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the power of Noorjahan gut in the Mughal court

‘नूरजहां गुट’ का मुगल दरबार में चलता था सिक्का

नूरजहां से जहांगीर का विवाह मुगल इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। पर्शिया के रहने वाले गियास बेग की पुत्री नूरजहां के बचपन का नाम मेहरून्निसा था। गियास बेग ने अपने पिता ख्वाजा मुहम्मद शरीफ की मृत्यु के बाद पर्शिया छोड़ दिया और अपने दो पुत्रों तथा एक पुत्री को लेकर अपना भाग्य आजमाने भारत की ओर चल दिया। मार्ग में कन्धार के निकट गियास बेग की पत्नी ने एक और लड़की को जन्म दिया, यही लड़की मेहरून्निसा थी।

गियास बेग को मुगल बादशाह अकबर की सेवा में स्थान मिल गया। मुगल दरबार में गियास बेग की योग्यता देखते हुए उसे काबुल के दीवान का पद मिला। हांलाकि बाद में उसे अकबर के व्यक्तिगत कारखाने में रख लिया गया। जहांगीर ने अपने शासनकाल के शुरूआती दिनों में गियास बेग को एतमातुद्दौला की उपाधि प्रदान की। साल 1594 में गियास बेग ने मेह​रून्निसा की शादी अलीकुल बेग से कर दी। 1599 ई. में मेवाड़ आक्रमण के दौरान एक शेर को मारने के कारण शाहजादा सलीम (जहांगीर) ने उसे शेर अफगन की उपाधि दी थी। हांलाकि सलीम के विद्रोह के दौरान शेर अफगन ने बादशाह अकबर का साथ दिया था।

शेर अफगन की हत्या और जहांगीर का मेहरून्निसा से विवाह-

बावजूद इसके जहांगीर ने मुगल बादशाह बनने के बाद शेर अफगन को बंगाल में बर्दवान की जागीर सौंपी। ऐसा माना जाता है कि बंगाल में अफगानों के विद्रोह को दबाने में शेर अफगन ने कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई थी।। जब साल 1606 ई. में राजा मानसिंह की जगह कुतुबुद्दीन को बंगाल का सूबेदार बनाया गया तब शेर अफगन पर राजद्रोह का अपराध लगाया गया। ऐसे में बंगाल के सूबेदार कुतुबुद्दीन ने शेर अफगन को मिलने के लिए बुलाया। जहां कुतुबुद्दीन ने शेर अफगन के साथ अपमानजनक व्यवहार किया जिससे क्रुद्ध होकर शेर अफगन ने कुतुबुद्दीन पर अपनी कटार से घातक प्रहार किया और उसे अंग रक्षक अम्ब खां को भी मार ​डाला। फिर क्या था, कुतुबुद्दीन के सैनिकों ने​ मिलकर शेर अफगन की हत्या कर दी तथा उसकी पत्नी मेहरून्निसा और उसकी पुत्री लाडली बेगम को कैद कर लिया।  

जहांगीर के आदेशानुसार मेहरून्निसा को मुगल दरबार में लाया गया और उसे अकबर की विधवा सलीमा बेगम की सेविका नियुक्त कर दिया गया। साल 1611 में नौरोज के त्यौहार पर जब जहांगीर की नजर मेहरून्निसा पर पड़ी तब वह उसे देखते ही मोहित हो गया। इसके बाद उसी वर्ष जहांगीर ने मेहरून्निसा से विवाह कर लिया और उसे नूरमहल  तथा नूरजहां की उपाधियां प्रदान की।

विवाह के बाद नूरजहां (मेहरून्निसा) ने बनाया गुट-

जहांगीर से विवाह के समय नूरजहां की आयु 34 वर्ष थी फिर भी वह बेहद खूबसूरत दिखती थी। तीव्र बुद्धि की धनी नूरजहां कविता, संगीत और चित्रकला में बेहद निपुण थी। नूरजहां फारसी भाषा में कविताएं भी लिखती थी। उसके पुस्तकालय में अनेक अमूल्य पुस्तकों का संग्रह था। नूरजहां के चरित्र की एक मुख्य विशेषता उसका अतिमहत्वाकांक्षी होना था। उसने मुगल शासन में हस्तक्षेप किया और 15 वर्षों तक पूर्ण रूप से अपने प्रभाव में रखा और शक्तिशाली बनी रही। नूरजहां ने मुगल सत्ता को अपने प्रभाव में रखने के लिए एक शक्तिशाली गुट बना लिया था जिसे ‘नूरजहां जुन्टा’ कहा गया। इस गुट में स्वयं नूरजहां, उसका पिता एतमातुद्दौला, उसकी मां अस्मत बेगम, उसका भाई आसफखां और शाहजादा खुर्रम (शाहजहां) था।

