की अनेक बेगमों और रिश्तेदारों को बांटे गए उपहारों और भेंटों का भी जिक्र किया है। गुलबदन बेगम ने शेरशाह सूरी द्वारा हुमायूं को हिन्दुस्तान से बाहर खदेड़ने के बाद हुमायूं के इधर-उधर भटकने तथा उसके भाइयों के बीच हुए संघर्षों का विस्तार से वर्णन किया है। गुलबदन बेगम ने बालक अकबर को बोलन दर्रे से काबुल भेजे जाने का भी जिक्र किया है तथा यह भी लिखा है कि किस प्रकार से कामरान ने अकबर की भलीभांति देखभाल की थी। गुलबदन बेगम ने हूंमायू द्वारा अमीरों के उकसावे पर कामरान को अन्धा किए जाने का भी उल्लेख किया है।
‘हुमायूंनामा’ में गुलबदन बेगम ने लिखा है कि हुमायूं ने 24 जनवरी 1556 ई. को गुलाब जल के साथ अफीम की खुराक ली थी। इसके बाद उसी दिन दोपहर में हज यात्रा से लौटे कुछ यात्रियों के संग मुलाकात के बाद उन्हें लाल पत्थर से बने अपने पुस्तकालय की उपरी मंजिल पर बुलाया था। ठंड ज्यादा थी और तेज हवा चल रही थी, हुमायूं ने जैसे ही सीढ़ियों से नीचे उतरना शुरू किया पैर उनके जामे के घेरे में फंस गया और वह सीढ़ियों से लुढ़कते हुए जमीन पर आ गए। हुमायूं बेहोश थे और गहरी चोट के कारण उनके दाहिने कान से ख़ून बह रहा था आखिरकार तीन बाद उनकी मृत्यु हो गई। वर्तमान में ‘हुमायूंनामा’ की एक अधूरी पांडुलिपि उपलब्ध है, जो ब्रिटिश म्यूजियम में संरक्षित है।
गुलबदन बेगम की हज यात्रा
गुलबदन बेगम ने सन 1576 ई. में हज यात्रा के लिए मक्का-मदीना जाने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने बादशाह अकबर से बाकायदा अनुमति मांगी। गुलबदन बेगम ने अकबर से कहा कि उन्होंने हज करने के लिए मन्नत मांग रखी है। ऐसे में अकबर ने गुलबदन बेगम को हज यात्रा पर जाने की इजाजत दे दी। इस प्रकार गुलबदन बेगम पूरे लाव-लश्कर और शाही महिलाओं के साथ हज यात्रा पर जाने वाली पहली महिला यात्री थीं।
अकबर ने किए थे पुख्ता इंतजाम
अपनी चर्चित किताब ‘वेगाबॉन्ड प्रिंसेज: द ग्रेट एटवेंचर्स ऑफ गुलबदन’ में रूबी लाल लिखती है कि गुलबदन बेगम की हज यात्रा के लिए अकबर ने ‘इलाही’ और ‘सलीमी’ नाम के दो आलीशान समुद्री जहाज तैयार करवाए। इतना ही नहीं, मुगलिया बादशाह अकबर की तरफ से गुलबदन बेगम को सोने-चांदी और हीरे जवाहरात से भरे बक्सों के साथ ही हजारों रुपए की नकदी तथा एक से बढ़कर एक बेहतरीन कपड़े भी दिए गए ताकि वे हज यात्रा के बाद मक्का-मदीना में दान-पुण्य कर सकें। कहते हैं, गुलबदन बेगम जब शाही लाव लश्कर के साथ फतेहपुरसीकरी महल से हज यात्रा के लिए निकलीं तब उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी।
बेशुमार दौलत और गुलबदन बेगम की ख्याति
गुलबदन बेगम का लाव लश्कर स्थल मार्ग से ईरान के रास्ते भी मक्का जा सकता था परन्तु यह रास्ता सुरक्षित नहीं था। हांलाकि उन दिनों मक्का-मदीना जाने वाला समुद्री रास्ता भी कम जोखिम भरा नहीं था, समुद्री लुटेरे मुस्लिम जहाजों को लूटने और जलाने के लिए विख्यात थे। हांलाकि गुलबदन बेगम तकरीबन एक साल तक सूरत बन्दरगाह पर ही फंसी रहीं, बावजूद इसके तमाम परेशानियों का सामना करते हुए वे मक्का पहुंच ही गईं। हज यात्रा के बाद गुलबदन बेगम चार साल तक मक्का में रहीं, इस दौरान अपने साथ ले गई बेशुमार दौलत को उन्होंने खैरात में बांटना शुरू किया, देखते ही देखते ही गुलबदन बेगम की ख्याति बहुत तेजी से फैलने लगी। कहते हैं सीरिया और एशिया माइनर से भी लोग उपहार का हिस्सा पाने के लिए मक्का की ओर उमड़ पड़े थे।
क्रोधित हो उठा था अरब का सुल्तान
उस वक्त अरब देश के सुल्तान मुराद अली ने गुलबदन बेगम की इस कार्रवाई को मुगल बादशाह अकबर की ताकत के रूप में देखा। इसलिए सुल्तान मुराद ने गुलबदन बेगम के नाम ताबड़तोड़ चार शाही फरमान भेजे और शीघ्र-अतिशीघ्र अरब छोड़ने का आदेश जारी किया। परन्तु गुलबदन बेगम ने उन सभी फरमानों को ठुकरा दिया। अंत में क्रोधित होकर मुराद ने अपने पांचवें फरमान में गुलबदन बेगम और उनकी सहयात्री महिलाओं के लिए तुर्की में एक अभद्र शब्द का इस्तेमाल किया। हांलाकि अकबर को जब इस बात की जानकारी मिली तो वह बहुत नाराज हुआ था। आखिरकार 1580 में गुलबदन बेगम मक्का से भारत के लिए रवाना हुईं। वापसी के दौरान अदन में उनका एक जहाज़ डूब गया इसलिए भारत आने में उन्हें देरी हुई। अन्तत: दो साल की लम्बी यात्रा के बाद गुलबदन बेगम 1582 ई. में फतेहपुरसीकरी पहुंच गईं।
गुलबदन बेगम की मृत्यु
साल 1603 में कुछ दिनों तक बीमार रहने के कारण गुलबदन बेगम की मौत हो गई। जब गुलबदन बेगम की मृत्यु हुई तब वह 80 साल की थीं। गुलबदन बेगम की मृत्यु के समय हमीदा बानो बेगम उनके पास ही मौजूद थीं। मुगल बादशाह अकबर ने गुलबदन बेगम के जनाजे को कन्धा दिया था और कुछ दूर तक जनाजे के साथ चला। अकबर ने गुलबदन बेगम की आत्मा की शांति के लिए गरीबों में खूब उपहार बांटे थे।
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