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Pandit jawaharlal Nehru had called Periyar lunatic

पं. नेहरू ने दलितों के मसीहा पेरियार को कहा था पागल, जानते हैं क्यों?

दलितों और शोषितों के मसीहा पेरियार का असली नाम ई. वी. रामास्वामी था। उनके प्रशंसक और अनुयायी उन्हें पेरियार कहते थे, तमिल शब्द पेरियार का हिन्दी अर्थ है- सम्मानित व्यक्ति। पश्चिमी तमिलनाडु के इरोड में जन्में पेरियार (1879-1973 ई.) हिन्दू धर्म के बलीजा जाति (उत्तर भारत में गड़रिया जाति) से थे। हिन्दुत्व तथा हिन्दी का विरोध करने करने वाले पेरियार नास्तिक तथा ब्राह्मण विरोधी भी थे। पेरियार की तार्किक क्षमता के कारण उन्हें एशिया का सुकरात कहा गया।

गैर ब्राह्मणों में आत्म-सम्मान पैदा करने के उद्देश्य से पेरियार ने आत्म-सम्मान आन्दोलन चलाया तथा समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था को जड़ से मिटाने के लिए द्रविड़ कझगम की स्थापना की। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर में पेरियार साहेब ने ऐसा क्या कर दिया था जिसके चलते पं. जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें पागलखाने में डालकर उनके विकृत दिमाग के इलाज करवाने की बात कही थी। यह तथ्य जानने के  लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।

पेरियार आखिर कैसे बने ब्राह्मण विरोधी और नास्तिक

पेरियार के पिता वेंकट नायकर अपने इलाके के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। पेरियार की माता का नाम चिन्ना थयम्मल था। पेरियार के परिवार वाले मं​दिर सराय निर्माण तथा भूखों को भोजन कराने के लिए जाने जाते थे। परन्तु एक अजीबोगरीब घटना ने पेरियार को ब्राह्मण विरोधी और नास्तिक बना दिया।

बचपन से ही तार्किक प्रवृत्ति वाले पेरियार युवावस्था में घर-परिवार छोड़कर काशी आ गए। काशी में उन्हें इस बात की उम्मीद थी कि एक संन्यासी होने के नाते उन्हें यहां किसी भी धर्मशाला में आसानी से नि:शुल्क भोजन तो मिल ही जाएगा। परन्तु उन्हें पता चला कि काशी की धर्मशालाओं में केवल ब्राह्मणों के लिए ही नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था है। 

अत: कई दिनों से भूखे युवा पेरियार नि:शुल्क भोजन पाने के लिए ब्राह्मण का वेष बनाकर एक धर्मशाला में पहुंच गए परन्तु धर्मशाला के द्वारपाल ने उनकी मूंछों से उन्हें पकड़ लिया और सड़क पर धकेल दिया। ऐसे में भूख से तड़प रहे पेरियार को सड़क पर पड़े जूठे पत्तलों पर बचा-खुचा जूठन खाना पड़ा।

दरअसल काशी की उस धर्मशाला पर लिखा था कि इसमें केवल उच्च जाति के लोग विशेषकर ब्राह्मण ही भोजन कर सकते हैं। हांलाकि उस धर्मशाला का निर्माण तमिलनाडु के एक धनी द्रविड़ व्यापारी ने करवाया था।

काशी में हुई इस घटना से पेरियार के मन में एक साथ कई सवाल पैदा हुए, जैसे- ब्राह्मण अन्य जातियों के साथ इतना भेदभाव क्यों करते हैं। ब्राह्मणों द्वारा निर्मित इस जाति-व्यवस्था से न जाने कितने लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। हांलाकि पेरियार ये सभी सवाल अनुत्तरित रह गए।  काशी की इस घटना ने पेरियार के हृदय में ऐसे जख्म पैदा किए कि वह हमेशा के लिए ब्राह्मण​ विरोधी और नास्तिक बन गए। इस घटना के बाद पेरियार ने दोबारा गृहस्थ जीवन स्वीकार कर लिया।

हिन्दू देवी-देवताओं और ब्राह्मणों को लेकर पेरियार के विचार

एक कट्टर नास्तिक के रूप में पेरियार ने हिन्दू देवी-देवताओं के अस्तित्व की धारणा के विरोध में खुलकर प्रचार किया। पेरियार वैदिक धर्म के आदेश और ब्राह्मणों के वर्चस्व को तोड़ना चाहते थे। पेरियार का कहना था कि ब्राह्मणों ने शास्त्रों और पुराणों की मदद से हमें गुलाम बनाया है और अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए देवी-देवताओं की रचना की है।

