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Mahmud Ghaznavi's prisoner of war who presented Shrimad Bhagavad Gita in front of Muslims for the

महमूद गजनवी का वह युद्धबंदी जिसने पहली बार मुसलमानों के सामने रखा श्रीमद्भगवद्गीता

यह बात ग्यारहवी शताब्दी की है जब राजवंशों, जातियों और उपजातियों में बंटा भारत राजनीतिक, सामाजिक, नैतिक और सैनिक दृष्टि से भी दुर्बल हो चुका था। इतना ही नहीं, आर्थिक दृष्टि से संपन्न भारत की सम्पत्ति कुछ विशेष वर्गों के हाथों में संचित हो गई थी। राज्य परिवार, व्यापारी वर्ग के अतिरिक्त मंदिर भी धन के खजाने बने हुए थे। जाहिर सी बात है विदेशी आक्रमणकारियों के लिए कुछ विशेष स्थानों पर संचित धन लालच का कारण बना। ऐसे में भारत की सम्पत्ति एक दुर्बल व्यक्ति की सम्पत्ति के समान थी जिसको हथियाने के लिए कोई भी शक्तिशाली व्यक्ति लालच कर सकता था। विध्वंसक लुटेरे और गजनी के शासक महमूद गजनवी ने ऐसा ही किया।

सर हेनरी इलियट लिखते हैं कि महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किए। यद्यपि सभी आक्रमणों के बारे में सर्वस्वीकृत प्रमाण प्राप्त नहीं होते फिर भी सभी इतिहासकार यह अवश्य मानते हैं कि महमूद गजनवी ने भारत पर कम से कम 12 बार आक्रमण जरूर किए। महमूद गजनवी के आक्रमणों की संख्या से अंदाजा लगा सकते हैं जैसे कि उसने प्रतिवर्ष भारत पर आक्रमण करने का प्रण ले लिया था। प्रत्येक आक्रमण में उसने किसी न किसी मंदिर को अपना निशाना जरूर बनाया, जहां अकूत सम्पदा रखी हुई थी।

बतौर उदाहरण-महमूद गजनवी ने यदुवंश के शासक कुलचन्द को परास्त करके मथुरा को अपनी इच्छानुसार लूटा। शाही इतिहासकार और महमूद गजनवी का सचिव उतबी लिखता है कि मथुरा के म​न्दिरों में सोने-चांदी की हीरे-जवाहरातों से जड़ी हुई हजारों मूर्तियां थीं। उनमें से कुछ सोने की मूर्तियां पांच-पांच हाथ ऊँची थीं, जिनमें से एक में 50000 दीनार के मूल्य की लाल मणियां जड़ी हुई थी। विभिन्न मूर्तियों के नीचे अतुल धन राशि गड़ी हुई थी जिसे महमूद ने प्राप्त किया।” 

वहीं फारसी इतिहासकार फरिश्ता के शब्दों में मथुरा के मंदिरों से पांच स्वर्ण मूर्तियां मिली, जिनकी आंखें मणिक की थीं, जिनकी कीमत 50000 दीनार थी। एक अन्य मूर्ति पर नीलमणि पाया गया जिसका वजन 400 मिस्कल था। इस मूर्ति के पिघलाने पर 98300 मिस्कल शुद्ध सोना निकला। इन मूर्तियों के अलावा चांदी की 100 से अधिक मूर्तियां थीं जिन्हें ऊंटों पर लादकर ले जाया गया।

काठियावाड़ में समुद्र तट पर स्थित सोमनाथ मंदिर के बारे में फरिश्ता लिखता है कि “2000 ब्राह्मणों के अलावा जो पुजारी के रूप में कार्य करते थे, मंदिर में 500 नर्तक महिलाएं, 300 संगीतकार और 300 नाई थे जो गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले भक्तों की हजामत बनाते थे।

