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Syed Salar Masood Ghazi was only and only an invader, read interesting history

सिर्फ और सिर्फ आक्रान्ता था सैय्यद सालार मसूद गाजी, पढ़ें रोचक इतिहास

सैय्यद सालार मसूद गाजी एक ऐसे मुस्लिम आक्रान्ता का नाम है, जिसे लेकर सियासी गलियारे के साथ- साथ सोशल मीडिया में भी विवाद बना हुआ है। एक वर्ग विशेष के लिए सैय्यद सालार मसूद गाजी एक योद्धा संत है, दरअसल उत्तरी भारत में सैन्य अभियान के दौरान सैय्यद सालार मसूद गाजी ने जहां-जहां अपना डेरा जमाया था वहां-वहां मुस्लिम वर्ग के लोग उर्स मेले का आयोजन करते हैं। इनमें मेरठ, पुरनपुर (अमरोहा), थमला और संभल के उर्स मेले प्रमुख हैं।

जबकि दूसरे पक्ष का कहना है कि सैय्यद सालार मसूद गाजी सिर्फ और सिर्फ एक आक्रान्ता था जिसने समस्त उत्तरी भारत में बड़े पैमाने पर हिंदुओं का कत्लेआम किया और मंदिरों को ध्वस्त किया। आपको जानकारी के लिए बता दें कि गाजी एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है- “एक ऐसा मुस्लिम योद्धा जो इस्लाम के प्रचार-प्रसार अथवा रक्षा के लिए काफिरों (गैर मुस्लिमों) से युद्ध करे।

भारत के इस्लामिक इतिहास में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं जिसमें मुस्लिम आक्रमणकारियों ने युद्ध जीतने के पश्चात अपने विधर्मी शत्रुओं के गर्दन काटकर गाजी की उपाधि धारण की। अब आप खुद ही सोच सकते हैं कि सैय्यद सालार मसूद गाजी सूफी संत था अथवा आक्रान्ता। इस रोचक स्टोरी में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि मुस्लिम आक्रान्ता सैय्यद सालार मसूद गाजी कौन था? इस मुस्लिम ​आक्रमणकारी की मौत कैसे हुई थी?

कौन था सैय्यद सालार मसूद गाजी

सैय्यद सालार मसूद गाजी उर्फ गाजी मियां के जन्म को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। इतिहासकारों के मुताबिक शक्तिशाली आक्रमणकारी महमूद गजनवी का बहनोई अबू सैयद सालार साहू गाजी उर्फ बूढ़े बाबा अपने बीवी-बच्चों के साथ तकरीबन 1400 साल पहले अजमेर आ गया था। इसके बाद अबू सैय्यद सालार साहू की बीवी ने 10 फरवरी 1014 ई. को अजमेर में ही एक बच्चे को जन्म दिया और दोबारा अफगानिस्तान चली गई। यही बच्चा आगे चलकर सैय्यद सालार मसूद गाजी कहलाया। ऐसे में यह स्पष्ट है कि आक्रमणकारी महमूद गजनवी का भांजा था सैय्यद सालार मसूद गाजी।

वहीं कुछ ​अन्य विद्वानों के अनुसार, महमूद गजनवी के सेनापति अबू सैय्यद सालार गाजी ने अजमेर और आसपास के हिंदू शासकों को युद्ध में पराजित किया जिससे प्रसन्न होकर महमूद गजनवी ने अपनी बहन की शादी उससे कर दी। इसके बाद अजमेर में अबू सैय्यद सालार साहू गाजी की पत्नी से सैय्यद सालार मसूद गाजी का जन्म हुआ।

1620 के दशक में अर्ब्दुर रहमान चिश्ती द्वारा फारसी भाषा में लिखी गई एक कृति मिरात-ए-मसूदी के मुताबिक, महमूद गजनवी का भतीजा था सैय्यद सालार मसूद गाजी।  मिरात-ए-मसूदी के मुताबिक मुल्तान, दिल्ली, मेरठ और कन्नौज के क्षेत्रों में सैन्य अभियान के दौरान सैय्यद सालार मसूद गाजी अपने चाचा महमूद गजवनी के साथ था। हांलाकि इस पुस्तक के अन्य दावे संदिग्ध हैं। वहीं कुछ इतिहासकारों के अनुसार, सैय्यद सालार मसूद गाजी का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था और वह आक्रमणकारी महमूद गजनवी के साथ भारत आया था।

इन तथ्यों से परे इतिहासकार मोहम्मद नाजिम ने अपनी किताब द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ सुल्तान महमूद ऑफ गाजनामें लिखते हैं कि साल 1026 में महमूद गजनवी के नेतृत्व में सैय्यद सालार मसूद गाजी ने सोमनाथ मंदिर पर बड़ा हमला किया था। इस दौरान उसने मार्ग पड़ने वाले मंदिरों, राजाओं तथा हिन्दू जनता का नरसंहार किया था। ऐसे में एक बात ​साबित हो जाती है कि खूंखार आक्रमणकारी लुटेरे महमूद गजनवी का सिपहसालार सैय्यद सालार मसूद गाजी विभिन्न सैन्य अभियानों तथा मंदिरों के लूटपाट और विध्वंस में उसका सहयोगी बनकर रहा।

