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The astonishing story of a Pathan prisoner of Cellular Jail who murdered Viceroy Lord Mayo

वायसराय लॉर्ड मेयो की हत्या करने वाले सेल्युलर जेल के एक पठान कैदी की हैरतअंगेज कहानी

वायसराय लॉर्ड मेयो के कार्यकाल (1869-72) में भारतीय राजकुमारों की शिक्षा एवं उनके राजनीतिक प्रशिक्षण के लिए काठियावाड़ के राजकोट में तथा अजमेर शहर में मेयो कॉलेज की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त वित्तीय विकेन्द्रीकरण नीति की शुरूआत के साथ ही भारत में सांख्यिकी सर्वेक्षण का गठन किया गया। इतना ही नहीं, कृषि एवं वाणिज्य विभाग की भी स्थापना की गई। लार्ड मेयो को इन्ही प्रमुख उपलब्धियों के लिए याद किया जाता है। हांलाकि 8 फरवरी, 1872 को अण्डमान यात्रा के दौरान सेल्युलर जेल के एक पठान कैदी ने लॉर्ड मेयो ​की हत्या कर दी। इस स्टोरी में हम आपको यह बताने का प्रयास करेंगे कि वह पठान कैदी कौन था और उसने लॉर्ड मेयो की किस प्रकार से हत्या की। 

लॉर्ड मेयो की अण्डमान यात्रा

लॉर्ड मेयो को यदि ‘ट्रेवेलर वायसराय’ की संज्ञा दी जाए तो अनुचित नहीं होगा क्योंकि घूमने-फिरने के ​शौकीन मेयो ने महज तीन वर्ष के कार्यकाल में तकरीबन 20 हजार मील की दूरी तय की थी। ऐसा कहा जाता है कि वह घोड़े पर बैठकर एक दिन में 80 मील तक सफर तय कर लेते थे। अपनी नियुक्ति के दौरान लॉर्ड मेयो ने यातायात के तकरीबन सभी साधनों का इस्तेमाल किया था जैसे- बैलगाड़ी, घोड़ा, ऊंट, याक, हाथी, रेल तथा स्टीमर आदि।

बतौर उदाहरण जे. एच. रिवेट कार्नाक अपनी किताब 'मेनी मेमोरीज' में मध्य भारत  की एक यात्रा का उल्लेख करते हैं जिसमें लॉर्ड मेयो को यह पता चलता है कि गंतव्य स्थल तक पहुचने के लिए बैलगाड़ी ही एक मात्र साधन है। फिर क्या, लॉर्ड मेयो उस बैलगाड़ी में बिछी पुआल में सोकर सुबह मंजिल त​क पहुंचने के बाद बोले कि मुझे बहुत अच्छी नींद आई।’ अब आपको अंदाजा लग गया होगा कि भारत का यह वायसराय घूमने-फिरने का कितना शौकीन था।

लॉर्ड मेयो ने साल  1872 के फरवरी महीने में अण्डमान यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। वास्तव में लॉर्ड मेयो अण्डमान द्वीपों की यात्रा करने वाले पहले वायसराय थे, इससे पूर्व किसी भी अंग्रेज गर्वनर अथवा वायसराय ने इन द्वीपों की यात्रा नहीं की थी। आखिरकार 8 फरवरी की सुबह ठीक नौ बजे उनके जहाज ग्लास्गो ने पोर्टब्ल्येर पर लंगर डाला। पोर्टब्लेयर पहुंचते ही वायसराय लॉर्ड मेयो को इक्कीस तोपों की सलामी दी गई। 8 फरवरी को ही लॉर्ड मेयो ने रॉस आइलैंड के साथ ही चैथम  द्वीप का दौरा किया। उनका कार्यक्रम तय समयानुसार समाप्त हो चुका था, तभी उन्होंने कहा कि सूर्यास्त होने में अभी एक घंटे का समय है, ऐसे में क्यों न चलकर माउंट हैरिएट देखा जाए।

