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Malik Kafur was loyal slave of Alauddin Khilji who ruined khilji dynasty

एक खूबसूरत और ताकतवर हिजड़े ने बर्बाद कर दी थी अलाउद्दीन खिलजी की सत्ता

अलाउद्दीन खिलजी के सुल्तान बनने के बाद 1299 ई. के उत्तरार्ध में उसके दो खास सैन्य कमांडरों उलूग खां और नुसरत खां के नेतृत्व में गुजरात पर आक्रमण किया गया। उस समय गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ (पाटन) थी और बघेल शासक कर्ण वहां शासन करता था। गुजरात आक्रमण के दौरान राजा कर्ण ने अहमदाबाद के निकट खिलजी सेनानायकों से मुकाबला किया लेकिन उसे करारी शिकस्त मिली। ऐसे में राजा कर्ण ने अपनी पुत्री देवलदेवी के साथ भागकर देवगिरी के शासक रामचन्द्रदेव के यहां शरण ली। इस सैन्य अभियान में राजा कर्ण का समस्त खजाना और उसकी पत्नी कमलादेवी भी दिल्ली की शाही सेना के हाथ लगी। हांलाकि कमलादेवी ने अलाउद्दीन से विवाह कर लिया और वह उसकी प्रिय पत्नी बनी। इसके अतिरिक्त गुजरात सैन्य अभियान के दौरान अलाउद्दीन खिलजी को मलिक काफूर नामक एक नायाब तोहफा भी मिला।

दरअसल अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य कमांडर नुसरत खां ने जब बंदरगाह शहर खंभात पर कब्जा किया उसी दौरान उसने हिन्दू से मुसलमान बनाए गए एक खूबसूरत हिजड़े मलिक काफूर को हजार दीनार में खरीदा था। इसीलिए मलिक काफूर को हजारदीनारी भी कहा जाता था। इतिहासकार अब्दुल मलिक ईसामी के मुताबिक, “मलिक काफूर युवावस्था में खम्भात के एक धनी ख्वाजा का गुलाम था। अतः बेहद खूबसूरत दिखने वाले गुलाम मलिक काफूर को नपुंसक बना दिया गया था।

इस सम्बन्ध में जेएनयू के प्रोफ़ेसर नजफ़ हैदर का कहना है कि उस दौर में काफूर हिजड़ों के ही नाम हुआ करते थे। उन दिनों जिन लोगों को कैस्ट्रेशन (बधिया) से हिजड़ा बनाया जाता था, उनकी तीन श्रेणियां हुआ करती थीं और उस कैटेगरी के हिसाब से ही ऐसा नाम मिला करता था। अलाउद्दीन खिलजी ने ही काफूर को मलिक की उपाधि दी थी।

प्रोफेसर हैदर कहते हैं कि उन दिनों गुलामों को खरीदकर फिर उन्हें प्रशिक्षण देकर सैन्य कमांडर बनाया जाता था क्योंकि उनकी वफादारी बहुत अहम होती थी। अतः गुलाम मलिक काफूर जिसका एक नाम ताज अल-दिन इज्ज अल-द्वा भी था, देखते ही देखते सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का सबसे वफादार और साम्राज्य का सबसे ताकतवर शख्स बन गया।

इस बारे में फारसी इतिहासकार मोहम्मद कासिम फेरिश्ता अपनी किताब में लिखते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी पूरी तरीके से अनपढ़ था इसलिए वह मलिक काफूर पर निर्भर होता चला गया। मलिक काफूर ने इसका फायदा उठाया, वह सल्तनत के रोजमर्रा के काम से लेकर वित्तीय मामलों में भी दखल देने लगा, यहां तक कि हरम का सर्वेसर्वा बन गया। एक सैनिक से नायक का रैंक हासिल करते हुए मलिक काफूर खिलजी की सेना का जनरल बन गया।

मलिक काफूर ने 1306 ई. में एक सैन्य कमांडर के रूप में मंगोल आक्रमणकारियों को हराकर पहली बार अपनी सैन्य प्रतिभा का परिचय दिया। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत को विजित करने की जिम्मेदारी मलिक काफूर को सौंप दी। मलिक काफूर ने 1306-07 ई. में देवगिरी, 1309 ई. में तेलंगाना, 1310 ई. में होयसल तथा 1311 ई. में पाण्डय राज्य को अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार वह अकूत धन-सम्पति तथा अनगिनत हाथी-घोड़े लेकर उत्तर भारत वापस लौटा था। अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण भारत की विजय का प्रमुख श्रेय मलिक काफूर को ही जाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मलिक काफूर की दक्षिण भारत में विजयों के कारण ही अलाउद्दीन खिलजी उत्तर भारत में अपनी मजबूत सत्ता स्थापित कर सका लेकिन सुल्तान के अंतिम दिन उसके लिए बेहद कष्टप्रद साबित हुए। अलाउद्दीन खिलजी का बड़ा बेटा खिज्र खां भोग-विलासी हो चुका था, उसकी पत्नी मलिका-ए-जहान उससे उदासीन होकर अपने विलास में मस्त थी तथा अपने भाई अलप खां के साथ मिलकर मलिक काफूर की शक्ति को कमजोर करने में लगी हुई थी।

