मथुरा नरेश कंस के वध के पश्चात उसके शक्तिशाली ससुर जरासंध के द्वारा बार-बार मथुरा पर आक्रमण करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों की सुरक्षा के लिए द्वारका जाने का निर्णय लिया। अरब सागर और गोमती नदी के संगम पर बसी द्वारका को अपनी राजधानी बनाकर श्रीकृष्ण ने पूरे देश का नेतृत्व किया। श्रीकृष्ण के समय अतिसमृद्धशाली द्वारका राजनीति का केन्द्रबिन्दु थी जहां देश के बड़े-बड़े राजा-महाराजा द्वारकाधीश से सलाह लेने के लिए आया करते थे।
महाभारत युद्ध के दौरान यदुवंशियों से सहायता प्राप्त करने के लिए दुर्योधन और अर्जुन द्वारका आए थे। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने नि:शस्त्र होकर पांडवों का साथ देने का वायदा किया और दुर्योधन को अपनी 18 अक्षौणी नारायणी सेना दे दी। बावजूद इसके इस धर्मयुद्ध में श्रीकृष्ण ने पांडवों को विजयश्री दिलवाई।
कालान्तर में बलराम और श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात द्वारका नगरी समुद्र में समा गई। अरब सागर की अतल गहराईयों में इस समृद्धिशाली नगरी के अवशेष आज भी विद्यमान हैं। अब आप सोच रहें होंगे कि ऐसा क्या हुआ था जिसके कारण द्वारका नगरी समुद्र में विलीन हो गई। इस रहस्य को जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
वर्तमान द्वारका नगरी
गुजरात राज्य में सौराष्ट्र प्रायद्वीप के पश्चिमी छोर पर स्थित वर्तमान द्वारका नगरी अरब सागर और गोमती नदी के संगम पर बसी है। हिन्दुओं के सात सबसे पवित्र तीर्थस्थल जिन्हें मोक्षपुरी भी कहा जाता है, इनमें से एक द्वारकापुरी भी है। इन सप्तपुरियों के नाम इस प्रकार हैं- अयोध्या, मथुरा, काशी, कांची, अवंतिका, पुरी और द्वारावती(द्वारका)। इतना ही नहीं, हिन्दुओं के चार धामों में भी द्वारका की गिनती की जाती है।
वर्तमान में द्वारका नगर दो भागों में बंटा हुआ है-गोमती द्वारका और बेट द्वारका। गोमती द्वारका में स्थित मशहूर द्वारकाधीश मंदिर द्वारका नगरी की असली पहचान है। पन्द्रह सौ साल पुराना द्वारकाधीश मंदिर सात मंजिला है, जो अरब सागर और गोमती के संगम पर स्थित है। इस मंदिर के आस-पास जल ही जल है, यहां कई घाट बने हुए हैं जिनमें संगम घाट प्रमुख है। द्वारकाधीश मंदिर के दक्षिण दिशा में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित शारदा मठ भी है। द्वारका शहर के चारों तरफ एक चहारदीवारी है जिसमें कई बड़े मन्दिर मौजूद हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका
मथुरा नरेश उग्रसेन के शक्तिशाली पुत्र कंस का वध करने के पश्चात श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ने का निर्णय लिया क्योंकि मगध नरेश जरासंध ने अपने दामाद कंस की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए मथुरा पर 18 बार आक्रमण किया। जरासंध के अत्याचारों से अपनी प्रजा की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ दिया इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम रणछोड़ भी है।
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी राजधानी के निर्माण के लिए समुद्र से जगह मांगी। इसके बाद समुद्र देवता ने अपनी कुछ भूमि छोड़ दी परन्तु यह कहा कि आपके महाप्रयाण के पश्चात अपनी भूमि वापस ले लूंगा। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने देवशिल्पी विश्वकर्मा का आह्वान कर उन्हें एक भव्य नगर बनाने का आदेश दिया। इसके बाद देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में द्वारका का निर्माण कर दिया।
