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Interesting history of Haryak dynasty who became king after killing his father

पिता की हत्या करने वाले राजवंश का रोचक इतिहास

पुराणों तथा महाभारत महाकाव्य में मगध साम्राज्य (बिहार के पटना, गया, नालंदा, औरंगाबाद तथा उसके आसपास के जनपदों की भूमि में स्थित) का अति प्राचीन इतिहास मिलता है। बृहद्रथ तथा जरासंध मगध के प्रतिष्ठित शासक थे। जरासंध ने काशी, कोशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, कश्मीर तथा गांधार के राजाओं को पराजित किया था।

इसके बाद मगध साम्राज्य पर हर्यक वंश का शासन स्थापित हुआ। हर्यक वंश के लोग नागवंश की ही एक उपशाखा थे। प्राचीन भारतीय इतिहास में हर्यक वंश के प्रथम शक्तिशाली शासक बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

हर्यक वंश में छह राजा हुए जिन्होंने तकरीबन 131 वर्षों तक शासन किया और इन सभी ने अपने पिता की हत्या कर मगध की सत्ता पर शासन किया। इसीलिए भारतीय इतिहास में हर्यक वंश को पितृहन्ता वंश भी कहा जाता है।

इस स्टोरी में हम आपको हर्यक वंश अथवा पितृहन्ता वंश के उन छह राजाओं के बारे में बताएंगे जो अपने पिता की हत्या करने के बाद मगध साम्राज्य का स्वामी बने थे।

बिम्बिसार (544-492 ईसा पूर्व)

बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार, बिम्बिसार जब 15 वर्ष का तभी उसके पिता ने उसे मगध का राजा बनाया था। बिम्बिसार का उपनाम 'श्रेणिक' था। भारतीय साहित्य में​ बिम्बिसार के पिता का नाम हेमजित, क्षेमजित तथा क्षैत्रोजा​ व भट्टिय आदि मिलता है परन्तु ऐतिहासिक अभिलेख दीपवंश में बिम्बिसार के पिता का नाम बोधिस बताया गया है जो राजगृह का शासक था। बिम्बिसार ने तकरीबन 52 वर्षों तक राज किया।

इस दौरान उसने सबसे पहले वैवाहिक सम्बन्धों के द्वारा अपनी आन्तरिक स्थिति मजबूत की। महावग्ग के अनुसार, बिम्बिसार की 500 रानियां थीं। बिम्बिसार ने भद्र देश की राजकुमारी क्षेमा, कोशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला तथा वैशाली नरेश चेटक की पुत्री चेल्लना से विवाह करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बिम्बिसार की एक रानी वैदेही वासवी का भी उल्लेख मिलता है।

बिम्बिसार के साम्राज्य में 80 हजार गांव थे जिनका विस्तार तकरीबन 900 मील तक था। अंग और चम्पा पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा (वायसराय) के पद पर नियुक्त किया। बौद्ध ग्रन्थ दीघनिकाय के अनुसार, बिम्बिसार ने चम्पा के प्रसिद्ध ब्राह्मण सोनदण्ड को वहाँ की पूरी आमदनी दान में दे दी थी।

बौद्ध साहित्य के अनुसार, बिम्बिसार ने जिन पदाधिकारियों की नियुक्ति कर रखी थी उनमें सब्बत्थक महामात्त (सामान्य प्रशासन का प्रमुख पदाधिकारी), वोहारिक महामात्त (प्रधान न्यायाधीश) तथा सेनानायक महामात्त (सेना का प्रधान अधिकारी) प्रमुख थे।

एक बार अवन्ति का राजा प्रद्योत पाण्डु रोग (एनीमिया) से पीड़ित था तब बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उसकी चिकित्सा के लिए भेजा था। अवन्ति के राजा प्रद्योत के अतिरिक्त सिन्धु के शासक रूद्रायन तथा गांधार नरेश पुष्करसारिन से भी बिम्बिसार के मैत्री सम्बन्ध थे।

राजा बिम्बिसार महात्मा बुद्ध का मित्र एवं संरक्षक भी था। विनयपिटक के मुताबिक, महात्मा बुद्ध से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। उसने वेलुवन नामक उद्यान को बुद्ध तथा संघ के लिए दे दिया। राजगृह नामक नवीन नगर की स्थापना बिम्बिसार ने करवाई थी।

बिम्बिसार की हत्या- मगध के शासक बिम्बिसार का अंत अत्यंत दुखद हुआ। बिम्बिसार की पत्नी कोशलदेवी से उत्पन्न पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया। कुछ दिनों तक महारानी कोशलदेवी ​छुप-छुप कर बिम्बिसार को खाना देती रहीं परन्तु यह सूचना जैसे ही अजातशत्रु को मिली उसने बिम्बिसार के पैरों में घाव करवा दिया। आखिर में अपने पिता बिम्बिसार की हत्या कर अजातशत्रु मगध का शासक बना। 

