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प्रतिदिन जहर पीता था यह खब्बू सुल्तान, पावागढ़ शक्तिपीठ को तोड़कर बनवाई थी दरगाह

दोस्तों, आज हम आपको एक ऐसे शक्तिशाली सुल्तान के बारे में बताने जा रहे हैं, जो मध्यकालीन भारतीय इतिहास में जहरीला सुल्तान अथवा जहरीला राजा के नाम से विख्यात है। य​दि इसे पहला विष पुरुष सुल्तान भी कहा जाए तो कोई अतिश​योक्ति नहीं होगी क्योंकि इसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाली औरतें अपना दम तोड़ देती थीं। इसके अतिरिक्त हिन्दुओं पर जुल्म ढाने वाला यह सुल्तान अपने खब्बूपन के लिए भी कुख्यात था। इस सुल्तान की मूछें इतनी लम्बी एवं रेशमी थीं ​जिसे वह साफे की तरफ अपने सिर में भी बांध लिया करता था। जी हां, मैं गुजरात के सबसे शक्तिशाली सुल्तान महमूद बेगड़ा की बात कर रहा हूं, जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

गुजरात का सर्वाधिक शक्तिशाली सुल्तान महमूद बेगड़ा

अहमदाबाद नगर की स्थापना करने वाले अहमदशाह का पौत्र महमूद बेगड़ा 13 वर्ष की उम्र में सन् 1459 ई. में गुजरात के छठें सुल्तान के रूप में गद्दी पर बैठा। महमूद बेगड़ा के बचपन का नाम फ़तेह ख़ान था। सुल्तान महमूद बेगड़ा अपने वंश का सबसे प्रतापी शासक था जिसका पूरा नाम 'अबुल फत नासिर-उद-दीन महमूद शाह प्रथम' था। उसने स्वयं को सुल्तान-अल-बर्क और सुल्तान-अल-बहर कहा। सुल्तान महमूद बेगड़ा ने 52 साल की उम्र तक (1511 ई. तक) बड़ी योग्यतापूर्वक शासन चलाया। गिरनार का जूनागढ़ (1472) और चंपानेर का पावागढ़ (1484) जीतने के कारण उसे बेगड़ा की उपाधि मिली। वहींबर्ड्स हिस्ट्री ऑफ़ गुजरात और फारसी पुस्तक मिरात-ए-अहमदी के अनुसार, चूंकि सुल्तान महमूद की मूंछें बैल (बेगोडा) के सींग की तरह बड़ी और मुड़ी हुई थीं, इसलिए उसे बेगड़ा कहा जाने लगा।

पुर्तगाली यात्रियों ने महमूद बेगड़ा की मूंछों के ​बारे में लिखा है कि सुल्तान की मूंछें इतनी लम्बी और रेशमी थीं कि वह उसे साफे की तरफ अपने सिर पर बांध लिया करता था। लम्बी दाढ़ी को सुल्तान काफी अच्छा मानता था, इसीलिए उसके ज्यादातर दरबारी ऐसे थे जिनकी दाढ़ी-मूंछें काफी लंबी-लंबी थीं। मजबूत कदकाठी और आकर्षक व्यक्तित्व वाला सुल्तान महमूद बेगड़ा अपनी विशेष जीवन शैली और लम्बी दाढ़ी-मूंछों की वजह से भयानक दिखता था, कहते हैं कि ऐसा उसने अपने दुश्मनों को डराने के लिए किया था।

बेहद जहरीला था सुल्तान महमूद बेगड़ा

गुजरात का सबसे शक्तिशाली सुल्तान महमूद बेगड़ा भारतीय इतिहास में जहरीला राजा अथवा जहरीला शासक के नाम से भी विख्यात है। महमूद बेगड़ा अभी अल्पायु ही था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई और महज 13 साल की उम्र में वह सुल्तान बना। पुर्तगाली यात्री बाबोसा की किताब द बुक ऑफ ड्यूरेटे बबोसा वॉल्यूम-1’ के मुताबिक महमूद बेगड़ा का पिता नहीं चाहता था कि उसके पुत्र को कोई भी जहर देकर मारे इसलिए उसने अपने बेटे को बचपन से ही जहर देना शुरू कर दिया था।

