
मुहम्मद सलीम (जहांगीर) का जन्म फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से बादशाह अकबर की पत्नी मरियम उज्जमानी (भारमल की बेटी) के गर्भ से 30 अगस्त, 1569 ई. को हुआ। अकबर की मृत्यु के आठवें दिन गुरुवार यानि 3 नवंबर 1605 को उसका बेटा जहांगीर 36 साल की उम्र में मुगल गद्दी पर बैठा। जहांगीर को मुगल इतिहास का सबसे शक्तिशाली सम्राट माना जाता है क्योंकि उसके नाम अर्थ ही 'विश्व का विजेता' था। जहांगीर ने तकरीबन 22 वर्षों तक शासन किया।
जहांगीर के शासनकाल में हिन्दुस्तान ने कला, संस्कृति और वास्तुकला के क्षेत्र में अतुलनीय विकास किए। वह एक ऐसा बादशाह था जिसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ वित्तीय और वाणिज्य संबंध बनाए रखकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और व्यवसायों को तरजीह थी। उसने अपने दरबार में अनेक यूरोपीय यात्रियों को प्रश्रय प्रदान किया। अपने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन के लिए विख्यात जहांगीर के बारे में इन यूरोपीय यात्रियों ने कई रोचक बातों का खुलासा किया है। इस स्टोरी में हम आपसे तीन यूरोपीय यात्रियों विलियम हाकिन्स, सर थामस रो तथा एडवर्ड टैरी द्वारा लिखित जहांगीर के शाही जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलूओं का खुलासा करने जा रहे हैं, जो इन विदेशी यात्रियों की आंखों देखी है।
विलियम हाकिन्स
विलियम हाकिन्स ईस्ट इंडिया कम्पनी का कर्मचारी होने के साथ-साथ एक व्यापारी भी था। वह भारत में 1608 से 1613 ई. तक ठहरा। वह फारसी भाषा का जानकार था तथा पादशाह जहांगीर द्वारा दी गई शराब पार्टियों में आमंत्रित किया जाता था। शराब पीने का शौकीन जहांगीर अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ में स्वयं लिखता है कि “हमारा मदिरापान इतना बढ़ गया था कि प्रतिदिन बीस प्याला या इससे अधिक पीता था। हमारी ऐसी दशा हो गई थी कि यदि एक घड़ी भी नहीं पीता तो हाथ कांपने लगता तथा बैठने की शक्ति नहीं रह जाती थी।” जहांगीर अपनी शराब के लिए कश्मीर से बर्फ मंगाता था।
विलियम हाकिन्स के विवरण का महत्व इसलिए है कि उसने प्रत्यक्षदर्शी के रूप में सबकुछ लिखा है। जहांगीर के व्यक्तित्व तथा दिनचर्या से जुड़े विवरण अत्यंत विश्वसनीय हैं। पादशाह को जवाहररातों का शौक था। किस दिन कौन-कौन से और कितनी मात्रा में हीरे-जवाहररात पहनने हैं, इस हिसाब से वे विभाजित थे। यहां तक कि उसकी तसबीह (माला) भी अत्यंत कीमती मोती, माणिक्य, हीरे, पन्ने और मूंगे की बनी होती थी। दैनिक प्रार्थना के बाद जहांगीर बाहर आकर ‘झरोखा दर्शन’ देता था। तीन बजे के करीब वह दरबारे-आम लगाता था। वह सारे मामले की सुनवाई के लिए वहां दो घंटे ठहरता था, फिर वह ‘दरबारे खास’ में चला जाता था, जहां केवल वही लोग आ सकते थे जो पादशाह के खास होते थे।
हाकिन्स लिखता है कि जहांगीर के हरम का दैनिक खर्च तीस हजार रुपया था। वह राजकीय खजाने तथा शेरों को छोड़कर अन्य सभी का प्रतिदिन निरीक्षण करता था। जब कोई अमीर मर जाता था तो उसकी सारी सम्पत्ति पर पादशाह का अधिकार हो जाता था किन्तु वह उसके बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करता था।
सर थॉमस रो
सर थामस रो जहांगीर के दरबार में 1616 ई. में आया था। उसे पादशाह के साथ मांडू, अहमदाबाद व अजमेर जैसे अनेक स्थानों पर जाने का अवसर मिला। वह जहांगीर के साथ शिकार खेलने भी गया। वह आगरा में एक वर्ष तक रूका। सर थामस रो सन 1619 में इस आशय का फरमान लेकर इंग्लैण्ड लौटा कि मुगल दरबार में अंग्रेजों का इसी तरह स्वागत किया जाता रहेगा। सर थामस रो ने भी जहांगीर की अभिरूचियों का विस्तार से वर्णन किया है। वह लिखता है कि ‘पादशाह की ओर से शिकार का जानवर भेजा जाना उसके अनुग्रह का प्रतीक समझा जाता था।’ सर थामस रो पर भी पादशाह ने ऐसी अनुकम्पा एकाधिक बार की थी।
