भारत का इतिहास

Rise and fall of Magadha Empire: From Haryak Dynasty to Nanda Dynasty

मगध साम्राज्य का उत्थान एवं पतन : हर्यक वंश से नन्द वंश तक

सभी ब्राह्मण तथा जैन स्रोत इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राचीन भारत में सबसे शक्तिशाली महाजनपद मगध ने साम्राज्यवाद की ओर सर्वप्रथम कदम बढ़ाया। बि​हार में पटना तथा गया जनपदों की भूमि में स्थित मगध राज्य के चारों ओर प्राकृतिक सुरक्षा के साधन थे।

मगध क्षेत्र में कच्चे लोहे तथा तांबे का प्रचुर भंडार था अत: मगध के शासक स्वयं के लिए बेहतरीन हथियार तैयार करा सके जो उनके विरोधियों के लिए सम्भव नहीं था। मगध सेना के पास एक शक्तिशाली गज सेना थी। गंगा के उपजाऊ मैदानी क्षेत्र वाली सिंचित भूमि होने के कारण राज्य में प्रचुर राजस्व तथा भोजन उत्पन्न होता था जिससे विशाल सेनाओं का भरण-पोषण तथा रख-रखाव आसानी से सम्भव हुआ।

मगध की दोनों राजधानियां राजगृह और पाटलिपुत्र भौगोलिक दृष्टिकोण से अत्यंत सुरक्षित थी। जहां राजगृह पहाड़ियों से घिरी हुई थी वहीं गंगा, गंडक और सोन के संगम पर स्थित पाटलिपुत्र एक उचित जलदुर्ग था। गंगा नदी के नजदीक होने के कारण व्यापारिक सुविधाएं बढ़ीं जिससे आर्थिक दृष्टि से भी मगध का महत्व बढ़ गया। बुद्धकाल में मगध एक शक्तिशाली राजतंत्र था, कालान्तर में मगध का उत्तरोतर विकास हुआ और मगध का इतिहास सम्पूर्ण भारत का इतिहास बन गया।

हर्यक वंश (544 ई.पू. से 412 ई.पू.)

पुराणों में मगध साम्राज्य के संस्थापक के रूप में बृहद्रथ और जरासंध का उल्लेख मिलता है किन्तु बौद्ध ग्रन्थ और उसके लेखक बृहद्रथ वंश का कोई भी उल्लेख नहीं करते हैं। ज्यादातर इतिहासकार बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित राजाओं के क्रम को ही तर्क संगत मानते हैं। अत: मगध साम्राज्य का प्रथम शासक बिम्बिसार ही था जो हर्यक वंश से था

बिम्बिसार - सोलह महाजपदों में सबसे शक्तिशाली महाजनपद मगध का उत्कर्ष हर्यक वंश के शासन के साथ आरम्भ हुआ। हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक बिम्बिसार 15 वर्ष की उम्र में मगध नरेश बना। मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक बिम्बिसार बहुत शक्तिशाली तथा महत्कांक्षी था। उसने अपनी स्थिति कुछ वैवाहिक सम्बन्धों से भी सुदृढ़ कर ली।

बिम्बिसार ने सर्वप्रथम अंगदेश के राजा ब्रह्मदत्त पर आक्रमण करके उसे मार डाला तथा अपने पुत्र अजाशत्रु को वहां का उपराजा (वायसराय) नियुक्त किया। अंग का विलय मगध साम्राज्य का पहला कदम था।

इसके बाद कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन राजकुमारी कोशल देवी से विवाह के पश्चात दहेज में न केवल एक लाख की वार्षिक आय वाले काशी का समृद्ध प्रदेश मिल गया अपितु उसने मगध राज्य की पश्चिमी सीमा को भी भयमुक्त कर लिया। ऐसे में अब वह निडर होकर पूर्व की तरफ अपने राज्य का विस्तार कर सकता था।

मगध को उत्तर की ओर वज्जि संघ से बराबर भय बना रहता था किन्तु बिम्बिसार ने लिच्छवी राजकुमारी चेल्लना (चेटक की बहिन) से विवाह करके व​ज्जि संघ से भी मैत्री सम्बन्ध स्थापित कर लिए। बिम्बिसार की तीसरी पत्नी का नाम क्षेमा था जो मद्र (कुरू के समीप) की राजकुमारी थी। इस प्रकार बिम्बिसार ने मद्रों का भी सहयोग एवं समर्थन प्राप्त कर लिया।

