साल 1901 में महारानी विक्टोरिया के निधन के पश्चात प्रिन्स एडवर्ड सप्तम ब्रिटेन के नए राजा बने। 1902 ई. में एडवर्ड सप्तम के राजतिलक समारोह में दुनियाभर के विशिष्ट अतिथियों को आमंत्रित किया गया, इन्हीं में से एक नाम जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय का भी था। अत: एडवर्ड सप्तम के राजतिलक समारोह में भाग लेने के लिए सवाई माधोसिंह द्वितीय इंग्लैण्ड गए। लंदन में अपने दो महीने के प्रवास के दौरान सवाई माधोसिंह द्वितीय अपने साथ चांदी के दो बड़े कलश बनवाकर उनमें तकरीबन 8000 लीटर गंगाजल भी ले गए थे। चांदी के ये विशाल कलश वर्तमान में जयपुर के सिटी पैलेस के ‘दीवान-ए-खास’ नामक हाल में रखे हुए हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय अपने साथ 8000 लीटर गंगाजल लेकर क्यों गए थे? यह रहस्य जानने के लिए इस रोचक स्टोरी को जरूर पढ़ें।
सवाई माधोसिंह द्वितीय का संक्षिप्त जीवन परिचय
रामसिंह द्वितीय की जब नि:सन्तान मृत्यु हुई तो उनका दत्तक पुत्र सवाई माधोसिंह द्वितीय सन् 1880 ई. में आमेर की गद्दी पर बैठा। राजपूताना इतिहास में सवाई माधोसिंह द्वितीय को ‘बब्बर शेर’ के नाम से भी जाना जाता है। सवाई माधोसिंह द्वितीय ने जयपुर के सिटी पैलेस में मेहमान नवाजी के लिए हिन्दू-इस्लामिक व ईसाई शैली में ‘मुबारक महल’ बनवाया जिसे मानसिंह द्वितीय ने सिटी पैलेस म्यूजियम जयपुर का हिस्सा बना दिया। 1904 ई. में सवाई माधोसिंह द्वितीय के शासनकाल में राजस्थान की समस्त देशी रियासतों में डाक टिकट एवं पोस्टकार्ड की शुरूआत सर्वप्रथम जयपुर रियासत में हुई।
सवाई माधोसिंह द्वितीय ने नाहरगढ़ किले में अपनी नौ पासवानों के लिए एक ही डिजाइन के नौ सुन्दर महलों का निर्माण करवाया जो विक्टोरियन शैली में बने हैं। इन नौ महलों के नाम- सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललित प्रकाश, आनंद प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, चांद प्रकाश, फूल प्रकाश और बसंत प्रकाश है। रानियों के सभी महल छत पर स्थित एक गलियारे से जुड़े हैं। यह गलियारा राजा के कक्ष में दोनों ओर से रानियों के महल से जुड़ा है। यहां से होकर राजा किसी भी रानी के कक्ष में जा सकते थे।
पंडित मदनमोहन मालवीय के जयपुर आगमन के दौरान सवाई माधोसिंह द्वितीय ने न केवल पंडितजी की मेहमाननवाजी की बल्कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए 5 लाख रुपए भी दिए। सवाई माधोसिंह द्वितीय गंगाभक्त थे, इसीलिए उन्होंने साल 1914 ई. में जयपुर के 'गोविंद देवजी मंदिर' के पीछे जयनिवास उद्यान में गंगा माता का मंदिर बनवाया। गंगामाता मंदिर में करौली से लाए गए पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। इस मंदिर में गंगा माता की मूर्ति के पास रखे तकरीबन 11 किलों के स्वर्ण कलश में गंगाजल सुरक्षित रखा गया है।
कहा जाता है कि गंगा माता मंदिर निर्माण और स्वर्ण कलश स्थापना के करीब 103 साल बीतने के बाद भी इसमें से गंगाजल की एक भी बूंद भी कम नहीं हुई है। गंगाभक्त सवाई माधोसिंह द्वितीय प्रत्येक वर्ष हरिद्वार जाते थे जहां वे महीनेभर रहते। साल 1922 में अपनी मृत्यु से पूर्व सवाई माधोसिंह द्वितीय ने गोपालजी मंदिर का भी निर्माण करवाया। महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय इन दोनों मंदिरों के दर्शन करने तड़के उठकर जाते थे।