वर्षों तक नूरजहां के हाथों में रही मुगल सत्ता-

एक शक्तिशाली गुट बनाने के कारण नूरजहां का प्रभाव मुगल शासन में दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। पहली बार नूरजहां ने एक शाही फरमान जारी किया जिसमें किसी भी स्त्री को भूमि उस समय तक दान नहीं की जाती थी, जब तक नूरजहां की स्वीकृति न ली गई हो। उसने जहांगीर के साथ झरोखा दर्शन में भी भाग लेना शुरू कर दिया। बादशाह के फरमान पर नूरजहां के भी हस्ताक्षर ‘बादशाह बेगम’ के नाम से होने लगे। यहां तक कि वर्ष 1617 में जारी किए गए मुगल सिक्कों पर जहांगीर के साथ ही नूरजहां का भी नाम आने लगा। एक बार तो नूरजहां ने उस शाही बरामदे में आकर सबको चौंका दिया जो सिर्फ़ पुरुषों के लिए आरक्षित था। देखा जाए तो एक प्रकार से शासन-सत्ता नूरजहां के हाथों में चली गई। जहांगीर प्राय: यह कहा करता था कि उसने बादशाहत अपनी बेगम नूरजहां को दे दी है।

‘नूरजहां जुनता’ के प्रत्येक सदस्य की ऊँचे पदों पर नियुक्ति-

य​द्यपि ‘नूरजहां जुनता’ का प्रत्येक सदस्य योग्य और वफादार था, फिर भी इन सभी को नूरजहां ने राज्य में प्रतिष्ठित पदों पर नियुक्त किया था। नूरजहां के पिता एतमातुद्दौला को 7000 जात और 7000 सवार का मनसब प्राप्त था। वहीं उसके भाई आसफ खां ने साल 1622 ई. में 6000 सवार और 6000 जात का मनसब प्राप्त कर लिया था। जबकि शाहजादा खुर्रम को जहांगीर के दाहिनी तरफ बैठने का स्थान, शाहजहां की उपाधि तथा 30000 जात व 20000 सवार का पद दिया गया था। नूरजहां ने अपनी बेटी लाडली बेगम की शादी शाहजादा शहरयार से कर दी और उसे 8000 जात तथा 4000 सवार का पद दिलवाया था। इस प्रकार कुछ वर्षों के लिए मुगल शासन में ‘नूरजहां जुनता’ की प्रभुसत्ता कायम रही। 

शाहजादा खुर्रम (शाहजहां) और महावत खां का विद्रोह-

1621 ई. में नूरजहां की मां अस्मत बेगम की मृत्यु हो गई और 1622 ई. में उसके पिता एतमातुद्दौला का भी निधन हो गया। एतमातुद्दौला की मृत्यु के पश्चात उसके शासन सम्बन्धी सभी अधिकार नूरजहां को प्राप्त हो गए जिससे उसकी शक्ति और सम्मान में ज्यादा वृद्धि हो गईं। नूरजहां ने 1626 ई. में अपने पिता एतमादुद्दौला के मकबरे का निर्माण आगरा में यमुना के किनारे करवाया था। इस मकबरे में पित्राद्यूरा तकनीकी (पत्थर पर जवाहरात जड़ने का काम) का उपयोग किया गया था। मुगल सत्ता को अपने कब्जे में बनाए रखने के लिए नूरजहां ने अपने दामाद शहरयार को मुगल बादशाह बनाने का पुरजोर प्रयास किया। नूरजहां की इस सत्ता लोलुपता के कारण खुर्रम यानि शाहजहां ने विद्रोह कर दिया। शाहजहां का विद्रोह तीन वर्षों तक जारी रहा, जिसने साम्राज्य की शक्ति को कमजोर बनाया।

वहीं मुगल सत्ता से नूरजहां के प्रभाव को समाप्त करने के लिए सिंहासन के प्रति वफादार महावत खां ने भी विद्रोह कर दिया। परन्तु नूरजहां के भाई आसफ खां ने अपने दामाद शाहजहां को बादशाह बनाने के लिए महावत खां के विद्रोह को दबा दिया, इस बात को नूरजहां नहीं समझ पाई। इस प्रकार नूरजहां और शाहजहां का संघर्ष नूरजहां जुनता के पतन का कारण बना। निष्कर्षतया जहाँगीर की मृत्यु (1627 ई. में) के उपरांत उसकी राजनीतिक प्रभुता नष्ट हो गई।

मुगल काल की पहली ‘बादशाह बेगम’ नूरजहां की मृत्यु-

वर्ष 1645 ई. में जब नूरजहां का निधन हुआ तब उसकी उम्र 68 वर्ष थी। मुगल वास्तुकला में निर्मित नूरजहां का मकबरा पाकिस्तान के लाहौर में रावी नदी के पार शाहदरा बाग़ में स्थित है। यह मकबरा चार साल में 3 लाख रुपये की लागत से बनाया गया था। नूरजहां के अधिकांश मकबरे का निर्माण संभवत: उसके जीवनकाल में ही किया गया था। 

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