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The Battle of Plassey made Robert Clive the richest man in Europe

प्लासी युद्ध ने इस अंग्रेज अफसर को बना दिया यूरोप का सबसे अमीर आदमी

ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क पद से अपने जीवन की शुरूआत करने वाला रॉबर्ट क्लाइव अपनी योग्यता के दम पर न केवल अंग्रेजी प्रदेशों का मुख्य सेनापति बना बल्कि गवर्नर पद पर दो बार विराजमान रहा। यही वजह है कि रॉबर्ट क्लाइव को भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।

आधुनिक भारत के इतिहास में प्लासी युद्ध (23 जून, 1757 ई.) का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यही है कि रॉबर्ट क्लाइव की अगुवाई में मिली इस जीत के अगले दिन ही अंग्रेज बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के स्वामी बन गए। प्लासी युद्ध के कारण ही इंग्लैण्ड संसार की सबसे महान शक्ति बन गया। प्लासी की जीत से उत्साहित होकर विलियम पिट ने रॉबर्ट क्लाइव को 'स्वर्ग में पैदा होने वाले जनरल' तक की संज्ञा दे दी। जी हां, वही विलियम पिट जो कालान्तर में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने।

प्लासी की जीत के बाद रॉबर्ट क्लाइव को निजी तौर इतना ज्यादा इनाम मिला कि वह महज 33 की उम्र में अचानक से यूरोप का सबसे अमीर आदमी बन गया। यह सच है कि रॉबर्ट क्लाइव को इनाम में मिली यह अकूत धनराशि सिर्फ बंगाल के खजाने से मिली थी। ऐसे में यदि आप बंगाल के खजाने से क्लाइव को मिली उस अकूत सम्पति के बारे में जानना चाहते हैं तो इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

अंग्रेजों की प्लासी विजय (23 जून, 1757 ई.)

1756 ई. में अलीवर्दी खां की मृत्यु के बाद उसका नाती सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। पूर्णिया का नवाब शौकत जंग, सिराजुद्दौला की मौसी घसीटी बेगम तथा सेनापति मीरजाफर (सिराजुद्दौला का बहनोई), ये सभी ताकतवर शख्स नवाब सिराजुद्दौला के कटटर विरोधी थे। ऐसे में सिराजुद्दौला ने अक्टूबर 1756 ई. में मनिहारी के युद्ध में शौकत जंग को पराजित कर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद अपनी मौसी घसीटी बेगम को कैद कर लिया।

वहीं दूसरी तरफ फर्रूखशियर से मिले दस्तक पत्र का कम्पनी के कर्मचारी अपने निजी व्यापार के लिए न केवल दुरूपयोग कर रहे थे, बल्कि नवाब से इजाजत लिए बगैर फोर्ट विलियम की किलेबन्दी भी कर ली। अब अंग्रेज आक्रान्ता की भूमिका में थे। चूंकि नवाब सिराजुद्दौला के प्रमुख अधिकारी उससे असंतुष्ट थे, अत: इसका लाभ उठाकर रॉबर्ट क्लाइव ने एक षड्यंत्र रचा जिसमें नवाब का प्रधान सेनापति मीर जाफर, बंगाल का सबसे अमीर साहूकार जगत सेठ, राय दुर्लभ तथा अमीचन्द जैसे लोग बिचौलिए के रूप में सम्मिलित हुए। इस षड्यंत्र के तहत यह निश्चय हुआ कि मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया जाए, बदले में मीरजाफर ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रति कृतज्ञ रहेगा, साथ ही हानि की क्षतिपूर्ति भी करेगा।

कम्पनी ने मार्च 1757 में फ्रांसीसी बस्ती चन्द्रनगर को जीत लिया, इससे नवाब सिराजुद्दौला बेहद क्रुद्ध हुआ। इसके बाद रॉबर्ट क्लाइव ने अपनी सेना के साथ नवाब सिराजुद्दौला के विरूद्ध मुर्शिदाबाद के लिए प्रस्थान किया। 23 जून, 1757 को प्रतिद्वंदी सेनाएं मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील की दूरी पर स्थित प्लासी गांव में आम के एक बगीचे में टकराईं।

सेनापति क्लाइव के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना में 950 यूरोपीय पैदल सैनिक, 100 यूरोपीय तोपची, 50 नाविक तथा 2100 भारतीय सैनिक थे। जबकि नवाब सिराजुद्दौला की 50 हजार सैनिकों वाली सेना का नेतृत्व विश्वासघाती मीरजाफर कर रहा था। 23 जून को सुबह आठ बजे नवाब सिराजुद्दौला की तरफ से पहला गोला दागा गया। नवाब की अग्रगामी सैन्य टुकड़ी जिसके नेता मीर मदान तथा मोहन लाल थे, अंग्रेजों से बाजी ले गई। इन दोनों सेनानायकों ने क्लाइव को पेड़ों के पीछे शरण लेने पर बाध्य कर दिया।   ​

