
आधुनिक भारत के इतिहास में साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी को ‘व्यपगत सिद्धांत’ (हड़प नीति) का प्रवर्तक माना जाता है। परन्तु यह बात जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि लार्ड डलहौजी की इस साम्राज्यवादी नीति से तकरीबन 25 साल पहले ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने ‘व्यपगत सिद्धान्त’ का हवाला देकर कर्नाटक के देशी राज्य कित्तूर को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया था।
जानकारी के लिए बता दें कि जब किसी स्वतंत्र राज्य का शासक निःसंतान मर जाता था, तो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ‘व्यपगत सिद्धान्त’ के तहत दत्तक पुत्र को कानूनी उत्तराधिकारी स्वीकार नहीं करती थी। इस आधार पर बिना किसी वारिस के उस देशी राज्य को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया जाता था।
ऐसे में देखा जाए तो अंग्रेजों ने देशी राज्यों के ‘हड़प नीति’ की शुरूआत सबसे पहले रानी चेन्नमा के कित्तूर राज्य से की थी। इस स्टोरी में हम कित्तूर राज्य की रानी चेन्नमा के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने सबसे पहले अंग्रेजों की इस क्रूर साम्राज्यवादी नीति का मुखर विरोध किया था।
कित्तूर रियासत (Princely State Kittur)
वर्तमान में कर्नाटक के बेलगाम जिले में स्थित कित्तूर तालुका ब्रिटिश शासनकाल में देशी रियासत कित्तूर की राजधानी थी। कित्तूर को स्थानीय लोग कित्तूरू भी कहते हैं। कित्तूर राज्य की रानी चेन्नम्मा को सबसे पहले इसलिए याद किया जाता है क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की हड़प नीति के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था।
साल 1816 में कित्तूर रियासत के राजा मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद उसका बेटा शिवलिंगरुद्र सर्ज सत्तारूढ़ हुआ लेकिन साल 1824 में उसकी भी मृत्यु हो गई। इसके बाद रानी चेन्नमा कित्तूर की गद्दी पर बैठीं।
कित्तूर की रानी चेन्नमा (Kittur Chennamma)
23 अक्टूबर 1778 ई. को कर्नाटक के बेलगाम जिले की काकती गांव में जन्मी रानी चेन्नमा के पिता का नाम धुलप्पा देसाई और माता का नाम पद्मावती था। रानी चेन्नमा ने बचपन में ही घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और तीरंदाज़ी का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखने वाली रानी चेन्नमा जब 15 वर्ष की थीं तभी उनकी शादी कित्तूर रियासत के राजा मल्लसर्ज के साथ हुई।
मल्लसर्ज और रानी चेन्नमा से एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम शिवलिंगरुद्र सर्ज था। साल 1816 में मल्लसर्ज की मृत्यु हो गई तत्पश्चात शिवलिंगरूद्र सर्ज कित्तूर रियासत की गद्दी पर बैठा परन्तु दुर्भाग्यवश साल 1824 में उसका भी निधन हो गया। पति और इकलौते पुत्र की मौत के पश्चात रानी चेन्नमा ने 1824 ई. में कित्तूर रियासत का कार्यभार सम्भाला और एक बालक शिवलिंगप्पा को गोद लेकर उसे कित्तूर राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया।
परन्तु अंग्रेजी हुकूमत ने शिवलिंगप्पा को निर्वासित करने का आदेश जारी कर दिया अत: रानी चेन्नम्मा ने बॉम्बे प्रांत के लेफ्टिनेंट-गवर्नर माउंटस्टुअर्ट एलफिंस्टन को एक पत्र भेजकर ब्रिटिश हुकुमत को अपने इस वैधिक अधिकार से अवगत कराया। फिर भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कित्तूर रियासत पर रानी चेन्नमा के दावे को मान्यता प्रदान नहीं की, इसके साथ ही रानी के दत्तक पुत्र शिवलिंगप्पा को भी वैध उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया।
