मध्यकाल में आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न भारत की सम्पत्ति राजपरिवारों तथा व्यापारिक वर्ग के हाथों में संचित थी। इनके अतिरिक्त यहां के विशाल मंदिर भी धन के खजाने बने हुए थे। भारत के इन मंदिरों के पास इतना खजाना होता था कि ये व्यापार और वाणिज्य में भी महती भूमिका निभाते थे। राजाओं, कुलीनों तथा जनता से दान में प्राप्त कर मुक्त भूमि, आभूषण आदि से भारत के मंदिर दिन-प्रतिदिन समृद्ध होते गए। मंदिर में विराजमान भगवान के सम्मुख जाकर लोग मन्नतें मांगते हैं और इसके पूरी होने पर अपनी हैसियत के हिसाब से स्वर्ण-आभूषण और रुपए आदि दान करते हैं।
हमारे देश में आज भी ऐसे अनेक मंदिर हैं जो अकूत सम्पत्ति के मालिक हैं। भारत के शीर्ष पांच सबसे अमीर मंदिरों में दूसरे स्थान पर तिरूपति बालाजी का मंदिर है, जिसकी सालाना आमदनी 650 करोड़ रुपए है। जबकि तीसरे स्थान पर वैष्णो देवी मंदिर है, जिसकी सालाना कमाई 500 करोड़ रुपए है। वहीं प्रतिवर्ष 360 करोड़ रुपए की कमाई के साथ शिरडी का साईं मंदिर चौथे स्थान पर है। जबकि सालाना 125 करोड़ रुपए की कमाई के साथ सिद्धि विनायक मंदिर पांचवें स्थान पर है। अब आप सोच रहे होंगे आखिर भारत का ऐसा कौन सा मंदिर है जो सबसे धनी है। जी हां, केरल के तिरुवनंतपुरम में मौजूद पद्मनाभ स्वामी मंदिर न केवल भारत का सबसे अमीर मंदिर है बल्कि इसे दुनिया का सबसे अमीर मंदिर कहा जाता है। इस स्टोरी में हम आपको पद्मनाभस्वामी मंदिर की सम्पत्ति बताएंगे जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
पद्मनाभस्वामी मंदिर का निर्माण
पद्मनाभस्वामी मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की शयनावस्था में एक विशाल मूर्ति विराजमान है। आठवी सदीं में निर्मित यह भव्य मंदिर भारत के 108 विष्णु मंदिरों में से सर्वाधिक प्रख्यात मंदिर है। भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है। इसीलिए इस मंदिर का नाम पद्मनाभस्वामी मंदिर पड़ा जबकि केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम का नाम भगवान विष्णु के ‘अनंत नाग’ के नाम पर पड़ा। पद्यमनाभ स्वामी मंदिर स्थित सरोवर का नाम ‘पद्मतीर्थ कुलम' है। पद्यनाभ स्वामी मंदिर को सर्वप्रथम किसने बनवाया यह अभी तक अज्ञात है। परन्तु इसके पीछे एक मान्यता यह है कि यहां सबसे पहले भगवान विष्णु की मूर्ति प्राप्त हुई थी, इसके बाद इसी जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया। यद्यपि पद्मनाभस्वामी मंदिर का उल्लेख 9वीं सदी के ग्रन्थों में भी मिलता है परन्तु इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1733 में त्रावणकोर के राजा मार्तण्ड ने करवाया था।
कहते हैं साल 1750 में राजा मार्तण्ड ने खुद को पद्मनाभ दास बताया। इसके बाद त्रावणकोर के शाही परिवार ने खुद को भगवान के लिए समर्पित कर दिया। यही वजह है कि त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी सारी दौलत पद्मनाभ स्वामी मंदिर को सौंप दी। त्रावणकोर शाही राजपरिवार सन् 1947 तक राज करता रहा परन्तु देश के आजाद होने के बाद भारत सरकार ने पद्यनाभ स्वामी मंदिर को शाही परिवार के अधीन ही रहने दिया। तब से इस मंदिर को त्रावणकोर राजपरिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर से जुड़ा अनोखा रहस्य