दोपहर के वक्त अचानक बारिश शुरू होने के कुछ मिनट के बाद अंदर से गीली होने के कारण सिराजुद्दौला की सभी तोपें शांत हो गईं। सिराजुद्दौला ने सोचा कि अंग्रेजों की तोपें भी बारिश की वजह से अक्षम हो चुकी होंगी किन्तु कम्पनी के सैनिकों ने तिरपाल से अपने बारूद और तोपों को बचाए रखा था। सिराजुद्दौला के कमांडर मीर मदान ने जैसे ही अपने सैनिकों को आगे बढ़ने का आदेश दिया, अंग्रेजों की तोपें आग उगलने लगीं।

कम्पनी की गोला-बारी से नवाब की सेना के तकरीबन 5000 सैनिक मारे गए, वहीं पेट में एक गोला लगने से मीर मदान भी मारा गया। इसके बाद नवाब की सेना में भगदड़ मच गई। ​सेनापति मीर जाफर एक तरफ खड़ा होकर यह सब देखता रहा। सिराजुद्दौला 2000 घुड़सवारों सहित मुर्शिदाबाद लौट गया। क्लाइव ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि हमने दुश्मन का छह मील तक पीछा किया। वो अपने पीछे 40 तोपें छोड़ गए थे।इस प्रकार प्लासी विजय के साथ ही भारत में अंग्रेज़ी शासन की नींव पड़ी।

रॉबर्ट क्लाइव बना यूरोप का सबसे अमीर इंसान

मीरजाफर ने क्लाइव को प्लासी विजय की बधाई दी और 25 जून को मुर्शिदाबाद लौट गया। मीर जाफर ने स्वयं को नवाब घोषित कर दिया। सिराजुद्दौला को बन्दी बनाकर उसकी हत्या कर दी गई। रॉबर्ट क्लाइव 29 जून को मुर्शिदाबाद पहुंचा। सर पैंड्रल मून के मुताबिक, “मीर जाफर ने  क्लाइव को मसनद पर बैठाया। वहीं क्लाइव ने भी कहा कि कम्पनी बंगाल के प्रशासन में दखलंदाजी नहीं करेगी और केवल व्यापार पर ध्यान केन्द्रित करेगी।

 क्लाइव को उम्मीद थी कि मुर्शिदाबाद के ख़ज़ाने में ज्यादा रकम होगी किन्तु सिर्फ़ डेढ़ करोड़ रुपए निकले। मीरजाफर ने कम्पनी को उसकी सेवाओं के लिए तकरीबन 900 वर्ग मील भूमि वाले '24 परगना' की जमींदारी से पुरस्कृत किया। चर्चित इतिहासकार विलियम डेलरिंपल के अनुसार, “मीरजाफर ने दो लाख 34 हज़ार पाउंड की धनराशि क्लाइव को निजी भेंट के रूप में दी।

इसके अतिरिक्त क्लाइव को निजी तौर पर एक जागीर भी प्रदान की गई जिसकी आमदनी 30,000 पाउंड सालाना थी। यह बड़ी धनराशि क्लाइव के मरने तक किराए के रूप में प्रतिवर्ष उसे मिलती रही। महज ईनाम में मिली धनराशि की बदौलत 33 वर्षीय रॉबर्ट क्लाइव एक झटके में यूरोप का सबसे अमीर आदमी बन गया।

क्लाइव का दुखद अंत

क्लाइव जब इंग्लैण्ड पहुंचा तब उसका हीरो की तरह स्वागत किया गया। साल 1761 में रॉबर्ट क्लाइव ने श्रूसबरी क्षेत्र से सांसद का चुनाव भी जीता। इसके ठीक दो साल बाद क्लाइव को 'नाइट' की पदवी से सम्मानित किया गया।

वहीं दूसरी तरफ क्लाइव की धन लोलुपता तथा कुटिलता के आलोचक भी थे। अंग्रेजी संसद में क्लाइव पर यह दोष लगाए कि उसने बंगाल में अवैध ढंग से उपहार प्राप्त किए, सोसाइटी फार ट्रेड बनाकर बंगाल को लूटने की योजना बनाई। दार्शनिक और राजनेता एडमंड बर्क ने ब्रिटिश संसद में क्लाइव की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि यह कम्पनी का निष्पक्ष व्यापार नहीं बल्कि बंगाल के साथ बलात्कार था, जो पूरी तरह से लालच से भरा हुआ था।

ऐसा कहते हैं कि अपनी आलोचनाओं से रॉबर्ट क्लाइव अवसाद ग्रसित हो गया और उसने 24 नवम्बर 1774 ई. को आत्महत्या कर ली। रॉबर्ट क्लाइव की मृत्यु के समय उसकी सम्पत्ति आज के हिसाब से तकरीबन £33 मिलियन थी यानि कि 3,87,42,09,900 रुपए।

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