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Rudrama Devi the female ruler of Kakatiya dynasty, lived as Rudradeva until she became an adult

वयस्क होने तक रूद्रदेव बनकर रही काकतीय वंश की महिला शासक रुद्रमा देवी

भारतीय इतिहास की प्रतिष्ठित महिला शासकों में दिल्ली की सुल्तान रजिया, गोंडवाना की रानी दुर्गावती, कित्तूर की रानी चेन्नमा और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। इसी क्रम में वारंगल की रानी रुद्रमा देवी एक ऐसा नाम है जिसका वर्णन वेनिस के यात्री मार्कोपोलों ने अपने यात्रा वृत्तांत में किया है।

सिल्क रूट यात्रा पर निकले मार्कोपोलो ने रानी रुद्रमा देवी के प्रशासनिक गुणों, सौम्य शासन और उसकी महानता की खूब प्रशंसा की है। रानी रुद्रमा देवी काकतीय राजवंश के प्रमुख शासकों में से एक थीं जिन्होंने मात्र चौदह वर्ष की उम्र में अपने पिता का उत्तराधिकार ग्रहण किया। इसके बाद 80 वर्ष की उम्र तक शासन किया। रानी रुद्रमा देवी की मृत्यु कैसे हुई? यह जानने के लिए इस स्टोरी को जरूर पढ़ें।

काकतीय राजा गणपतिदेव की पुत्री रुद्रमा देवी 

राजा गणपतिदेव काकतीय राजवंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक हुआ। उसने आन्ध्र, नेल्लोर, कांची, कर्नूल आदि को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया तथा 60 वर्षों तक शासन करता रहा। 1263 ई. में सुन्दर पाण्डय ने उसे हराकर कांची तथा नेल्लोर को छीन लिया। तत्पश्चात गणपतिदेव ने अपनी राजधानी वारंगल में स्थानान्तरित कर दी।

राजा गणपतिदेव व उसकी रानी सोमलादेवी को कोई पुत्र नहीं था, उनकी दो बेटियां ही थीं। बड़ी बेटी का नाम गणपमा तथा छोटी बेटी का नाम रुद्रमा था। ऐसे में गणपतिदेव ने शत्रुओं से वारंगल राज्य की सुरक्षा हेतु अपनी पुत्री रुद्रमा देवी को एक समारोह में जनता के सम्मुख औपचारिक रूप से पुत्र घोषित किया और रुद्रदेव नाम दिया। रुद्रमा के वयस्क होने तक किसी को भी इस बात की भनक नहीं लगी कि वह पुरुष नहीं बल्कि एक महिला है।

गणपतिदेव ने अपनी बड़ी बेटी गणपमा देवी की शादी बेतदेव से कर दी। जीवन के अंतिम दिनों में राजा गणपति देव ने अपने प्रधानमंत्री शिवदेवय्या से विचार-विमर्श करने के बाद अपनी 14वर्षीय पुत्री रुद्रमा देवी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। विभिन्न शिलालेखों से यह जानकारी मिलती है कि सम्भवत: 1261 ई. से रुद्रमा देवी ने स्वतंत्र रूप से शासन करना शुरू कर दिया था। अस्त्र-शस्त्र तथा घुड़सवारी में निपुण रुद्रमा देवी का विवाह चालुक्य राजकुमार वीरभद्र से हुआ था। हांलाकि साल 1266-1269 में रुद्रमा देवी ने अपने पति और पिता दोनों को खो दिया।

इस दुख से आहत रुद्रमा देवी ने राज्य-शासन से विमुख होकर मौत को वरण करने का निर्णय कर लिया परन्तु कुलीनों और मंत्रियों ने राज्य की सुरक्षा का हवाला कर देकर रुद्रमा को पुन: शासन करने हेतु मना लिया। इसके बाद रानी रुद्रमा देवी का 1269 ई. में राज्याभिषेक कराया गया। इस प्रकार पिता रुद्रमा देवी ने वारंगल का शासन भार पूरी तरह से अपने हाथों में ले लिया।

रुद्रमा देवी का साम्राज्य विस्तार

गणपतिदेव ने अपनी पुत्री रुद्रमा देवी को बचपन से युद्ध की शिक्षा में पारंगत बनाया था। तलवारबाजी तथा घुड़सवारी में निपुण रुद्रमादेवी के समक्ष पुरुष योद्धा भी टिक नहीं पाते थे। यही वजह है कि वारंगल की महारानी रुद्रमा देवी को इतिहासकार विक्रम सम्पत ने विश्व की पहली महिला महाराज बताया है।

