भाटी वंश के शासक मंगलराव भाटी व गजनी के शासक ढुण्ढी के मध्य हुए युद्ध में मंगलराव पराजित हुआ। इसके बाद मंगलराव भाटी ने भटनेर से जैसलमेर क्षेत्र में ‘तनोट’ को अपनी नई राजधानी बनाई। मंगलराव भाटी के बाद उसका पौत्र केहर और फिर केहर का पुत्र तनु यहां का शासक बना।
बता दें कि राजा केहर ने अपने पुत्र तनु के नाम पर नगर बसाकर तनोटिया देवी की स्थापना की। तनोट माता का यह मंदिर जनता के बीच ‘सेना के जवानों की देवी’ (विशेषकर बीएसएफ), ‘थार की वैष्णो देवी’ तथा ‘रूमाल वाली देवी’ के नाम मशहूर है। अब आप का यह जानना लाजिमी है कि तनोट माता को ‘सेना के जवानों की देवी’ क्यों कहा जाता है? इस रोचक तथ्य की जानकारी के लिए यह शानदार स्टोरी जरूर पढ़ें।
तनोट माता का मंदिर
राजस्थान के जैसलमेर जिले से तकरीबन 120 किलोमीटर दूर थार में स्थित तनोट माता का मंदिर भारत-पाकिस्तान सीमा के करीब है। बता दें कि तनोट माता मंदिर से पाकिस्तान का बॉर्डर महज 20 किलोमीटर दूर है। तनोट माता का यह मंदिर सिद्धपीठ माना जाता है।
भाटी वंश के राजा केहर ने अपने पुत्र तनु के नाम पर तनोट नगर बसाकर तनोटिया देवी की स्थापना की थी। तनोट माता का यह मंदिर आमजनमानस में ‘सेना के जवानों की देवी’, ‘थार की वैष्णो देवी’ तथा ‘रूमाल वाली देवी’ आदि नाम से मशहूर है।
साल 1965 तथा 1971 ई. में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में तनोट माता ने भारतीय सैनिकों की खूब रक्षा की थी, इसीलिए तनोटिया माता को ‘सेना के जवानों की देवी’ कहा जाता है। श्रद्धालुजन मंदिर प्रांगण में रूमाल और लाल चुनरी बांधते हैं जिससे उनकी मन्नतें पूरी होती हैं, यही वजह है कि तनोट माता को ‘रूमाल वाली देवी’ भी कहा जाता है। मंदिर परिसर में 1965 ई. के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत का प्रतीक ‘विजय स्तम्भ’ बना हुआ है।
तनोट माता मंदिर के देखरेख की जिम्मेदारी भी बीएसएफ के हाथों में है। इस मंदिर के पुजारी भी बीएसएफ के जवान ही होते हैं। बीएसएफ के जवान प्रतिदिन पहले ध्वजवंदन करते हैं तत्पश्चात माता की आरती होती है। तनोट माता मंदिर में हर रोज तीन बार आरती होती है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर हमेशा एक सैनिक तैनात रहता है। तनोट माता मंदिर का द्वार सभी के लिए हमेशा खुला रहता है। तनोट माता मंदिर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए धर्मशाला तथा नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था बीएसएफ की तरफ से पूरे वर्ष उपलब्ध रहती है।
तनोट माता का यह सिद्धपीठ न केवल जनता के लिए आस्था का केन्द्र है अपितु भारतीय सेना विशेषकर बीएसएफ के जवानों के लिए शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है। चैत्र एवं शरदीय नवरात्र में तनोट माता मंदिर परिसर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। सेना के जवानों के अतिरिक्त हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां हर साल दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
तनोट माता मंदिर से जुड़ा एक अन्य इतिहास
तनोट माता मंदिर से जुड़ा एक अन्य इतिहास यह है कि मामड़िया चारण नाम का एक शख्स राजाओं के दरबार में उनका गुणगान किया करता था। मामड़िया चारण नि:सन्तान था अत: सन्तान की इच्छा से उसने हिंगलाज माता की सात बार पैदल यात्रा की और उतनी ही बार परिक्रमा भी की।