सैय्यद सालार मूसद गाजी के सैन्य अभियान

महमूद गजनवी के वापस लौट जाने के पश्चात सैय्यद सालार मसूद गाजी ने अपना सैन्य अभियान जारी रखा। महमूद गजवनी के प्रभाव का विस्तार करने के लिए सैय्यद सालार मसूद गाजी ने उत्तर प्रदेश के मुल्तान, दिल्ली, मेरठ और कन्नौज जैसे क्षेत्रों में सैन्य हमले किए परन्तु उसे स्थानीय हिन्दू शासकों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

प्रसिद्ध इतिहासकार हबीब के अनुसार, “सैय्यद सालार मसूद गाजी के सैन्य अभियानों के दौरान विभिन्न राजपूत तथा स्थानीय शासकों ने युद्ध के जरिए महमूद गजनवी के विस्तार का विरोध किया था।

राजा सुहेलदेव से सैय्यद सालार मसूद गाजी का निर्णायक युद्ध

साल 1033 में सैय्यद सालार मसूद गाजी अपनी सेना के साथ आगे बढ़ा परन्तु उसके सैन्य अभियान को राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में 21 हिन्दू शासकों के एक संघ का विरोध करना पड़ा। इनमें बहराइच, श्रावस्ती के साथ ही लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ और बाराबंकी के राजा भी शामिल थे। कई छोटी-मोटी झड़पों के पश्चात साल 1034 ई. में बइराइच में एक निर्णायक युद्ध हुआ जिसमें सैय्यद सालार मसूद गाजी की छोटी सेना एकजुट हिन्दू शासकों की बड़ी सेना के समक्ष पराजित हुई। इस युद्ध में सैय्यद सालार मसूद गाजी मारा गया। 

वहीं इतिहासकार मौलाना मोहम्मद अली मसऊदी अपनी किताब अनवार-ए-मसऊदीमें लिखते हैं कि सोमनाथ मंदिर को लूटने के पश्चात अन्य राजाओं को पराजित करते हुए सैय्यद सालार मसूदी गाजी आगे बढ़ा तथा साल 1034 में बाराबंकी के सतरिख पहुंचा। इसके बाद उसने श्रावास्ती की तरफ रूख किया जहां राजा सुहलदेव के साथ चित्तौरा झील के किनारे उसका निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में राजा सुहलदेव राजभर ने सैय्यद सालार मसूद गाजी को युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी।

दक्षिणपंथ से प्रभावित एकमात्र शोध प्रपत्र द फॉरगेटेन बैटल और बइराईच में यह लिखा गया है कि राजा सुहलदेव ने या तो मसूद का सिर काट दिया था या फिर उसके गले में तीर मारा था। सैय्यद मसूद गाजी की मौत सूर्यकुंड झील के पास महुए के वृक्ष के नीचे हुई थी।

सैय्यद सालार मसूद गाजी की मौत के बारे में अकबर का दरबारी इतिहासकार अबुल फजल अपनी कृति आईन-- अकबरी में लिखता है कि महमूद गजनवी का भांजा था सैय्यद सालार मसूद गाजी। उसने युद्ध में बहादुरी से अपनी जान दे दी और सर्वदा के लिए अमर हो गया।

सैय्यद सालार मसूद गाजी की कब्र

राजा सुहलदेव के साथ हुए युद्ध में मारे गए सैय्यद सालार मसूद गाजी को बहराईच में दफनाया गया। कालान्तर में दिल्ली के सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद ने 1250 ई. में उसकी कब्र पर मकबरा बनवा​ दिया। प्रख्यात कवि अमीर खुसरो द्वारा साल 1290 में लिखे गए एक पत्र के मुताबिक, “बहराईच में शहीद सैन्य कमांडर मसूद गाजी की कब्र ने पूरे हिन्दूस्तान में एक बेहतरीन खुशबू फैला दी है। मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दिल्ली के काजी रहे अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता ने अपने यात्रा वृत्तांत में सैय्यद सालार मसूद गाजी की झंडे और उसके भाले की पूजा आदि का उल्लेख किया है।

दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने साल 1372 में बइराईच दरगा​ह का दौरा किया। इतिहासकार शम्स-ए-सिराज अफीफ के अनुसार, सुल्तान फिरोज शाह तुगलक को एक स्वप्न दिखाई जिसमें सैय्यद सालार मसूद गाजी ने उसे गैर मुसलमानों के खिलाफ सख्त नीति अपनाकर इस्लाम का प्रचार करने को कहा।

