
भौतिकी क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले महान वैज्ञानिक अब्दुस सलाम केवल पाकिस्तान नहीं अपितु दुनिया के पहले मुसलमान हैं। पाकिस्तान में परमाणु कार्यक्रम के जनक तथा कई वैज्ञानिक संस्थाओं की नींव रखने वाले अब्दुस सलाम को पाकिस्तान ने अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से भी नवाजा। परन्तु हैरानी की बात यह है कि नोबेल विजेता अब्दुस सलाम को पाकिस्तानी इतिहास के पन्नों में दफन कर दिया गया। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने अपने ही देश के इस महान वैज्ञानिक से मुस्लिम होने तक का दर्जा छीन लिया। पाकिस्तानी कट्टरपंथियों ने अब्दुस सलाम की कब्र तक तोड़ दी। यहां तक कि स्थानीय अधिकारियों ने अब्दुस सलाम की कब्र पर लगे पत्थर से ‘मुस्लिम’ शब्द तक को मिटा दिया। आखिर में पाकिस्तान ने महान वैज्ञानिक अब्दुस सलाम के साथ ऐसा क्यों किया? इस महत्वपूर्ण तथ्य को जानने के लिए यह रोचक स्टोरी जरूर पढ़ें।
अहमदिया मुसलमान थे अब्दुस सलाम
धर्म के नाम पर जन्मा पाकिस्तान अपनी मजहबी कट्टरता के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है। असली स्टोरी तब शुरू होती है जब पाकिस्तान की संसद ने 7 सितंबर 1974 को एक संवैधानिक संशोधन के जरिए अहमदिया मुसलमानों को मुसलमान मानने से इनकार कर दिया। दरअसल पाकिस्तान के लोग अहमदिया मुसलमानों को काफिर मानते हैं।
इसके पीछे का तर्क यह है कि अहमदिया आन्दोलन के संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद को उनके अनुयायी खुदा का पैगम्बर मानते हैं जबकि इस्लाम में खुदा के अन्तिम पैगम्बर मुहम्मद साहब हैं। संयोगवश पाकिस्तान के नोबेल पुरस्कार विजेता अब्दुस सलाम भी अहमदिया मुसलमान थे, फिर क्या इसका खामियाजा उन्हें आजीवन भुगतना पड़ा।
जानकारी के लिए बता दें कि साल 1979 ई. में अब्दुस सलाम को ‘इलेक्ट्रोवीक थ्योरी’ के लिए भौतिकी क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिला। अब्दुस सलाम फिजीक्स में नोबेल पाने वाले केवल पाकिस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के पहले मुसलमान थे बावजूद इसके उन्हें पाकिस्तानी इतिहास के पन्नों से दरकिनार कर दिया गया।
नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद अब्दुस सलाम को सैन्य शासक जिया-उल-हक ने 1980 में संसद के बंद सत्र में पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से भी नवाजा। कहते हैं पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार ने ऐसा मजबूरी में किया था क्योंकि अब्दुस सलाम की चर्चा उस वक्त पूरी दुनिया में हो रही थी। यहां तक कि 1998 ई.में पाकिस्तान सरकार ने अब्दुस सलाम की उपलब्धियों को ध्यान में रखकर एक ‘स्मारक टिकट’ भी जारी किया था।
अब्दुस सलाम को मिली अहमदिया मुसलमान होने की सजा
नोबेल पुरस्कार विजेता अब्दुस सलाम की कहानी उनके अपने घर पाकिस्तान में ही पूरी तरह से मिटा दी गई। आज की तारीख में पाकिस्तानी अवाम के बीच वह चर्चा का हिस्सा भी नहीं हैं। दरअसल अहमदिया मुसलमान होना ही अब्दुस सलाम का सबसे बड़ा गुनाह था क्योंकि केवल पाकिस्तान ही नहीं पूरी मुस्लिम दुनिया में अहमदिया समुदाय को प्रताड़ना का दंश झेलना पड़ता है।
अब्दुस सलाम साल 1960 से 1974 तक पाकिस्तान सरकार के शीर्ष वैज्ञानिक सलाहकार रहे। साल 1961 में पाकिस्तान में अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत भी अब्दुस सलाम ने ही की थीं। यहां तक कि 1970 ई. में पाकिस्तान में परमाणु हथियार बनाने के कार्यक्रम में भी उनका नाम सामने आया। पाकिस्तान में कई वैज्ञानिक संस्थाओं की आधारशिला रखने वाले तथा 1972 में पाकिस्तान के परमाणु बम परियोजना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अब्दुस सलाम को पाकिस्तान का ‘वैज्ञानिक पिता’ कहना कत्तई अनुचित नहीं होगा।