अब अंग्रेज कम्पनी ने स्वयं को कित्तूर रियासत का प्रशासक घोषित किया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने हड़प नीति के तहत साल 1824 में कित्तूर रियासत के खजाने एवं राजसी हीरे-जवाहरात आदि को जब्त करने की कोशिश की जिसकी कीमत उन दिनों तकरीबन 15 लाख रुपए थी। फिर क्या था, कित्तूर की रानी चेन्नमा ने अंग्रेजों की इस ‘हड़प नीति’ का मुखर विरोध किया।
रानी चेन्नमा का सशस्त्र विद्रोह
यदि कित्तूर रियासत की रानी चेन्नमा की तुलना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से करें तो बेहद लाजिमी होगा क्योंकि इन दोनों रानियों ने सशस्त्र विद्रोह में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। घुड़सवारी और तीर-तलवार चलाने में माहिर रानी चेन्नमा ने साल 1824 के अक्टूबर महीने में हुए युद्ध में मद्रास नेटिव हॉर्स आर्टिलरी की 20,797 सैनिकों वाली सैन्य टुकड़ी (जिसमें तकरीबन 437 बंदूकधारी थे) को भारी क्षति पहुंचाई थी।
रानी चेन्नमा के इस घातक हमले में तत्कालीन कलेक्टर और पॉलिटिकल एजेंट जॉन ठाकरे मारा गया था, इतना ही नहीं दो ब्रिटिश अधिकारी सर वाल्टर इलियट और श्री स्टीवेन्सन को भी बंधक बना लिया गया था। इसके बाद ब्रिटिश सैन्य अधिकारी चैपलैन ने रानी चेन्नमा से यह वादा किया कि अंग्रेज अधिकारियों को रिहा करने के बाद यह युद्ध समाप्त कर दिया जाएगा। परन्तु ऐसा करते ही अंग्रेज अफसर चैपलैन ने रानी चेन्नमा को धोखा दिया और कित्तूर किले पर एक जोरदार हमला किया। हांलाकि अंग्रेजों के इस दूसरे हमले के दौरान भी कई अंग्रेज अफसर मारे गए जिसमें सोलापुर का उप कलेक्टर मुनरो भी शामिल था।
रानी चेन्नमा के सेनापति संगोल्ली रायन्ना ने भी अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया बावजूद इसके रानी चेन्नमा व उनके परिवार को कैद कर लिया गया, साथ ही कित्तूर किले को अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया। ब्रिटिश सेना के मुकाबले कित्तूर की रानी चेन्नमा के पास कम सैन्य बल का होना उसकी हार का कारण बना।
अंग्रेजों ने रानी चेन्नमा को बेलहोंगल किले में कैद करके रखा। संगोली रायन्ना ने 1829 के अन्त तक गुरिल्ला युद्ध जारी रखा परन्तु वह भी पकड़ा गया और अंग्रेजों ने उसे फांसी दे दी। इसके बाद अंग्रेजों ने रानी चेन्नमा के दत्तक पुत्र शिवलिंगप्पा को भी कैद कर लिया।
रानी चेन्नमा को बैलहोंगल किले में बिल्कुल एकान्त कारवास में रखा गया था जहां पर्याप्त भोजन और पानी के अभाव उनका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन बिगड़ता गया। चिकित्सीय सुविधा के आभाव में 21 फरवरी, 1829 को 30 वर्ष की आयु में रानी चेन्नमा का निधन हो गया। बेलगाम स्थित कित्तूर राजमहल और उससे जुड़ी अन्य इमारतें रानी चेन्नमा की गौरवशाली इतिहास का स्मरण कराने के लिए पर्याप्त हैं।
रानी चेन्नमा के नाम पर डाक टिकट
कर्नाटक की जनता रानी चेन्नमा को एक वीरांगना के रूप में आज भी याद करती है और लोग उनका नाम बड़े आदर के साथ लेते हैं। साल 1977 एवं साल 2007 में भारत सरकार ने रानी चेन्नमा नाम पर एक डाक टिकट जारी कर उन्हें सम्मानित किया।
इतना ही नहीं, कित्तूर विजयोत्सव की 200वीं वर्षगांठ पर 23 अक्टूबर 2024 को कित्तूर किला परिसर में रानी चेन्नमा के सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। इसके अतिरिक्त रानी चेन्नमा के सम्मान में बैंगलोर और कोल्हापुर को जोड़ने वाली भारतीय रेलवे ट्रेन का नाम भी रानी चेन्नम्मा एक्सप्रेस रखा गया है।
साल 1961 में बनी कन्नड़ फिल्म ‘कित्तूर चेन्नमा’ ने सिनेमाई पर्दे पर धमाल मचा दिया था। इस फिल्म में रानी चेन्नमा की भूमिका बी. सरोजा देवी ने निभाई थी। बी.आर. पंथुलु के निर्देशन में बनी ऐतिहासिक फिल्म ‘कित्तूर चेन्नमा’ को 9वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में कन्नड़ भाषा में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला था।
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