इसके बाद हिंगलाज माता ने प्रसन्न होकर मामड़िया चारण से सन्तान हेतु वर मांगने को कहा। तब मामड़िया चारण ने हिंगलाज माता से कहा कि वे उनके घर में जन्म लें। तत्पश्चात मामड़िया चारण को सात पुत्रियों के साथ एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उन सात पुत्रियों में से एक थी आवड मां, जो तनोट माता के नाम से विख्यात हुईं। यही वजह है कि तनोट माता को हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है।
तनोट माता मंदिर से जुड़े चमत्कार
साल 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सीमा के करीब होने के चलते पाकिस्तानी सेना ने तनोट माता मंदिर को कई बार निशाना बनाने की कोशिश की लेकिन देवी के आशीर्वाद से न ही इस सिद्ध पीठ को कोई क्षति पहुंची और न ही एक भी हिन्दुस्तानी सैनिक हताहत हुआ।
वहीं, साल 1971 के युद्ध में भी तनोट माता मंदिर तथा पूरा तनोट क्षेत्र भारतीय सेना के लिए एक अहम मोर्चा बना रहा। तनोट माता मंदिर के चमत्कार से भारतीय सैनिकों का मनोबल अपने चरमोत्कर्ष पर था जिसके चलते भारतीय सेना ने विजय प्राप्त की। तनोट माता मंदिर से जुड़े चमत्कार जानकर आप भी दंग रह जाएंगे।
साल 1965 के भारत- पाकिस्तान युद्ध के दौरान जैसलमेर के तनोट इलाके में पाकिस्तानी सेना ने तीन तरफ से जबरदस्त आक्रमण किया। इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने तकरीबन 3 हजार गोले केवल तनोट माता मंदिर क्षेत्र में दागे थे, इनमें से 450 पाकिस्तानी गोले मंदिर परिसर में गिरे।
हैरानी की बात यह है कि तनोट माता मंदिर परिसर में गिरे सभी पाकिस्तानी गोले फुस्स हो गए। तनोट माता मंदिर परिसर में बने एक छोटे से युद्ध स्मृति संग्रहालय में ये पाकिस्तानी गोले आज भी सुरक्षित रखे हुए हैं जो मंदिर परिसर में गिरे तो जरूर लेकिन फटे ही नहीं।
बता दें कि 1965 ई. के युद्ध में जैसलमेर में तैनात इंडियन आर्मी की एक कम्पनी तथा बीएसएफ की दो कम्पनियों ने पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया था। ऐसा कहते हैं कि रात के समय हुए युद्ध में तनोट माता की कृपा से पाकिस्तानी सेना को भारी क्षति पहुंची थी। तनोट माता मंदिर में हुए उपरोक्त चमत्कार को देखकर तत्कालीन पाकिस्तानी अफसर ब्रिगेडियर शहनवाज खान दंग रहा गया था और उसने भारत सरकार ने परमिशन लेकर देवी मां को चांदी का छत्र अर्पित किया था।
जानिए कैसे पहुंचे तनोट माता मंदिर
यदि आप तनोट माता का दर्शन करना चाहते हैं तो इसके लिए नवम्बर से जनवरी महीने का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। दरअसल इन महीनों में रेगिस्तान का तापमान आरामदायक रहता है। सर्दियों में आप रेगिस्तान के मनोरम दृश्यों का भी आनन्द ले सकते हैं।
सड़क मार्ग से तनोट माता पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको जैसलमेर जाना होगा। जैसलमेर से तनोट माता मंदिर के लिए वाहन उपलब्ध रहते हैं। वहीं यदि आप ट्रेन के जरिए जैसलमेर रलवे स्टेशन पहुंचते हैं तो वहां से तकरीबन 120 किमी. की दूरी पर स्थित तनोट माता मंदिर के लिए बस अथवा कैब सेवा आसानी से मिल जाएगी।
यदि हवाई यात्रा की बात करें तो सबसे पहले आपको जोधपुर एयरपोर्ट पहुंचना होगा। वहां से आप कैब के जरिए तनोट माता मंदिर पहुंच सकते हैं। बता दें कि जैसलमेर से तनोट माता मंदिर की दूरी तकरीबन 120 किमी. है।
इसे भी पढ़ें : अकबर के मुख्य सेनापति मानसिंह ने बनवाए थे पांच मंदिर, माने जाते हैं चमत्कारिक
इसे भी पढ़ें : मैहर देवी के परमभक्त आल्हा-ऊदल और पृथ्वीराज चौहान के बीच तुमुल का युद्ध