हिन्दु पुराणों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका निर्माण कुशस्थली नामक स्थान के निकट किया था। विशाल दीवारों से घिरी द्वारका नगरी में भगवान श्रीकृष्ण तकरीबन सौ साल तक रहे। 84 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में फैली द्वारका नगरी के दरवाजे सोने के बने थे। तकरीबन 900 महलों में हजारों लोग रहते थे और यह शहर पूरी तरह से किलेबंद था। केवल जहाज द्वारा ही द्वारका तक पहुंचा जा सकता था। महाभारत युद्ध के 36 वर्षों बाद यदुवंशियों के विनाश से व्यथित बलराम ने जल समाधि ले ली और श्रीकृष्ण की भी मृत्यु हो गई। तत्पश्चात समुद्र देवता ने अपनी भूमि वापस ले ली जिससे द्वारका नगरी समुद्र की अतल गहराईयों में डूब गई।
द्वारका नगरी डूबने के पौराणिक कारण
1-भगवान श्रीकृष्ण को गांधारी का श्राप
यह तथ्य सर्वविदित है कि भगवान श्रीकृष्ण के कारण ही महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय हुई थी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस महायुद्ध में कौरवों का समूल नाश हो गया था। यह घटना उन दिनों की है जब महाभारत युद्ध के अन्त में दुर्योधन की मृत्यु के पश्चात श्रीकृष्ण पांडवों सहित गांधारी और धृतराष्ट्र के पास दुर्योधन की मृत्यु पर शोक जाहिर करने तथा क्षमा मांगने पहुंचे।
तब गांधारी ने श्रीकृष्ण से कहा कि यदि आप चाहते तो युद्ध टाल सकते थे, आपके ही कारण मेरे सौ पुत्रों की मृत्यु हो गई। गांधारी ने श्रीकृष्ण को महाभारत युद्ध व अपने सौ पुत्रों की हत्या का दोषी ठहराते हुए उन्हें श्राप दिया कि जिस तरह मेरे कुल का नाश हुआ है, उसी तरह तुम्हारे कुल का नाश भी तुम्हारी आंखों के समक्ष होगा।
भगवान शिव की अनन्य भक्त गांधारी का श्राप फलीभूत हुआ और महाभारत युद्ध के 36 वर्षों बाद यदुवंशियों का विनाश हो गया। बलराम ने जल समाधि ले ली और श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद द्वारका भी समुद्र में डूब गई।
2— महर्षि दुर्वासा का साम्ब को श्राप
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, महाभारत युद्ध समाप्त हुए 36 वर्ष बीत चुके थे। तब महर्षि दुर्वासा अन्य ऋषिगणों के साथ द्वारका पधारे। शक्ति के मद में चूर यदुवंशी राजकुमारों को मजाक सूझी और वे श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को स्त्री बनाकर महर्षि दुर्वासा के पास ले गए। यदुवंशी राजकुमारों ने महर्षि दुर्वासा से पूछा कि यदि आप सर्वज्ञानी हैं तो फिर बताइए कि इस स्त्री के गर्भ से बेटा पैदा होगा या बेटी। महर्षि दुर्वासा ने अपने तपोबल से साम्ब को पहचान लिया और क्रोधित हो गए। महर्षि दुर्वासा ने श्राप दिया कि इसके गर्भ से एक मूसल पैदा होगा जो यदुवंशियों के विनाश का कारण बनेगा।
फिर क्या था, महर्षि के श्राप के भय से उन सभी यदुवंशी राजकुमारों ने साम्ब के वस्त्र के नीचे जो मूसल छुपाया था उसका चूर्ण बनाकर उसे समुद्र में बहा दिया। समुद्र की लहरों में बहकर प्रभास क्षेत्र में पहुंचे लोहे के चूर्ण घास का रूप ले चुके थे। हांलाकि यदुवंशियों को इतना घमण्ड हो चुका था कि अब उनके समान शक्तिशाली इस धरती पर कोई नहीं है। ऐसे में वे सभी मद्यपान तथा आपसी कलह में ही उलझ चुके थे।
एक बार द्वारका के सभी यदुवंशी उत्सव मनाने के लिए प्रभास क्षेत्र में एकत्र हुए। मदिरापान के वशीभूत होकर सात्यकि ने कृतवर्मा का मजाक उड़ाया। कृतवर्मा ने भी सात्यिकी का प्रतिकार किया। ऐसे में सात्यिकी और कृतवर्मा की तरफ से यदुवंशी दो खेमों में बंट गए। इस भयंकर युद्ध में जब सभी अस्त्र-शस्त्र समाप्त हो गए तब प्रभास क्षेत्र की वहीं नुकीली घास उखाड़कर यदुवंशी आपस में लड़ने लगे जिससे सभी का विनाश हो गया।
आखिर में श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब का वध करने वाले बलराम ने व्यथित होकर जल समाधि ले ली। इस घटना से दुखी होकर श्रीकृष्ण प्रभास क्षेत्र के वन में आराम कर रहे थे तभी जरा नाम के एक बहेलिए ने उनके कोमल पैरों को हिरण समझकर बाण चला दिया जो उनकी मृत्यु का कारण बना। कृष्ण की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन द्वारका आए और यदुवंशियों की रोती-बिलखती महिलाओं, बच्चों तथा कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ को हस्तिनापुर ले आए। इस प्रकार श्रीकृष्ण के परमधाम पहुंचते ही यदुवंशियों से विहीन द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई।