एक बार अवन्ति का राजा प्रद्योत पाण्डु रोग (पीलिया) से पीड़ित था तब बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक (सलावती के पुत्र) को उसकी चिकित्सा के लिए भेजा था। अवन्ति के राजा प्रद्योत के अतिरिक्त सिन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार नरेश पुष्करसारिन से भी बिम्बिसार के मैत्री सम्बन्ध थे।

बिम्बिसार ने लिच्छवियों की बढ़ती शक्ति के कारण अपनी प्रारम्भिक राजधानी गिरिव्रज की जगह उत्तर की ओर राजगृह में नई राजधानी बनाई। बुद्धघोष के अनुसार, बिम्बिसार शासित मगध साम्राज्य में तकरीबन 80 हजार गांव थे।

मत्स्य पुराण में बिम्बिसार को क्षेत्रोजस तथा जैन साहित्य में श्रोणिक कहा गया है। दीघनिकाय के अनुसार, बिम्बिसार ने चम्पा के प्रसिद्ध ब्राह्मण सोनदण्ड को वहां की सम्पूर्ण आमदनी दान कर दी थी।

बिम्बिसार ने 52 वर्षों तक शासन किया किन्तु उसका दुखद अंत हुआ। दरअसल ​बिम्बिसार को कैद कर भीषण यातनाओं के द्वारा उसे मार डाला गया। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार, बिम्बिसार की हत्या उसके महत्वाकांक्षी पुत्र अजातशत्रु के हाथों हुई थी। वहीं जैन साहित्य के मुताबिक, सिंहासन पाने की प्रबल आकांक्षा लिए अजातशत्रु ने अपने वृद्ध पिता बिम्बिसार को कारगार में कैद कर मगध नरेश बन बैठा।

अजातशत्रु - बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु (कुणिक) ने शुरूआत से ही साम्राज्यवादी नीति का वरण किया। अजातशत्रु के व्यवहार से कुपित होकर कोशल नरेश प्रसेनजित ने काशी को मगध से वापस ले लिया। इसके बाद अजातशत्रु का कोशल से युद्ध हुआ, पहले तो प्रसेनजित की हार हुई किन्तु बाद में अजातशत्रु पराजित हुआ, तत्पश्चात दोनों पक्षों में सन्धि हो गई। इस सन्धि के तहत अजातशत्रु को न केवल काशी का प्रदेश मिल गया बल्कि उसने कोशल नरेश प्रसेनजित की पुत्री राजकुमारी वाजिरा से शादी भी कर ली। कोशल से निपटने के बाद अजातशत्रु ने वज्जि संघ की ओर ध्यान दिया।

जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र के मुताबिक, वज्जि संघ के साथ हुए युद्ध में अजातशत्रु ने अपने कूटनीतिज्ञ मंत्री वत्सकार की मदद से लिच्छवियों पर विजय प्राप्त की। दरअसल वत्सकार लिच्छवियों में फूट डालने में सफल रहा था। अजातशत्रु का एक अन्य मंत्री सुनीढ़ (सुनिधि) भी था। वज्जि संघ को जीतने में अजातशत्रु ने रथमूसल तथा महाशिलाकंटक नामक बिल्कुल नए एवं अजेय अस्त्रों का प्रयोग किया।

बिम्बिसार ने लिच्छवि राजकुमारी चेलन्ना से उत्पन्न दो पुत्रों हल्ल तथा बेहल्ल को अपना सेचनक नामक हाथी तथा बहुमूल्य 18 लड़ियों वाला हार दे रखा था। अ​त: मगध के सिंहासन पर बैठते ही अजातशत्रु ने अपने सौतेले भाईयों हल्ल तथा बेहल्ल से ये बहुमूल्य चीजें वापस मांगी। हल्ल तथा बेहल्ल भागकर लिच्छवी नरेश चेटक के पास चले गए। इसके बाद अजातशत्रु ने वैशाली से युद्ध किया।

भास के अनुसार, अजातशत्रु की पुत्री पद्मावती का विवाह वत्सराज उदयन से हुआ। अजातशत्रु के शासनकाल के आठवें वर्ष भगवान बुद्ध को निर्वाण की प्राप्ति हुई तथा राजगृह के सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ। प्रथम बौद्ध संगीति में बुद्ध की शिक्षाओं को सुत्तपिटक तथा विनयपिटक में रूप में लिपिबद्ध किया गया।