लॉर्ड मेयो की हत्या 

1857 की महाक्रान्ति के दौरान पकड़े गए क्रान्तिकारियों को अंग्रेजों ने या तो फांसी दे दी या फिर तोप के मुंह में बाधकर उड़ा दिया। कई आरोपियों को कैदकर कर अंग्रेजों ने इन्हें दूर भेजने का निर्णय लिया ताकि दोबारा विद्रोह न हो। इसके लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने अण्डमान को चुना। पोर्टब्ल्येर शहर से 2 किमी. की दूरी पर अंग्रेजों ने एक जेल बनाया, जिसे सेल्यूलर या काला पानी जेल कहा गया। दरअसल सेल्युलर जेल को काला पानी इसलिए कहा जाता था क्योंकि इस जेल के चारों तरफ समुद्र था। ऐसे में किसी भी कैदी के लिए यहां से भागना नामुमकिन था। इस प्रकार 1872 में जब लॉर्ड मेयो अंडमान पहुंचे तब वहां कैदियों की संख्या आठ हजार थी जिसमें 7,000 पुरुष कैदी, 900 महिला कैदी तथा 200 पुलिसकर्मी मौजूद थे। उन दिनों ​काला पानी जेल में ही पंजाब माउंटेड पुलिस का एक पूर्व सुरक्षाकर्मी शेर अली अफरीदी हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था।

अण्डमान यात्रा के सहयोगी रहे सर विलियम हंटर अपनी किताब 'लाइफ ऑफ अर्ल ऑफ मेयो' में लिखते हैं कि माउंट हैरियट तकरीबन 1,116 फीट की ऊंचाई पर था। हैरियट की चढ़ाई बिल्कुल सीधी और बेहद कठिन थी। कड़ी धूप होने के चलते टीम के अधिकतर सदस्य थककर चूर हो चुके थे। हांलाकि लॉर्ड मेयो अभी इतने तरोताजा थे कि उन्होंने साथ चल रही एक घोड़ी पर चढ़ने से मना कर दिया। माउंट हैरियट पहुंचकर लॉर्ड मेयो ने 10 मिनट तक सूर्यास्त का भरपूर नजारा लिया। जानकारी के लिए बता दें कि पोर्ट ब्लेयर से नाव द्वारा माउंट हैरियट की दूरी तकरीबन 15 किमी. है। यह आसपास के द्वीपों और समुद्र का एक शानदार नज़ारा पेश करता है।

चूंकि फरवरी का महीना था अत: मेयो की पूरी टीम जब तक वापस नीचे उतरती इससे पूर्व ही अंधेरा हो चुका था। होपटाउन जेटी पर मौजूद एक नाव लॉर्ड मेयो को वापस ले जाने के लिए प्रतिक्षारत थी। लॉर्ड मेयो के बायीं तरफ अण्डमान के चीफ क​मिश्नर डोनाल्ड स्टीवर्ट तथा दाहिनी तरफ मेयो के निजी सचिव मेजर ओवन बर्न साथ-साथ चल रहे थे। मेयो के नाव पर चढ़ने से पूर्व डोनाल्ड स्टीवर्ट सुरक्षाकर्मियों (12 लोगों का ग्रुप था) को निर्देश देने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तभी झाड़ियों में छुपे बेहद लम्बे पठान कैदी शेर अली अफरीदी ने मेयो की पीठ में छूरा घोंप दिया। 

इस घटना के बारे में विलियम हंटर लिखते हैं कि मशाल की रोशनी में एक शख्स ने मेयो के दोनों कन्धों के बीच दो बार उस्तरे से वार किया। इस दौरान लॉर्ड मेयो के सचिव मेजर बर्न ने देखा कि एक शख्स चीते की फुर्ती से मेयो की पीठ पर चढ़ गया था। हांलाकि उस पठान कैदी शेर अली अफरीदी को सुरक्षाकर्मियों ने वारदात स्थल पर ही तुरन्त पकड़ लिया। लेकिन घुटने भर पानी में गिरे लॉर्ड मेयो ने चिल्लाकर कहा कि मुझे नहीं लगता कि मुझे ज्यादा चोट लगी है। ऐसा बोलते ही मेयो दोबारा गिर गए। इसके बाद वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने देखा कि लॉर्ड मेयो की कोट खून से लाल हो चुकी थी। उन लोगों ने रुमाल से खून रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन हकीकत में अत्यधिक रक्तस्राव के चलते लॉर्ड मेयो चीर निद्रा में जा चुके थे जहां से कोई भी वापस लौटकर नहीं आता है।

