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Mahmud Ghaznavi had looted thousands of gold idols from Lord Krishna temples in Mathura

मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिरों से हजारों स्वर्ण मूर्तियां लूट ले गया था महमूद गजनवी

आज जन्माष्टमी है, ऐसे में पूरे देश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पूरे धूमधाम से मनाया जा रहा है। जन्माष्टमी के दिन सुबह से ही श्रीकृष्ण मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। यदि भारत के श्रीकृष्ण मंदिरों की बात की जाए तो मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिरों की भव्यता अतुलनीय है। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में आज भी कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी भव्यता देखते ही बनती है, जैसे- प्रेम मंदिर, इस्कॉन टेम्पल, द्वारकाधीश मंदिर, बिड़ला मंदिर, केशवदेव मंदिर, श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर।

यदि हम आपसे मथुरा के प्राचीन मंदिरों की बात करें तो इनकी समृद्धि-वैभव देखकर मुस्लिम आक्रमणकारी भी चकित रह गए थे। खासकर मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिरों की सोने-चांदी, हीरे और जवाहररात, नीलम आदि से भरी पड़ी बेशकीमती मूर्तियों को देखकर अफगान आक्रमणकारी महमूद गजनवी अवाक रह गया था। महमूद गजनवी को मथुरा के मंदिरों से जो अकूत धन-सम्पत्ति मिली थी, उसका वर्णन इतिहासकार उत्बी और फरिश्ता ने जिस प्रकार से किया है, उसे जानकर आप दंग रह जाएंगे।

महमूद गजनवी का मथुरा आक्रमण

अंग्रेज इतिहासकार सर हेनरी इलियट लिखते हैं कि महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए। यद्यपि सभी आक्रमणों के बारे में सर्वस्वीकृत प्रमाण प्राप्त नहीं होते फिर भी सभी इतिहासकार यह अवश्य मानते हैं कि महमूद गजनवी ने भारत पर कम से कम 12 बार आक्रमण जरूर किए। महमूद गजनवी के आक्रमणों की संख्या से अंदाजा लगा सकते हैं जैसे कि उसने प्रतिवर्ष भारत पर आक्रमण करने का प्रण ले लिया था। प्रत्येक आक्रमण में उसने किसी न किसी मंदिर को अपना निशाना जरूर बनाया, जहां अकूत सम्पदा रखी हुई थी।

इस बारे में एफएस ग्रौसे अपनी किताब मथुरा-वृंदावन: द मिस्टिकल लैंड ऑफ लॉर्ड कृष्णामें लिखता है कि महमूद गजनवी ने श्रीकृष्ण मंदिर के साथ-साथ शहर के सैकड़ों मंदिरों का विध्वंस कर दिया था। उसने इन मंदिरों को लूटने के साथ ही पूरे शहर में भी जमकर उत्पात मचाया था।

जानकारी के लिए बता दें कि अफगान आक्रमणकारी महमूद गजनवी ने विक्रम संवत 1074 में मथुरा पर आक्रमण किया था। महमूद गजनवी मेरठ होते हुए महावन पहुंचा जहां यदुवंशी राजा कुलचंद का सुदृढ़ दुर्ग था। महमूद गजनवी के इस आक्रमण में कुलचंद को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा, तकरीबन 50 हजार सैनिक मारे गए। अंत में कुलचंद ने पहले अपनी रानी और फिर स्वयं को तलवार से समाप्त कर लिया। महावन से महमूद गजनवी को 185 सुन्दर हाथी और अपार धन-सम्पत्ति प्राप्त हुई। इसके बाद उसने मथुरा पर आक्रमण किया। अफगान आक्रमणकारी महमूद गजनवी ने जब मथुरा में प्रवेश किया तो यहां के श्रीकृष्ण मंदिरों में भरी पड़ी बेशकीमती मूर्तियों को देखकर अवाक रह गया, अत: उसने तकरीबन 20 दिनों तक मथुरा को जमकर लूटा।

