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Khyber Pass: Foreign invaders entered India through this route

खैबर दर्रा : इसी रास्ते से भारत में दाखिल हुए थे विदेशी आक्रमणकारी

उत्तर पश्चिमी सीमा पर स्थित खैबर दर्रे को भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता था। सामरिक दृष्टिकोण से खैबर दर्रा एकमात्र ऐसा रास्ता था जिससे सिकंदर, महमूद गजनवी, मुहम्मद ग़ोरी, चंगेज खाँ, तैमूर और मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर सहित कई अन्य विदेशी आक्रमणकारी भारत में दाख़िल हुए।

कहा जाता है कि खैबर दर्रे पर जिसका भी नियंत्रण होता था वह भारतीय उपमहाद्वीप सहित मध्य एशिया में दखल देने की क्षमता रखता था। यही वजह है कि इस भौगोलिक क्षेत्र पर नियंत्रण को लेकर हमेशा संघर्ष देखने को मिला। मौर्य साम्राज्य से लेकर मुगल, सिक्ख तथा अंग्रेजी साम्राज्य तक का खैबर दर्रे पर कब्जा रहा। मौर्य, सिक्ख तथा ब्रिटिश सेना ने इसी रास्ते से अफगानिस्तान पर आक्रमण किया था।

ऐसे में खैबर दर्रा कहां स्थित है अथवा वर्तमान में यह क्षेत्र किस देश से जुड़ा है। इस महत्वपूर्ण सामरिक रास्ते से कौन-कौन से आक्रमणकारी भारत आए थे। इन सब महत्वपूर्ण तथ्यों को विस्तार से जानने के लिए यह स्टोरी जरूर पढ़ें।

खैबर दर्रा 

हिन्दुकुश पर्वत श्रृंखला में स्थित ख़ैबर दर्रा को दर्र--खैबर भी कहा जाता है। खैबर दर्रे की लम्बाई 50 किमी. है। बृहदाकार पर्वतों के बीच स्थित खैबर दर्रे का सँकरा भाग महज 10 से 15 फीट चौड़ा है। खैबर दर्रे के दोनों तरफ करीब डेढ़ हजार फीट ऊंची पहाड़ी चट्टानें हैं और इनके बीच में गुफाओं की भूल भुलैया भी है। प्रकृति ने खैबर दर्रे की ऐसी घेराबन्दी की है जिसे किसी भी जंगी हथियार से जीतना नामुमकिन है।

खैबर दर्रे से भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एशिया के बीच बड़ी आसानी से आवागमन किया जा सकता है। खैबर दर्रे के दोनों तरफ छोटे-छोटे गाँव और अफरीदी कबीलों की तकरीबन 60 मीनारे हैं। इसके आगे तीन मील चौड़ा और तकरीबन 10 किमी. लम्बा लोआर्गी का पठार है जो लांडी कोटल (खैबर पख्तूनख्वा प्रांत का एक शहर और खैबर जिले की प्रशासनिक राजधानी) में जाकर खत्म होता है। यहां ब्रिटिश शासकाल में बना एक किला भी है, जहां से अफगानिस्तान का मैदानी भाग दिखाई देता है।

खैबर दर्रे की वर्तमान भौगोलिक स्थिति

भारतीय इतिहास का सबसे मशहूर खैबर दर्रा, 1947 में भारत विभाजन के बाद से पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित एक पर्वतीय इलाका है जो अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से लगा हुआ है। खैबर दर्रा, पेशावर से महज 11 मील की दूरी बने ऐति​हासिक प्रवेश द्वार बाब-ए-ख़ैबर' से शुरू होता है और 24 मील की दूरी पर स्थित पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा तोरखम पर खत्म होता है। तोरखम से ही लोग डूरंड रेखा पार करके अफगानिस्तान में प्रवेश करते हैं। कुल मिलाकर खैबर दर्रा पेशावर से काबुल को जोड़ता है।

खैबर दर्रे का प्रवेश द्वार

पाकिस्तान के पेशावर शहर से कुछ ही किमी. की दूरी खैबर दर्रे का प्रवेश द्वार बना हुआ है। जमरूद तहसील में बने इस प्रवेशद्वार पर अब सड़क बन गई है जो पेशावर से काबुल को जोड़ती है। पहले यहां अंग्रेजी सेना की छावनी थी, परन्तु अब यहां पाकिस्तानी सेना रहती है।