उसने जहांगीर के ‘झरोखा दर्शन’ का बड़ा ही दिलचस्प वर्णन किया है। वह लिखता है कि ‘झरोखा दर्शन’ के समय शाही स्त्रियां भी बादशाह के साथ जाती थीं। वे ‘जालीदार झरोखे’ के पीछे बैठती थीं। जहांगीर के जन्मोत्सव में शामिल होने का सौभाग्य थामस रो को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर हीरे-जवाहररात से जड़े झूल पड़े तथा गोटे किनारी के झंडे-झंडिया लहराते सजे-सजाए बारह हाथियों की सवारी पादशाह के सामने से गुजरी। हाथियों ने बड़ी खूबसूरती से झुककर बादशाह को सलामी दी।
तुला दान के रस्म पर पादशाह को सोने-चांदी, रेशमी तथा जरी के कपड़ों तथा मसालों आदि से तौला गया। जहांगीर के छोटे से चित्र में मढ़ी चार इंच की सोने की लड़ी महत्वपूर्ण अमीरों को दी जाती थी। अमीर वर्ग उस लड़ी को अपनी पगड़ी में लटका लेते थे। शराब पीकर शाही मंत्रणा कक्ष में प्रवेश करने वाले शख्स को कोड़ों की मार सहनी पड़ती थी। कोड़े के मूठ के दोनों किनारों पर चार-चार नुकीली गाठें होती थी, प्रत्येक मार से चार-चार घाव बन जाते थे।
एडवर्ड टैरी
पादरी एडवर्ड टैरी जो सर थामस रो के साथ साल 1617 में भारत आया था। एडवर्ड टैरी को मांडू में पादशाह जहांगीर को देखने का अवसर मिला था। टैरी लिखता है कि “जहांगीर में विनम्रता और क्रूरता का अद्भुत विरोधाभास था। कभी वह दयालु और न्यायप्रिय लगता था तो कभी उसमें भयानक क्रूरता भी देखने को मिलती थी। बतौर उदाहरण- एलिसन बैंक्स फ़िडली की किताब 'नूरजहाँ: एंपरेस ऑफ़ मुग़ल इंडिया' में इसका बड़ा ही रोचक वर्णन है-"जहाँगीर ने अपने एक नौकर का अंगूठा सिर्फ़ इसलिए कटवा दिया था, क्योंकि उसने नदी के किनारे लगे चंपा के कुछ पेड़ काट दिए थे। नूरजहाँ की एक कनीज़ को एक किन्नर को चुम्बन लेते पकड़े जाने पर उसे गड्ढ़े में आधा गड़वा दिया था। वहीं एक पितृहन्ता शख्स को उसने हाथी की पिछली टांग से बंधवाकर कई मीलों तक खिंचवाया था।"
टैरी लिखता है कि “शराब के नशे में वह गलती नहीं होने पर भी लोगों को सजा देता था। इन दो विपरीत गुणों के बावजूद वह गरीबों की हमेशा मदद करता था। वह अपनी मां का बहुत आदर करता था और उसके प्रति कर्तव्यनिष्ठ था। जब वह पालकी में बैठकर जाती थीं तो वह उन्हें अपना कंधा भी दिया करता था।”
आगे वह लिखता है कि “महंगे होने के बावजदू बादशाह के वस्त्र प्रतिदिन धुलते थे। मेरा विश्वास है कि इस दुनिया में शायद ही ऐसा कोई बादशाह हुआ हो जो ऐसे वस्त्र और हीरे-जवाहररात रोज ही बदलता हो।” पादशाह चाहे जहां कहीं भी हो, उसके लिए गंगा का पानी लाने के लिए अलग से कर्मचारी नियुक्त थे। गंगाजल सुन्दर तांबे के बर्तनों में लाया जाता था। तांबें के घड़ों के अन्दर कलई की हुई होती थी और पानी भरने के बाद जल वाहकों को देने से पूर्व उन्हें अच्छी तरह से टांका लगाकर बन्द कर दिया जाता था।
सर थामस रो ने जहांगीर को बैलगाड़ी चलाते हुए देखा था और उनके बगल में बेगम नूरजहाँ भी बैठी थी। इस बारे में वह लिखता है कि एक बार जहांगीर से मिलने के लिए उसे दिनभर इंतजार करना पड़ा था। दरअसल जहांगीर अपनी बेगम नूरजहां के साथ शिकार खेलने गए हुए थे। अंधेरा होने पर जहांगीर ने सभी मसालों को बुझाने का आदेश दिया क्योंकि उसने रास्ते में बैलगाड़ी देख लिया और उनका मन था कि वह बैलगाड़ी चलाएं।
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