हांलाकि यह बात जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने सैय्यद सालार मसूद गाजी के मकबरे पर आयोजित किए जाने वाले उर्स (पुण्यतिथि) पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि यह धार्मिक अनुष्ठान अनुचित था। विदेशी इतिहासकार इलियट और डाउसन लिखते हैं कि कालान्तर में सैय्यद सालार मसूद गाजी का यह मकबरा एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृति केन्द्र बन गया। मुस्लिम इस मकबरे पर सैय्यद सालार मसूद गाजी का वार्षिक उर्स (पुण्यतिथि) मनाते हैं जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। वह आगे लिखते हैं कि यह मकबरा मुस्लिम और हिंदू दोनों भक्तों को आकर्षित करता है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि सैय्यद सालार मसूद गाजी के इतिहास से जुड़ी अनभिज्ञता के कारण अथवा उसके विषय में फैलाई गई झूठी बातों के कारण कुछ हिन्दूओं ने उसके मकबरे की तरफ रूख किया होगा, जो एक परम्परा में तब्दील हो गया।

सैय्यद सालार मसूद गाजी से जुड़ी झूठी बातें

सैय्यद सालार मसूद गाजी ने रुदौली की एक कुलीन परिवार की महिला ज़ुहरा बीबी के अन्धेपन को ठीक किया था। अत: जुहरा बीबी ने उससे शादी करने का निर्णय लिया लेकिन इस शादी से पूर्व ही सैय्यद सालार मसूद गाजी की हत्या कर दी गई। इससे इतर प्रामाणिक तथ्य यह है कि सैय्यद सालार मसूद गाजी बइराईच के युद्ध में मारा गया था।

सैय्यद सालार मसूद गाजी अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का शिष्य था। ध्यान देने योग्य बात है कि इन दोनों के कालखण्ड में तकरीबन एक शताब्दी का अंतर है। 

दिल्ली के अंतिम हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान का सैय्यद सालार मसूद गाजी के साथ युद्ध हुआ था। पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई थी जबकि दूसरे युद्ध में मसूद गाजी जीता था। जबकि सच्चाई यह है कि पृथ्वीराज का जन्म 1166 ई. में हुआ था और 1192 ई. में मोहम्मद गोरी के साथ हुए तराईन के द्वितीय युद्ध के बाद उसकी मृत्यु हई थी। वहीं सैय्यद सालार मसूद गाजी ने साल 1026 में जब सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था तब ​उसकी उम्र महज 16 साल थी। ऐसे में पृथ्वीराज चौहान और सैय्यद सालार मसूद गाजी के बीच 166 साल का अंतर है।

इतिहासकार एना सुवोरोवा ने मुस्लिम आक्रमणकारी गाजी मियां उर्फ सैय्यद सालार मसूद गाजी की तुलना भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण तक से कर दी है। जबकि सच यह है कि सैय्यद सालार गाजी ने कई हिन्दू मंदिरों को लूटने के पश्चात उनका विध्वंस किया था। ऐसे में उसकी तुलना भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण से करना बिल्कुल अनुचित और अशोभनीय है।

सालार मसूद गाजी को योद्धा संत के रूप में स्थापित करने की कोशिश

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुस्लिम शासकों ने गाजी मियां उर्फ सैय्यद सालार मसूद गाजी को योद्धा संत के रूप में स्थापित करने की भरपूर कोशिश की। मुगल इतिहासकार अबुल फजल अपनी कृति आइन--अकबरी में लिखता है कि मुगल बादशाह अकबर साल 1561 में मसूद गाजी के उर्स समारोह में भाग लेने के लिए एक साधारण व्यापारी के वेश में ती​र्थयात्रियों के बीच चलकर गया था। इतना ही नहीं, अकबर ने 1571 ई. में बहराइच दरगाह के लिए अनुदान भी दिया।

जबकि अवध के नवाब शुजाउददौला ने साल 1765 में अकबर के अनुदान को नवीनीकृत किया।  इसके अतिरिक्त नवाब आसफ-उद-दौला ने बहराइच दरगाह का कई बार दौरा किया। कालान्तर में बहराइच दरगाह की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि अवध के अन्य शहरों जैसे-सलारगढ़, फैजाबाद, सतरिख और रुदौली में उनके मजार बनाए गए।

बता दें कि सैय्यद सालार मसूद गाजी के अनुयायी उसे एक ऐसे संत के रूप में पूजते थे जिसने चमत्कारिक रूप से कुष्ठ रोग को ठीक किया था। फैजाबाद में कुछ लोगों ने मसूद की पूरी सेना को भूत के रूप में देखने का दावा किया। हैरानी बात यह है कि पंजाबी सूफी कवि वारिस शाह ने सैय्यद सालार मसूद गाजी को पाँच सबसे सम्मानित सूफी संतों में से एक बताया। कुल मिलाकर, एक आक्रांता को संत के रूप में प्रचारित-प्रसारित करने की योजना अभीतक पूरी तरह से सफल रही है।

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