पाकिस्तान आर्मी के फील्ड मार्शल अयूब खान के शासनकाल में इस प्रवेशद्वार का निर्माण किया गया था। इस प्रवेश द्वार को बनाने में दो साल लगे और यह जून 1963 में बनकर तैयार हुआ। इस प्रवेशद्वार का निर्माण गामा मिस्त्री और सादिक मिस्त्री ने किया जो रिश्ते में चाचा-भतीजे थे।

इस प्रवेशद्वार के शिलालेख पर उन सभी शासकों तथा आक्रमणकारियों के नाम उत्कीर्ण हैं जिन्होंने इस रास्ते का इस्तेमाल किया था। महाराजा रणजीत सिंह के सिख सेनापति हरि सिंह नलवा ने इसी प्रवेशद्वार के पास पानी के जहाज की तरह दिखने वाले एक किले का निर्माण करवाया था, ताकि खैबर दर्रे पर आसानी से नजर रखी जा सके।

खैबर दर्रे से भारत में घुसने वाले वाले प्रमुख आक्रमणकारी

यह सच है कि जब तक भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा सुरक्षित रही तब तक विदेशी आक्रमणकारी महज सिन्ध और मुल्तान तक ही सीमित रहे। परन्तु उत्तर-पश्चिम सीमा की प्राचीर टूटे जाने के बाद जिस तरह से हिन्दू राज्यों की पराजय हुई, यह भी इतिहास की एक आश्चर्यजनक घटना है।

जी हां, मैं उत्तर-पश्चिम सीमा यानि खैबर दर्रे की बात कर रहा हूं जो विदेशी आक्रमणकारियों के लिए भारत का प्रवेश द्वार रहा है। ईरानी, यूनानी, मुगल और अफगानी आक्रमणकारियों के साथ-साथ अंग्रेज भी इसी रास्ते से होकर गुजरे।

1-दारा प्रथम (डेरियस प्रथम)

फारस (ईरान) के प्राचीन हखामनी वंश का प्रसिद्ध शासक दारा प्रथम यानि डेरियस प्रथम एक खूंखार योद्धा था। उसने पांचवी शताब्दी (512 ई.पूर्व) में न केवल काबुल के प्रदेशों पर विजय प्राप्त की बल्कि खैबर दर्रे से होते हुए भारत में प्रवेश किया। डेरियस प्रथम ने भारत के पंजाब तथा सिन्ध नदी तक के ​क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।

2-यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर

यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर ने 326 ई. पूर्व के बसन्त में भारत पर आक्रमण किया था। उसने बल्ख क्षेत्र को जीतने के बाद काबुल होते हुए खैबर दर्रे को पारकर भारत की सीमा में प्रवेश किया। यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर के सेनापति सेल्युकस निकेटर ने भी भारत आने के लिए खैबर दर्रे का ही प्रयोग किया था।

3- खैबर दर्रे पर था मौर्य साम्राज्य का कब्जा

चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक का काबुल, कन्धार और हेरात के प्रदेशों पर कब्जा था। जाहिर सी बात है इन दोनों महान सम्राटों का खैबर दर्रे पर नियंत्रण था। बतौर उदाहरण- खैबर दर्रे के आसपास बौद्ध धर्म खूब फला-फूला। यहां के बौद्ध मंदिरों में काफिर कोट (काफिरों का गढ़) तथा स्फोला स्तूप प्रमुख हैं।

4- महमूद गजनवी

गजनी के शासक सुबुक्तगीन के पुत्र महमूद गजनवी ने 1000 ई. से 1027 ई. के बीच खैबर दर्रे के जरिए भारत पर तकरीबन 17 बार आक्रमण किए। महमूद गजनवी ने भारत पर पहला आक्रमण हिन्दू शाही राजा जयपाल पर किया था। जयपाल ने महमूद गजनवी से पराजित होने पर 1001 ई. में आत्मदाह कर लिया।