द्वारका नगरी डूबने के वैज्ञानिक साक्ष्य
द्वारका नगरी का पहला उल्लेख छठी शताब्दी में भावनगर के पालिताना ताम्र पत्र में पाया गया। इस ताम्र पत्र में यह कहा गया है कि श्रीकृष्ण यहां रहते थे। इसके बाद से द्वारका नगरी पर लोगों का विश्वास बढ़ा। समुद्र की गहराईयों में छुपी द्वारका नगरी के अवशेषों ने सर्वप्रथम भारतीय वायुसेना के पायलटों का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद 1970 के जामनगर के गजेटियर में द्वारका नगरी के उल्लेख के बाद भारतीय नौसेना ने रही सही कसर उजागर कर दी। इस गजेटियर से पहले यह कहा गया था कि द्वारका नगरी एक काल्पनिक नगरी है, जिसका कोई इतिहास नहीं है।
चर्चित पुरातत्विद प्रोफेसर एस. आर. राव की टीम ने समुद्र के नीचे से आधा किलोमीटर लम्बी दीवार खोज निकाली जिसकी बनावट पौराणिक द्वारका नगरी के बनावट से मिलती जुलती है। द्वारका में कुल 50 खम्भे थे, पुरातत्व विभाग ने अपनी खोज में 30 खम्भे ढूंढ निकाले। ऐसे में यह साबित हो गया कि द्वारका कोई काल्पनिक नहीं अपितु वास्तविक शहर था जो समुद्र में समा गया। आइए जानते हैं, आखिर समुद्र में कैसे डूब गई द्वारका नगरी?
1-काउंसिल ऑफ़ साइंटिफ़िक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के पूर्व प्रमुख और वैज्ञानिक डॉक्टर राजीव निगम के मुताबिक, “महाभारत में लिखा है कि द्वारका नगरी को सागर से निकली जमीन पर बनाया गया था लेकिन जब समुद्र का पानी दोबारा अपनी जगह पर आया तो पूरी द्वारका डूब गई।”
द्वारकाधीश मंदिर के पास हुई खुदाई के दौरान मंदिरों की एक पूरी श्रृखंला मिली। मतलब साफ है कि जैसे-जैसे समुद्र का पानी चढ़ता गया, मंदिरों की जगह आगे सरकती गई।
2- साल 1963 में सबसे पहले डेक्कन कॉलेज पुणे, डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी और गुजरात सरकार ने मिलकर ऐस्कवेशन किया। इस दौरान तकरीबन 3 हजार साल पुराने बर्तन मिले थे। इतना ही नहीं, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया कि अंडर वॉटर आर्कियोलॉजी विंग को समुद्र के अन्दर से प्राचीन द्वारका शहर की कई कलाकृतियां, पत्थर के ब्लॉक, स्तंभ और सिंचाई के उपकरण, कुछ ताम्बे के सिक्के और ग्रेनाइट स्ट्रक्चर भी मिले।
3- साल 1989 ई. में समुद्र के नीचे से कुछ बड़े आयताकार और अर्द्धचन्द्रकार पत्थर भी मिले जो मानवों द्वारा तराशे गए थे। दीवारों के अवशेष भी मिले तथा कुछ चूना पत्थर भी मिले। ऐसा प्रतीत होता है कि उनका उपयोग कुछ बनाने के लिए किया गया होगा। यही नहीं, मिट्टी के बर्तन और सिक्के भी मिले।
4- ऐतिहासिक साहित्य में वर्णित द्वारका के लोकेशन के आधार पर साल 2007 में विस्तृत खुदाई की गई। इस प्रोजेक्ट के निदेशक डॉ. आलोक त्रिपाठी के अनुसार, खुदाई के दौरान कुछ बड़े आकार की मजबूत कलाकृतियां, दस मीटर की एक जगह में खंडहर भी मिले जिन्हें समंदर ने तबाह कर दिया था। हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे के डाटा से यह भी पता चला कि गोमती नदी का प्रवाह बदल रहा है। गोताखोंरों को अधिक गहराई में प्राकृतिक वनस्पतियों से ढकी स्पष्ट आकृतियां भी दिखीं जहां बहुत सारे पत्थर मिले जिससे यह साबित होता है कि निश्चितरूप से यहां कोई बड़ा बंदरगाह रहा होगा।
5- एक शोध के मुताबिक, इस जगह पंद्रह हज़ार साल पहले समंदर की सतह सौ मीटर नीचे थी। तकरीबन साढ़े तीन हज़ार साल पहले द्वारका शहर आबाद था। इसके बाद समंदर दोबारा ऊपर आया और ये शहर डूब गया।
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