अजातशत्रु (492-460 ईसा पूर्व)

पिता बिम्बिसार की हत्या कर मगध का राजा बनने वाला अजातशत्रु बेहद साम्राज्यवादी था।  अजातशत्रु का उपनाम 'कुणिक' था। उसने काशी तथा कोशल विजय के पश्चात वज्जि संघ को भी मगध साम्राज्य में मिला लिया।  लिच्छवि गण के प्रधान चेटक ने 9 लिच्छवियों, 9 मल्लों तथा काशी-कोशल के 18 गणराज्यों को एकत्र कर मगध नरेश अजातशत्रु के खिलाफ एक बेहद शक्तिशाली सेना तैयार किया।

इस शक्तिशाली मोर्चा के खिलाफ अजातशत्रु ने रथमूसल और महाशिलाकंटक जैसे दो गुप्त हथियारों का प्रयोग किया जिससे भारी संख्या में मनुष्य मारे जा सकते थे। इन दोनों हथियारों को महामूवी बाहुबली में दिखाया जा चुका है। 'महाशिला कंटक' नामक हथियार एक बड़े आकर का यन्त्र था, इस यंत्र द्वारा बड़े-बड़े पत्थरों को उछालकर मार जाता था। जबकि 'रथ मुशल' नामक हथियार में चाकू और पैने किनारे पर लगे रहते थे तथा सारथि के लिए सुरक्षित स्थान होता था जहाँ से बैठकर वह रथ को हांककर शत्रुओं का नरसंहार करता था। अजाशत्रु ने अपने इन हथियारों के बल पर भयानक नरसंहार किया था जिससे​ युद्ध में लिच्छवी बुरी तरह पराजित हुए।

अजातशत्रु के शासनकाल के आठवें वर्ष में महात्मा बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ। अजातशत्रु ने बुद्ध के अवशेषों पर राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया। अजातशत्रु ने 483 ईसा पूर्व में राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया था। इस संगीति में बौद्ध भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को सुतपिटक और विनयपिटक के रूप में संकलित किया।

अजातशत्रु की हत्या- सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार, तकरीबन 32 वर्षों तक शासन के बाद अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदयिन द्वारा कर दी गई।

उदयिन (461-445 ईसा पूर्व)

अपने पिता अजातशत्रु की हत्या करने वाला उदयिन मगध का शासक बना। उदयिन के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना है। उसने राजगृह से अपनी राजधानी पाटलिपुत्र स्थानान्तरित की। चारों ओर से नदियों से घिरी होने के कारण उदयिन की राजधानी पाटलिपुत्र भी सुरक्षित रही। चूंकि अजातशत्रु की विजयों के पश्चात मगध साम्राज्य की उत्तरी सीमा हिमालय की तलहटी तक पहुंच चुकी थी, ऐसे में राजगृह के मुकाबले पाटलिपुत्र उ​दयिन के लिए उपयुक्त राजधानी थी। चूंकि उदयिन जैन मतावलम्बी था इसलिए अपनी राजधानी के मध्य उसने चैत्यगृह का निर्माण करवाया था।

उदयिन की हत्या- बौद्ध ग्रन्थों में उदयिन के तीन पुत्रों अनिरूद्ध, मुंडक तथा नागदशक का उल्लेख है, इन तीनों को पितृहन्ता कहा गया है। मतलब साफ है, अनिरूद्ध, मुंडक तथा नागदशक ने मिलकर अपने पिता उदयिन की हत्या की थी। इसके बाद इन सभी ने बारी-बारी से राज्य किया। हांलाकि ऐसा भी कहा जाता है कि अवंति के किसी गुप्तचर ने छूरा घोंपकर उदयिन की हत्या कर दी थी।

नागदशक (हर्यक वंश का अ​न्तिम शासक)

उदयिन के तीन पुत्रों में से एक पुत्र नागदशक हर्यक वंश का अंतिम राजा साबित हुआ। पुराण में नागदशक को दर्शक कहा गया है। चूंकि उदयिन के तीनों पुत्र अत्यन्त निर्बल तथा विलासी थे अत: मगध का शासन तंत्र शिथिल पड़ चुका था। जनता में व्यापक असंतोष था तथा हर तरफ षड्यंत्र और हत्याएं हो रही थीं। ऐसे में शिशुनाग नामक एक योग्य अमात्य ने इन पितृहन्ताओं की हत्या करके मगध में शिशुनाग वंश की स्थापना की। वहीं कुछ इ​तिहासकारों के अनुसार, शिशुनाग हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक का प्रधान सेनापति था और सेना पर उसका पूरा नियंत्रण था। अत: जनता ने नागदशक को पदच्युत कर शिशुनाग को मगध का सिंहासन सौंप दिया। इस प्रकार 412 ईसा पूर्व में हर्यक वंश का पतन हो गया।

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