अजातशत्रु की धार्मिक नीति उदार थी। बौद्ध तथा जैन ग्रन्थ, दोनों ही उसे अपना-अपना अनुयायी मानते हैं। सम्भव है, अजातशत्रु पहले जैन धर्म से प्रभावित था, बाद में बौद्ध हो गया। भरहूत स्तूप की एक वेदिका पर उत्कीर्ण है—“ अजातशत्रु भगवतो वन्दते अर्थात अजातशत्रु भगवान बुद्ध की वन्दना करता है।  सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार, तकरीबन 32 वर्षों तक शासन करने के पश्चात अजातशत्रु को उसके पुत्र उदयिन ने मार डाला।

उदयिन - अजातशत्रु के बाद उसका पुत्र उदयिन (उदयभद्र) मगध के सिंहासन पर बैठा। अपने पिता के शासनकाल में वह चम्पा का उपराजा (वायसराय) था। काशी, अंग प्रदेश तथा वज्जियों के मगध में विलय हो जाने से मगध साम्राज्य काफी बड़ा हो चुका था। राजधानी राजगृह उस दृष्टि से बहुत उपयुक्त नहीं थी अत: उदयिन ने गंगा तथा सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र (प्राचीन नाम कुसुमपुरा) की स्थापना की।

जैन धर्मावलम्बी उदयिन ने अपने राजधानी के मध्य एक जैन चैत्यगृह का निर्माण करवाया था। उदयिन नियमित रूप से व्रत से करता था तथा आचार्यों के उपदेश सुनता था। एक दिन वह किसी गुरू से उपदेश सुन रहा था तभी अवन्ति नरेश पालक द्वारा नियुक्त हत्यारे ने छूरा घोपकर उदयिन की हत्या कर दी।

उदयिन की हत्या के पश्चात उसके तीन पुत्र- अनिरूद्ध, मुण्ड तथा नागदशक (दर्शक) मगध के सिंहासन पर बैठे। इन तीनों ने मगध पर बारी-बारी से शासन किया। भास के नाटक स्वप्नवासवदत्ता के अतिरिक्त जैन ग्रन्थ परिशिष्ट पर्व में अजातशत्रु के पुत्र नागदशक यानि दर्शक का उल्लेख मिलता है जो थोड़ा प्रसिद्ध था।

हांलाकि उदयिन के तीनों पुत्र अत्यन्त निर्बल एवं विलासी थे अत: मगध का शासन तंत्र शिथिल पड़ गया। जनता में व्यापक असन्तोष छा गया। ऐसे में मौके का फायदा उठाकर हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने उसे पदच्युत कर मगध के सिंहासन पर अधिकार कर लिया।

शिशुनाग वंश (412 से 344 ई.पू.)

शिशुनाग - मगध के शासक शिशुनाग ने शिशुनाग वंश की स्थापना की। वैशाली के राजा और वहां की नगर वधू की संतान था शिशुनाग। य​द्यपि पुराण शिशुनाग को क्षत्रिय कहते हैं। यह कथन इसलिए सत्य प्रतीत होता है क्योंकि यदि वह वेश्या पुत्र होता तो रूढ़िवादी ब्राह्मण उसे कभी भी राजा नहीं स्वीकार करते। नाग द्वारा रक्षित होने के कारण उसे शिशुनाग नाम मिला।

पुराणों के अनुसार, शिशुनाग ने अवंति (प्रद्योत वंश) की सेना को नष्ट कर दिया, तत्पश्चात अवंति मगध साम्राज्य का हिस्सा बन गया। शिशुनाग के लिए अवंति विजय बेहद लाभदायक सिद्ध हुई क्योंकि पाटलिपुत्र से एक व्यापारिक मार्ग वत्स तथा अवन्ति होते हुए भड़ौच तक जाता था।

शिशुनाग ने वत्स तथा कोशल महाजनपदों पर भी विजय प्राप्त की जिससे मगध साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार हो गया। शिशुनाग के समय मगध साम्राज्य में बंगाल से लेकर मालवा तक का भूभाग सम्मिलित था। इस प्रकार शिशुनाग एक शक्तिशाली राजा था। शिशुनाग ने वज्जियों पर कठोर नियंत्रण रखने के लिए पाटलिपुत्र के अ​तिरिक्त वैशाली को दूसरी राजधानी बनाया।