इस घटना के चश्मदीद मेयो के सचिव मेजर बर्न इस बारे में लिखते हैं कि लॉर्ड मेयो ने धीमी आवाज में कहा, मुझे जहाज तक ले चलो। वहां मौजूद लोग नाविकों की मदद से उन्हें उठाकर नाव ले गए। इसके बाद मेयो ने अंतिम बार कहा, ‘मेरे सिर को ऊपर उठाओ’। शाम के सात बज चुके थे, लॉर्ड मेयो की नाव जब उनके जहाज तक पहुंची तब उस पर मौजूद लोग डिनर की तैयारी कर रहे थे। लॉर्ड मेयो को उठाकर उनके ​केबिन में पलंग पर लेटाया गया तो सभी ने देखा कि मेयो इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे।

लॉर्ड मेयो को डबलिन के एक चर्च में दफनाया गया

लॉर्ड मेयो के मृत शरीर को ग्लास्गो जहाज के जरिए पहले कलकत्ता ले जाया गया। इसके बाद 17 फरवरी 1872 को प्रिंसेप घाट से उनके शव को गवर्नमेंट हाउस लाया गया। लॉर्ड मेयो की शव यात्रा में कलकत्ता के सभी अंग्रेज मौजूद थे। गर्वनमेंट हाउस में लॉर्ड मेयो के शव को दो दिनों तक पूरे राजकीय सम्मान के साथ रखा गया। इसके बाद उन्हें सैनिक जहाज के जरिए बम्बई के रास्ते डबलिन ले जाया गया। 25 अप्रैल को डबलिन स्थित एक चर्च के अहाते में लॉर्ड मेयो को राजकीय सम्मान के साथ दफना दिया गया।

कौन था काला पानी का कैदी शेर अली अफरीदी?

शेर अली अफरीदी उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रान्त के तीरा घाटी स्थित जमरूद नामक गांव का निवासी था। ध्यान रहे उन दिनों यह इलाका ब्रिटिश भारत के अधीन था। पांच फीट दस इंच का लम्बाचौड़ा जवान शेर अली अफरीदी पंजाब माउंट पुलिस में अंग्रेज कमिश्नर के यहां नौकरी करता था। इससे पूर्व वह अंबाला में ब्रिटिश घुड़सवारी रेजिमेंट में भी काम कर चुका था। यहां तक कि 1857 के विद्रोह के दौरान रोहिलखंड तथा अवध में उसकी बहादुरी से प्रसन्न होकर अंग्रेज कमांडर जनरल टेलर ने उसे उपहार में एक घोड़ा और एक पिस्टल भी दी थी। खानदानी दुश्मनी के चलते शेर अली अफरीदी ने पेशावर में अपने चचेरे भाई हैदर की हत्या कर दी। हत्या के आरोप में शेर अली अफरीदी को आजीवन कारावास ​के तहत सजा काटने के लिए अंडमान में काला पानी जेल भेज दिया गया। 

जब साल 1869 में शेर अली अफरीदी को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। उस समय शेर अली ने यह निर्णय ले लिया था कि इसका बदला वह किसी बड़े अंग्रेज पदाधिकारी को मारकर लेंगे। अण्डमान में आजीवन कारावास की सजा काट रहे शेर अली अफरीदी उस मौके की तलाश में था, आखिरकार लॉर्ड मेयो की हत्या कर वह अपने मकसद में कामयाब हो गया। जब अंग्रेज अधिकारियों ने शेर अली अफरीदी से पूछा कि उसने लॉर्ड मेयो की हत्या क्यों और किसकी मदद से की? तब उसने कहा- खुदा ने हुक्म दिया था। आगे उसने यह भी कहा कि ‘इसमें मर्द शरीक कोई नहीं था, इसमें शरीक खुदा है।’

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हेलेन जेम्स के शोधपत्र 'द असैसिनेशन ऑफ लॉर्ड मेयो: द फर्स्ट जेहाद' के मुताबिक, शेर अली अफरीदी के जेल सहकर्मियों से पूछताछ पर पता चला कि उसने बहुत ही सावधानी से लॉर्ड मेयो के हत्या की तैयारी की थी। अंत में शेर अली अफरीदी को लॉर्ड मेयो की हत्या के जुर्म में 11 मार्च 1873 को वाइपर द्वीप जेल में फांसी दे दी गई।

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