मथुरा के मंदिरों से लूट ले गया हजारों स्वर्ण मूर्तियां

अफगान आक्रमणकारी महमूद गजनवी का दरबारी इतिहासकार अल-उत्बी अपनी किताब तारीख-ए-यामिनी में लिखता है, “मथुरा के मंदिरों की भव्यता देखकर हैरान महमूद ने कहा कि यदि कोई ऐसी इमारतें बनाना चाहे तो उसे 100 करोड़ दीनार खर्च करने पड़ेंगे। माहिर कारीगरों को भी इसे बनाने में कम-से-कम 200 साल लगेंगे।

इतिहासकार उत्बी लिखता है कि मथुरा के मन्दिरों में सोने-चांदी की हीरे-जवाहरातों से जड़ी हुई हजारों मूर्तियां थीं। उनमें से कुछ सोने की मूर्तियां पांच-पांच हाथ ऊँची थीं, जिनमें से एक में 50000 दीनार के मूल्य की लाल मणियां जड़ी हुई थी। विभिन्न मूर्तियों के नीचे अतुल धन राशि गड़ी हुई थी जिसे महमूद ने प्राप्त किया।” 

वहीं फारसी इतिहासकार फरिश्ता के शब्दों में मथुरा के मंदिरों से पांच स्वर्ण मूर्तियां मिली, जिनकी आंखें मणिक की थीं, जिनकी कीमत 50000 दीनार थी। एक अन्य मूर्ति पर नीलमणि पाया गया जिसका वजन 400 मिस्कल था। इस मूर्ति के पिघलाने पर 98300 मिस्कल । (एक मिश्कल 143 ग्राम का होता है) शुद्ध सोना  निकला। इन मूर्तियों के अलावा चांदी की 100 से अधिक मूर्तियां थीं जिन्हें ऊंटों पर लादकर ले जाया गया।

वहीं ब्रज शोध संस्थान के राजेश शर्मा के अनुसार, “एक स्वर्ण मूर्ति 14 मन की थी जिसमें करीब डेढ़ सेर का नीलम जड़ा था। एक सोने की मू​र्ति तो 94 मन की थी। चांदी की दो सौ मूर्तियां थीं। एक नीलम तो 450 मिश्कल का था तथा दो हीरों की कीमत पांच हजार दीनार के बराबर थी। मथुरा के मंदिरों से प्राप्त हीरे-जवाहरात, नीलम, सोने-चांदी को देखकर अफगान आक्रमणकारी महमूद गजनवी के लुटेरों को लगा कि जैसे रत्नों की खान उनके हाथ लग गई है।” 

केशव मंदिर को विध्वंस कर लूट ले गया स्वर्ण मूर्तियां

मथुरा का केशवदेव मंदिर इतना भव्य और विशाल था जिसे देखकर हर कोई चकित रह जाता था। फ़्रांसीसी यात्री टवेर्नियर लिखता है कि यह मंदिर भारत के सबसे भव्य और सुन्दर इमारतों में से एक है, जो 5 से 6 कोस की दूरी से दिखाई देता है। वहीं इतालवी लेखक और यात्री मनूची जो भारत में काफी समय तक रहा। वह अपने यात्रा वृतांत में लिखता है कि केशवदेव मंदिर का सुवर्णाच्छादित शिखर इतना ऊंचा था कि वह 18 कोस यानी 36 मील दूर आगरा से भी दिखाई देता था।

केशवदेव मंदिर की भव्यता से चिढ़कर महमूद गजनवी ने इसे तोड़ने का आदेश ​दे दिया। केशवदेव मंदिर की भव्यता के बारे में महमूद गजनवी का सचिव उत्बी लिखता है कि शहर के बीचोबीच स्थित यह मंदिर शहर की सभी इमारतों में विशाल और भव्य था। यहां के निवासियों का मानना था कि इसे मनुष्यों ने नहीं, देवताओं ने बनवाया होगा। धर्मपरायण राजा-महाराजा और सेठ-साहूकारों द्वारा अर्पित अपार संपत्ति यहां शताब्दियों से संचित थी।

उत्बी आगे लिखता है कि, “महमूद गजनवी को केशवदेव मंदिर से इतना सोना मिला था जिसे ले जाना सम्भव नहीं था, इसलिए काफी मात्रा में सोना गला दिया गया। कहते हैं, मथुरा से प्राप्त सोने-चांदी को ले जाने के लिए महमूद गजनवी ने कई ऊँटों का इस्तेमाल किया था।

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