कालाशोक - पुराणों तथा बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में कालाशोक का नाम काकवर्ण मिलता है। कालाशोक ने अपनी राजधानी पुन: पाटलिपुत्र स्थानान्तरित कर दी। कालाशोक के शासनकाल में ही वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ। द्वितीय बौद्ध संगीति में विभेद उत्पन्न होने के कारण यह दो सम्प्रदायों स्थविर तथा महासंधिक में बंट गया। इन दोनों ही सम्प्रदायों से आगे चलकर हीनयान और महायान की उत्पत्ति हुई।

शिशुनाग पुत्र कालाशोक बहुत अधिक समय तक मगध का नरेश नहीं रह सका, उसकी हत्या कर दी गई। ​बाणभट्ट रचित हर्षचरित के मुताबिक, “कालाशोक की राजधानी के समीप घूमते समय नन्द वंश के पहले राजा महापद्मनंद ने उसके गले में छूरा घोपकर की हत्या कर दी।इसके बाद मगध का राज्य नंद वंश के हाथों में आ गया।

नन्द वंश (344 से 323 ई.पू.)

नन्द वंश में कुल 9 राजा हुए जिन्हें नवनन्द कहा गया है। महाबोधिवंश में नंद वंश के इन नौ राजाओं के नाम इस प्रकार मिलते हैं1. उग्रसेन (महापद्मनंद) 2. पण्डुक 3. पण्डुगति 4.भूतपाल 5. राष्ट्रपाल 6. गोविषाणक 7. दशसिद्धक 8. कैवर्त 9. धननंद

नंद वंश के संस्थापक महापद्मनंद ने सभी 16 महाजनपदों काशी, कौशल, वज्जि, मल्ल,चेदि, वत्स, अंक, मगध, अवनीत, कुरु, पांचाल, गंधार कंबोज, शूरसेन, अश्मक, एवं कलिंग को जीतकर प्रथम बार केंद्रीय प्रशासन की नीव डाली। इसीलिए सम्राट महापद्मनंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक कहा जाता है। नंदों ने अपनी प्रचुर धन शक्ति से विशाल सेनाओं का विस्तार किया। नंदों के पास 2,00,000 पैदल सेना, 60,000 घुड़सवार सेना और 6,000 युद्ध हाथी वाली एक विशाल गज सेना थी।

महापद्मनंद - नंद वंश की स्थापना महानंदिन ने की थी किन्तु शीघ्र ही एक शूद्र दासी पुत्र महापद्मनंद ने महानंदिन की हत्या कर मगध के सिंहासन पर अधिकार कर लिया। महापद्मनंद को मगध का शक्तिशाली, उद्ण्ड और समृद्ध सम्राट माना गया है। महाबोधि वंश में महापद्मनंद का नाम उग्रसेन मिलता है जबकि पुराण उसे महापद्म कहते हैं।

महापद्मनंद ने एक विशाल सम्राज्य स्थापित करके एकच्छत्र तथा एकराट की उपाधि धारण की। पुराणों में महापद्मनंद को सर्वक्षत्रान्त्रक (क्षत्रियों का नाश करने वाला) तथा भार्गव (दूसरे परशुराम का अवतार) कहा गया है। महापद्मनंद ने अपने जैन मंत्री कल्पक की मदद से सभी क्षत्रियों का विनाश कर डाला।

महापद्मनंद के शासनकाल में मगध की आर्थिक समृद्धि ने उसे साहित्य एवं शिक्षा का प्रमुख केन्द्र बना दिया। व्याकरणाचार्य पाणिनि नंद सम्राट महापद्मनंद के मित्र थे। पाणिनि ने पाटलिपुत्र में ही रहकर शिक्षा पाई थी। वर्ष, उपवर्ष, वररूचि, कात्यायन जैसे विद्वान नंद काल में ही उत्पन्न हुए।

महावंश टीका में नन्दों को अज्ञात कुल का बताया गया है जो डाकूओं के गिरोह का मुखिया था। उसने अवसर पाकर मगध पर बलपूर्वक अधिकार कर लिया। जैन ग्रन्थ परिशिष्टपर्वन में महापद्मनंद का नापित (नाई) पिता तथा वेश्या माता का पुत्र बताया गया है।