5- मुहम्मद गोरी

उत्तरी-पश्चिमी अफगानिस्तान के शासक मुहम्मद गोरी ने खैबर दर्रे को पारकर भारत में प्रवेश किया था। 1175 ई. में उसका पहला आक्रमण मुल्तान पर हुआ था। इसके बाद 1178 ई. में उसने गुजरात पर आक्रमण किया लेकिन मूलराज द्वितीय के हाथों परा​जित हुआ।

1191 ई. में तराईन के प्रथम युद्ध में उसे पृथ्वीराज चौहान के हाथों करारी शिकस्त झेलनी पड़ी हांलाकि 1192 ई. में तराईन के द्वितीय युद्ध में गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया। इसी के साथ भारत में तुर्की राज्य की शुरूआत हुई।

6- चंगेज खान

खूंखार मंगोल आक्रमणकारी चंगेज खान दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश के शासनकाल में ख्वारिज्म (अब तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान में एक क्षेत्र) के शाह जलालुद्दीन मंगबरनी का पीछा करता हुआ खैबर दर्रे के रास्ते सिन्धु नदी तक आ पहुंचा था। परन्तु सुल्तान इल्तुतमिश ने मंगबरनी को शरण देने से इनकार कर दिया जिससे चंगेज खां वहीं से वापस लौट गया।

7- मुगल बादशाह बाबर

समरकन्द की हार के बाद बाबर ने खैबर दर्रे के रास्ते भारत में प्रवेश किया। 1519 ई. से 1524 ई. के बीच उसने भारत पर चार बार आक्रमण किया। साल 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को शिकस्त देकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। बाबर सहित उसके वंशजों ने काबुल पर अधिकार करने के लिए बार-बार खैबर दर्रे का इस्तेमाल किया था।

8- नादिर शाह

ईरानी आक्रमणकारी नादिरशाह ने कन्धार और काबुल पर अधिकार करने के बाद खैबर दर्रे के रास्ते भारत में प्रवेश किया। 1739 ई. में नादिरशाह ने दिल्ली में 15 दिनों तक खूब लूटपाट मचाई। उसने मुगल बादशाह मुहम्मदशाह से न केवल कोहिनूर हीरा प्राप्त किया बल्कि तकरीबन 70 करोड़ रूपए की अमूल्य सम्पत्ति लूट कर अपने देश ले गया।

9- अहमदशाह अब्दाली और उसका पोता जमानशाह

अफ़गान आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली को अहमदशाह दुर्रानी भी कहा जाता है। अहमदशाह अब्दाली ने खैबर दर्रे के रास्ते पंजाब के कई क्षेत्रों पर आधिपत्य जमाया था। इसके बाद उसने मुगल तथा मराठा प्रदेशों पर हमले किए। 1761 ई़. में पानीपत के तृतीय युद्ध में अहमदशाह अब्दाली ने शक्तिशाली मराठों को निर्णायक शिकस्त दी थी। इसके बाद उसके पोते जमानशाह ने भी खैबर दर्रे के रास्ते पंजाब पर आक्रमण किया था। महाराजा रणजीत सिंह ने अपना राज्य विस्तार पेशावर के जमरूद तक किया था।

10- आंग्ल-अफगान युद्ध

खैबर दर्रे के दोनों तरफ कबाईली अफरीदियों का निवास था, जो खैबर दर्रे पर किसी भी बाहरी ताकत ​का नियंत्रण बर्दाश्त नहीं करते थे। लिहाजा मुगलों सहित अंग्रेजों ने उनके खिलाफ कई अभियान चलाए।

अंग्रेजों ने खैबर दर्रे की तरफ 1839 ई. से 1919 ई. के बीच तीन युद्ध लड़े जिसे भारतीय इतिहास में आंग्ल-अफगान युद्ध कहा जाता है। 1897 ई. में कबाईली अफ़रीदियों ने खैबर दर्रे पर कब्ज़ा कर लिया और कई महीनों तक उस पर कब्ज़ा बनाए रखा। हांलाकि उसी वर्ष तिराह अभियान के बाद, दर्रे की सुरक्षा की जिम्मेदारी अंग्रेजों पर आ गई।

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