सवाई माधोसिंह द्वितीय ने बनवाए चांदी के दो विशाल कलश
इंग्लैण्ड जाते समय महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय अपने साथ गंगाजल से भरे चांदी के दो विशाल कलश भी ले गए। चांदी के इन दो कलशों में से प्रत्येक का वजन तकरीबन 345-345 किलोग्राम था। चांदी के प्रत्येक कलश की उंचाई 5 फीट 3 इंच, गोलाई 14 फीट 10 इंच है और क्षमता 4091 लीटर है।
चांदी के इन दो विशाल कलशों को जयपुर के स्वर्णकार गोविंदराम और माधव ने तकरीबन 14000 चांदी के सिक्कों को गलाकर तैयार किया गया था। इनके ढक्कन और हत्थों को भी इन्हीं सुनारों ने बनाया था। इन विशाल कलशों को आसानी से आगे खिसकाने के लिए इनके आधार में छोटे पहिए वाली प्लेट लगाई गई है।
कहते हैं चांदी के इन विशाल कलशों को बनाने में दो साल लग गए थे। चांदी से निर्मित इस विशाल कलश की खासियत यह है कि इसमें सोल्डरिंग सेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया गया है, यह विशाल पात्र चांदी का एक ठोस टुकड़ा है। चांदी से बने इन विशाल कलशों की खासियत के कारण ही इन्हें 1902 ई. में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। ये गंगाजली कलश वर्तमान में जयपुर के सिटी पैलेस स्थित दीवान-ए-खास में रखे हुए हैं।
8000 लीटर गंगाजल क्यों ले गए थे माधोसिंह द्वितीय
ब्रिटेन के एडवर्ड सप्तम ने जब जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय को अपने राजतिलक समारोह में शामिल होने के लिए इंग्लैण्ड आमंत्रित किया तो महाराजा के सामने एक प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया। दरअसल उन दिनों सनातनी समाज समुद्र पार करना अशुभ मानता था। सवाई माधोसिंह द्वितीय इस शाही निमंत्रण को अस्वीकार नहीं कर सकते थे क्योंकि इससे ब्रिटेन का राजा एडवर्ड सप्तम नाराज़ हो सकता था। इसलिए इस विदेश यात्रा के लिए एक उपाय निकाला गया जिसके तहत महाराजा माधोसिंह द्वितीय एक ऐसे जहाज से यात्रा करेंगे जिस पर कभी मांस नहीं पकाया गया हो। साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि इंग्लैण्ड प्रवास के दौरान गंगाभक्त महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय केवल राधा-गोपाल को अर्पित प्रसाद का सेवन करेंगे और गंगाजल ही पीएंगे। इसलिए महाराजा माधोसिंह द्वितीय अपने साथ ईष्ट देव राधा-गोपाल की मूर्ति, जयपुर की मिट्टी तथा चांदी से निर्मित दो विशाल कलशों में तकरीबन 8000 लीटर गंगाजल भरकर ले गए थे।
महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय की लंदन यात्रा
ब्रिटेन के किंग एडवर्ड सप्तम के राजतिलक समारोह में भाग लेने के लिए जयपुर के महाराजा जब इंग्लैण्ड के लिए निकले तब उनके साथ 25 हिन्दू पुजारी, 132 सेवक, 600 नग सामान तथा 8,000 लीटर से अधिक गंगाजल से भरे चांदी के दो विशाल कलश थे। इसके लिए सबसे पहले ओलम्पिया नामक पानी का जहाज डेढ़ लाख रुपए में किराए पर लिया गया। तत्पश्चात पूरे जहाज को गंगाजल से धुलवाया गया। महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय के लिए ओलम्पिया जहाज में छह आलीशान कमरे तैयार किए गए, इनमें से एक कमरे में महाराजा के ईष्ट देव राधा-गोपाल को स्थापित किया गया।