पुराणों के अनुसार, महापद्मनंद शिशुनाग वंश के अंतिम राजा महानंदिन की शूद्रा स्त्री के गर्भ से पैदा हुआ था। यूनानी लेखक कर्टियस के मुताबिक, एक वेश्या और नाई का पुत्र था महापद्मनंद। यह स्पष्ट है कि भारतीय तथा विदेशी दोनों ही साक्ष्य नंद वंश को शूद्र ​अथवा निम्नजातीय उत्पत्ति का स्पष्ट संकेत देते हैं।

हाथीगुम्भा अभिलेख से जानकारी मिलती है कि महापद्मनंद ने कलिंग को जीतकर वहां से जिनसेन की प्रतिमा उठा लाया था। कलिंग में उसने एक नहर का भी निर्माण करवाया।मैसूर के 12वीं शती के लेखों में नन्दों द्वारा कुन्तल जीते जाने का भी स्पष्ट विवरण मिलता है।

धननंद - पौराणिक स्रोतों के मुताबिक, महापद्मनंद के आठ पुत्रों में से केवल अंतिम पुत्र धननंद के विषय में थोड़ी बहुत जानकारी मिलती है। धननन्द के समय सिकन्दर ने 325 ई. पू. पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया था। यूनानी लेखकों ने धनानन्द को अग्रेमीज कहा है। धनानन्द के सेनापति का नाम भद्दसाल तथा शकटार व राक्षस नामक शख्स उसके अमात्य थे।

मगध साम्राज्य का अंतिम नंद शासक धननंद एक अत्याचारी शासक था। वह प्रजा में अनुचित कर’ (tax) लगाता था जैसे-चमड़े, गोद, पेड़ और पत्थर पर भी कर लगाता था। जनता उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर उससे मुक्ति का उपाय ढूंढ़ रही थी।

ऐसे समय में चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ई. पू. में अपने गुरु तथा प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य की मदद से धननन्द की हत्या करके मगध का राजसिंहासन प्राप्त कर लिया। मगध और मौर्य साम्राज्य को एक नहीं माना जाता है क्योंकि जहां मगध प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राज्य था वहीं मौर्य साम्राज्य इतना विशाल था जो भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को खुद में समेटे हुए था।

मगध साम्राज्य से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

मगध क्षेत्र में कौन- कौन से खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे कच्चा लोहा तथा तांबा।

मगध साम्राज्य के सैन्य शक्ति की विशेषता शक्तिशाली गज सेना।

पुराणों के अनुसार, मगध साम्राज्य संस्थापक था राजा बृहद्रथ।

महाभारतकाल में मगध का शक्तिशाली राजा जरासंध थाबृहद्रथ वंश का।

मगध के राजा जरासंध की राजधानी थी गिरिव्रज।

बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार मगध का प्रथम शासक था बिम्बिसार।

मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक बिम्बिसार।

सुत्तनिपात में वैशाली को कहा गया है मगधम् पुरम्।

दीपवंश के अनुसार, बिम्बिसार का पिता बोधिस शासक था राजगृह का।

महावग्ग में बिम्बिसार के रानियों की संख्या बताई गई है पांच सौ।

मगध में पदाधिकारियों के नाम कुछ इस प्रकार थे :

सामान्य प्रशासन का प्रमुख पदाधिकारी था सर्वाथक महामात्र।

प्रधान न्यायिक अधिकारी अथवा न्यायाधीश व्यवहारिक महामात्र।

सेना का प्रधान अधिकारी सेनानायक महामात्त।

प्रान्तों में राजकुमार नियुक्त किए जाते थे उपराजा (वायसराय)

अजातशत्रु ने वज्जि संघ को जीतने के लिए किन नवीन अस्त्रों का इस्तेमाल किया थारथमूसल तथा महाशिलाकंटक।

अजातशत्रु के समय मगध और वज्जि संघ के बीच युद्ध का प्रमुख कारणगंगा नदी पर नियंत्रण।

अजातशत्रु ने वज्जि संघ का विनाश करने के लिए परामर्श किया था महात्मा बुद्ध से।

भरहूत स्तूप की एक वेदिका पर उत्कीर्ण है — “अजातशत्रु भगवान बुद्ध की वन्दना करता है

हर्यक वंश का अंतिम शासक कौन थानागदशक (दर्शक)

नन्द शासकों ने प्रश्रय दिया था जैन धर्म को।

मगध साम्राज्य का अंतिम नंद शासक धननंद।

मगध साम्राज्य के अंतिम नंद शासक धननंद को मारकर मौर्य वंश की नींव डालीचन्द्रगुप्त मौर्य ने।

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