यूं कहिए पाकिस्तान को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाने के पीछे अब्दुस सलाम की ही महती भूमिका थी, परन्तु इसका क्रेडिट उन्हें आजीवन नहीं मिला। इस्लाम में गहरी आस्था रखने वाले वैज्ञानिक अब्दुस सलाम ने नोबेल जीतने के बाद कुरान की आयतें पढ़ी थीं। ऐसे में पूरी दुनिया ने उन्हें नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले मुसलमान के रूप में देखा परन्तु उन्हें सबसे बड़ा आघात तो तब पहुंचा जब साल 1974 में पाकिस्तान ने अब्दुस सलाम को मुसलमान मानने से ही इनकार कर दिया।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने साल 1984 में अहमदिया समुदाय पर एक अन्य धार्मिक प्रतिबन्ध भी लगा दिया, जिसके तहत किसी भी अहमदिया मुसलमान के इस्लामी अभिवादन करने पर उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है।
इस्लामिक संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी’ द्वारा महान वैज्ञानिक अब्दुस सलाम पर हमले की चेतावनी देने तथा पाकिस्तानी विश्वविद्यालयों द्वारा अनदेखा किए जाने के बावजूद भी पाकिस्तान के प्रति उनका समर्पण कभी कम नहीं हुआ। अब्दुस सलाम ने ब्रिटेन और इटली की नागरिकता का प्रस्ताव ठुकराकर पाकिस्तानी पासपोर्ट को हमेशा अपनी जेब में रखा।
साल 1996 में अब्दुस सलाम की मौत के बाद उन्हें पाकिस्तान के राबवाह शहर में दफनाया गया। फिर भी पाकिस्तान के कट्टर मजहबियों ने उनकी कब्र तोड़ दी, यहां तक कि स्थानीय अधिकारियों ने अब्दुस सलाम की कब्र के पत्थर पर लिखे ‘पहला मुस्लिम नोबेल लॉरेट’ से मुस्लिम शब्द कुरेद कर मिटा दिया।
अहमदिया मुस्लिम एसोसिएशन, ब्रिटेन के प्रेस सचिव बशरत नजीर के मुताबिक, “पाकिस्तान से हमेशा मुहब्बत करने वाले अब्दुस सलाम को पूरी दुनिया से सम्मान मिला परन्तु उनके अपने देश ने ही उन्हें प्यार नहीं दिया।”
महान वैज्ञानिक अब्दुस सलाम की हैरतअंगेज कहानी
दुनियाभर में अहमदिया मुसलमानों की आबादी तकरीबन एक करोड़ है जिसमें 40 लाख अहमदिया मुसलमान केवल पाकिस्तान में रहते हैं। अहमदिया समुदाय के शख्स अब्दुस सलाम की जन्म 1926 में पंजाब प्रांत के झांग जिले में एक साधारण परिवार में हुआ था।
झांग से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद अब्दुस सलाम ने लाहौर यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा प्राप्त किया। 18 वर्ष की उम्र में भारतीय गणितज्ञ रामानुजन पर रिसर्च पेपर लिखने वाले अब्दुस सलाम स्कॉलरशिप मिलने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए यूके की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए और गणित का प्रोफेसर बनकर पाकिस्तान लौटे।
साल 1953 में लाहौर में अहमदियों के खिलाफ मजहबी दंगे भड़कने की वजह से अब्दुस सलाम ने पाकिस्तान छोड़ दिया और वापस कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी लौट गए। इसके बाद उन्होंने इम्पीरियल कॉलेज, लंदन में थियोरेट्रिकल फिजिक्स डिपार्टमेंट की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हांलाकि पाकिस्तान छोड़ने के बाद भी अब्दुस सलाम अपने देश की महत्वपूर्ण वैज्ञानिक परियोजनाओं से जुड़े रहे। बतौर उदाहरण- 1960 से 1974 ई. तक पाकिस्तान सरकार के शीर्ष वैज्ञानिक सलाहकार, साल 1961 में पाकिस्तान में अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की तथा 1970 से 1972 ई. तक पाकिस्तानी परमाणु बम परियोजना का महत्वपूर्ण हिस्सा थे महान वैज्ञानिक अब्दुस सलाम।
इतना ही नहीं, अब्दुस सलाम में 1964 ई. में विकासशील देशों के वैज्ञानिकों की मदद के लिए इटली में इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेट्रिकल फिजिक्स की स्थापना भी की थी। परन्तु 1979 ई. में नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद भी अपने ही घर पाकिस्तान में गैर मुस्लिम घोषित किए जा चुके अब्दुस सलाम की महान उपलब्धियों को हमेशा के लिए भूला दिया गया।
हाल में ही नेटफ्लिक्स पर आई एक नई डॉक्यूमेंट्री, “सलाम, द फर्स्ट ****** नोबेल लॉरेट” इन दिनों जबरदस्त सुर्खियों में है जिसे पाकिस्तानी अवाम में बड़े जोरशोर से देखा जा रहा है। इस डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक थावर के मुताबिक, "विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले मुस्लिम के नाम से 'मुस्लिम' शब्द ही मिटा दिया गया। यह धरती के सबसे प्रतिष्ठित बेटे का अंतिम अपमान है।"