1313 ई. में जब मलिक काफूर देवगिरी के द्वितीय अभियान पर चला गया तब मलिका-ए-जहान ने अपने दूसरे पुत्र शादीखां का विवाह अलप खां की दूसरी पुत्री से तथा खिज्र खां का विवाह राजा कर्ण की पुत्री देवलदेवी से कर दिया। इसी बीच अलाउद्दीन बीमार पड़ गया, इस दौरान सुल्तान ने देखा कि उसकी पत्नी और उसके पुत्र उसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं करते। अतः 1315 ई. में सुल्तान ने अपने सबसे खास शख्स मलिक काफूर को दक्षिण भारत से बुलवा लिया।

मलिक काफूर ने सुल्तान की मृत्यु निकट जानकर सत्ता स्थापित करने का प्रयत्न किया। मलिक काफूर सर्वप्रथम अलाउद्दीन खिलजी को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया कि खिज्र खां, मलिका-ए-जहान और अलप खां उसके शत्रु हैं। इसलिए अलाउद्दीन जब बिस्तर पर था तब उसने सबसे पहले सैन्य कमांडर अलप खां की महल में ही हत्या कर दी।

मलिका-ए-जहान को कैद कर लिया गया तथा खिज्र खां को पहले अमरोहा भेजा गया और बाद में ग्वालियर के किले में कैद कर दिया गया। मलिक काफूर राज्य का सर्वेसर्वा बन गया और अलाउद्दीन खिलजी मूक बना देखता रहा। कुछ विद्वानों का कहना है कि मलिक काफूर ने अलाउद्दीन खिलजी को धीमा जहर दे दिया था, आखिरकार 5 जनवरी 1316 ई. को उसकी मृत्यु हो गई।

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर ने खिलजी वंश की सत्ता हड़पने की कोशिश की। उसने सुल्तान के बड़े पुत्र खिज्र खां को राज्याधिकार से वंचित करके पांच या छह वर्ष के शिहाबुद्दीन उमर को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया और स्वयं उसका संरक्षक बन गया। इस प्रकार मलिक काफूर ने राज्य की सम्पूर्ण शक्ति अपने हाथों में ले ली।

मलिक काफूर ने शिहाबुद्दीन उमर की मां (देवलदेवी) से शादी कर ली लेकिन शीघ्र ही उसने नवविवाहिता पत्नी की धन-सम्पति छीनकर उसे कारागार में डलवा दिया। यहां तक उसने खिज्र खां और शादी खां को ग्वालियर के किले में कैद करके अन्धा करवा दिया। अलाउद्दीन खिलजी के अन्य पुत्र भी कारागार में डाल दिए गए। सम्भवतः मलिक काफूर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सभी पुत्रों को खत्म करके शीघ्र ही सिंहासन पर कब्जा करना चाहता था।

मलिक काफूर को शासन-सत्ता संभाले अभी 35 दिन भी नहीं बीते थे कि उसने अपने कुछ सैनिकों को अलाउद्दीन खिलजी के तीसरे पुत्र मुबारक खां को भी अन्धा करने के लिए भेजा। परन्तु मुबारकखां ने अपना हीरों का हार उन सैनिकों को भेंट में दिया और उन्हें खिलजी वंश के प्रति वफादारी की कसम दिलाई। ऐसे में धन के लालच तथा भावना से प्रेरित होकर वे पैदल सैनिक मलिक काफूर के पास पहुंचे और उसका कत्ल कर दिया।

मुबारक खां को कारगार से छुड़ाकर जब उसे शिहाबुद्दीन उमर का संरक्षक बनाया गया तो दो माह के पश्चात उसने खिलजी सरदारों को अपने पक्ष में करके शिहाबुद्दीन को अन्धा करके उसे ग्वालियर के किले में कैद करा दिया और स्वयं कुतुबुद्दीन मुबारक के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

हांलाकि मुबारक खां अपने योग्य पिता का अयोग्य पुत्र साबित हुआ। 15 अप्रैल 1320 ई. की रात को मुबारकशाह के वजीर खुसरवशाह के सैनिकों ने महल में प्रवेश कर सबसे पहले सुल्तान के अंगरक्षकों का कत्ल कर दिया। इसके बाद मुबारक शाह अपनी जान बचाने के लिए जैसे ही जनानखाने की तरफ भागा, खुसरवशाह ने उसके बाल पकड़ लिए लेकिन सुल्तान मुबारक खां उसे गिराकर उसके सिने पर बैठ गया। तभी खुसरवशाह के हत्यारे वहां पहुंच गए और उन्होंने सुल्तान मुबारक खां की भी हत्या कर दी। इसी के साथ खिलजी वंश के आखिरी दावेदार का भी खात्मा हो गया।

गौरतलब है कि जिस मलिक काफूर ने खिलजी वंश को मजबूत करने में अपनी महती भूमिका निभाई थी, उसी ने अलाउद्दीन के वंशजों को इतना कमजोर कर दिया कि खिलजी वंश का पतन हो गया।

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