वारंगल की गद्दी पर बैठते ही रुद्रमा देवी ने सर्वप्रथम वारंगल किले का निर्माण कार्य पूरा करवाया। इसके बाद समस्त तेलंगाना में सिंचाई टैंक प्रणाली की शुरूआत करवाई तथा सैनिकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की। पेरीनी शिव तांडवम नृत्य कला का श्रेय रुद्रमा देवी को ही दिया जाता है। ओरुगल्लू किले का निर्माण रानी रुद्रमादेवी ने करवाया था। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, गोलकुंडा किले के निर्माण की शुरुआत भी रुद्रमा देवी ने की थी।

सबसे पहले रुद्रमा देवी के चचेरे भाईयों हरिहर देव और मुरारी देव ने विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया। बावजूद इसके रुद्रमा देवी अपने कुशल सरदारों की मदद से इस विद्रोह को दबाने में सफल रहीं। शासन के शुरूआती दिनों में रानी रुद्रमा देवी को पूर्वी गंगवंश से चुनौतियों का सामना करना पड़ा यद्यपि 1270 के अंत तक वह गंगों को गोदावरी नदी तक पीछे हटाने में सफल हुईं।

इसके बाद रुद्रमा देवी को सबसे बड़ा खतरा देवगिरी के यादव शासक महादेव से था। यादव राजा महादेव को रुद्रमा देवी की वीरता तथा प्रशासनिक क्षमता की बहुत कम जानकारी थी। ऐसे में उसने वारंगल किले पर आक्रमण कर दिया।

परिणाम यह निकला कि रुद्रमा देवी ने महादेव को न केवल युद्ध स्थल से बाहर खदेड़ दिया बल्कि गोदावरी नदी पार करते हुए उसके इलाकों तक घुस गई। देवगिरी के यादव राजा महादेव को शांति स्थापित करने के लिए रुद्रमा देवी से समझौता करना पड़ा। यद्यपि इस समझौते में मिले शाही खजाने को रुद्रमा देवी ने अपने सैनिकों में उदारतापूर्वक बांट दिया।

रानी रुद्रमा देवी की मौत

दक्षिण में कायस्थ सरदार जन्निगदेव ने नेल्लूर राज्य के क्षेत्रों पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। इस तरह यह क्षेत्र पांड्यों के प्रभाव से मुक्त हो गया। त्रिपुरारी देव प्रथम ने रुद्रमा देवी के जागीरदार के रूप में नेल्लूर के साम्राज्य पर शासन किया परन्तु जब उसका छोटा भाई अम्बदेव सिंहासनारूढ़ हुआ तब स्थिति बदल गई।

अत्यन्त महत्वाकांक्षी और शक्तिशाली अम्बदेव ने अपने पड़ोसियों को पराजित कर दक्षिण में एक मजबूत कायस्थ राज्य की स्थापना की, जो काकतीय राजवंश की सत्ता के लिए एक बड़ा झटका था। ऐसे में रानी रुद्रमा देवी हठी और विश्वासघाती अम्बदेव को बर्दाश्त नहीं कर सकीं।

80 वर्षीय रानी रुद्रमा देवी की बड़ी पुत्री मुम्मादम्मा का पुत्र प्रतापरुद्र वयस्क हो चुका था। लिहाजा रानी रुद्रमा देवी ने अपने पोते प्रतापरूद्र के साथ मिलकर तीन तरफ से अम्बदेव पर हमला कर दिया। इस हमले में सेना के एक भाग का नेतृत्व रानी रुद्रमा देवी और सेनापति मल्ल्किार्जुन नायक के हाथों में था। 25 नवंबर, 1289 ई. के चंदूपाटला (नलगोंडा जिला स्थित) अनुदान से पता चलता है कि अम्बदेव ने सेनापति मल्लिकार्जुन नायक तथा रुद्रमा देवी को युद्ध में मार डाला। रुद्रमा देवी की मौत के बाद प्रतापरूद्र ने राजगद्दी संभाली। प्रतापरूद्र ने काकतीय वंश की शक्ति तथा प्रतिष्ठा का पुनरूद्धार किया।

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