कहते हैं, महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय की ट्रेन जब जयपुर से मुंबई के लिए निकली, इससे पूर्व उस ट्रेन तक जुलूस के रूप में राधा-गोपालजी को ले जाया गया। नन्दकिशोर पारीख द्वारा लिखित दस्तावेज ‘राजदरबार और रनिवास’ के मुताबिक, महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय की जहाज ओलम्पिया पर पचरंगा झण्डा लहरा रहा था। यात्रा के दौरान ओलम्पिया नामक यह जहाज जब अदन पहुंचा तब इसे तोपों की सलामी दी गई।
कहते हैं, सवाई माधोसिंह द्वितीय अपने साथ दो नहीं बल्कि तीन गंगाजली कलश इंग्लैण्ड ले गए थे। दरअसल इंग्लैण्ड यात्रा के दौरान ओलम्पिया जहाज जब मैसीनिया की खाड़ी में आए समुद्री तूफान में फंस गया तब पुरोहितों की सलाह पर भगवान वरुण को प्रसन्न करने के लिए एक गंगाजली कलश समुद्र में गिरा दिया गया।
महाराजा जब सिसिली द्वीप होते हुए मार्सेल्स पहुंचे तब उन्होंने अपने साथ चल रहे अंग्रेज अफसर को दो हजार रुपये गरीबों में बांटने के लिए दिए। मार्सेल्स पहुंचने के बाद महाराजा ने ट्रेन से कैले बन्दरगाह तक 24 घंटे की रेलयात्रा की। ट्रेन में ही राधा-गोपाल की मूर्ति स्थापित की गई थी। कैले बन्दरगाह से डचेज आफ मार्क नामक जहाज के जरिए वह एक घंटे के अन्दर इंग्लैण्ड के डोवर बन्दरगाह पहुंच गए जहां ब्रिटेन की नौसेना ने 21 तोपें दागकर महाराजा माधोसिंह द्वितीय का स्वागत किया। पानी के जहाज से जब महाराजा का लाव-लश्कर और छह सौ नग सामान उतरा तो इतना तामझाम देकर अंग्रेज दंग रह गए। डोवर से ट्रेन के जरिए महाराजा जब लन्दन प्लेटफार्म पर उतरे तो काले साटीन का चोगा और रंगीन अंगरखियों और लाहरिया साफा पहने छः फुट के दाढ़ी वाले जयपुर के महाराजा को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। भारत के सचिव लार्ड हेमिल्टेन ने महाराजा का ‘रेड कार्पेट वैलकम’ किया तथा ब्रिटेन के राजा ने अपनी शानदार गाड़ी भेजी।
लंदन प्रवास के दौरान सवाई माधोसिंह द्वितीय का सनातनी अंदाज
महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय 3 जून 1902 को लंदन पहुंचे तब जिस आलीशान बंगले में उन्हें ठहराया गया था वहां तक राधा-गोपाल को ले जाने के लिए जुलूस निकाला गया जिसे देखने के लिए अंग्रेजों की भीड़ एकत्र हो गई। महाराजा सवाई माधोसिंह की अपने इष्ट के प्रति श्रद्धा को देखकर लन्दन ही नहीं पूरा विश्व अचंभित हुआ। हांलाकि इस यात्रा का कुछ अंग्रेज पत्रकारों ने मखौल भी उड़ाया और इसे एक अंधविश्वासी राजा की सनक तक कहा। बावजूद इसके महाराजा ने अपने सनातनी भाव में कोई कमी नहीं आने दी।
दो महीने के लंदन प्रवास के दौरान महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय प्रतिदिन अपने ईष्टदेव राधा-गोपाल की पूजा-अर्चना करते थे। इसके अतिरिक्त वह जब भी किसी अंग्रेज से हाथ मिलाते, अपने साथ जयपुर से लाई गई मिट्टी से अपना हाथ मलते तत्पश्चात गंगाजल से हाथ धोकर खुद को पवित्र करते थे। चाहे समुद्री यात्रा हो या फिर लंदन प्रवास, इन सभी दिनों में गंगाजल से ही महाराजा का भोजन बनता था तथा वह गंगाजल का ही सेवन करते थे।
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