पेरियार कहना था कि यदि सभी मनुष्य समान पैदा हुए हैं तो फिर अकेले ब्राह्मण को उच्च और अन्य को नीच कैसे ठहराया जा सकता है। आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर अंतरिक्ष यान भेज रहें और हम ब्राह्मणों के द्वारा परलोक में बैठे अपने पूर्वजों को श्राद्ध में चावल और खीर भेज रहे हैं, क्या यह बुद्धिमानी है।

ब्राह्मण हमें अन्धविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है। स्वयं आरामदायक जीवन जीता है और तुम्हे अछूत कहकर निन्दा करता है। मैं आपको सावधान करता हूं कि ब्राह्मणों का विश्वास मत करो।

पेरियार के मुताबिक, उन पुराणों और इतिहास को नष्ट कर दो जो देवता को शक्ति प्रदान करते हैं तथा उन देवताओं को नष्ट कर दो जो तुम्हें शूद्र कहें।  शास्त्र, पुराण और हिन्दू देवी-देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है, मैं जनता से उन्हें जलाने और नष्ट करने की अपील करता हूं।

पेरियार कहते थे कि द्रविड़ कड़गम आंदोलन उन सभी शास्त्रों, पुराणों और देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखता, जो वर्ण तथा जाति व्यवस्था को जैसे का तैसा बनाए रखे हैं। पेरियार के अनुयायी वैदिक रीति-रिवाज से किए जाने वाले वैवाहिक अनुष्ठान तथा महिलाओं के द्वारा पहने जाने वाले मंगलसूत्र (शादी की निशानी) का भी विरोध करते थे।

पेरियार द्वारा ब्राह्मणों के नरसंहार के उकसावे पर पं. नेहरू की प्रतिक्रिया

यह घटना है साल 1957 की, जब 4 नवम्बर को तंजावुर में जातिवाद मिटाने के नाम पर रखे गए एक कार्यक्रम में जुटी तकरीबन 2 लाख की भीड़ के सामने पेरियार ने लोगों को एक हजार तमिल ब्राह्मणों के नरसंहार के लिए उकसाया और उनकी बस्तियां तक जला डालने की बात कही। इतना ही नहीं, पेरियार ने महात्मा गांधी की तस्वीरें जलाने तथा उनकी प्रतिमाओं को ध्वस्त करने की भी धमकी दी थी। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 5 नवम्बर को एक पत्र लिखकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. कामराज से पेरियार के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा। 

पं.नेहरू ने अपने पत्र में समाचारपत्र की कटिंग भी संलग्न की थी, जिसमें पेरियार ने तमिल ब्राह्मणों के नरसंहार और उनके घरों को जलाने की बात कही थी। पं. नेहरू ने इस पत्र में लिखा ई.वी.रामास्वामी द्वारा चलाए जा रहे ब्राह्मण विरोधी अभियान से वह चिन्ता में हैं। पं.नेहरू आगे लिखते हैं कि पेरियार ने जो कहा है, वह सिर्फ एक अपराधी या पागल द्वारा ही कहा जा सकता है। मैं उसे पूरी तरह नहीं जानता हूं, ताकि मैं समझ सकूं कि वह क्या है। परन्तु एक बात को लेकर मैं स्पष्ट हूं कि इस तरह की बातें देश पर बुरा प्रभाव डालने वाली हैं।

तकरीबन सभी समाज विरोधी और आपराधिक तत्व यही सोचते हैं कि वो इस तरह की चीजें कर सकें। इसलिए मेरी यह आपको सलाह है कि इस मामले में त्वरित कार्रवाई करें। उसे (पेरियार को) किसी पागलखाने में डालकर उसके विकृत दिमाग का इलाज करवाया जाए।

पेरियार की गिरफ्तारी

इसके बाद तमिलनाडु सरकार के आदेश पर तिरुचिरापल्ली में स्पेशल फ़ोर्स के इंस्पेक्टर ने पेरियार के खिलाफ धारा-117 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई। इसके बाद 78वर्षीय पेरियार को गिरफ्तार कर लिया गया। इस केस में सेशन जज ने पेरियार को छह महीने की सजा सुनाई। हांलाकि उपरोक्त घटना के बारे में पेरियार का कहना था कि सभी समाचारपत्र ब्राह्मणों के हाथ में है, इसलिए वे उन्हें बदनाम करना चाहते हैं।

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