पद्मनाभ स्वामी मंदिर के गर्भगृह के नीचे सात बड़े तहखाने मौजूद हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अब तक छह तहखाने खोले जा चुके हैं, जिनसे बेशुमार दौलत मिली है। परन्तु सातवां तहखाना इतना रहस्यमयी है कि इसे खोलने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा है। मंदिर प्रशासन का कहना है कि यदि सातवां तहखाने को खोला गया तो दैवीय आपदा आ सकती है। वहीं त्रावणकोर शाही परिवार ने सातवें तहखाने के खोलने का विरोध किया है। शाही परिवार का कहना है कि सातवां तहखाने में भगवान की दौलत है, इसे उन्हीं के पास रहने दें। इस अंतिम तहखाने को खोलना भगवान की इच्छा के विरुद्ध है।
सातवें तहखाने पर दो विशालकाय नाग बने हुए हैं, एक कहानी के मुताबिक मंदिर के इस तहखाने में नाग मौजूद हैं जो खजाने की रक्षा करते हैं। अंतिम तहखाने यानि सातवें दरवाजे से जुड़ी एक मान्यता यह भी कि इसे ‘नागपाशम’ जैसे शक्तिशाली मंत्र से रक्षित किया गया है, ऐसे में ‘गरूड़ मंत्र’ का ज्ञाता ही इस रहस्यमयी तहखाने को खोल सकता है।
पद्यनाभ स्वामी मंदिर की अकूत सम्पत्ति
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर को भारत ही नहीं अपितु दुनिया का सबसे अमीर मंदिर माना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में स्थापित महाविष्णु की मूर्ति स्वर्ण निर्मित है। इस स्वर्ण मूर्ति की कीमत तकरीबन 500 करोड़ रुपए है। इसके अतिरिक्त खजाने में भगवान के पास हजारों सोने की जंजीरें हैं और इनमें से एक सोने की जंजीर 18 फीट की है। निष्कर्षतया श्री पद्मनाभस्वामी की 18 फ़ीट लंबी मूर्ति को सुशोभित करने के लिए तैयार किए गए मुकुट, कंगन, अंगूठी, रत्न जड़ित हार, अनूठे हार आदि की क़ीमत क़रीब एक लाख करोड़ रुपए है। जबकि भगवान का पर्दा ही 36 किलोग्राम सोने का है। इतना ही नहीं स्वर्ण मूर्तियां के अतिरिक्त 20 किलो की स्वर्ण पोशाक तथा सोने के सिंहासन आदि मिले हैं।
मंदिर के खजाने से हीरा, नीलम, पन्ना और माणिक जैसी बेशकीमती रत्नों के साथ ही रोमन, मध्ययुगीन, नेपोलियन और ब्रितानी काल के सोने के सिक्कों से भरी बोरियां निकलीं जिनमें से कुछ बोरियों का वजन 8 क्विंटल तक है। कुल मिलाकर पद्मनाभ स्वामी मंदिर के कुल सात तहखानों में से छह तहखानों से अब तक इतना खजाना मिल चुका है जिसकी कीमत कई छोटे देशों की इकोनॉमी के बराबर है। साल 2011 में कैग की निगरानी में मंदिर के छह तहखानों से अब तक तकरीबन 1 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा यानि कि एक लाख करोड़ रुपए का खजाना मिल चुका है। हांलाकि अभी सातवें तहखाने को खोलना बाकी है। ऐसा माना जाता है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर के पास 2 लाख करोड़ रुपए की दौलत है। यही वजह है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर को भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे अमीर मंदिर माना जाता है।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर पहुंचने के यातायात साधन
पद्मनाभ स्वामी मंदिर पहुंचने के लिए हवाई, ट्रेन तथा बस सेवाएं उपलब्ध हैं। यदि आप हवाई जहाज से पद्मनाभ स्वामी मंदिर जाना चाहते हैं तो देश के महानगरों- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता से तिरुवनंतपुरम के लिए सीधी फ्लाइट्स हैं। जबकि सभी बड़े शहरों से तिरुवनंतपुरम के लिए आपको ट्रेन मिल जाएगी। केरल के तकरीबन सभी शहरों से भी तिरुवनंतपुरम के लिए बस सेवा उपलब्ध है।
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