ऐसे में महमूद बेगड़ा के शरीर पर जहर ने अपना काम करना बंद कर दिया था, हांलाकि वह इतना जहरीला बन चुका था कि यदि कोई मच्छर अथवा मक्खी भी उसके शरीर पर बैठ जाती थी, तो तुरन्त मर जाती थी। यदि कोई महिला उसके शारीरिक सम्बन्ध बना ले तो वह ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाती थी। कहते हैं महमूद बेगड़ा यदि किसी को मारने का मन बना लेता था तब वह पान बचाता था और फिर पान की पिचकारी उस शख्स पर मार देता था, जैसे सुल्तान का थूक सम्बन्धित व्यक्ति पर गिरता वह आधे घंटे के अन्दर अपना दम तोड़ देता था।

अधिक भोजन के लिए कुख्यात यह सुल्तान

सुल्तान महमूद बेगड़ा राक्षसों की तरह भोजन करने के लिए कुख्यात था। अंग्रेज़ी व्यंग्यकार सैमुअल बटलर तथा इटालियन यात्री बर्थेमा ने सुल्तान की भूख का विशेष रूप से उल्लेख किया है। महमूद बेगड़ा अपने नाश्ते में एक प्याला शहद, एक कटोरा मक्खन तथा 100-150 केले बड़ी आसानी से खा जाता था। दोपहर में भरपेट भोजन करने के बाद बेगड़ा को मीठा खाने का शौक था इसलिए वह प्रतिदिन तकरीबन साढ़े चार किलो मीठा चावल खाता था। जबकि 5 किलो मिठाईयां और 10 किलो साग-भांजी सहित वह एक दिन में तकरीबन 35 किलों पकवान खा जाता था। इतिहासकार सतीश चंद्र लिखते हैं कि महमूद दिन में बहुत ज्यादा खाना खाते थे और रात में उनके नौकर उनके बिस्तर के पास मीट पैटी (कीमा समोसा) रखते थे ताकि वह अपनी भूख को शान्त कर सके। पुर्तगाली यात्री बारबोसा अपनी किताब में लिखता है कि सुल्तान महमूद बेगड़ा दिन में खाने के अतिरिक्त कुछ मात्रा में जहर भी लिया करता था।

पावागढ़ शक्तिपीठ को तोड़कर बनवाई थी दरगाह

महमूद बेगड़ा के द्वारा हिन्दूओं के कई धार्मिक स्थलों के विध्वंसीकरण से यह पता चलता है कि वह हिन्दूओं के प्रति कितना अहिष्णु रहा होगा। ऐसा कहा जाता है कि द्वारकाधीश मंदिर को तोड़ने का आदेश भी महमूद बेगड़ा ने ही दिया था ताकि भगवान से हिन्दूओं की अस्था कम हो जाए। इसी क्रम में महमूद बेगड़ा ने अपने चम्पानेर आक्रमण के दौरान पावागढ़ के शक्तिपीठ पर भी विध्वंसक कार्रवाई की थी।

फारसी पुस्तक मिरात--सिकन्दरी के मुताबिक चम्पानेर में कई बार शिकस्त खाए महमूद बेगड़ा ने साल 1484 में एक घातक हमला कर वहां के राजा रावल को कैद कर लिया और तकरीबन पांच महीने तक इस्लाम धर्म कबूलने की बात करता रहा, परन्तु जैसे राजा ने इस बात से इन्कार किया तो उसे मौत के घाट उतार दिया गया। रानियां पहले ही जौहर कर चुकी थीं। चम्पानेर के राजा का एक पुत्र भी था, उसका क्या हुआ इस बारे में कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। इसके बाद महमूद बेगड़ा ने चम्पानेर के कई धर्मस्थलों पर विध्वंसक कार्रवाई की, इनमें से एक पावागढ़ पहाड़ी मौजूद महाकाली माता का मंदिर भी था। महमूद ने पावागढ़ स्थित इस शक्तिपीठ को तोड़कर यहां पीर सदनशाह की दरगाह का निर्माण करवा दिया था। हांलाकि वर्तमान में पावागढ़ में महाकाली मंदिर का पुनर्निर्माण हो चुका है।

बता दें कि चम्पानेर का पावागढ़ सिद्ध शक्ति-पीठों में से एक गिना जाता है। पावागढ़ महाकाली मंदिर के विषय में यह मान्यता है कि इसी पहाड़ी पर महर्षि विश्वामित्र ने मां महाकाली को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इसके अतिरिक्त भगवान श्रीराम और सीता माता के पुत्रों लव और कुश को पावागढ़ में ही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।

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