एक अन्य उल्लेख के अनुसार, लाखों व्यक्तियों की प्रतिदिन की भेंट के अतिरिक्त 10000 गावों की आय सोमनाथ मंदिर को प्राप्त होती थी। हजारों प्रकार के हीरे-जवाहरातों से शिवलिंग का छत्र बना हुआ था, जिसमें 200 मन की सोने की जंजीर से उसका घंटा बजाया जाता था। 350 महिला-पुरूष सर्वदा शिवलिंग के सम्मुख नाचने के लिए रखे गए थे। मंदिर के गर्भगृह में अगाध संपत्ति एकत्र थी।

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि मंदिर में एक दीपक अलावा रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं थी क्योंकि मंदिर का सम्पूर्ण आतंरिक भाग मूर्तियों और दीवारों पर जड़े हुए रत्नों से इतना भरा था कि रत्नों पर लटकते दीपक का प्रतिबिम्ब आंतरिक भाग को उज्जवल कर देता था। ऐसी बहुमूल्य, अद्वितीय भव्य संरचना को महमूद गजनवी ने न केवल नष्ट किया बल्कि सोमनाथ मंदिर की अकूत सम्पत्ति लूटकर गजनी ले गया।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिन्दुस्तान के  प्रत्येक मंदिर में यही कहानी दोहराई गई। भारत की अकूत संपत्ति जिसमें शाही मुद्राएं, सिक्के, सोने-चांदी की शिलाएं और सुंदर, कोमल तथा जड़ाऊ वस्त्रों को महमूद ग़ज़नवी लूटकर अपने देश गजनी ले गया। महमूद गजनवी ने भारत से इतनी अकूत सम्पदा लूटी कि मध्य फ़ग़ानिस्तान में स्थित एक छोटा-सा नगर गजनी आर्थिक दृष्टि से इतर साहित्य और संस्कृति का एक केन्द्र बनकर उभरा। नतीजा दूरस्थ प्रान्तों के लोग भी गजनी में आकर बसने लगे।

इसी क्रम में एक कहानी शुरू होती है एक ऐसे शख्स की जो विध्वंसक लुटेरे महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। जी हां, उस शख्स का नाम अलबेरूनी था, जिसकी पहचान भारतीय इतिहास में एक लेखक, विद्वान, विचारक, खगोलशास्त्री, भाषाविद्, वैज्ञानिक और ज्योतिष के ज्ञाता के रूप में दर्ज है। भारत आगमन के दौरान जहां महमूद गजनवी की नजर केवल धन-सम्पदा पर ​थी वहीं अबेरूनी हिन्दुस्तान की बौद्धिक सम्पदा में डूबकी लगाने को आतुर था।

दरअसल विध्वंसक आक्रमणों के क्रम में जब महमूद गजनवी ने ख़्वारिज़्म (आधुनिक उज़्बेकिस्तान) के तत्कालीन मामूनी राज्य का विनाश कर वहां शासकों को कैद कर गजनी ले आया था, तब अन्य युद्धबंदियों के साथ  मामूनी राज्य के मंत्री अलबेरूनी को भी गजनी लाया गया। फिर क्या था कैदी अलबेरूनी को गजनी शहर धीरे-धीरे पसन्द आने लगा। बता दें कि अलबेरूनी के जीवन का अधिकांश समय गजनी में ही बीता, इस दौरान उसकी भारत के प्रति रुचि विकसित हुई। विद्वान अबेरूनी ईरानी, हिब्रू ,सीरियाई और संस्कृत भाषा का भी ज्ञाता था।

वह अरबी और फ़ारसी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार रखता था। उसने अपनी चर्चित पुस्तक किताब-उल-हिंद' फ़ारसी में ही लिखी थी। आपको जानकारी के लिए बता दें कि आठवी शताब्दी से ही संस्कृत में रचित खगोल-विज्ञान, गणित और चिकित्सा सम्बंधी कार्यों का अरबी भाषा में अनुवाद होने लगा था लिहाजा इन विषयों में विद्वान अलबेरूनी की पहले से ही रूचि ही थी।

महमूद ग़ज़नवी के भारत आक्रमण के समय राजनैतिक कैदी के रूप में अलबेरूनी भी साथ आया था। इस दौरान भारत की अकूत संपत्ति लौटने के बाद गजनवी अपनी सेना के साथ गजनी लौट गया लेकिन अलबेरूनी कई वर्षों तक भारत में ही रूका रहा। इस दौरान उसने हिन्दुस्तान की भाषा, धर्म और दर्शन का गहन अध्ययन किया और किताब-उल-हिंद की रचना की, जिसे तहक़ीक़-ए-हिंद भी कहा जाता है। किताब-उल-हिंद में अलबेरूनी ने हिन्दुस्तान के उत्सवों, रीति-रिवाजों, धर्म, दर्शन, खगोल विज्ञान, मूर्तिकला, भार तौल तथा मापन विधियों, सामाजिक जीवन का ​विशद वर्णन किया है।

अलबेरूनी ने भारतीय समाज का ज्ञान प्राप्त करने के लिए काशी के ब्राह्मणों से संस्कृत भाषा सीखी। अलबेरूनी ने भारतीय दर्शन के साथ-साथ पुराणों एवं भगवद्गीता का भी अध्ययन किया। विद्वानों के एक तबके का मानना है कि जिन दिनों भगवदगीता को भारत में ज्यादातर लोग भूल चुके थे, ​तब महमूद गजनवी के दरबारी अलबेरूनी द्वारा 11वीं सदी की शुरुआत में श्रीमद्भगवद्गीताकी प्रशंसा में लिखे गए शब्द दिलचस्प हो सकते हैं। अलबेरूनी ही वह पहला मुसलमान था, जिसने श्रीमद्भगवद्गीता को मुसलमानों के समक्ष रखा।

अलबेरूनी की प्रसिद्ध अरबी कृति तारीख़-उल-हिन्द (किताबुल हिन्द)  का  ​अंग्रेजी अनुवाद ई.सी.सचाऊ ने अपनी पुस्तक अलबेरूनी के भारत में किया है। इस पुस्तक में श्रीमद्भगवद्गीताके कुछ अंश उद्धृत किए गए हैं-

"निम्नलिखित अंश वासुदेव और अर्जुन के बीच हुई बातचीत से, भारत की एक पुस्तक गीता के एक भाग से लिया गया है...।"

पृष्ठ संख्या 64, (भारतीय साहित्य पर चर्चा)

इसके अलावा उनके पास एक पुस्तक है जिसे वे इतनी श्रद्धा से रखते हैं और बड़ी दृढ़ता से कहते हैं कि जो कुछ अन्य पुस्तकों में होता है वह इस पुस्तक में भी पाया जाता है, लेकिन इस पुस्तक में जो कुछ भी होता है वह अन्य पुस्तकों में नहीं मिलता है। इसे भारत कहा जाता है, यह पराशर के पुत्र व्यास द्वारा रचित है, यह पांडु और कुरू के पुत्रों के बीच हुए महान युद्ध के समय की है।

व्यास ने ब्रह्मा से किसी ऐसे व्यक्ति को लाने के लिए कहा जो उनकी श्रुतलेख से उनके लिए भारत लिख सके। अब उन्होंने यह कार्य अपने पुत्र विनायक को सौंपा, जिसे हाथी के सिर वाली मूर्ति के रूप में दर्शाया जाता है, और उसके लिए यह अनिवार्य कर दिया कि वह कभी भी लिखना बंद न करे। साथ ही व्यास ने उसके लिए यह भी अनिवार्य कर दिया कि वह केवल वही लिखे जो वह समझते हों। इसलिए व्यास ने अपने निर्देशन के दौरान ऐसे वाक्य लिखवाए जिससे लेखक को उन पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा और इस तरह व्यास को कुछ देर आराम करने का समय मिल गया।''

-पृष्ठ 200-203, (उस महाकाव्य की कहानी की संक्षिप्त रूपरेखा देते हैं, जो आज हमारे पास है।)

गौरतलब है कि दुनिया के मुसलमानों को श्रीमद्भगवद्गीता से पहली बार रूबरू कराने वाले कलम के महान विद्वान अलबेरूनी का निधन 13 दिसंबर, 1048 ई.में हुआ।